प्रार्थना:
दयालु नाम है तेरा, प्रभु हम पर दया कीजे।
हरि सब तुमको कहते, हमारा दुःख हर लीजे॥
दयालु…..
विषय और भोग में निशिदिन फँसा रहता है मन मूरख।
इसे अब ज्ञान देकर, सत्य मार्ग पर लगा दीजे॥
दयालु…
तुम्हारी भूल कर महिमा, किए अपराध अति भारी।
शरण अज्ञान है तेरे, क्षमा अपराध सब कीजे॥
दयालु…
तुम्हीं माता-पिता जग के, तुम्हीं हो नाथ धन विद्या।
तुम्हीं हो मित्र सब जग के, दयाकर भक्तिवर दीजे॥
दयालु…
न चाहूँ राज-धन-वैभव, न है कुछ कामना मेरी।
रख सकूँ शुद्ध सेवाभाव, शुभ वरदान ये दीजे॥
दयालु…
तुम अन्तर्मन के भावों को, जानते हो सदा स्वामी।
यही जीने की अभिलाषा, चरणरज दास को दीजे॥
दयालु…
मंत्र:
जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले।
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम्॥
अर्थ— भगवान शिव की जटाओं से बहती जलधारा पवित्रता का प्रतीक है।
उनकी गले में लटकी हुई सर्प माला उनके अद्वितीय रूप को दर्शाती है।
गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे! तुम मेरी आत्मा के सबसे करीब हो। तुम्हारे बिना मेरा जीवन अधूरा है। जब भी मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूं, तो मेरी आत्मा में एक अद्भुत शांति का एहसास होता है। तुम मेरी सबसे प्यारी भावना हो।”
पहेली:
एक फूल काले रंग का
सर पर हमेशा सुहाये
तेज धूप में खिल-खिल जाये
पर छाया में मुरझाये?
कहानी: ध्यान की शक्ति
बहुत समय पहले, एक राजा था जिसका नाम विवेकाधिप था। वह अपने राज्य में बहुत प्रसिद्ध था क्योंकि वह न्यायप्रिय, विद्वान और प्रजा का ध्यान रखने वाला शासक था। लेकिन उसके मन में हमेशा एक बेचैनी रहती थी। वह दिन-रात अपने राज्य के मामलों में उलझा रहता और शांति की खोज करता।
एक दिन, एक वृद्ध संत राजा के दरबार में आए। संत की आंखों में गहरी शांति थी, और उनका चेहरा एक अद्भुत तेज से दमक रहा था। राजा ने संत से पूछा, “महाराज, आप इतने शांत और सुखी कैसे दिखते हैं? मुझे अपनी इस बेचैनी से मुक्ति कैसे मिलेगी?”
संत ने मुस्कुराते हुए कहा, “राजन, शांति और सुख किसी बाहरी चीज में नहीं, बल्कि ध्यान की शक्ति में छिपे हैं। यदि आप अपने मन को स्थिर कर लें और ध्यान का अभ्यास करें, तो आपकी बेचैनी स्वतः समाप्त हो जाएगी।”
राजा ने संत से ध्यान का महत्व समझाने की इच्छा जताई। संत ने कहा, “ध्यान का अर्थ है अपने मन को वर्तमान में केंद्रित करना, विचारों को शांत करना और अपनी आत्मा से जुड़ना। यह आपकी समस्याओं का समाधान और आपके भीतर छिपे ज्ञान का स्रोत है।”
राजा ने संत के मार्गदर्शन में ध्यान करना शुरू किया। शुरुआत में उसका मन कई विचारों से भटकता रहा। हर बार जब वह ध्यान करता, तो उसे अपने राज्य के मामलों की चिंता सताती। लेकिन संत ने उसे धैर्य रखने और अपने ध्यान को नियमित बनाए रखने की सलाह दी।
