Mrut Aatma ki Pukaar - 4 in Hindi Spiritual Stories by Sai Sesya books and stories PDF | मृत आत्मा की पुकार - 4

Featured Books
Categories
Share

मृत आत्मा की पुकार - 4

Ch 4 : मंदिर की परछाइयाँ


शमशेरपुर में अगली सुबह कुछ अजीब सी थी।


सूरज तो निकला, लेकिन उसकी रोशनी में वो गर्माहट नहीं थी। जैसे आसमान भी डर गया हो। गाँव पूरी तरह शांत था। न पक्षियों की आवाज़, न ही घरों के बर्तनों की खनक। हर कोई जैसे किसी अनदेखे डर में जी रहा हो।


मीरा ने पूरी रात एक पल भी नहीं सोया। उसकी बहन निष्ठा का चेहरा उसकी आँखों के सामने बार-बार आ रहा था — लेकिन अब वो चेहरा वैसा नहीं था जैसा यादों में था। वो चेहरा अब डरावना और सूना था… जैसे उसमें कोई आत्मा नहीं बची हो।


मीरा धीरे-धीरे आँगन में आई। वो अपने सीने से निष्ठा की डायरी को चिपकाए हुए थी। तभी उसकी नज़र तुलसी के पास ज़मीन पर बनी एक चीज़ पर पड़ी।


एक अजीब सा निशान।


काले रंग से बना हुआ, गोल चिह्न — जिसमें कुछ अजीब आकृतियाँ थीं। जैसे किसी ने ज़मीन पर जलाकर खींचा हो।


“ये… क्या है?” मीरा फुसफुसाई।


पीछे से रवि आया। “मैंने भी देखा… अपने दरवाज़े के पास। ठीक ऐसा ही निशान।”


कुछ ही देर में यामिनी, राघव और तेजा भी आ गए। उनके घरों के पास भी वही निशान बना था।


“ये कोई इत्तेफाक नहीं है,” राघव बोला। “ये एक निशानी है।”


तेजा ने उस निशान को ध्यान से देखा। “मेरे दादा जी इस निशान के बारे में बताया करते थे। इसे ‘बांधी गई आत्मा का चिह्न’ कहते हैं। जब कोई आत्मा इंसानों की दुनिया में रास्ता बना लेती है, तो वो पीछे ये निशान छोड़ती है।”


“तो क्या इसका मतलब है… वो आत्मा अब हमारे बीच है?” यामिनी डरते हुए बोली।


मीरा ने डायरी को कस कर पकड़ा। “अब और इंतज़ार नहीं कर सकते। हमें मंदिर के खंडहरों में जाना होगा। आज ही।”



---


🕉️ पुरोहित की चेतावनी


गाँव के बाहर एक टूटी-फूटी सी झोपड़ी थी। वही झोपड़ी पंडित वेदनाथ की थी — जो एकमात्र इंसान थे जो पुरानी, छुपी हुई बातों को जानते थे।


वे झोपड़ी के अंदर बैठे थे। बिना किसी आवाज़ के दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल गया।


अंदर की हवा भारी थी। दीवारों पर धूल जमी मूर्तियाँ थीं। माहौल कुछ कहता नहीं था, बस महसूस होता था।


“तुमने उसकी आवाज़ सुन ली है,” पंडित ने बिना देखे कहा। “और अब… उसने भी तुम्हारी सुन ली है।”


मीरा ने धीमे स्वर में कहा, “मेरी बहन… निष्ठा… वो एक साल पहले गायब हो गई थी।”


पंडित ने गहरी साँस ली। “वो मरी नहीं… उसे ले लिया गया। जो चीज़ तुमने देखी… वो निष्ठा नहीं थी। वो बस उसकी शक्ल ले चुकी थी। असली आत्मा तो बहुत पहले ही खो चुकी है।”


रवि ने पूछा, “वो हमसे क्या चाहती है?”


