Pida me Aanand - 9 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | पीड़ा में आनंद - भाग 9 - जीवनसाथी

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पीड़ा में आनंद - भाग 9 - जीवनसाथी


  जीवनसाथी 


नैना ने वॉशरूम में जाकर अपना मुंह धोया। आईने में अपना चेहरा देखा। उसकी आँखें सूजी हुई थीं। वह देर तक रोई थी। उसके दुख में ढांढस बंधाने वाला कोई नहीं था। इस वह समय अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुज़र रही थी। इस दौर में उसे किसी के सहारे की सख्त ज़रूरत थी। पर उसके आसपास उसे तसल्ली देने वाला कोई नहीं था।

पिछले कई दिनों से उसकी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। पर काम की व्यस्तता के कारण वह सही तरह से इलाज नहीं करा रही थी। पर एक दिन जब उसने अपने वक्ष पर एक गिल्टी महसूस की तो उसे मामले की गंभीरता समझ आई। उसने डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने कुछ जांच कराने के लिए कहा था‌।

जाँच की रिपोर्ट आने के बाद उसे पता चला कि वह ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित है। उसकी ज़िंदगी रेत की मानिंद हाथों से फिसलती जा रही है। यह खबर सुनकर वह टूट गई थी‌। घर आकर वह कमरे में लेटकर रोने लगी‌। वह किसी के कंधे पर सर रख कर जी भर कर रोना चाहती थी। वह चाहती थी कि जब वह रोए तो कोई उसकी पीठ पर हाथ फेर कर ढांढस बंधाए। लेकिन वह एकदम तन्हा थी। पहली बार उसे अपने अकेले होने का अफसोस हो रहा था। 

वॉशरूम से बाहर आने के बाद नैना बिस्तर पर बैठ गई। उसको आदित्य की याद आ रही थी। आदित्य उससे प्यार करता था। उसके साथ शादी करना चाहता था। उस समय नैना पर अपने परिवार की ज़िम्मेदारियां थीं। इसलिए वह अपना मन नहीं बना पा रही थी। 

आदित्य ने उसे सलाह दी थी कि वह हाँ कर दे। दोनों मिलकर कर ज़िम्मेदारियां बांट लेंगे। लेकिन उस समय नैना की माँ नहीं चाहती थी कि यह रिश्ता हो। उन्हें डर था कि कहीं शादी के बाद नैना अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति लापरवाह ना हो जाए। उन्हें नैना से छोटी अपनी दो बेटियों के भविष्य की चिंता सता रही थी। 

नैना अपनी माँ के विरुद्ध नहीं जा सकी। उसने आदित्य को शादी के लिए मना कर दिया। तब आदित्य ने उसे चेताया था।

"नैना तुम गलती कर रही हो। कल सब अपनी ज़िंदगी में व्यस्त हो जाएंगे। तब तुम्हारा साथ देने वाला कोई नहीं होगा। मैं नहीं कह रहा हूँ कि तुम अपनी ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ लो। लेकिन अपने भविष्य के बारे में सोचना भी तुम्हारा दायित्व है।"

आदित्य ने हर तरह से नैना को समझाने का प्रयास किया था। पर नैना ने उसके हर तर्क को अनसुना कर दिया‌‌। उसने आदित्य से कहा,

"मैं अभी अपनी मम्मी के खिलाफ नहीं जा सकती हूँ। मैं जानती हूँ कि तुम मुझे बहुत चाहते हो। तुम अपना वादा निभाओगे और मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर मेरा साथ दोगे। लेकिन मैं नहीं चाहती हूँ कि अपनी मम्मी को दुखी करके अपनी खुशी चुनूँ। पर मैं नहीं चाहती कि तुम मेरे लिए अपनी ज़िंदगी बर्बाद करो। इसलिए मैं चाहती हूँ कि तुम अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ जाओ।"

नैना के राज़ी ना होने से हताश होकर आदित्य शहर छोड़कर चला गया‌‌। उसके बाद उसका कोई पता नहीं चला। नैना ने मान लिया कि उसने शादी करके घर बसा लिया होगा। आदित्य की कही बात सही निकली थी। नैना की दोनों बहनें अपने काम और घर में व्यस्त हो गई थीं। उसकी मम्मी भी सबसे छोटी बहन के पास अमेरिका रहने चली गई थीं। वह अकेली रह गई थी। 

एक बार उसने सोचा कि वह अपनी मम्मी को अपनी बीमारी के बारे में बता दे। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। जबसे उसकी मम्मी अमेरिका गई थीं उन्होंने जैसे उसके बारे में सोचना ही छोड़ दिया था।‌ बस कभी कभार फोन पर बातचीत कर लेती थीं। पर कभी भी उन्होंने यह नहीं कहा कि तुम अकेली हो। मैं तुम्हारे पास आ जाती हूँ। 

