(भाग 10)
सिसकियां कुछ देर में थम गईं और वह शांत हो गई। तब मैं सोचने लगा कि अब यह जल्दी से सो जाय तो उधर चला जाऊं। स्पर्श से बचना चाहिए क्योंकि इससे कामोत्तेजना की भावना जाग सकती है, जो मुझे आत्म-नियंत्रण से दूर कर देगी। आत्म-नियंत्रण बनाए रखूं, अनुशासन और संयम बनाए रखूं यह जरूरी है, अन्यथा कल सरीखी अधूरी घटना आज पूरी घट गई तो सफेदी में दाग लग जायेगा।
यह नादान है तो क्या, मैं तो परिपक्व हूँ!
वैसे यह नादान यानी अनुभवहीन या अज्ञान तो नहीं है। जिसने पति से संसर्ग किया हो और गर्भवती हुई हो, वह नादान कैसे हो सकती है!
और मैं परिपक्व हूँ यानी अपने विचारों, भावनाओं और कार्यों को नियंत्रित करने में सक्षम हूँ, इसकी क्या गारंटी! मन जाग्रत अवस्था में तो सधा रहता है, पर सोते ही बे-लगाम हो जाता है...।
जब एक पवित्र रिश्ता बना लिया तो उसे निभाना होगा। कथनी और करनी में भेद मैं ही करूंगा तो फ़ॉलोअर्स से क्या उम्मीद! मैं एक साहित्यकार, सम्पादक हूँ तो मुझे तो एक आदर्श स्थापित करना होगा ना...।
बचना होगा स्पर्श से, नहीं तो कहावत चरितार्थ हो जाएगी कि चिनगारी और फूस पास रखोगे तो आग लगेगी ही...।
बालों में उंगलियों से हौले-हौले कंघी करता सुलाने लगा...जिससे जल्दी सो जाए। और इसमें मुझे सफलता भी मिल गई। क्योंकि गई रात तक बैठे रह कर जागते रहने से उस पर बेहोशी छा रही थी। ढांढस और लोरी-सी सहलाहट मिलने से धीरे-धीरे झपक गई। तब मैंने धीरे से अपनी बाँह खींची जो कि उसके गले के नीचे थी, मगर उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप तो उसने मुझे, मुझसे भी अधिक ओर खींच लिया! जैसे, इलास्टिक को खींचो तो वह दुगने वेग से वापस खींच ले! सो, अब तो कोई दूरी न रह गई- सीना सीने से मिल गया और गला गले से।
गनीमत कि कमर कमर से दूर रखने, उसने और मैंने भी अपने घुटने मोड़ रखे थे!
पर अब निकलना मुश्किल हो गया था, क्योंकि वह पूरी तरह सोई न थी सो निभूल सोने तक अब उससे दामन छुड़ा कर जा पाना, सम्भव न था। क्योंकि ऐसा करने से नींद उसकी उचट गई तो फिर किसी कीमत पर नहीं आएगी, और सवेरे तक बीमार पड़ जाएगी...।
इसलिए मैं अब कोई हरकत न कर मरा सा पड़ा रह गया था। और कुछ वदन की गर्माहट से आलस-सा आने लगा था जिससे तन्द्रा की स्थिति निर्मित हो गई थी। यानी नींद तो आ रही थी लेकिन मैं पूरी तरह से सो नहीं रहा था। हां, वदन शिथिल जरूर हो गया था और चेतना भी कुछ मंद पड़ गई थी...।
और ऐसे में मस्तिष्क में उस नादान कीर्तिकुमारी की छवि कौंधने लगी थी जिसने सोशल मीडिया पर तहलका मचा रखा था।
कीर्तिकुमारी एक ऐसी लड़की जिसने वृद्ध कलाकारों, साहित्यकारों, चित्रकारों के साथ अपनी फोटो खिंचवाने का शौक पाल रखा था। वह पगली उनसे बात-बात में लिपट जाती, गले में बाँहें डाल झूल जाती, सेल्फी लेने गाल से गाल सटा लेती!
लोगबाग उसके बारे में बड़ी बे-सिर-पैर की बातें करते। ...कोई कहता, बूढ़ों से वह कोई खतरा महसूस नहीं करती, उल्टे अपोजिट सेक्स के आकर्षण का आनन्द लूट लेती है ... कुछ का कहना होता कि वह उनकी फैन हो जाती है ... कुछ का कहना, अपने प्रचार के लिए ऐसा करती है ताकि उसे पारखी, कद्रदां और बौद्धिक समझा जाये .... तो कुछेक यह भी कहते मिलते, अरे यह दिलफेंक पोज़ सोशल मीडिया पर पोस्ट कर वह अपने लाइक्स बढ़ा रही है, इंटरनेट के माध्यम से आजकल यह भी एक चोखा धंधा हो गया है!
