Schoolmates to Soulmates - Part 10 in Hindi Love Stories by Guddi books and stories PDF | Schoolmates to Soulmates - Part 10

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Schoolmates to Soulmates - Part 10

भाग 10 – शहर वापसी



मीठी - जिगर, तुम ठीक हो न ?

 

जिगर अपनी आँखों की नमी छुपाते हुए - हां... हां में ठीक हु...!!!  

 

मीठी - तुम्हे देख के लग तो नहीं रहा की तुम ठीक हो...!!!

 

जिगर अपने मन में - तुमने मुझे बिना बोले ही समझ लिया की में ठीक नहीं नहीं हु। तुम जा रही हो, कैसे ठीक हो सकता हु... कैसे कहु तुमसे...!!!

 

मीठी - क्या हुआ जिगर क्या सोच रहे हो तुम ??

 

जिगर - अरे नहीं नहीं... कुछ नहीं हुआ। तुम मेरी फ़िक्र मत करो... में ठीक हु...!!!

 

किंजल - वैसे तुम कब जा रहे हो वापिस दिल्ली ?

 

जिगर - मेरी स्कूल खुलने में अभी थोड़ा टाइम है... 10 - 15 दिन बाद जाऊंगा...!!!

 

किंजल - तो तुम भी हमारे साथ चलो न उदयपुर, में तुम्हे पूरा शहर घुमाऊँगी... हम सब जायेंगे बड़ा मजा आएगा...!!!

 

प्रतिक वहां आके बोला - बोल तो ऐसे रही है जैसे पूरा शहर देख लिया हो। खुद तो कही गयी नहीं और चली दूसरो को घुमाने... भैया, आप मेरे साथ चलो फिर हम दोनों जायेंगे साथ में घूमने...!!!

 

किंजल चीड़ के बोली - तू चुप हो जा मोटे, तू घूमेगा कब और खायेगा ज्यादा। में न इस बार तेरी शिकायत तेरी टीचर से करुँगी... की तुम्हे इतना सारा होमवर्क दे की लिखते लिखते तेरे हाथ ही दुख जाये... पर होमवर्क ख़तम ना हो।

 

दोनों ऐसे ही लड़ते रहते है... की जिगर उन्दोनो को चुप कराते हुए कहता है - अरे बस बस कितना लड़ते हो तुम दोनों... प्रतिक में आऊंगा और हम सभी जायेंगे घूमने... पर अभी नहीं फिर कभी...!!!

 

प्रतिक - पर क्यों भैया ? बादमे भी तो आना ही है न तो अभी चलो न...!!!

 

जिगर - नहीं प्रतिक अभी नहीं आ पाउँगा, क्यों की घर में करीबी रिश्तेदार की शादी है, तो वह जाना पड़ेगा पर में बादमे पक्का आऊंगा।

 

प्रतिक अपने हथेली की सबसे छोटी ऊँगली को आगे बढ़ाते हुए - फ्रेंडशिप प्रॉमिस...

 

जिगर भी मुस्कुरा कर प्रतिक की उस छोटी ऊँगली में अपनी छोटी ऊँगली पिरोते हुए - फ्रेंडशिप प्रॉमिस

 

उसके बाद जिगर मीठी को कुछ कहने ही वाला होता है की तभी बस के हॉर्न की आवाज आती है। बस को आता देख जिगर फिर से उदास हो जाता है। किंजल ने भी उसे नोटिस कर लिया की वो उदास क्यों है... पर उसने कुछ कहा नहीं।

 

राम जी सभी को बुलाते है फिर अपना अपना बैग लेके बस में बैठ जाते है...

 

मीठी और किंजल की सीट साथ में थी। मीठी विन्डो की तरफ बैठी थी... वो बहार जिगर को उदास होते हुए देख के अपना एक हाथ उठके मुँह के तरफ ले जा कर... अपनी ऊँगली और अपने अंगूठे की मदद से जिगर को स्माइल करने को कहती है।यह देख के जिगर स्माइल करने लगता है लेकिन मन में वो बहुत उदास था।

 

बस कुछ ही देर में अपनी राह पर निकल पड़ती है... और जिगर बस के साथ दौड़ के ज़ोर से आवज़ देके कहता है - मीठी, वहां पहुंच के फोन करना और अपना ख्याल रखना, में आऊंगा कभी मिलने वहा...!!!

