(भाग 6)
जब छह बज गए, उसने अपना कंप्यूटर बंद किया और बैग उठा कर चल दी। स्कूटी निकाल स्टार्ट की और मुझे बैठने को कहा। और मैं आज्ञाकारी बालक की तरह उसके पीछे बैठ गया। रास्ते में लग रहा था कि वह मुझे स्कूल से वापस घर ले जा रही है। यह भी बड़ा अनोखा अनुभव था। मैं सोच रहा था कि जीवन के उत्तरार्ध में यह कैसा मोड़ आया कि एक नई जिंदगी शुरू हो गई। घर आकर उसने ताला खोल स्कूटी अंदर रखी और बिना कुछ कहे सुने वॉशरूम के अंदर चले गई। मैं सोफे पर आकर बैठ गया। जब वॉशरूम खाली हो गया मैं भी अंदर गया, फ्रेश होकर आया, हाथ मुंह धोया और इत्मीनान से बैठ गया।
अब तक वह सब्जी की टोकरी लेकर सब्जी चुनने बैठ गई थी। मुझसे पूछा, क्या खाना पसंद करोगे' मैंने कहा, तुम जो भी खिलाओगी, तुम्हारे हाथ का सब कुछ अच्छा लगता है।' इस पर वह मुस्कुराई फिर अचानक उदास हो गई। और फिर कहने लगी, शुभ बहुत नखड़ीला था। हरी सब्जियां तो उसे बिल्कुल पसंद नहीं थीं। रोजाना दाल-चावल... अधिक से अधिक आलू... उसके कारण मैं हरी सब्जियां खाने को तरस गई थी। वह तो सलाद भी नहीं खाता था।'
मैंने मन में सोचा कि ऐसी तो कुछ मेरी आदत है! लेकिन अब मैं अपनी इच्छा तुम पर नहीं थोपूंगा। तुम जो भी बनाओगी, चुपचाप खा लूंगा।
मैं खयालों में गुम हुआ रहा, वह सब्जी काटती रही। जब किचन में चली गई तो मैं भी पीछे चला आया। और जब तक उसने आटा लगाया, मैंने सब्जी छौंक दी। उसके बाद उसने जल्दी-जल्दी रोटियां पका लीं। और फिर दोनों थाली लगाकर कमरे में ले आई। तब तक मैंने टेबल बिछा दी थी। पानी का जग रख दिया था।
इस तरह बैठकर साथ-साथ खाना खाने के बाद उसने रसोई समेटी और उसके बाद पूछा, चाय पियेंगे?'
'पी लूंगा, थोड़ी देर बैठो, अभी एकदम तो नींद आएगी नहीं!'
उसने कहा, नींद को तो सुरखाब के पर लग गए हैं। आती ही कहां है...!' फिर थोड़ी देर इधर-उधर की बातें होती रहीं। उसके बाद वह किचन में गई, चाय बनाई, और हम लोगों ने चाय पी।
यह सब करते ग्यारह बजे गए। तब मैंने कहा कि- अच्छा अब सो जाओ, मैं चलूंगा।' उसने कहा कि- फिर वही बात... अब ग्यारह बजे जाओगे तो बारह-एक बजे पहुंचोगे... फिर कब सोओगे... कब क्या होगा! यहां कोई दिक्कत तो नहीं है।'
मैंने सोचा कि- यह भी ठीक है! यहां अब कैसा संकोच? यही सोच में दीवान बेड पर जम गया और वह उठकर बच्चे के स्टडी रूम में चली गई।
पर इतनी आसानी कहाँ थी। नींद न तो उसे आ रही थी और ना मुझे। थोड़ी देर बाद झांकने आई और पूछा सो गए?' तो मैंने कहा, अभी तो नहीं!' तब वह बेड के किनारे पर बैठ गई और कहने लगी, शुभ ने इतनी आदत खराब कर दी है कि मुझे अकेले नींद नहीं आती...!'
