तेरी मेरी दुनिया
अनिकेत उस सीट को निहारे जा रहा था जहाँ सोनम बैठती थी। वह कल्पना कर रहा था कि सोनम अभी भी वहीं बैठी है। अपना काम करते हुए बार बार अपनी लट को पीछे कर रही है।
"अब सीट को क्या घूरे जा रहे हो ? उसकी शादी हो गई। अब वह ऑफ़िस भी नहीं आएगी। जब कहना था तब कुछ बोल नहीं पाए।"
पीछे से आकर उसके दोस्त राकेश ने उसे धौल मारते हुए कहा। राकेश सही कह रहा था। इतने दिनों से अनिकेत मन ही मन सोनम को चाहता रहा। पर कुछ कह नहीं पाया। जब भी उसने अपने मन की बात कहने के बारे में सोचा तो उसकी ज़ुबान जैसे तालू से चिपक जाती। हिम्मत जवाब दे जाती।
वह जानता था कि सोनम और उसकी दुनिया में बहुत फर्क है। सोनम की दुनिया बेफिक्री से भरी हुई थी। पिता के पास एक नामी पेंट कंपनी की डीलरशिप थी। वह उनकी इकलौती संतान थी। जॉब वह बस टाइमपास के लिए करती थी। सैलरी हाथ में आते ही दिल खोल कर खर्च करती थी। क्योंकि बाद में तो हर ज़रूरत के लिए उसके पापा थे। फ़िक्र करने की उसे कोई ज़रूरत भी नहीं थी। पर अनिकेत ने महसूस किया था कि स्वभाव से ही बेफिक्री थी वह।
अनिकेत की दुनिया उसकी दुनिया से ठीक उलट थी। उसकी आवश्यक्ताओं को पूरा करने वाले उसके पिता कच्ची उम्र में ही उसे छोड़कर परलोक चले गए थे। माँ ने एक ज्वैलरी स्टोर में सेल्सगर्ल का काम कर बड़ी मुश्किल से उसे इस मुकाम तक पहुँचाया था। आने वाले कल की चिंता तो जैसे उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन चुकी थी। वह अपनी सैलरी की एक एक पाई सोच समझ कर खर्च करता था।
दोनों की दुनिया अलग होते हुए भी वह पहली नज़र में ही उसे चाहने लगा था। दिल के पास दुनियादारी की समझ नहीं होती है। या यूं कहें कि दो विपरीत चीज़ों के बीच अधिक आकर्षण होता है। उसका सोनम के लिए आकर्षण इसी कारण था।
यह बात ठीक थी कि सोनम बेहद खूबसूरत थी। लेकिन जिस बात ने अनिकेत को उसकी तरफ खींचा वह थी उसकी बेफिक्री। आने वाले भविष्य की चिंता तो उसे थी ही नहीं। पर इस बात की फ़िक्र भी कम ही करती थी कि कोई उसके बारे में क्या सोचेगा। वह बस अपने हिसाब से जीती थी। ऑफ़िस पॉलिटिक्स के बारे में ना सोच कर सबसे खुल कर बातें करती थी। कभी बॉस कोई काम देते तो बाकी लोगों की तरह यह सोच कर परेशान नहीं होती थी कि अगर कोई ग़लती हो गई तो कहीं बॉस नाराज़ ना हो जाएं। वह बस मन लगा कर काम करती थी।
अनिकेत तो पहली बार में ही अपना दिल हार बैठा था। दोनों के बीच बातचीत भी होती थी। लेकिन दोस्ती उस दिन शुरू हुई जब अनिकेत के जन्मदिन पर वह उसे अपने साथ एक रेस्त्रां में ले गई। कंपनी का नियम था कि जिस भी कर्मचारी का जन्मदिन हो ऑफ़िस आने पर उसे एक बुके और गिफ्ट दिया जाता था। अनिकेत को भी मिला। सबने विश करने की रस्म निभाई। लेकिन सोनम ने पूरी गर्मजोशी के साथ उसे विश किया। शाम को जब वह ऑफ़िस से निकल रहा था तब वह उसके पास आकर बोली,
"क्यों पार्टी के लिए निमंत्रण नहीं दोगे ?"