“साथी,” पंडित बोले। “वो आत्मा अकेली है… और अब वो तुम्हारे ग़म से रास्ता बनाती है।”


तेजा ने पूछा, “क्या हम उसे रोक सकते हैं?”


पंडित ने एक छोटी सी तांबे की ताबीज़ निकाली और मीरा को दी। “ये एक लड़की की थी जो उस आत्मा से बच निकली थी। इसे अपने पास रखो। और एक बात याद रखो…”


> “अगर वो तुम्हें नाम से पुकारे… तो जवाब मत देना।”





---


🌘 मंदिर की ओर


शाम होते-होते सभी जंगल के किनारे फिर से पहुँच गए। इस बार उनके पास थोड़ी तैयारी थी — ताबीज़, राख, धागा, नमक… और ढेर सारा डर।


जैसे ही वे अंदर गए, जंगल की हवा और भी भारी हो गई। पेड़ झुक रहे थे जैसे कुछ सुन रहे हों। हर कदम पर अजीब सी खामोशी थी।


करीब एक घंटे की चुपचाप यात्रा के बाद, वो जगह सामने आई।


मंदिर के खंडहर।


टूटी हुई मूर्तियाँ, झुके हुए खंभे, काई से ढकी दीवारें। ये जगह पुरानी ज़रूर थी, लेकिन मरी नहीं थी… वो जिंदा लग रही थी।


“यहीं मेरी बहन गई थी,” मीरा फुसफुसाई।


वे सब मंदिर के भीतर गए।


और तभी… आवाज़ आई।


धीमी। जानी-पहचानी। उदास।


> “तुमने मुझे छोड़ क्यों दिया…?”




निष्ठा।


या जो भी अब उसकी शक्ल में था।


मीरा की डायरी अपने आप खुल गई। एक नई लाइन दिखाई दी:


> “उसे छूने मत देना।”




फिर, अंधेरे से कोई परछाईं बाहर निकली।


वो आ रही थी — हवा में तैरती हुई। वो निष्ठा जैसी दिख रही थी, लेकिन वो नहीं थी। उसके हाथ फैले हुए थे। उसकी आँखें खाली थीं।


फिर एक और आवाज़ आई:


> “तुममें से एक… यहाँ का नहीं है…”




हर कोई एक-दूसरे को देखने लगा।


फिर आत्मा ने धीरे-धीरे अपनी उंगली उठाई… और इशारा किया।


यामिनी की ओर।


यामिनी सिहर गई। उसकी आँखों में डर था, लेकिन उसके होंठ कुछ नहीं बोले।


उसी वक्त डायरी फिर से फड़फड़ाई और एक और पंक्ति दिखाई दी:


> “हर छुपा हुआ भूत नहीं होता।”




दीया बुझ गया।


अंधेरा छा गया।


ना कोई चीख।

ना कोई हलचल।

सिर्फ एक ठंडी साँस…

बहुत पास।





मंदिर के अंदर की खामोशी अब डर बन चुकी थी। सब एक-दूसरे की ओर देख रहे थे, लेकिन कोई कुछ नहीं बोल पा रहा था।


और फिर… दिमाग में उठे कुछ सवाल:


क्या यामिनी सच में वही है जो वो दिखती है?


क्या वो आत्मा सच में निष्ठा है… या बस उसका चेहरा पहने हुए है?


उसने यामिनी की तरफ क्यों इशारा किया? क्या वो कुछ जानती है जो बाकी नहीं जानते?


क्या अब भी ये दोस्त एक-दूसरे पर भरोसा कर सकते हैं? या असली खतरा तो उनके बीच ही है?


जब रौशनी दोबारा जलेगी… क्या सब वहीँ होंगे?


और सबसे बड़ा सवाल — क्या ये सब अभी शुरू हुआ है… या अब बहुत देर हो चुकी है?



Thank you all for supporting me 🙏 

Please follow for more stories and novels