कहने के बाद अचानक उसकी छोटी सिसकी उभरी। जिससे मेरे दिल को धक्का-सा लग गया। क्योंकि मुझे याद है, मेरी बिटिया को जब निमोनिया हो गया था और वह सोते-सोते खांसती थी तो मेरी नींद खुल जाती और कलेजे में धक्का-सा लग जाता। फिर मुझे नींद नहीं आती।
मैंने हाथ बढ़ा कर उसके सर पर रख दिया और वह मेरे ऊपर निढाल हो गई, अश्रु बहकर गालों पर आ गए जिन्हें मैं अपनी उंगलियां से पोंछने लगा। लेकिन उसकी रुलाई नहीं थमी। तब मैंने समझाई कि तुम इस तरह रोज-रोज रोओगी, तो जिंदगी कैसे पार लगेगी? अभी तो बहुत समय है! जब वह मैच्योर हो जाएगा, तब मां की याद उसे जरूर तुम्हारे पास खींच लाएगी!'
'ईश्वर करे, आपकी वाणी सच हो जाए...' कह कर उसने नाक सुड़की क्योंकि रोने पर सिर्फ आंसू ही नहीं बहते, नाक भी बहने लगती है। फिर वह बैठ गई। तब मैंने फिर उसके सिर पर हाथ रखा और कहा, जाकर सो जाओ।' उसने कहा, हां।' और उठ कर चली गई।
लेकिन उसके बाद मुझे फिर भी नींद नहीं आई तो मैं उठकर झांकने गया और देखा वह करवट बदल रही थी...।
निकट पहुंच हाथ उसके सर पर रखते कहा, क्षमा तुम किसी की तो बात मानो! मैं कह रहा हूं, मेरी बात मानो ना, सो जाओ प्लीज...!'
सुनकर वह मेरी आंखों में देखती रही।
अब मुझे समझ नहीं आ रहा था कि- क्या करूं! सो उसकी चारपाई पर बैठ गया और सर पर हाथ फेरने लगा। जैसे बच्ची को सुलाता था। लेकिन बच्ची सो जाती थी। क्षमा कोई बच्ची नहीं थी कि लोरी सुनकर सो जाए! हालांकि मैं यह फर्क समझ सकता था। क्योंकि मेरी बच्ची को ऐसा कोई दुख नहीं था... ना तो उसकी शादी हुई थी, ना पति से अनबन और ना उसका बच्चा छिना था। जबकि इसके साथ तो यह सारी दुर्घटनाएं घट चुकी थीं।सर पर हाथ फिराते फिराते मुझे आलस आने लगा। तब मैं थोड़ी सी जगह बना कर वहीं लेट गया और जमाई लेते हुए कहा, अब सो जाओ नहीं तो मेरी तबीयत खराब हो जाएगी...!' यह सुनकर उसने मेरे सीने पर हाथ रख लिया और कहा आप सो जाइए, तो फिर मैं भी सो जाऊंगी।'
और उसके बाद वह सच में सो गई और गहरी नींद सो गई तब मुझे भी बहुत गहरी नींद आ गई।
सुबह का वक्त था, जब क्षमा बिस्तर से उठी मैंने घड़ी पर नजर डाली। सुबह के साढ़े पांच बज चुके थे। काफी देर सो चुकने के बावजूद मेरा बिस्तर छोड़ने का मन नहीं था। खिड़की से छनकर आती हल्की रोशनी दिन के आगमन का संकेत दे रही थी।
क्षमा बाथरूम चली गई थी। फ्रेश होने के बाद, उसने कमरे को ठीक किया और दैनिक दिनचर्या में व्यस्त हो गई।
कुछ देर बाद दूधवाले की घंटी बजी। क्षमा ने दूध लिया और किचन में रख दिया। लौट कर बताया, दूध वाला पूछ रहा था, आपके पापा जी आ गए हैं? तो मैंने हां कह दिया!' कहकर वह मुस्कुराने लगी और मैं भी मुस्कुराए बिना न रह सका।
●●