Yah mai kar Lunghi - 9 in Hindi Fiction Stories by अशोक असफल books and stories PDF | यह मैं कर लूँगी - भाग 9

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यह मैं कर लूँगी - भाग 9

(भाग 9)

जब रात के साढ़े दस बज गए वह चुपचाप चाय बना लाई। चाय पीने के दौरान ही मैंने अचानक पूछा, अच्छा, एक बात बताओ, पति से तुम्हारी अनबनन क्यों हो गई?'

सुनकर वह कुछ देर के लिए मायूस हो गई फिर अतीत में डूब कर बताने लगी :

अमित से मेरी शादी हुई तो मैं खुशी से फूली नहीं समा रही थी। वह एक केयरिंग हसबैंड और लविंग पार्टनर थे, और शादी के शुरूआती दिन मानो किसी सपने की तरह थे।

ऐसा लगता था, जैसे- पूरा दिन हम बस एक-दूसरे में खोए रहें! एक-दूसरे का आलिंगन ही हमारी दुनिया थी।

समय के साथ बदलाव आएंगे, यह मुझे पता था। लेकिन चीजें इतनी तेजी से बदलेंगी, इसका अंदाजा नहीं था।

मैं एक ऐसे परिवार से थी, जहां मर्यादा और संस्कार को स्त्रियों का गहना माना जाता है, और दामाद को प्रभु श्रीराम की तरह सम्मान दिया जाता है। लेकिन जब शादी में जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं, तो हमारे रिश्ते में भी बदलाव आना स्वाभाविक था। फिर भी, यह जिम्मेदारियां तब भी सुंदर लगती हैं जब आपका जीवनसाथी रात को आपको गले लगाकर सुलाए और रिश्ते की गरमाहट बनाए रखे।'

मुझे उम्मीद नहीं थी कि वह इस तरह खुल जाएगी और बेलौस बात करने लगेगी। बहरहाल, वह खुल गई थी और बेझिझक अपनी बात, अपना दर्द साझा कर रही थी :

'धीरे-धीरे मैंने महसूस किया कि मैं तो रिश्ते में नजदीकी बनाए रखने के लिए पहल कर रही थी, लेकिन मेरे पति मुझसे कतराने लगे थे। वे या तो बहाने बना लेते या सोने का नाटक करते। एक पत्नी के लिए यह सबसे बड़ा आघात होता है कि उसका पति ही उससे दूर भागने लगे। मुझे उम्मीद होती है कि पति खुद प्यार जताने की पहल करे और मैं एक आदर्श पत्नी की तरह उसका पूरा साथ दूं, लेकिन जब यह दूरी बढ़ने लगी, तो दर्द बढ़ गया।

यों होते-होते जब हमारे बीच शारीरिक संबंध पूरी तरह से खत्म हो गए, तो मैंने अमित से सीधा सवाल किया, "अब आप मुझसे प्यार नहीं करते?" उन्होंने जवाब दिया, "मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूं, लेकिन समय के साथ हमारी ज़रूरतें बदलती हैं।" मैंने उनसे पूछा, "अब आपकी ज़रूरतें क्या हैं?" उनके अगले शब्दों ने मेरे पैरों तले जमीन खिसका दी। उन्होंने कहा, "क्या तुम मेरे दोस्त के साथ सो सकती हो?"

यह सुन मैं स्तब्ध रह गई। मैंने गुस्से और आंसुओं से भरी आवाज़ में कहा, "आपका दिमाग खराब हो गया है? आप कैसी बातें कर रहे हैं? मैं अपने पति के अलावा किसी और के साथ ऐसा कैसे कर सकती हूं?" लेकिन अमित ने बिना किसी शर्म के कहा, "क्या तुम नहीं चाहती कि तुम्हारा पति खुश रहे? तुम मेरे दोस्त के साथ सोओ, तो बदले में मैं उसकी पत्नी के साथ सो लूं।"

'उस रात मेरी आंखों में आंसू थे, और मैं समझ नहीं पा रही थी कि अब क्या करूं। मैं अपने पति की हर खुशी पूरी करना चाहती थी, लेकिन यह कभी नहीं चाहती थी कि हम दोनों किसी और के साथ कुछ करें। मेरे लिए यह कल्पना भी असहनीय थी कि मैं किसी गैर मर्द के साथ जुड़ूं।

समय बीतता गया, और हमारे बीच की दूरियां और बढ़ गईं। यह बात अलग कि दोनों की ही शारीरिक जरूरत-वश इस बीच मैं गर्भवती भी हो गई। और मैंने कई बार उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन वे हर बार मुझे यह समझाने में लग जाते कि- मुझे इस चीज़ को एक बार ट्राई करना चाहिए।"

मैं घबराकर एक डॉक्टर से मिली, और उसने जो बताया, वह और भी चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा कि यह चीज़ धीरे-धीरे समाज में बढ़ती जा रही है और इसका पति के प्यार से कोई लेना-देना नहीं है।"