नैना अपनी बीमारी और अकेलेपन से लड़ रही थी। अपने अकेलेपन में उसे आदित्य की याद आती थी। कभी कभी वह सोचती थी कि काश उस समय उसने आदित्य की बात मान ली होती। पर इस तरह अफसोस करने से कुछ हासिल नहीं होना था।

इस कठिन समय में केवल उसकी सहेली बरखा ही उसके साथ थी। वह उसकी पुरानी सहेली थी। उसने ‌भी नैना को आदित्य से शादी करने के लिए समझाया था। दोनों की शादी ना हो पाने पर वह दुखी भी हुई थी। 

बरखा पूरी कोशिश करती थी कि नैना का अकेलापन दूर कर सके। वह अपनी क्षमता के अनुसार उसका साथ देती थी। पर वह जानती थी कि नैना को एक जीवनसाथी की आवश्यकता है। लेकिन उसका साथ निभाने वाला कोई नहीं था।

बरखा अपने एक रिश्तेदार की शादी में शरीक होने के लिए गई थी। नैना को उसके लौटने की प्रतीक्षा थी। 


नैना गुमसुम सी बैठी थी। तभी दरवाज़े की घंटी बजी। नैना ने दरवाज़ा खोला तो उसे सामने खड़े व्यक्ति को पहचानने में कुछ क्षण लगे। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। कुछ देर तक अपलक देखने के बाद वह उस शख्स के सीने से लग गई। वह रोते हुए कह रही थी,

"आदित्य तुम..... अच्छा हुआ आ गए। मैं बस कुछ दिनों की मेहमान हूँ। बहुत मन था कि मरने से पहले एकबार तुम्हारे सीने से लग पाऊँ।"

कुछ पलों तक नैना आंसू बहाती रही। अपने मन की बात करती रही। आदित्य उसके सर पर हाथ फेरता रहा। कुछ संभलने के बाद नैना ने आदित्य को अंदर बैठाया। अब नैना के मन में आ रहा था कि आदित्य जो इतने सालों से उससे दूर था अचानक उसके पास कैसे आ गया। उसके चेहरे पर आश्चर्य के साथ सवाल झलक रहा था। आदित्य ने उसके मन की अपने मन की बात समझते हुए कहा,

"मुझे माफ़ कर दो। मैं तुम्हें छोड़ कर चला गया था। मैंने दोबारा मुड़ कर भी नहीं देखा। तुम इतना कुछ अकेले सह रही थीं।"

नैना ने उसकी छाती में सर रखकर कहा,

"तुम खुद को दोष क्यों देते हो ? तुम मेरे ‌लिए बैठे तो ना रहते। पर तुम मेरी तकलीफ़ के बारे में कैसे जानते हो ?"

आदित्य ने बताया कि बरखा जिस शादी में गई थी वहाँ वह भी था। जब उसने बरखा से उसके बारे में पूछा तो उसने सब बता दिया। उसके साथ जो बीत रहा था वह सुनकर उससे रहा नहीं गया। वह उसके पास आ गया। 

"नैना अब मैं तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगा। तुम्हारे साथ ही रहूँगा।"

नैना ने आश्चर्य से कहा,

"पर तुम्हारी पत्नी ऐतराज़ नहीं करेगी ?"

"नहीं, क्योंकी मैंने किसी के साथ शादी नहीं की।"

नैना अचरज से उसे देख रही थी। आदित्य ने समझाया,

"नैना मैंने तुम्हें दिल से चाहा है। हमारे फेरे नहीं हुए पर तुम ही मेरी जीवनसाथी हो। तब मैंने तुम्हें यकीन दिलाने की कोशिश की थी। पर तुम शायद मुझ पर भरोसा नहीं कर पाई‌। मैंने सोचा कि तुम्हारी खुशी यही है तो ठीक‌। में यहाँ से चला गया। तुम्हारी ज़िंदगी पर नज़र रखे था। तुमने अपनी सारी ज़िम्मेदारियां पूरी कर लीं। मैंने सोचा कि एकबार फिर तुमसे बात करूँ। लेकिन मेरा एक्सीडेंट हो गया। दो साल बिस्तर पर बिताए। जब ठीक हुआ तो बरखा से मिलना हुआ। मै भागा हुआ आ गया‌।"

आदित्य ने नैना से पूछा,

"क्या अब तुम मेरे साथ जीवन की राह पर चलने को तैयार हो ?"

नैना कुछ पलों तक आदित्य की ओर देखती रही। फिर उसके सीने से लग गई।