भाग – 6 रिश्तो में दरार
आदित्य भी उसी तरह जवाब देता है - चिल्लाइये मत डैड...!!! क्या गलत कहा मेने... बताइये क्या गलत कहा। जब से वो स्कूल में आई है ना.... आपने तो मेरी तरफ देखना ही छोड़ दिया है। हर बात में आपको तो बस वो ही दिखाई देती है...!!! अरे ऐसा क्या जादू कर दिया है उसने आप पर... जो हर बार उसका सपोर्ट करते है आप। आपके मुँह से हर वक़्त सिर्फ उसका ही नाम सुना है मेने। डैड, आप पहले तो ऐसे नहीं थे। ये... ये जो हो रहा है न यहाँ पे... हमारे घर में... उसी की वजह से तो हो रहा है। मुझे तोह कभी कभी ऐसा लगता है जैसे... जैसे में आपका बेटा नहीं बल्कि वह आपकी बेटी है...!!!
एकता जी गुस्से से - आदित्य, ये क्या बकवास कर रहे हो... तुम्हे पता भी है क्या बोल रहे हो तुम ?? तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई किसी भी लड़की का नाम इस घर से जोड़ने की ?
आदित्य - मॉम, ये बात आप डैड से पूछिए...!!! क्यों की आज कल डैड उसकी तरफदारी ज्यादा कर रहे है। सोते, जागते, उठते, बैठते यहाँ तक की खाते वक़्त भी उनके मुंह पे उस दो कौड़ी लड़की का ही नाम रहता है।
हिरदेश जी गुस्से से - बस... बहुत हो गया आदित्य। बहुत बोल लिया तुमने और बहुत सुन लिया मेने। तुम्हे पता ही क्या है उस बच्ची के बारे में, तुम जानते ही क्या हो और....
आदित्य हिरदेश जी की बात काटते हुए बोला - और मुझे उसको जानने में जरा सी भी दिलचस्पी नहीं है डैड...!!! आपको जो करना हो कीजिये और मुझे जो करना है में वो ही करूँगा। क्यों की मुझे अब समझ आ गया है की... आपके लिए कितना ही कुछ क्यों न करलु में आपकी नज़रो में हमेशा निकम्मा ही रहूँगा। अब में आपको खुश करने के लिए और मेहनत नहीं करने वाला, अब में जो कुछ भी करूँगा... अपने लिए ही करूँगा। समझे आप...!!!
कहते हुए आदित्य अपने रूम की तरफ बढ़ जाता है...
एकता जी हिरदेश जी को गुस्से से बोली - आप हर बार क्यों उसे परेशान करते है। अरे इतना कुछ तो करता है आपको खुश करने के लिए और आपको क्या चाहिए, और ऐसा भी है उस लड़की में जिसको आपने इतना सिर पे बिठा रखा है।
हिरदेश - आप तो कुछ बोले ही मत...!!! ये सब आपके ही लाड लड़ाने का नतीजा है इतनी सी उम्र में अपने पिता से किस तरह से बात करता है आपने देखा नहीं क्या ? और रही बात उस लड़की की...तो वो लड़की हमारे आदित्य से कई गुना ज्यादा होशियार है। में आदित्य को गलत नहीं ठहरा रहा... में बस इतना चाहता हु की आदित्य उसकी तरह बने, उससे कुछ सीखे। लेकिन पता नहीं आपने उसको क्या क्या सीखा रखा है, बिगड़ गया है वो पूरा।
एकता जी अपनी सास भाग्यलक्ष्मी जी से कहती है - माँ, आप बताइये... क्या अपने बेटे की विश पूरी करना गलत बात है ? जब एक बेटा अपनी माँ से कुछ उम्मीद कर रहा है, कुछ मांग रहा है तो क्या माँ को अपने बेटे की विश पूरी नहीं चाहिए ??
