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“देश की सीमा पर यह जो घटना घटी है वह वास्तव में तो आज कल नहीं घटी है।”
“क्या मतलब है आपका? आज नहीं घटी है तो कब घटी है?”
“आज से आठ वर्ष पूर्व ही यह घट चुकी है।”
“ओह। ऐसा है क्या?”
“बिल्कुल ऐसा ही है।”
“कब? कहाँ? कैसे? इस घटना के विषय में आप जो भी जानते हैं मुझे कहिए।”
“सब बताते हैं। इसीलिए तो हम आपके पास आए हैं।”
“आज से आठ वर्ष से थोड़ा अधिक समय हुआ होगा। तब यह घटना गंगटोक में घट चुकी है।”
“क्या बात करते हो? ऐसा कैसे हो सकता है?”
“सपन। तुम विस्तार से बताओ न सारा जी को। तुम उस समय वहीं तो थे।” निहारिका ने कहा।
“ठीक है। सुनो सारा जी। ध्यान से सुनना।” सपन कुछ क्षण रुका। सारा के मुख के भावों को देखा। उसे विश्वास हो गया कि सारा उसकी बातों में रुचि ले रही है। उसने कहा, “वह मार्च का महिना था। गंगटोक में विश्व के बड़े बड़े शिल्पकारों के शिल्प की प्रदर्शनी थी। मेरा शिल्प भी वहाँ प्रस्तुत था। एक से बढ़कर एक शिल्प वहाँ थे।”
सपन ने तथा निहारिका ने देखा कि सारा पर उनकी बातों का प्रभाव पड रहा है। उनकी योजना के अनुसार हो रहा है।
“किन्तु एक शिल्प सबसे अनूठा था, विचित्र भी था।”
“कौन स शिल्प था?”
“उस शिल्प में शिल्पकार ने एक नदी बनाई थी। नदी के ऊपर एक उल्टा मृतदेह बनाया था। मृतदेह के मध्य में नदी पर एक रेखा खींची थी। रेखा के एक तरफ जहां उस देह का नीचे का हिस्सा था वहाँ भारत लिखा था। जहां धड़ का भाग था वहाँ पाकिस्तान लिखा था।” सपन क्षण भर रुका। सारा को देखा। निहारिका को देखा। निहारिका ने संकेत किया कि तीर निशाने पर लग चुका है।
“क्या बात करते हो? ऐसा शिल्प बन सकता है?”
“मैं सत्य कह रहा हूँ। विश्व के सभी शिल्पकार भी मानते थे कि ऐसा शिल्प बनाना असंभव है। किन्तु ऐसा शिल्प वास्तव में बना था। सबके सम्मुख था। सब की आँखें उसे देख रही थी, मेरी भी। अत: विश्वास ना करने का प्रश्न ही नहीं है।”
“क्या उस नदी को उस शिल्पकार ने सतलुज नाम दिया था?”
“आप उचित दिशा में सोच रही हो। आपने उचित ही प्रश्न किया।”
“तो कहो क्या नाम रखा था उसने नदी का?”
“सतलुज। हाँ, यही नाम रखा था।”
“आप लोग कहीं मेरा मजाक तो नहीं कर रहे हो?”
“नहीं, कभी नहीं। हमने जो कुछ भी कहा सम्पूर्ण सत्य ही कहा है।”
“मुझे उस शिल्प को देखना है।”
“अवश्य देख सकती हैं आप। इसी लिए तो हम आयें हैं।”
“यह तो आठ वर्ष पहले का शिल्प है। अब वह कहाँ होगा?”
“इस शिल्प को मैं दो दिन पहले ही देखकर आया हूँ। और सीधा आपके पास आया हूँ।”
“तो मुझे ले चलो वहाँ।”
“सिक्किम की पहाड़ियों में एक शिल्प शाला है, उसे येला स्टॉकर नाम की एक प्रसिद्ध शिल्पकार चलाती है।
“क्यानाम बताया?”