कुछ महीनों के अभ्यास के बाद, राजा ने महसूस किया कि उसका मन शांत होने लगा है। उसकी सोच स्पष्ट हो रही थी, और वह छोटी-छोटी बातों पर परेशान होना बंद कर चुका था। ध्यान के माध्यम से उसने अपने भीतर की शक्ति को महसूस किया।
एक दिन राजा के राज्य में बड़ा संकट आया। पड़ोसी राज्य ने आक्रमण की धमकी दी। दरबार के मंत्री और सैनिक भयभीत हो गए। लेकिन राजा शांत था। उसने अपनी सोच की स्पष्टता और ध्यान की शक्ति का उपयोग करते हुए एक कुशल योजना बनाई। वह युद्ध में सफल हुआ, और पड़ोसी राज्य ने उसकी बुद्धिमत्ता और नेतृत्व की प्रशंसा की।
युद्ध के बाद, राजा ने प्रजा को संबोधित करते हुए कहा, “ध्यान की शक्ति ने मुझे इस संकट का सामना करने का साहस और समाधान खोजने की बुद्धि दी। यह केवल एक साधना नहीं, बल्कि जीवन जीने का मार्ग है।”
धीरे-धीरे, राजा ने ध्यान का संदेश पूरे राज्य में फैलाया। प्रजा ने भी ध्यान का अभ्यास करना शुरू किया।
इससे न केवल राज्य में शांति और समृद्धि आई, बल्कि लोगों का जीवन भी पहले से अधिक सुखद और सरल हो गया।
शिक्षा
ध्यान की शक्ति हमें मानसिक शांति, स्पष्टता और समस्याओं का समाधान खोजने की क्षमता देती है। यह हमारे भीतर छिपी आत्मिक ऊर्जा को जागृत करता है और जीवन को सरल, सुखद और उद्देश्यपूर्ण बनाता है। ध्यान का नियमित अभ्यास हर परिस्थिति में सफलता और शांति की कुंजी है।
पहेली का उत्तर : छाता (छतरी)
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प्रार्थना:
वीणा वादिनि विमल वाणी दे ,
वीणा वादिनि विमल वाणी दे,
विद्या दायिनि वन्दन।
जय विद्या दायिनि वन्दन
अरुण लोक से वरुण लहर तक गुंजारित तव वाणी
ब्रह्मा विेष्णु रूद्र इन्द्रदिक, करते सब अभिनन्दन।
जय विद्या दायिनि वन्दन
तेरा भव्य भण्डार भारती, है अद्भुत गतिवारा
ज्यों खर्चे त्यों बढे निरन्तर, है सबका अवलम्बन।
जय विद्या दायिनि वन्दन
नत मस्तक हम माँग रहे, विद्या धन कल्याणी
वरद हस्त रख हम पर जननी रहे न जग में क्रन्दन।
जय विद्या दायिनि वन्दन
मंत्र:
ॐ देवी महागौरी च विद्महे।
शिवप्रिया धीमहि। तन्नो गौरी प्रचोदयात्॥
अर्थ– हे मां गौरी! आप शिव की प्रिय हैं। हम आपको जानें, आपका ध्यान करें, और आपकी कृपा प्राप्त करें।
गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! तुम्हारा हर कदम मेरे लिए एक नई उम्मीद लेकर आता है। मैं चाहती हूं कि तुम्हारे जीवन का हर क्षण खुशियों और सफलता से भरा हो। मैं तुम्हें हर दिन प्रेरित करूंगी कि तुम अपने सपनों को जी सको।”
पहेली:
बूझो भैया एक पहेली जब काटो नयी नवेली ?
