भाग 5 – आपसी मनमोटाव
किंजल - हम्म, बात तोह तेरी सही है लेकिन यार हमारे भी तो कुछ सपने है, हम भी बहार जाना है, दोस्त बनाना चाहते है, घूमना चाहते है... ऐसे घर में कैद नहीं रहना चाहते।
मीठी - लेकिन दादी और माँ को यह पसंद नहीं।
किंजल थोड़ा गुस्सा होके - यार यह भी कोई बात हुई, अरे किसी और की वजह से हम क्यों अपने सपनो का गाला घोटे। सब हम ही क्यों सहन करे, क्यों एक लड़की को आज़ाद घूमने का हक़ नहीं, क्यों एक लड़की को अपने सपने पुरे करने का अधिकार नहीं, क्यों एक लड़की को अपना soulmate खुद चुनने का अधिकार नहीं...???
मीठी - अब यह बात दादी और माँ से पूछनी पड़ेगी...!!!
यह सुनके किंजल के चेहरे पे छोटी सी स्माइल आ जाती है, फिर वो कुछ सोचते हुए बोलती है - वो सब तो ठिक है लेकिन मुझे एक बात समझ नहीं आ रही...!!!
मीठी - क्या ?
किंजल - यही की... देख, वो भी तोह कितना इंटेलिजेंट है स्टडी में, सभी में एक्सपर्ट है, ऐसा कोई काम नहीं जो उसको ना आता हो, फिर भी वो अपनी प्रॉब्लम लेके तेरे पास क्यों आता है... जबकि वह खुद भी इतना केपेबल है ?
मीठी - यह तोह मुझे भी नहीं पता। छोड़ना क्या फरक पड़ता है, हमे तोह पढाई से मलतब है न की दूसरो से।
किंजल सोचते हुए - फरक पड़ता है मीठी, बहुत फरक पड़ता है। तू तो बहुत भोली है, और इसी बात का डर है मुझे की कही तेरे भोलेपन का कोई फायदा न उठा ले। पता नहीं यह सच में दोस्ती है या एक छलावा। पर... पर कुछ भी हो में तेरे साथ कभी कुछ गलत नहीं होने दूंगी।
मीठी किंजल को ऐसे सोच में डूबे देख कहती है - क्या हुआ किंजू, इतना क्या सोचने लगी है तू ??
किंजल - अरे, कुछ नहीं। चल निचे चलते है, बहुत काम बाकी है वरना हमारे घर की दोनों हिटलर सारा राशन पानी लेके हमारे ऊपर चढ़ जाएगी।
मीठी हस्ते हुए - चुप कर, क्या कुछ भी बोलती रहती है। अगर दोनों मे से किसी एक ने भी सुन लिया ना तो सबसे पहले तेरी ही बलि चढ़ जाएगी।
किंजल - बात तोह तेरी सही है।
फिर दोनों हस्ते हुए रसोई में चली जाती है...
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उदयपुर शहर...
राणा मेन्शन...
एक बड़ा सा बंगला... जिसके चारो और गार्डन फैला हुआ था... जिनमे कई तरह के पैड, पौधे, रंगबेरंगी फूल, गेट से अंदर आते ही एक बहुत बड़ा सा फाउंटेन जिनमे से आती पानी की आवाज... कोई भी आये तोह ऐसा मनमोहक दृश्य को देखता ही रह जाए। बंगलो के बहार और अंदर कई सारेे गार्ड्स भी तेहनात थे।
राणा मेन्शन के सदस्य...
चरण राणा - राणा मेन्शन के मुखिया और आदित्य के दादा
भाग्यलक्ष्मी राणा - आदित्य की दादी
हिरदेश राणा - आदित्य के पिता
एकता राणा - आदित्य की माँ
रोहित राणा - आदित्य का बड़ा भाई
इन्दर राणा - आदित्य के चाचा
लवली राणा - आदित्य की चाची
नेहा राणा - इन्दर और लवली की बेटी... रोहित और आदित्य की छोटी बहन
आदित्य कैफ़े से अपने घर लौट आया था। वो उदयपुर के काफी रीच एरिया में रहता है जहा बड़े बड़े राजनीतिक नेता, फिल्म स्टार, बिजनेसमैन रहते है। आदित्य अपने घर में आके बिना किसी की तरफ देखे सीधा अपने रूम की तरफ बढ़ने लगता है और तभी सोफे पे बैठे हुए एक आदमी की आवाज आती है - सुबह सुबह कहा से आ रहे हो बरखुरदार ? करली मौज मस्ती या अभी भी कुछ बाकी रह गया है ?