'डॉक्टर ने बताया!' मैं चौंका।

'जी, डॉक्टर ने बताया कि "इसे वाइफ स्वैपिंग या पार्टनर स्वैपिंग कहा जाता है, जिसमें पति-पत्नी अपने पार्टनर को एक-दूसरे से बदलते हैं। उनका मानना होता है कि सेक्स में कुछ नया होना चाहिए, इसलिए एक ग्रुप बनाकर वे इस गतिविधि को अंजाम देते हैं।"

और मुझे लगा कि क्षमा मुझे कोई फिल्मी कहानी तो नहीं सुना रही...सो पेशाब के बहाने उठ गया।

पर वह हकीकत बता रही थी। अपना दर्द बयां कर रही थी। लौटने पर उसने बताया कि- जब मैंने अमित से कहा कि ठीक है, मैं तुम्हारी खुशी के लिए प्रसव के बाद यह कर लूंगी!" यही सोचकर कि प्रसव के बहाने तब तक का समय टल जाएगा, और उसके बाद मैं अपने पीहर चली जाऊंगी। पर वे अड़ गए कि गर्भ गिरवा लो, बच्चा अभी क्यों चाहिए? हमारा सौ लोगों का ग्रुप है... दो-चार साल पार्टनर बदल-बदल कर मौज करेंगे। जवानी सदा नहीं रहेगी, बच्चा तो चाहे जब कर लेंगे!"

'ताज्जुब...इतने गिरे हुए लोग!' मुझे जैसे यकीन नहीं आ रहा था।

'हां, आपको और किसी को भी यह घोर अविश्वसनीय लग सकता है, पर मेरा आंखों देखा सच था...। उस दिन की पार्टी से घर लौटते ही मैंने पति से कहा, "आज से तुम आज़ाद हो। तुम्हें जिसके साथ जो करना हो, करो, पर मैं किसी कीमत पर इस गंदगी में शामिल नहीं होऊँगी...।" और उन्होंने कहा कि- सोच लो फिर एक बार" तो मैंने कहा, सोच लिया, अगर तुम्हें इसी तरह की गलीज जिंदगी जीना है, तो हम इस रिश्ते को यहीं खत्म करते हैं। मेरे लिए मेरी लज्जा और आत्मसम्मान किसी भी रिश्ते से ऊपर है।"

'इसके बाद तुमने क्या किया!' मेरे मुख पर हवाइयां थीं।

क्षमा ने बताया, अगले दिन ही मैं अपने घर लौट आई। पापा को बताया। उन्होंने आग-बगूला होते हुए तलाक का केस फाइल करा दिया। मगर उस दौरान मैंने महसूस किया कि भाभी को मैं अखरने लगी थी। कारण यह कि गर्भवती थी, डिलीवरी का खर्च और छोटे बच्चों को पालना उन्हें आफत लग रहा था। पर मैंने धैर्य पूर्वक नौकरी की तलाश आरंभ कर दी। इस बीच शुभ भी हो गया मगर दुर्भाग्य यह कि पापा का देहांत हो गया!'

'ओह्ह!' मैं जैसे आसमान से गिरा। और उसे भी अतीत की याद ने इतना दुखी कर दिया कि पापा जैसे अभी मरे हों, उसकी आंखों से छल-छल आंसू बह निकले। और उसके बाद वह अपने कलेजे को दोनों हाथों से दबाए उठकर स्टडीरूम को ओर चली गई।

रात के बारह बज गये थे, अब तो जाने का सवाल ही नहीं था। मैं दीवान बेड पर पड़ रहा। और कल सो नहीं पाया था इसलिए आज बिस्तर पर पड़ते ही सो गया।

मगर जैसी कि प्रकृति है, साढ़े तीन-चार घंटे बाद पेशाब जरूर लगती है, सो अधनींद उठकर वॉशरूम में चला आया। जब लौट रहा था, उसका ख्याल आ गया और नींद उड़ गई। झांकने चला आया स्टडी तरफ...।

लाइट आज बंद थी, देख कर तसल्ली हुई कुछ, मगर गेट खुला था, गौर से देखा तो वह मूर्तिवत टॉप से पीठ टिकाए मिली, यह देख दिल में एक शूल-सा गड़ गया।

देर तक खड़ा रहा उन्हीं पैरों। फिर भीतर आ गया। मगर आकर भी चुपचाप खड़ा रहा तो थोड़ी देर बाद उसने तट की ओर आई लहर के मानिंद हाथ बढ़ा दिया, फिर अचानक निःश्वास छोड़ लहर के मानिंद ही वापस खींच लिया...

दिल में गढ़ा शूल और गहरा गया। धैर्य छोड़ मैं बेड पर गिर गया और वह सीने से लग सुबकने लगी।

भावुक चरम पर कि- पति, पिता, बच्चा तीनों चले गए; जिये तो अब किसके सहारे जिये यह...!

ऐसी विडम्बना अब तक किसी के जीवन में देखी-सुनी नहीं थी। कांपती हुई पीठ थपकते हुए धीरज बंधाने लगा।

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