कहानी: शेर और चूहे की दोस्ती
घने जंगल में एक शक्तिशाली शेर रहता था। वह जंगल का राजा था और सभी जानवर उससे डरते थे। वह अपनी ताकत और तेज दहाड़ के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन शेर को यह घमंड था कि उसकी शक्ति के आगे कोई टिक नहीं सकता।
एक दिन, शेर गहरी नींद में था। तभी पास से गुजरते हुए एक छोटा चूहा खेलते-खेलते गलती से शेर के पैर पर चढ़ गया। शेर की नींद खुल गई, और वह गुस्से से दहाड़ने लगा। उसने चूहे को अपनी तेज पंजों में पकड़ लिया।
“तुम इतनी हिम्मत कैसे कर सकते हो कि मुझे जगाओ?” शेर ने क्रोध में कहा।
चूहा डर के मारे कांपने लगा, लेकिन उसने हिम्मत जुटाकर कहा, “महाराज, कृपया मुझे माफ कर दीजिए। मैंने अनजाने में आपकी नींद खराब कर दी। मैं बहुत छोटा और कमजोर हूं, लेकिन एक दिन मैं आपकी मदद कर सकता हूं।”
शेर उसकी बात सुनकर जोर से हंसा। “तु, एक छोटा चूहा, मेरी मदद करेगा? यह तो मजाक जैसा है।” लेकिन फिर, शेर को चूहे की मासूमियत देखकर दया आ गई।
उसने चूहे को छोड़ दिया और कहा, “जाओ, मैं तुम्हें छोड़ रहा हूं। लेकिन याद रखना, तुम्हारी मदद की मुझे कभी जरूरत नहीं पड़ेगी।”
चूहा शुक्रिया कहकर वहां से भाग गया।
कुछ दिनों बाद, शेर जंगल में शिकार की तलाश में घूम रहा था। अचानक, वह शिकारी के लगाए हुए जाल में फंस गया। उसने पूरी ताकत से जाल से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सका। उसकी दहाड़ जंगल में गूंजने लगी।
चूहे ने शेर की दहाड़ सुनी और तुरंत वहां पहुंचा। उसने देखा कि शेर जाल में फंसा हुआ है। चूहा तुरंत बोला, “महाराज, चिंता मत कीजिए। मैं आपकी मदद करूंगा।”
चूहे ने अपने नुकीले दांतों से जाल को काटना शुरू किया। शेर ने सोचा, “यह छोटा चूहा मेरे लिए क्या कर पाएगा?” लेकिन चूहे ने लगातार मेहनत करते हुए जाल को काट दिया। कुछ ही देर में शेर आजाद हो गया।
शेर ने अपनी गलती को समझा और चूहे से कहा, “तुमने आज मुझे सिखा दिया कि ताकत का आकार मायने नहीं रखता। छोटे से छोटा प्राणी भी बड़ी से बड़ी मदद कर सकता है। मैं तुम्हारा ऋणी हूं।”
उस दिन के बाद, शेर और चूहा अच्छे दोस्त बन गए। शेर ने अपनी ताकत का घमंड छोड़ दिया और सभी जानवरों से प्रेम और सम्मान के साथ व्यवहार करने लगा।
शिक्षा
कभी भी किसी को छोटा या कमजोर मत समझो। हर किसी में मदद और समर्थन देने की ताकत होती है। सच्ची मित्रता और सहानुभूति से बड़े से बड़े संकट का समाधान हो सकता है।
पहेली का उत्तर : पेंसिल
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प्रार्थना:
हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें
दूसरों की जय से पहले खुद की जय करें।
हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें
दूसरों की जय से पहले खुद की जय करें
भेद-भाव अपने दिल से साफ़ कर सकें
दूसरों से भूल हो तो माफ़ कर सकें
झूठ से बचे रहें, सच का दम भरें
दूसरों की जय से पहले खुद की जय करें
हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें
दूसरों की जय से पहले खुद की जय करें
मुश्किलें पड़े तो हम पे इतना कर्म करें
साथ दे तो धर्म का, मरे तो धर्म पर
खुदपे होसला रहे, बदी से ना डरें
दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें
हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें
दूसरों की जय से पहले खुद की जय करें
मंत्र:
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
अर्थः हे देवी सरस्वती! आप विद्या और वाणी की देवी हैं। हमें ज्ञान और विवेक प्रदान करें।
गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! तुम्हारे आने से मेरे जीवन को एक नया अर्थ मिला है। तुमने मुझे सिखाया कि जीवन में सच्चा प्यार क्या होता है। मैं तुम्हारे बिना अधूरी हूं। तुम्हारे आने से मेरी दुनिया पूरी हो जाएगी।”
पहेली:
बनाने वाला उसका उपयोग नही करता, उपयोग करने वाला उसे देखता नही, देखने वाला उसे पसंद नही करता जवाब जरूर देना है।
कहानी: लोमड़ी की चतुराई
एक घने जंगल में एक लोमड़ी रहती थी, जो अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता के लिए जानी जाती थी। वह हमेशा हर परिस्थिति में अपनी चालाकी से समाधान निकालती थी। जंगल के बाकी जानवर उसकी बातों से प्रभावित होते थे, लेकिन कई बार उसकी चतुराई से कुछ जानवर परेशान भी हो जाते थे।
एक दिन जंगल में शेर ने घोषणा की कि वह अगले दिन सभी जानवरों को बुलाएगा। शेर ने कहा कि अब से हर जानवर को एक निश्चित समय पर उसका भोजन बनना होगा, ताकि उसे शिकार के लिए मेहनत न करनी पड़े। यह खबर पूरे जंगल में फैल गई, और सभी जानवर डर से कांपने लगे।
लोमड़ी ने यह सुनकर सोचा, “अगर यह नियम लागू हुआ, तो मुझे भी शेर का भोजन बनना पड़ेगा। मुझे कुछ ऐसा करना होगा जिससे मैं अपनी जान बचा सकूं।”
अगले दिन सभी जानवर शेर की सभा में पहुंचे। शेर ने गर्जना करते हुए कहा, “अब से हर दिन एक जानवर मेरी गुफा में आकर मेरी भूख मिटाएगा। इस तरह, मैं शिकार के लिए जंगल में नहीं जाऊंगा।”
सभी जानवर भयभीत होकर सिर झुकाए खड़े थे। तभी लोमड़ी ने आगे बढ़कर कहा, “महाराज, आपकी योजना बहुत अच्छी है। लेकिन क्या आप सुनिश्चित हैं कि इससे आपकी भूख पूरी हो जाएगी ?”