रात बीतने को थी। रात में ठीक से न सो पाने के कारण ही सुबह के प्रहर में नींद झुकी पड़ रही थी। झपकी बार-बार लग जाती और खुल जाती। और इस बीच उसके खर्राटे आने लगे तो मैंने धीरे से उसका हाथ अपने ऊपर से हटा दिया और फिर सावधानी पूर्वक अपनी बाँह उसकी गर्दन के नीचे से निकाल ली। और फिर धीरे से उठने लगा कि तभी वह बड़बड़ाई, काम निबट गया है, अब तो आप चले जायेंगे...'
शायद, वह कोई डरावना सपना देख रही है!
अनुमान लगा मैं अत्यधिक भावुक गया, 'नहीं जाऊँगा, क्यों जाऊँगा, कहाँ जाऊँगा अब तुम्हें छोड़...मेरा भी तो कोई नहीं बचा!' कहते फिर से बाँहों में भर ली, जिसके बाद वह फिर खर्राटे भर उठी।
तब थोड़ी देर में मुझे भी गहरी नींद ने घेर लिया। जिसमें कि वह, कीर्तिकुमारी बन गई और मैं पोपले मुख वाला बूढ़ा कवि। ताबड़तोड़ फोटोग्राफी का भयानक दौर चल पड़ा। ...कभी तो गाल गाल से सट जाता, सीना सीने से और कभी वह गले में झूल जाती, कभी बाँहों में।
मगर जिस अदृश्य यौनिक इच्छा के चलते सहवास का जादुई स्वप्न चालू हो गया था, उसने तो सारी दूरियां मिटा दीं। अब तो ओठ होठों में, उरोज मुट्ठियों में ही नहीं, कमर भी कमर में धँस गई थी और इरेक्शन इतना मजबूत कि वस्त्र फाड़े दे रहा था...।
जब इंतिहा हो गई, नींद खुल गई। मगर मैं हैरत से भर गया कि सपना हकीकत बन गया था। मैं सचमुच उसके ऊपर था! और नींद, स्वप्न सब टूट गये थे, मगर होश के तो आंख-कान मुंद गए थे! पागल होने लगा! भूल गया कि यह वही है जिसने पति के वाइफ स्वेपिंग प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। उल्टा यह सोचने लगा कि दस-बारह साल से यह भी तो देह सुख से वंचित है, इसकी भी तो दमित इच्छा जोर मारती होगी, इसे भी सहवास का सपना आता होगा...और इसकी देह भी तो पुरुष देह को बुलाती होगी!
अगर यह नहीं तो यह मुझे अपने ऊपर से धकेल क्यों नहीं देती...? क्या कोई स्त्री, किसी गैर मर्द के साथ, इस सिचुएशन में, इतनी गहरी नींद सोई रह सकती है!
फिर भी परीक्षण के लिए अपने आप को कठोरता पूर्वक दो पल रोक कर मैंने बेड स्विच दबा दिया। लैंप की अचानक हुई रोशनी से आंखें टुक से खुल गईं उसकी, भले ही अगले पल मुंद गईं। पर इससे यह तो पता चल ही गया कि वह सो नहीं रही...और जान रही है कि अब क्या होने वाला है!
सहमत है! डर निकल गया। नैतिकता बलाए-ताक-रख अधोवस्त्र खींच लिया मैंने।
बेड हिलने लगा।
दूध वाले की बाइक का हॉर्न बजता रहा पर जोश में हम चक्र पूरा करते रहे। जब लौटकर दुबारा आया, पीं-पीं की, वह मुझे अपने ऊपर से हटा, वस्त्र पहन, बाल लपेट, किचन से दूध की डोलची ले, बगटुट भागी।
जोर से कहा उसने, बीबीजी, आज तो खूब छककर सोया आप, लगता है, शुभ के पापा आ गए।' क्षमा खामोश रह गई।
चाय के बाद निगाह नीची किये कहा मैंने, जा रहा हूं।'
'ठीक है...' निगाह नीची किये धीमे स्वर में कहा उसने भी।
रास्ते में मैं सोचता रहा कि बेटे के वियोग में ओरछोर डूबी वह, मुझ बूढ़े से रति के लिए तैयार कैसे हो गई? कहां से आई इतनी उत्तेजना, मदहोशी, उत्साह, बेशर्मी...जो संभोग भर आंखों में आंखें डाले कुछ खास महसूस करती रही।
तब और गहराई से सोचने पर पता चला कि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया जरूर होती है। जब उसका पति वाइफ स्वैपिंग के लिए उतावला था और उसने झूठमूठ कह दिया कि- तुम्हारी खुशी के लिए प्रसव के बाद मैं यह कर लूंगी।' तो मदहोशी में शायद वही विचार, बदले की भावना बन हावी हो गया! पर होश आते ही उत्साह काफ़ूर हो गया। अब तो शायद वह मेरा सामना भी नहीं कर सके और मैं भी कोई अन्य पोस्ट ऑफिस देखूं!
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