“येला स्टॉकर।”
‘यह तो वही लड़की है जो शैल की स्त्री मित्र है। उसके साथ ही वह सात दिनों तक अवकाश पर गया है।’
“कहाँ खो गईं, सारा जी?”
“नहीं, नहीं। आप कहिए।”
“उस येला की शिल्प शाला में वह शिल्प आज भी सुरक्षित है। हम आपको वहाँ ले चलते हैं। आप सज्ज हो जाओ। कल प्रात: होते ही हम आपको ले चलेंगे।”
“कल? कल तो मैं नहीं आ सकती।”
“जब तक शैल अवकाश पर से लौटता नहीं तब तक आप के पास कोई काम ही नहीं है। और वह सात दिन के लिए अवकाश पर है। तो आप चल सकती हैं।”
“आपको कैसे पता चला यह सब?”
“आप उसमें ना पड़ें। बस यह जान लो कि प्रत्येक कार्यालय में कोई न कोई हमारे जैसा वामपंथी, सेक्युलर, नास्तिक, बुद्धिजीवी काम कर रहा है।”
“ठीक है। किन्तु आपको यह पता नहीं है कि मैं यहाँ विशेष वीजा पर आई हूँ। मुझे इस क्षेत्र को छोड़कर कहीं जाना हो तो अनुमति लेनी पड़ती है। मुझे वह सारी प्रक्रिया करनी पड़ेगी।”
“तो कर लो। समस्या क्या है। हम एक दो दिन के बाद जाएंगे।”
“किन्तु वहाँ जाने के लिए मुझे कोई ठोस कारण बताना पड़ेगा।”
“ओह। तब क्या करेंगें हम, निहारिका जी?”
निहारिका विचारने लगी। ‘कोई ठोस कारण ढूँढना पड़ेगा। हमने इस बात को कैसे भुला दिया? अब कोई कारण नहीं मिलेगा तो सारी योजना विफल हो जाएगी। क्या करें?’
सपन भी वही विचार करता रहा।
“आप लोग कारण ढूंढ लो। तब तक मैं आपके लिए कुछ खाने के लिए लाती हूँ।” सारा रसोईघर में चली गई।
सपन और निहारिका एकदूसरे को प्रश्न दृष्टि से देखने लगे। दोनों ने एकदूसरे को विफलता के संकेत दिए।
जब सारा खान-पान लेकर आई तब भी उनके पास कोई ठोस कारण नहीं था।
“आप दोनों कुछ खा पी लो। हो सकता है पेट में कुछ जाने के बाद कोई कारण सूझने लगे।”
दोनों खाने पीने लगे। जब वह हो गया तो निहारिका ने उपाय बताया।
“सिक्किम का एक लड़का है वकार नाम का। वह मेरा विद्यार्थी रह चुका है। वकार आपका कोई दुरका रिश्तेदार है। आप उसे मिलने जा रही हो”
“किन्तु मैं किसी वकार को नहीं जानती। न ही ऐसा मेरा कोई रिश्तेदार है।”
“हमें पता है। तुम्हें नए रिश्तेदार बनाने होंगें। तभी तो ..।”
“ठीक है मैं समझ गई। आज ही मुझे विजेंदर ने अनुमति फॉर्म दिया था। मैं कल ही अनुमति मांग लूँगी। जब मिल जाएगी तो हम चलेंगे।”
“आप वह हमें दे दें। बाकी हम सब कर देंगे। कल शाम तक आपको अनुमति मिल जाएगी।”
“कल ही? वह कैसे?”
“हमने कहा न कि भारत के प्रत्येक कार्यालय में हमारे जैसे कर्मचारी हैं।”
“ठीक है।” सारा ने वह फॉर्म निहारिका को दे दिया। अन्य आवश्यक दस्तावेज भी दिए। उसे लेकर दोनों विदा हो गए।
दूसरे दिन संध्या के समय सारा को सिक्किम जाने की अनुमति मिल गई। रात्री आठ बजे निहारिका सारा को लेने आ गई। वहाँ से दिल्ली होते हुए दूसरे दिन रात्री तक सपन, निहारिका एवं सारा सिक्किम में वकार के घर पहुँच गए।