हिरदेश - बिलकुल करनी चाहिए एकता...!!! लेकिन आप जो कर रही है वो गलत है, आप उसको गलत शिक्षा दे रही है आप अपने बेटे के प्यार में अंधी हो चुकी है। आपको ये नहीं दीख रहा... की आपका बेटा जो कर रहा है वो सही या गलत। रोहित को देखो, यहाँ रहता था तब भी डिसिप्लिन में रहता था और न्यू यॉर्क में भी उस तरह रेह रहा है। जबकि वहाँ उसे रोक टोक करने वाला कोई नहीं है। मेरी दी हुई हर एक सिख को आज तक निभा रहा है। वह आदित्य की तरह गैर जिम्मेदार बिलकुल भी नहीं है।
एकता - लेकिन...
हिरदेश - बस... आज का ड्रामा बहुत हो गया मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है, वैसे भी यहाँ किसी को कुछ कहना ही बेकार है, सबको बस अपनी ही पड़ी है। माँ, में ऑफिस जा रहा हु।
भाग्यलक्ष्मी - एकता, हिरदेश का कहना भी सही है कभी कभी बच्चो की जिद उनकी जिंदगी पे हावी हो जाती है, उसके सहारे वो गलत रास्ते पर चल पड़ते है... क्यों की उन्हें कोई टेंशन नहीं रहती की वे कुछ भी करे उनके पीछे माँ बाप खड़े है न उनकी गलती पर पर्दा डालने के लिए। तुमने देखा न... आज कल आदित्य अपने पापा से कैसे बर्ताव कर रहा है, वो सही नहीं है बेटा। वक़्त रहते संभल लेना चाहिए। उसकी जिद्द पर लिमिट लगाओ, कही ऐसा ना हो की आदित्य तुम्हारे हाथो से निकल जाये और तुम्हे जिंदगीभर सिर्फ पछताना पड़े, मेरी बातो को अच्छे से सोचना समझना... ठीक है। में मंदिर जाके आती हु।
उनके जाने के बाद एकता जी खुद से कहती है - नहीं... ऐसा कभी नहीं होगा। सही कहा आदित्य ने, ये सब उस लड़की की वजह से हो रहा है उसकी वजह से मेरा बच्चा इतना परेशान है, उसकी वजह से हिरदेश कितना बदल गए है। उस लड़की को तो में छोडूंगी नहीं। पर... पर वो है कौन, पता करना पड़ेगा। लेकिन उससे पहले आदि का मूड ठीक करना होगा।
एकता जी किचेन में चली जाती है। पर इन सब केअलावा कोई और भी था जो ये सब देख के अंदर ही अंदर खुश हो रहा था वह थी आदित्य की चाची लवली राणा। लवली जी ऊपर पिलर के पास खड़ी सब देख रही थी। उनको इन सब से कुछ ख़ास फरक नहीं पड़ रहा था... क्यों की आज कल ये आम बात हो रही थी। आदित्य और हिरदेश जी के बिच पड़ती दरार और रोज़ आये दिन राणा मेन्शन में हो रहे झगडे को देख लवली जी को बहुत मजा आ रहे था।
लवली जी कुटिल मुस्कान के साथ बोली - लड़ो... और लड़ो फिर लड़ लड़ के एक दुसरे को ही मार डालो, ताकि इस पुरे राणा मेंशन पर मेरा राज हो सके।
लवली जी का नाम भले ही लवली था लेकिन वह दिल की लवली बिलकुल भी नहीं थी। इस वक़्त चरण जी नहीं थे इसलिए आदित्य अपने पापा से इतना बोल पाया था। वरना चरण जी के रहते वो अपना मुँह भी नहीं खोल पता था। वो डरता था चरण जी से क्यों की उसको जितनी भी फ्रीडम मिल रही थी... वो सब उसके दादा चरण जी की वजह से ही मिल रही थी। अगर चरण जी चाहते तो आदित्य का घर से बहार निकलना भी मुश्किल हो जाता।
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राधे राधे...
कहानी अभी जारी है...