बाजार..... "14 " किश्त
छुपने वाले छुप कर घात कर देते हैं। तुम एक अच्छी शख्सियत रखते हो। रखो?कितना तुम उसके लिए कर सकते हो... उम्र भर के लिए... करो ? कोई अच्छे कर्म रब के सिवा कोई नहीं इस धरती पे जानता..... बेबसी सी तब तुझे सतायेगे ज़ब तुम्हे कोई सहारा देने के लिए भी नहीं मिलेगा... बाबू देव जी पैसे खत्म, खेल खत्म... खेल शुरू हुआ और खत्म।
मेरी मानो, मत झिजोड़ो रुसवा गम।
एक साल बाद..........
देव का सब कुछ खत्म हो चूका था। डिलीवरी केस मे कुमुदनी बच्चो समेत बचाते बचाते गुजर गयी थी। कितने ज़ख्म दें गयी थी... कितने गम दें गयी थी। एक धुआँ हवा मे उड़ता हुआ आवारा सा होकर धुआँ कही खो जाता था... वही बैठा था, देव बाहो वाली कुर्सी पे... वही यहाँ कुमुदनी अक्सर उसकी आखें बंद पीछे से करती और कहती थी... वीलचेयर पर.. " कौन हूँ मैं देव "
------" तुम मेरी कुमुदनी हो ----सिर्फ मेरी कुमुदनी। " देव अक्सर मुस्कराते हुए कहता था।
आज देव अकेला रह गया था...... गम उसके साये मे लिपटे हुए था। काली काली दाढ़ी और मुछे उसकी सूर्ये की डलती हुई किरणों मे थोड़ी थोड़ी चमकती थी। जयादा आज उसने पी हुई थी। और कुर्सी के डोल पे सिमटे हुए बैठा था। लिपटे हुए, खुदार से गम, दुःख जो अनसुलझे से लिपटे से, धुए की चादर मे गुम से, कितनी सिगरेट पी चूका था.... एक मुंशी दादा था उसका आपना साथी... जो उसके लिए खाना बनाता था। काफ़ी मे मीठा डाल के दिया था। मुंशी ज़ी ने कहा :- " साहब, बुरा मत मानना.. आप आपनी सेहत का ख़याल नहीं रखे गे फिर कौन हैं जो आपकी सेहत का ख़याल रख सकता --------" देव बड़ी लचारता बड़ी मुस्कान से बोला " मुंशी.. तुम मेरा ख़याल रखते हो, पर जो ख़याल कमुदूनी मेरा रखती थी, मुंशी ज़ी और नहीं रख सकता। " आँखो मे नमी थी।
मुंशी ने कहा ---" ज़ी हजूर.... मै आपके पिता समान हूँ... साहब आपको इतना गमगीन शराब मे डूबा नहीं देख सकता। " देव कुछ सीरयस हो गया था। सोच रहा था,
शराब ही हैं अब, जिंदा रहने को, जो आपने थे, सब छोड़ गए। "---मुंशी ज़ी, जिंदगी मे आपने कयो छोड़ जाते हैं।"
मुंशी हसते हुए बोला, " साहब ज़ी, शराब को सहारा बनाकर जयादा देर नहीं चल सका कोई.... बात बताऊ, ज़िन्दगी मे जिओ बस, बिना शराब के... ये तो मार देगी आपको... आपने और बन जाते हैं, जरा बाहर तो निकलो... इस जमाने मे, दोस्त हम कयो बनाते हैं, इस लिए कि वो दुःख मे सहारा बन सके। " देव खासते हुए बोला... " जरा पास आओ... " सुन कर मुंशी पास होकर,
देव ने कंधे पर हाथ रख के बेड तक मुश्किल मे पंहुचा था।
आँखो के इर्द गिर्द काले दायरे बन चुके थे... शरीर ऐसा हो गया था, मुटापा जयादा हो गया था... चलना भी अब कठन सा था। लत शराब की गमगीन को लग जाये तो फिर कभी नहीं छोड़ती.....
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रानी अब नयी नहीं, सुपर एक्टर बन चुकी थी।बनाने वाला मेहनत से ही कुछ बनता हैं, इसके पीछे था, देव... सिर्फ देव.....
रानी अक्सर उसको मिलने जाती थी... अब उसकी ज़िन्दगी उसके बगैर ऐसी थी जैसे पतंगे की गुल के बिन...
वो आज भी उसे उतना ही चाहती थी.. जितना पहली फ़िल्म मे लीड रोल मे।
उसने किसी को भी प्यार नहीं किया था। इसलिए कयो की देव की गहराईओ से डर गयी थी। कि कोई प्यार इतना खतरनाक हो सकता हैं, जैसे देव ने किया था। पर वो आज गुलाब के मेहकते गुलो का बुगा खरीद कर देव के अपार्टमेंट मे थी। जो अब देव ने शायद किश्तो मे ले लिया था। लिली की हर याद को वो भुला देना चाहता था... इसलिए उसने वो बगला वेच दिया दिया था... काफ़ी सस्ता... एक आपने अजीज को। ये अपार्टमेंट मे तीन महीनो से इधर आया था। और रानी जिसको जमाना जानने लगा था... पर देव उससे हर दिल की बात कर लेता था। रानी देव के पास बैठी थी।
बुगा.. जो चम चमकते गुलो से खसबू छोड़े गुलाबों की, देव के हाथ मे थे। " उसने बोला किस लिए ये बुगा... कितनी खसबू बिखेर रहे हैं... रानी। "
" ये मेरी अगली फ़िल्म वजूद के लिए हैं... " रानी ने देव के चेहरे को आपनी हथेलियों से पकड़ते हुए कहा था।
" ये फ़िल्म आपकी सुपर हिट हो... मेरी प्राथना हैं, परमपिता आगे। " रानी की आखें नम थी, जैसे बहुत कुछ कह गयी हो। देव ने कहा " तुम साड़ी मे बहुत सुंदर लगती हो, सच मे, बिलकुल उस जैसी.... " फिर उसकी आँखो मे पानी था, आखें भरी भरी सी जैसे लुढ़क ही गयी हो।
रानी ने कहा, " कया आपके यहाँ काफ़ी नहीं पूछते। " वही ढंग वही बात लहजा भी वैसा ही, देव और भाभुक हो गया था। देव ने चिल्ला कर कहा.... " मुंशी बाबा... "
------तभी ----
मुंशी ज़ी ने दो कप काफ़ी के लगा दिए। रानी ने चुस्की लीं और कहा... " कितना प्यार घुलदेते हो, देव। "
" आप का नजरिया हैं रानी ज़ी। " देव ने सुस्त से लहजे मे कहा।
तभी खिड़की से हवा का झोकाआया। ठंडक थी।
(चलदा ) --- नीरज शर्मा
-- शहकोट, जालंधर।
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