आदित्य के पैर उस आवाज को सुन के रुक जाते है। उसको गुस्सा आने लगता है और अपने आसपास देखने लगता है फिर पीछे मूड के उस आदमी की तरफ देख के कहता है - में कही भी जाऊ, जिससे भी मिलु, आपको उससे क्या ??
जिसने आवाज़ लगाई थी वो आदित्य के पिता हिरदेश राणा थे, जो अपने बेटे को आते देख उसको टोंट मार रहे थे। आदित्य और हिरदेश जी की आपस में बिलकुल भी नहीं बनती।
हिरदेश जी जोर से - जबान संभल के बात करो आदित्य... यही सिखाया है मेने तुमको, अपने डिसिप्लिन में रहना सीखो... इस तरह से बड़ो से बात की जाती है क्या ???
आदित्य - डिसिप्लिन माय फुट...!!! यह जो आपका डिसिप्लिन है ना... उसको अपने स्कूल में रखिये। में घर में आपके कोई डिसिप्लिन को नहीं मानने वाला... समझे आप...!!!
हिरदेश - अपनी हद में रहो आदित्य...!!! मुझे कुछ ऐसा करने पर मजबूर मत करो... जो तुम्हे अच्छा ना लगे।
आदित्य - हंह...!!! आपने आज तक मेरे लिए किया ही क्या है डैड... जो आगे कुछ करोगे।
हिरदेश जी हैरान होके आदित्य को देखने लगते है। बाप बेटे की झगड़ो की आवाज सुन के सब बहार आ जाते है, सिवाय आदित्य के दादा चरण राणा और उसके चाचा इन्दर राणा के। क्यों की दोनों ही इस वक़्त घर में नहीं थे...!!!
आदित्य - बोलो न डैड... आपने आज तक ऐसा क्या किया है जो मुझे अच्छा लगे हां ? जो भी किया है मेने किया है...!!! अरे क्या कुछ नहीं किया मेने आपको खुश करने के लिए... मेने हर एक चीज़ में अच्छा परफॉर्म किया है... फिर चाहे वो स्टडी हो, स्पोर्ट्स हो, डान्सिंग हो या सिंगिंग, एक्टिंग ड्रामा, कराटे, बॉक्सिंग मैच, स्विमिंग... सभी में मेने मेडल्स और ट्रॉफ़ी जीता है। लेकिन पता नहीं आपको मुझसे क्या प्रॉब्लम है मुझे तोह समझ ही नहीं आता।
आदित्य की बात सुनके हिरदेश जी की आँखों में नमी आ जाती है। पर आदित्य का बोलना अभी बंध नहीं हुआ। वो आगे कहता है - हर काम... हर एक फिल्ड में मेने नाम कमाया... जिससे आपको खुश कर सकू, प्राउड फील करा सकू लेकिन आपको वह भी नहीं दीखता, आपको मेरे एफर्ट ही नहीं दीखते...!!! दिखेंगे भी कैसे... आपको तो वो चश्मिश जो दिखती है।
हिरदेश जी जोर से चिल्लाते हुए - आदित्य.........
आदित्य भी उसी तरह जवाब देता है - चिल्लाइये मत डैड...!!! क्या गलत कहा मेने... बताइये क्या गलत कहा। जब से वो स्कूल में आई है ना.... आपने तो मेरी तरफ देखना ही छोड़ दिया है। हर बात में आपको तो बस वो ही दिखाई देती है...!!! अरे ऐसा क्या जादू कर दिया है उसने आप पर... जो हर बार उसका सपोर्ट करते है आप। आपके मुँह से हर वक़्त सिर्फ उसका ही नाम सुना है मेने। डैड, आप पहले तो ऐसे नहीं थे। ये... ये जो हो रहा है न यहाँ पे... हमारे घर में... उसी की वजह से तो हो रहा है। मुझे तोह कभी कभी ऐसा लगता है जैसे... जैसे में आपका बेटा नहीं बल्कि वह आपकी बेटी है...!!!
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राधे राधे...
कहानी अभी जारी है....