शेर ने हैरानी से पूछा, “तुम्हारा मतलब क्या है, लोमड़ी?”
लोमड़ी ने चालाकी से उत्तर दिया, “महाराज, अगर आप हर दिन एक जानवर खाएंगे, तो हो सकता है कि वह बीमार हो या कमजोर। इससे आपकी सेहत खराब हो सकती है। मैं सुझाव देती हूं कि आपको शिकार करना नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि इससे आपकी ताकत बनी रहती है।”
शेर ने लोमड़ी की बात पर विचार किया और कहा, “तुम ठीक कहती हो। शिकार करने से मेरी ताकत बनी रहेगी। लेकिन अगर मैं शिकार छोड़ दूं, तो हो सकता है कि मैं कमजोर हो जाऊं।”
लोमड़ी की चालाकी काम कर गई। उसने शेर को उसके फैसले से पलटने पर मजबूर कर दिया। शेर ने अपनी योजना रद्द कर दी और कहा, “मैं शिकार करना जारी रखूंगा। लेकिन लोमड़ी, तुम बहुत चालाक हो। तुम्हारी बुद्धिमत्ता के लिए मैं तुम्हें सम्मानित करता हूं।”
सभी जानवरों ने राहत की सांस ली और लोमड़ी की चतुराई की प्रशंसा की। वह दिन जंगल के जानवरों के लिए खुशी का दिन बन गया।
शिक्षा
बुद्धिमत्ता और चतुराई से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान किया जा सकता है। कभी भी विपरीत परिस्थितियों में हार मानने के बजाय अपनी समझदारी का उपयोग करना चाहिए। यह गुण न केवल समस्याओं से बचाता है, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करता है।
पहेली का उत्तर : कफ़न (कब्र)
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प्रार्थना:
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ
तू स्वर की देवी, ये संगीत तुझसे
हर शब्द तेरा है, हर गीत तुझसे
हम है अकेले, हम है अधूरे
तेरी शरण हम, हमें प्यार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
मुनियों ने समझी, गुणियों ने जानी
वेदों की भाषा, पुराणों की बानी
हम भी तो समझे, हम भी तो जाने
विद्या का हमको अधिकार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
तू श्वेतवर्णी, कमल पर विराजे
हाथों में वीणा, मुकुट सर पे साजे
मन से हमारे मिटाके अँधेरे
हमको उजालों का संसार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
मंत्र:
ॐ पंचमुखाय विद्महे।
महासेनाय धीमहि।
तन्नो पंचमुख प्रचोदयात्॥
अर्थः हे पंचमुखी भगवान! आप हमारे जीवन में ऊर्जा और ज्ञान का संचार करें।
गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! तुम्हारी मुस्कान मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी होगी। मैं तुम्हारी हर हंसी और खुशी का हिस्सा बनना चाहती हूं। तुम मेरे जीवन का सबसे अनमोल हिस्सा हो।”
पहेली:
पढ़ने में लिखने में दोनों में ही मैं आता काम पेन नहीं कागज नहीं बूझो मेरा नाम ?