अनिकेत ने कहा,
"मैं जन्मदिन नहीं मनाता हूँ।"
सोनम ने आश्चर्य से कहा,
"अच्छा... पर मैं तो धूमधाम से मनाती हूँ।"
फिर हंसकर बोली,
"जब मेरा जन्मदिन होगा तो तुम्हें ज़रूर बुलाऊँगी।"
अनिकेत बस मुस्कुरा दिया। सोनम ने अचानक उसका हाथ पकड़ कर कहा,
"चलो मेरे साथ।"
उसके इस तरह हाथ पकड़ लेने से अनिकेत के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई। उसने झिझकते हुए कहा,
"कहाँ ?"
"तुम्हारा जन्मदिन मनाने।"
यह कहकर वह उसे नीचे पार्किंग में ले गई। वहाँ उसका ड्राइवर कार लेकर मौजूद था। उसने उसे घर चले जाने को कहा। फिर अनिकेत की तरफ घूम कर बोली,
"खड़े क्यों हो बाइक निकालो।"
अनिकेत ने बाइक निकाली। वह पीछे बैठ गई। उससे शहर के एक महंगे रेस्त्रां में चलने को कहा। रेस्त्रां का नाम सुनकर अनिकेत सोच में पड़ गया। हिसाब लगाने लगा कि बटुए में कितने पैसे हैं। कितना बिल आ सकता है। पर वह मना करने की स्थिति में भी नहीं था।
दोनों रेस्त्रां में एक टेबल पर जाकर बैठ गए। अनिकेत को बैठाकर वह मैनेजर के केबिन में चली गई। कुछ देर में लौटी तो उसने पूछा,
"क्या काम था मैनेजर से ?"
उसने कोई जवाब नहीं दिया, बस मुस्कुरा दी। कुछ देर में एक बड़ा सा केक उनकी टेबल पर आया। सोनम ने कहा,
"चलो बर्थडे ब्वॉय केक काटो।"
केक काटते हुए भी अनिकेत के मन में बस यही था कि पता नहीं बिल में इसका कितना चार्ज करें। केक कटने के बाद सोनम ने खाना आर्डर किया। खाने का इंतज़ार करते हुए वह बोली,
"तुम सोच रहे होगे कि यह लड़की भी अजीब है। सब अपनी मर्ज़ी से कर रही है। मुझे ज़बरदस्ती यहाँ ले आई। केक मंगा लिया। खाना भी खुद ही ऑर्डर कर दिया।"
उसने रुक कर अनिकेत के चेहरे को ध्यान से देखा। जैसे चेहरे से उसका मन पढ़ना चाहती हो। वैसे भी अनिकेत का मन उसने सही पढ़ा था। वह सचमुच वही सोच रहा था। सोनम ने आगे कहा,
"मैं जबसे ऑफ़िस में आई हूँ तुम्हें देख रही हूँ। तुम कुछ दबे दबे से, संकोच में रहते हो। अपने मन की बात खुल कर नहीं कह पाते। ऐसा लगता है जैसे हर वक्त तुम किसी फ़िक्र में रहते हो।"
अनिकेत दंग था कि सोनम ने कितनी गहराई से उसे परखा था। बात सच थी। वह शायद कभी अपने आप से भी नहीं खुल पाया था। पिता के जाने के बाद हर कोई बस यही नसीहत देता था। माँ की परेशानी समझो। सब तुम्हें ही करना है। ऐसा नहीं था कि माँ की तकलीफ़ से वह बेपरवाह था या खुद जीवन में आगे नहीं बढ़ना चाहता था। लेकिन सबकी नसीहतों के दबाव ने उसे दब्बू बना दिया था। उसने खुल कर जीना ही छोड़ दिया था। सोनम की बात सही थी पर वह कुछ नहीं कह सका। सोनम ने ही बात आगे बढ़ाई।
"ऑफ़िस में सब कहते हैं कि यह अमीर है। इसे क्या चिंता। हाँ मेरे पापा के पास पैसा है। वह मुझे हर तरह की सुविधा देते है। लेकिन मैं खुश रहती हूँ क्योंकि मुझे खुश रहना है ना कि इसलिए कि मैं अमीर हूँ।"