 

मीठी - में अपना पूरा ख्याल रखूंगी, तुम भी अपना ख्याल रखना।

 

बस आगे चली जाती है और जिगर वही रुक जाता है... काफी हांफ रहा था वो। जो आँखों में नमी थी... उसने कबसे छुपा राखी थी... वो अब बहार आ चुकी थी। कुछ देर यूँही रुकने के बाद घर चला जाता है। 

 

मीठी मुस्कुराके अपनी आँखे बंध करके अपने सीर को सीट से टिका देती है। वो जैसे ही आँखे बंद करती है... की उसे किसी की छवि दिखाई देती है। वो तुरंत अपनी आँखे खोल के अपनी सीट पर सीधी होके बैठ गयी... उसका दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था।

 

उसको ऐसे देख किंजल बोली - क्या हुआ मीठी ? ऐसे अचानक क्यों बैठ गयी ?

 

मीठी - नहीं कुछ नहीं हुआ... वो में बस थोड़ा ठीक से बैठ रही थी ताकि सोने में दिक्कत ना हो इसलिए।

 

किंजल - अच्छा फिर ठीक है...!!!

 

कुछ देर बाद दोनों नींद में चली जाती है। सामने की ही सीट पर राम जी, नीतू जी और प्रतिक बैठे थे। प्रतिक भी विन्डो के पास बैठा था। वो भी गहरी नींद में चला गया था। अपने तीनो बच्चो को सुकून से सोता देख राम जी और नीतू जी मुस्कुरा उठते है।

 

राम - हमारी दोनों बच्चिया कितनी नसीबवाली है... जो जिगर जैसा दोस्त मिला है। कितना ख्याल रखता है दोनों का।  

 

नीतू - जी आप ठीक कह रहे है... जिगर भले ही सरपंच सा का बेटा है लेकिन अपने पिता की तरह किसी भी इंसान में भेदभाव नहीं करता। वरना कुछ लोग तो हमारे साथ खड़े रहने भी कतराते है। जिगर ऐसा बिलकुल भी नहीं है, दिल का बहुत सच्चा है वो।

 

राम - खाटू श्याम जी करे, हमारे बच्चो पे ये हसीं हमेशा बनाये रखे।

 

राम जी प्रतिक के सीर पे हाथ फेरते है। फिर कुछ देर में वे दोनों भी सो जाते है...!!!

 

मीठी और उसका परिवार पहले गाँव में ही रहता था। पर राम जी ने अपने बच्चो के अच्छे भविष्य के लिए शहर में बस गए। राम जी के छोटे भाई वैशल जी खेतीबाड़ी करते है। उनका खुद का बहुत बड़ा सा खेत है... जहा वे फसल उगाते है और शहरों में बेचते है। खेत से उनकी अच्छी खासी कमाई भी हो जाती है। वैशल जी की पत्नी यानि की किंजल की माँ नवी जी गाँव के छोटे बच्चो को घर में ट्यूशन पढ़ाती है। इसलिए तनुश्री जी, वैशल जी और नवी जी गाँव में ही रहते है। राम जी बच्चो की हर छुट्टियों में अपने गाँव चले जाते है।


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3 दिन बाद... 


उदयपुर शहर...


स्कूल की छुट्टियाँ ख़तम हो गयी थी। सभी बच्चे स्कूल की तरफ चल पड़े। कुछ बच्चो का मन तो नहीं स्कूल जाने का पर जाना पड़ रहा था और यही कुछ बच्चे पढाई को लेके काफी उत्सुक थे। स्कूल जाने के नाम से ही वे बहुत खुश थे।

 

उदयपुर शहर की एक छोटी कॉलोनी में एक छोटा सा घर था... जहा बहार नेम प्लेट पर लिखा था अग्रवाल हाउस...

 

मीठी, किंजल और प्रतिक तीनो स्कूल ड्रेस पहने अपना नाश्ता कर रहे थे।

 

नीतू जी किचन में से एक प्लेट में पराठा लाते हुए बोली - जल्दी नाश्ता ख़तम करो... तुम लोगो की बस आ जाएगी...!!!

 

कुछ देर में बस भी आ जाती है और तीनो नीतू जी और राम जी के पैर छूके बस में बैठ जाते है।

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राधे राधे... 

कहानी अभी जारी है...