कहानी: मां का त्याग
एक छोटे से गांव में सीमा नाम की महिला रहती थी। वह एक साधारण गृहिणी थी लेकिन उसकी मेहनत और त्याग ने उसे पूरे गांव में आदर और प्रेम दिलाया था। सीमा का जीवन उसके इकलौते बेटे राहुल के इर्द-गिर्द घूमता था। राहुल का पिता एक दुर्घटना में गुजर चुका था, और तब से सीमा ने अकेले ही अपने बेटे को पालने का संकल्प लिया था।
सीमा दिन-रात मेहनत करती। वह दूसरों के घरों में सफाई और रसोई का काम करती, ताकि राहुल को अच्छी शिक्षा मिल सके। उसका सपना था कि राहुल बड़ा होकर एक अच्छा इंसान बने और उनके गरीबी के दिनों को समाप्त करे। वह अक्सर खुद भूखी रह जाती, लेकिन राहुल के लिए भोजन का इंतजाम जरूर करती।
राहुल पढ़ाई में होशियार था और सीमा के सपने को पूरा करने के लिए मेहनत करता था। लेकिन कभी-कभी उसे अपनी मां की परिस्थितियों को देखकर दुख होता। वह पूछता, “मां, तुम इतना क्यों करती हो? क्यों खुद को इतनी तकलीफ देती हो?”
सीमा मुस्कुराते हुए कहती, “बेटा, मेरी खुशी तुम्हारी सफलता में है। जब तुम्हें ऊंचाई पर देखूंगी, तब मेरी सारी तकलीफें मिट जाएंगी।”
समय बीतता गया, और राहुल ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली। उसे शहर में एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई। उसकी मेहनत रंग लाई, और वह अपनी मां के सपने को साकार करने के लिए आगे बढ़ा।
लेकिन शहर में जाते ही राहुल धीरे-धीरे बदलने लगा। वह अपनी मां की कठिनाइयों को भूलने लगा। शहर की चकाचौंध में उसकी मां का संघर्ष कहीं खो गया। वह महीनों तक अपनी मां से बात नहीं करता और गांव लौटने का नाम भी नहीं लेता।
सीमा को राहुल की याद सताती, लेकिन वह चुपचाप उसके लिए प्रार्थना करती। उसने कभी राहुल को फोन करके उसकी शिकायत नहीं की। वह हमेशा यही मानती थी कि उसका बेटा व्यस्त है और अपनी जिंदगी को बेहतर बना रहा है। एक दिन, राहुल को एक बड़ी उपलब्धि के लिए सम्मानित किया गया। समारोह में, जब उससे पूछा गया कि उसकी इस सफलता के पीछे किसका योगदान है, तो उसने थोड़ी देर सोचा और कहा, “मेरी मां। उनके त्याग और मेहनत ने मुझे यहां तक पहुंचाया है।”
यह कहकर राहुल को अपनी मां की मेहनत और संघर्ष याद आ गया। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। वह तुरंत गांव लौटा और अपनी मां से माफी मांगी। उसने कहा, “मां, मैं आपकी तकलीफों को भूल गया था। लेकिन अब मैं हमेशा आपके साथ रहूंगा और आपको हर खुशी दूंगा।”
सीमा ने अपने बेटे को गले लगाते हुए कहा, “बेटा, मुझे केवल तुम्हारा प्यार चाहिए। बाकी सब मेरे लिए अप्रासंगिक है।” उस दिन राहुल ने अपनी मां के लिए एक सुंदर घर बनवाया और उन्हें शहर में अपने साथ ले गया। उसने वादा किया कि वह अपनी मां के त्याग को कभी नहीं भूलेगा।
शिक्षा
मां का त्याग सबसे महान होता है। वह अपने बच्चों की खुशी के लिए हर मुश्किल को सहन करती है। हमें हमेशा अपने माता-पिता के बलिदानों का सम्मान करना चाहिए और उनकी मेहनत को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। मां का प्रेम और त्याग जीवन का सबसे अनमोल उपहार है।
पहेली का उत्तर : चश्मा
=======================14
प्रार्थना:
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी,
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे।।
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी,
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे।।
जग सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे।
वह बल विक्रम दे।।
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी,
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे।।
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे।
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे।
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे।
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे।
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी,
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे।।
लव-कुश ध्रुव प्रहलाद बनें हम,
मानवता का त्रास हरें हम।
लव-कुश ध्रुव प्रहलाद बनें हम,
मानवता का त्रास हरें हम।
सीता सावित्री दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे।
सीता सावित्री दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे।
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी,
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे।
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी,
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे।।
मंत्र:
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
अर्थः हे वक्रतुण्ड गणेश! आप विशाल शरीर वाले और सूर्य के समान तेजस्वी हैं। हमारे सभी कार्य बिना विघ्न के पूरे करें।
गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे! तुम मेरे जीवन का सबसे प्यारा सपना हो। तुम्हारे आने से मेरी हर कल्पना पूरी हो गई है। मैं हर दिन तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य की कल्पना करती हूं।”
पहेली:
एक गुफा और बतीस चोर,
बतीस रहते है तीन और,
बारह घंटे करते है काम,
बाकी वक्त करे काम।
कहानी: भाईचारे की शक्ति
बहुत समय पहले, एक गांव में चार भाई रहते थे। वे आपस में बहुत झगड़ालू थे। हर छोटी-छोटी बात पर उनका विवाद हो जाता। एक दिन उनके पिता, जो गांव के सबसे सम्मानित बुजुर्ग थे, ने उनकी इस आदत से परेशान होकर उन्हें एक महत्वपूर्ण सीख देने का निर्णय लिया।
पिता ने चारों भाइयों को बुलाया और उन्हें एक-एक लकड़ी का टुकड़ा दिया। उन्होंने कहा, “इसे तोड़ो।” सभी भाइयों ने आसानी से अपनी लकड़ी तोड़ दी। फिर पिता ने चार लकड़ियों को एक साथ बांधकर उन्हें दिया और कहा, “अब इसे तोड़ो”
चारों भाइयों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी, लेकिन लकड़ियों का बंडल नहीं टूटा वे हांफने लगे और हार मानकर अपने पिता की ओर देखने लगे।
पिता मुस्कुराते हुए बोले, “देखो, जब तुम अकेले होते हो, तो कोई भी तुम्हें आसानी से तोड़ सकता है, जैसे इन लकड़ियों को। लेकिन जब तुम एक साथ होते हो, तो तुम्हें कोई नहीं तोड़ सकता। भाईचारे में शक्ति है। यदि तुम एकजुट रहोगे, तो कोई भी संकट तुम्हें नहीं हरा सकेगा।”
उनके पिता की बात भाइयों के दिल में उतर गई। उन्होंने महसूस किया कि आपस के झगड़ों ने उन्हें कमजोर बना दिया था। उन्होंने वादा किया कि वे अब से एक-दूसरे का साथ देंगे और कभी आपस में नहीं लड़ेंगे।
कुछ महीनों बाद, गांव में एक बड़ा संकट आया। पड़ोसी गांव के लोगों ने उनके गांव पर आक्रमण करने की योजना बनाई। चारों भाइयों ने मिलकर गांव वालों को संगठित किया और आक्रमणकारियों के खिलाफ योजना बनाई। उनके भाईचारे और एकता ने गांव को बचा लिया।
उस दिन से चारों भाई पूरे गांव के लिए एक मिसाल बन गए। उन्होंने न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे गांव को सिखाया कि भाईचारे और एकता की ताकत हर समस्या का समाधान है।
शिक्षा
भाईचारे में अपार शक्ति होती है। जब हम एकजुट रहते हैं, तो कोई भी मुश्किल या संकट हमें हरा नहीं सकता। आपसी प्रेम और सहयोग जीवन को मजबूत बनाते हैं और हर चुनौती का सामना करने की ताकत देते हैं। हमें हमेशा अपने रिश्तों की कद्र करनी चाहिए और एक-दूसरे का साथ देना चाहिए।
पहेली का उत्तर : दांत
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प्रार्थना:
तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू ईश मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा।
तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू ईश मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा।
तेरी ज़ात-ए-पाक क़ुरान में,
तेरा दर्श वेद पुराण में,
गुरु ग्रंथ जी के बखान में,
तू प्रकाश अपना दिखा रहा।
तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू ईश मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा।
अरदास है, कहीं कीर्तन,
कहीं राम धुन, कहीं आवाहन,
विधि भेद का है ये सब रचन,
तेरा भक्त तुझको बुला रहा।
तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू ईश मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा।
विधि वेश जात के भेद से
हमें मुक्त कर दो परम पिता ,
तुझे देख पाएं सभी में हम
तुझे देख पाएं सभी जगह॥
तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू ईश मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा।
तेरे गुण नहीं हम गा सके
तुझे कैसे मन में ला सकें,
है दुआ यही तुझे पा सकें
तेरे दर पे सर हो झुका हुआ॥
तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू ईश मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा।
तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू ईश मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा।
मंत्र:
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सूरभूप॥
अर्थ– हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनंद मंगलों के स्वरूप हैं। हे देवराज! आप श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।
गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे, जब से मैंने तुम्हें अपने अंदर महसूस किया है, मेरी हर सांस तुम्हारे लिए है। तुमने मेरी जिंदगी को नई ऊर्जा दी है। मैं चाहती हूं कि तुम्हारा जीवन हमेशा खुशियों से भरा हो। तुम मेरे दिल की धड़कन हो, और तुम्हारे बिना मेरी दुनिया अधूरी है। तुम्हारे आने से मेरी जिंदगी एक नए रंग में रंग गई है।”
पहेली:
शक्तिशाली संसार मे
करूं मनुष्य के काम।
जल पीते ही तुरन्त,
जाऊ में फिर सुरधाम?
