Ch 2 : जो छुपा है, वो सामने आएगा
शमशेरपुर की सुबह की हवा कुछ अलग लग रही थी — भारी, गीली, जैसे रात की फुसफुसाहटों ने हवा को सोख लिया हो। बारिश रुक चुकी थी, लेकिन बादल अभी भी नीचे मंडरा रहे थे, और सूरज की रोशनी जहां आनी चाहिए थी, वहां भी लंबी परछाइयाँ पड़ रही थीं। गाँव, जो आमतौर पर चिड़ियों के गीत और बर्तन की आवाजों से भरा रहता था, आज अजीब तरीके से शांत था। बहुत ज़्यादा शांत।
मीरा अपने बिस्तर के किनारे बैठी थी, हाथ में अपनी बहन की पुरानी डायरी पकड़े हुए। उसकी आँखें नींद न आने के कारण सूजी हुई थीं। वह आवाज़ — निष्ठा की आवाज़ — उसके दिमाग से निकल ही नहीं रही थी। वह उसकी कानों में गूंज रही थी जैसे एक भुली हुई लोरी, जो अब चेतावनी की तरह सुनाई दे रही थी।
"मीरा… वापस आओ…"
हर बार जब वह ये सोचती, उसका दिल धड़कने लगता — सिर्फ डर से नहीं, बल्कि एक ऐसे दुख से जो कभी खत्म नहीं हुआ था। जंगल ने निष्ठा को ले लिया था। और अब वह मीरा को बुला रहा था।
इसी बीच दरवाज़ा धीरे से खुला। रवि अंदर आया, हाथ में चाय का कप लिए। उसने पहले कुछ नहीं कहा, उसे कहने की ज़रूरत भी नहीं थी। उसके चेहरे पर चिंता साफ दिखाई दे रही थी। उसने कप को धीरे से टेबल पर रखा और चुपचाप बैठ गया।
“तुमने रात भर नहीं सोया, है ना?” उसने धीरे से पूछा।
मीरा ने सिर हिलाया, उसकी आवाज़ जैसे किसी तरह निकल रही थी। “कैसे सो सकती थी? वो… वो वहाँ थी, रवि। कोई सपना नहीं — वो असल में थी। उसकी आवाज़… वह मिन्नतें कर रही थी।”
रवि ने नीचे देखा और अपने हाथों को कसकर पकड़ा। “मैं तुम पर विश्वास करता हूँ, मीरा। मुझे नहीं पता यह क्या है — आत्मा, यादें, कुछ और — लेकिन मैं तुम पर विश्वास करता हूँ। और जो भी हो, हम इसका सामना साथ करेंगे।”
इसी बीच दरवाज़े पर हल्की खटखटाहट हुई।
वह धीरे से खुला, और यामिनी अंदर आई, उसकी आँखों में चिंता थी। वह हमेशा शांत, हमेशा कोमल रहती थी — लेकिन आज कुछ अलग था। उसके हाथ कांप रहे थे जैसे उसे डर हो। कोई अभिवादन नहीं, कोई मुस्कान नहीं। सिर्फ चुप्प।
“मैंने भी कुछ महसूस किया,” उसने धीमे से कहा, जैसे दीवारों से डरते हुए। “रात बारह बजे… मैं अचानक जागी। मुझे पता नहीं क्यों। मुझे बस… ठंड महसूस हुई। और फिर मैंने सुना। मेरी खिड़की के बाहर।”
मीरा और रवि ने उसे घूरकर देखा। “क्या सुना तुमने?” मीरा ने फुसफुसाया।
यामिनी ने गहरी सांस ली। “एक गुनगुनाने की आवाज़। जैसे एक लोरी हो। लेकिन यह… इंसानी नहीं थी। वह सुनसान थी। ठंडी। यह किसी का नाम नहीं पुकार रही थी, लेकिन किसी को आने के लिए बुला रही थी। मुझे वह महसूस हुआ।”
सन्नाटा फिर से फैलने से पहले एक और आवाज़ आई।
“तुम यह कल्पना नहीं कर रहे हो।”