सोनम की इस बात ने अनिकेत के मन में हलचल मचा दी। सचमुच खुश रहना ना रहना, ज़िंदगी को खुल कर जीना सब हमारे हाथ में है। वह सोच रहा था कि क्यों मैंने आज तक अपना जन्मदिन नहीं मनाया। क्या हम एक छोटा सा केक भी नहीं ख़रीद सकते थे। खरीद सकते थे। पर उसके और उसकी माँ के मन में एक बात ना जाने क्यों बैठ गई थी कि वह हालात के मारे हैं। बस एक सोच ने उन्हें जकड़ रखा था। आज भी जब सोनम उसे यहाँ लाई तो वह उसी सोच में जकड़ा था। उसके बटुए में बहुत पैसे नहीं थे। पर उसके पास क्रेडिट कार्ड था। फिर भी वह जिसे मन ही मन प्यार करता था उसे खुल कर ट्रीट भी नहीं दे पा रहा था।
खाना आया तो उसने बिना बिल की फ़िक्र किए पूरे मन से खाया। खाने के बाद डिज़र्ट में कुल्फी भी मंगाई। ना जाने कितने दिनों के बाद या यूं कहा जाए कि पहली बार वह खुलकर कुछ कर रहा था। रेस्त्रां से निकलते हुए सोनम ने बहुत मना किया पर पैसे उसने अपने क्रेडिट कार्ड से दिए। यही नहीं उसने अपनी माँ के लिए भी खाना पैक करवाया।
उस दिन के बाद अनिकेत ने अपने मन में बसे उस डरपोक दब्बू को बाहर निकाल दिया। वह अब खुल कर जीना सीखने लगा। उसने महसूस किया कि इसके लिए हर बार क्रेडिट कार्ड काम आए ज़रूरी नहीं। कई छोटी छोटी ख़ुशियाँ तो बस नज़रिया बदल कर ही मिल जाती हैं।
अनिकेत अब सोनम को और अधिक चाहने लगा था। राकेश उसके मन की बात जानता था। वह अक्सर कहता था कि अगर प्यार करते हो तो कहते क्यों नहीं। ऐसा ना हो कि तुम बस देखते रह जाओ और वह किसी और से शादी कर ले।
उसने भी कई बार मन बनाया कि आज सोनम को अपने प्यार के बारे में बता कर रहूँगा। पर मौका मिलने पर कह नहीं पाता था। उसने इस पर विचार किया। क्यों वह उससे अपने मन की बात नहीं कह पा रहा है। क्या वह उसके इंकार से डरता है या कुछ और है।
बहुत सोच कर वह नतीजे पर पहुँच ही गया। वह उसके इंकार से डरता नहीं था। वह इंकार कर देती तो भी वह टूटता नहीं। पर उसका मन बार बार उससे पूछ रहा था कि यदि वह मान गई तो वह उसे क्या दे पाएगा। मैं यह समझ गया था कि खुल कर जीने के लिए पैसा उतना ज़रूरी नहीं है। पर पैसा जीवन के लिए ज़रूरी है यह भी वह जानता था।
उसने अपना नज़रिया बदला था पर उसकी आर्थिक स्थिति वैसी ही थी। उसके पास अपना मकान नहीं था। बैंक में कोई खास बचत भी नहीं थी। उसकी आर्थिक स्थिति सुधरने में समय लगने वाला था। जबकि सोनम किसी और से शादी कर यह सब पा सकती थी। अगर हर समय भविष्य की चिंता में नहीं घुलना चाहिए तो उसके बारे में पूरी तरह लापरवाह भी नहीं होना चाहिए। उसने सोचा आज यदि सोनम मुझसे शादी कर ले पर अगर कल मैं उसकी ज़रूरतें पूरी नहीं कर सका तो। रिश्ता कड़वाहट से समाप्त हो इससे अच्छा कि शुरू ही ना हो।
उसने सोनम से कभी अपने प्यार का इज़हार नहीं किया। सोनम की शादी किसी और से हो गई। वह ऑफ़िस से चली गई।
पर अनिकेत को लगता है कि उसका फैसला सही था।