कहानी: हर सुबह नई शुरुआत
एक छोटे से गांव में एक किसान रहता था, जिसका नाम मोहन था। मोहन मेहनती था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उसकी फसल खराब हो रही थी। हर बार जब वह खेतों में मेहनत करता, तो बारिश या सूखा उसकी मेहनत को बर्बाद कर देता। धीरे-धीरे मोहन का मन टूटने लगा, और उसने मान लिया कि किस्मत उसके साथ नहीं है।
एक दिन, गांव के बुजुर्ग पंडितजी ने मोहन को परेशान देखा। पंडितजी पूछा, “बेटा, क्या हुआ? तुम इतने उदास क्यों हो?”
मोहन ने उत्तर दिया, “पंडितजी, मैं हर साल मेहनत करता हूं, लेकिन मेरी मेहनत का फल कभी नहीं मिलता। अब तो लगता है कि सब कुछ छोड़ देना चाहिए।”
पंडितजी मुस्कुराए और बोले, “बेटा, कल सुबह सूरज उगते ही मेरे पास आना। मैं तुम्हें एक महत्वपूर्ण बात समझाऊंगा।”
अगले दिन, सूरज निकलने से पहले ही मोहन पंडितजी के पास पहुंच गया। पंडितजी उसे गांव के पास स्थित पहाड़ी पर ले गए। वहां से सूरज के उगने का अद्भुत नजारा दिखाई देता था।
जैसे ही सूरज की पहली किरण धरती पर पड़ी, पंडितजी ने कहा, “देखो, हर दिन यह सूरज नए सिरे से निकलता है। इसे परवाह नहीं कि कल क्या हुआ था। इसकी हर सुबह एक नई शुरुआत होती है। यह हमें सिखाता है कि बीते कल की असफलताओं को भूलकर आज को नए जोश और उम्मीद के साथ शुरू करना चाहिए।” मोहन को पंडितजी की बात समझ आ गई। उसने सोचा, “सच में, अगर सूरज हर दिन नई शुरुआत कर सकता है, तो मैं क्यों नहीं?”
उस दिन से मोहन ने अपनी सोच बदल दी। उसने अपने काम को नए उत्साह के साथ करना शुरू किया। उसने आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग करना सीखा, गांव के दूसरे किसानों से सलाह ली, और अपने खेतों की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी।
धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई। इस बार उसकी फसल पहले से बेहतर हुई। अगले कुछ वर्षों में, उसकी फसल इतनी अच्छी हुई कि वह गांव का सबसे सफल किसान बन गया। उसने न केवल अपनी जिंदगी बदली, बल्कि गांव के अन्य किसानों को भी नई शुरुआत करने के लिए प्रेरित किया।
मोहन को एहसास हुआ कि जीवन में असफलताएं आती हैं, लेकिन हर सुबह हमें एक नया अवसर देती है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम उस अवसर का उपयोग कैसे करते हैं।
शिक्षा
हर सुबह नई शुरुआत का प्रतीक है। बीते कल की असफलताओं को भूलकर आज को पूरे जोश और नई उम्मीदों के साथ जीना चाहिए। जीवन में जो भी कठिनाइयां आएं, उनका सामना धैर्य और सकारात्मक सोच के साथ करना ही सफलता की कुंजी है।
पहेली का उत्तर : आग
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