यह राघव था, जो दरवाज़े के बाहर खड़ा था। वह ऐसा लग रहा था जैसे उसने कई दिनों से किसी से बात न की हो। उसकी आँखों में कुछ गहरा था — कुछ अंधेरा, जैसे उसने वह देखा हो, जिसे कोई नहीं समझा सकता।
“मैंने कोई आवाज़ नहीं सुनी,” वह बोला, “लेकिन मैंने कुछ देखा। एक परछाई। जंगल के किनारे। और वह मीरा के घर को घूर रही थी।”
कोई कुछ नहीं बोला। कमरे में ठंडक बढ़ गई थी, हालांकि कोई हवा नहीं आ रही थी। बाहर, एक कौआ तने से तड़तड़ाकर बोला, जिससे मीरा थोड़ा चौंकी।
वह धीरे से खड़ी हुई, उसकी आवाज़ मुश्किल से निकल रही थी।
“तो हम सब इसे महसूस करते हैं,” उसने कहा। “हम सब जानते हैं कि कुछ गलत है।”
यामिनी ने सिर हिलाया। “यह अब सिर्फ निष्ठा के बारे में नहीं है।”
मीरा ने अपनी बहन की डायरी को अपने सीने से लगा लिया। “तो मैं आज रात जाऊँगी। मुझे देखना है वह क्या चाहती है। मुझे जानना है कि क्या हुआ था।”
रवि पास आया। “हम साथ जाएंगे। जो कुछ भी उस जंगल में है… वह तुझसे उसे नहीं ले पाएगा, जैसे उसने उसे लिया था।”
राघव और यामिनी ने एक-दूसरे को देखा, फिर दोनों ने सिर हिलाया।
उस रात, कुछ बदल चुका था। वे सब इसे महसूस कर सकते थे। अतीत अब दफन नहीं था। वह जाग रहा था — और वह उन्हें खींच रहा था।
चार दोस्त, यादों, हानि और डर से जुड़े हुए, अब उस जगह पर कदम रखने वाले थे, जहाँ बाकी सब लोग सालों से नहीं गए थे। जंगल ने एक बार लिया था।
अब वह फिर से लेने के लिए इंतजार कर रहा था।
योजना स्पष्ट नहीं थी। किसी ने भी शब्दों में नहीं कहा, लेकिन उनकी आँखों में एक ही सच था — वे आज रात जंगल में जाएंगे। अब और इंतजार नहीं। अब और यह नहीं मानना कि यह सिर्फ शोक था, जो उन्हें भ्रमित कर रहा था।
शाम जल्दी गिरने लगी। बादल घने हो गए, सूरज की आखिरी किरण को निगलते हुए। गाँववालों ने पहले से ही अपने दरवाज़े बंद कर दिए थे। हवा में अजीब भारीपन था, जैसे जंगल खुद जानता हो कि कोई आ रहा है।
मीरा के घर में, वे फिर से इकट्ठा हुए, इस बार एक लालटेन के चारों ओर बैठे। उसकी जलती हुई लौ दीवारों पर लंबी, कांपती हुई परछाइयाँ बना रही थी — जैसे वे भी उन्हें देख रहे हों।
तेजा अभी तक नहीं आया था।
“क्या हम उसका इंतजार करें?” यामिनी ने, अपनी होंठ चबाते हुए, डर के साथ पूछा।
मीरा ने सिर हिलाया। “उसने कहा था कि वह आएगा। वह इसे मिस नहीं करेगा।”
सन्नाटा लंबा था। असहज। डायरी उनके बीच पड़ी थी — एक पन्ना खुला हुआ था, जिसे उन्होंने पहले नहीं देखा था। वह निष्ठा की usual लिखावट जैसी नहीं थी। स्याही गहरी, मोटी… जैसे जल्दी में लिखी गई हो।
> "जो तुम्हारा नाम पहले ले, उस पर भरोसा मत करना।"
रवि की भौहें चढ़ गईं। “इसका क्या मतलब है?”
मीरा ने धीरे-धीरे उस पंक्ति को छुआ। “मुझे नहीं पता। मैंने पहले कभी यह पन्ना नहीं देखा।”
“यह लगता है जैसे… इसे उसने नहीं लिखा है,” राघव ने धीरे से कहा।
उनकी बातों के बीच में अचानक दरवाज़े पर ज़ोर से खटखटाने की आवाज़ आई।
तीन ज़ोर के ठक्के।
सभी सन्नाटे में आ गए।
रवि पहले खड़ा हुआ। “यह तेजा होगा।”
वह दरवाज़ा खोलने गया और तुरंत उसे खोला — लेकिन बाहर कोई नहीं था।
बस हवा।
कमरे में एक ठंडक महसूस हुई। मीरा की सांसें थम गईं। “तुमने भी सुनी थी, है ना?”
इसी बीच, खिड़की पर हल्की सी खटखटाने की आवाज़ आई।
टप। टप। टप।
यामिनी चिल्लाई, “मत खोलना!”
राघव पहले ही उस ओर बढ़ चुका था, लेकिन बीच रास्ते में रुक गया। उसने जो देखा, वह हैरान करने वाला था।
एक हाथ का निशान। बाहर की तरफ, कांच पर। छोटा। हल्का। धीरे-धीरे मिटता हुआ।
“किसी ने कांच को छुआ नहीं,” रवि ने फुसफुसाया। “यह तो दूसरी मंजिल है।”
अचानक, हॉल से कदमों की आवाज़ आई।
लेकिन ये कदम तेज़ नहीं थे।
ये कदम घसीटते हुए आ रहे थे।
एक कदम। घसीटना। दूसरा कदम। घसीटना।
मीरा ने लैंप पकड़ा और खड़ी हुई, दिल तेज़ी से धड़क रहा था। “कौन है वहां!?”
कदम रुक गए।
फिर…
एक परिचित आवाज़ गूंज उठी — नरम, नाज़ुक, लेकिन टूटी हुई।
> “मीरा… तुम मुझे भूल गई…”
मीरा की आँखों में आँसू आ गए।
“यह निष्ठा है,” उसने धीमे से कहा।
“नहीं!” रवि ने दृढ़ता से कहा, और मीरा के सामने खड़ा हो गया। “वो जा चुकी है। जो भी यह है — यह वह नहीं हो सकती।”
तभी, दरवाज़ा जोर से खुला और तेजा अंदर आया — पसीने में भीगा हुआ, और हाँफते हुए।
“जंगल में कुछ है!” उसने हाँफते हुए कहा। “मैं थोड़ा आगे गया… सिर्फ देखने के लिए… और मैंने उसे देखा। निष्ठा। खड़ी हुई। रास्ते के बीच में। लेकिन उसके… उसके पास आँखें नहीं थीं।”
सभी लोग चुप हो गए।
“और केवल इतना ही नहीं,” तेजा बोला, उसकी आवाज़ कांप रही थी। “उसने मुझे इशारा किया… और उसके पीछे… पेड़ों के बीच एक और खड़ा था। मैं उसे देख नहीं सका। लेकिन वह लंबा था। मुझे देख रहा था। साँस ले रहा था।”
कोई कुछ नहीं बोला।
लैंप की लौ फिर से हिल गई। हवा और भी भारी हो गई।
मीरा ने धीरे से सबकी ओर देखा।
“अगर हम आज रात गए,” उसने धीमे से कहा, “तो हम सिर्फ जंगल में नहीं जा रहे। हम एक ऐसी जगह में जा रहे हैं जो जानती है कि हम आ रहे हैं। कुछ ऐसा जो इंतजार कर रहा है।”
यामिनी के हाथ कांपने लगे। “क्या हमें फिर भी जाना चाहिए?”
राघव ने उत्तर दिया, उसकी आवाज़ शांत, लेकिन ठंडी थी।
“अब हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है।”
और उस सन्नाटे में, डायरी के पन्ने फिर से अपने आप पलटने लगे — और एक लाइन पर रुक गए, जिसे उन्होंने पहले नहीं देखा था।
> “जब तुम आवाज़ सुन लो, तो रास्ता शुरू हो चुका है।”
बाहर, कहीं दूर लेकिन साफ़, वही आवाज़ फिर से गूंजी।
> “मीरा…”
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