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प्रात: होते ही सारा खुली हवा में कुछ समय तक घूमने चली गई। प्रभात की वेला में उसे भारत की हवा में अधिक प्रसन्नता का अनुभव होने लगा।
‘कितनी शांति है यहाँ? कितना सुकून है यहाँ! यहाँ की सवार में कुछ तो है। जो मेरे देश की हवा से भिन्न है। क्या है?’
‘सूरज अभी अभी निकला है। किन्तु सूरज निकलने से आज मुझे चिंता क्यों नहीं हो रही? क्यों मन इतना शांत है?
यदि इस समय पाकिस्तान में होती तो?’
‘तो मन में आशंका रहती कि आज फिर कौन सी नई बात पर मुझे मेरे वरीशठों द्वारा प्रताड़ित किया जाएगा। मैं उससे कैसे लड़ूँगी? फिर से मैं रो पड़ूँगी। फिर से मुझे ताने सुनने पड़ेंगे। फिर से मेरा मजाक बनाया जाएगा। फिर से मुझे जलील किया जाएगा।’
‘और? और वह सब मेरी इस दशा पर मजे लेंगे, हँसेंगे। अट्टहास करेंगे। और मैं नि:सहाय सब कुछ सहती रहूँगी। रोती रहूँगी।’
‘आज तो ऐसा नहीं होनेवाला है तो क्यों तुम ऐसी बातों से मन को दु:खी कर रही हो? उसे छोड़ कर आज क्या करना है वह सोच, सारा।’
सारा का मन उत्साह से, चेतन से भर गया। उसने प्रभात के प्रत्येक क्षण का आनंद लिया और कक्ष में लौट गई। सज्ज होकर कार्यालय आ गई। वहाँ विजेंदर था। उसने सारा का स्मित से स्वागत किया। सारा को अच्छा लगा। आज प्रथम वार किसी ने स्वागत किया है, किसी ने स्मित के साथ स्वागत किया है। उसने भी विजेंदर को प्रतिस्मित देकर अपनी प्रसन्नता प्रकट की।
“विजेंदर जी, एक बात की आपसे अनुमति चाहिए।”
“कहिए। संभव होगा तो अवश्य मिलेगी।”
“मैं चाहती हूँ कि इस मंजूषा से जुड़े तथ्यों का मैं अभ्यास कर लूँ। जब तक शैल सर आएंगे, मैं भी पूरी घटना से परिचित हो जाऊँगी। तो क्या मैं वह सब देख सकती हूँ?”
“मेरी अनुमति से काम होनेवाला नहीं है।”
“तो? ऐसा क्यों?”
“वह कक्ष क्रमांक सत्रह देख रही हो?” विजेंदर ने उस कक्ष की तरफ संकेत किया। सारा ने उसे देखा।
“हाँ।”
“सारे तथ्य, सारी फ़ाइलें, सारे प्रमाण जो कुछ भी है वह सब उस कक्ष में बंद हैं।”
“तो मैं उस कक्ष में जाकर सब देख लेती हूँ।”
“ऐसा नहीं हो सकता। क्यों कि वह कक्ष को ताला लगा है और उसकी चाभी केवल शैल सर के पास है।”
“और शैल तो सात दिनों के लिए अवकाश पर है।”
“जी, बिल्कुल सत्य कहा आपने।”
“तो इतने दिनों तक मैं क्या करूँ? कुछ किए बिना तो मैं पागल हो जाऊँगी।”
“जो लोग पागल होते हैं वही पुलिस में नौकरी करते हैं।”
“तो क्या आप भी?”
“कोई संदेह?” इस बात पर दोनों हंस पड़े।
“इतने दिनों तक मैं क्या कर सकती हूँ, विजेंदर जी?”
“विश्राम कीजिए, अपने कक्ष में। यहाँ की हवा का, यहाँ की पहाड़ियों का, यहाँ के भोजन का और हमारे भारत के आतिथ्य का आनंद उठाइए।”
“और क्या क्या है मेरे आनंद के लिए?”
“भारतीय संगीत, भारतीय फिल्में भी हैं।”
“अर्थात सब कुछ है किन्तु जिस काम के लिए मैं यहाँ आई हूँ वह ही नहीं ही।” सारा ने एक दीर्घ श्वास छोड़ते हुए कहा।
“मैं काम के प्रति आप की निष्ठा का सम्मान करता हूँ। आप पाकिस्तान के अन्य पुलिस अधिलरियों से भिन्न हैं।”
“आपका संकेत कहीं सुल्तान की तरफ तो नहीं?” विजेंदर ने स्मित से उत्तर दिया। सारा ने उस उत्तर का अर्थ निकाल लिया।
“ठीक है। यदि मेरे पास कोई काम नहीं है तो क्या मैं भारत में कहीं घूमना चाहती हूँ तो घूम सकती हूँ?”
“इस नगर से बाहर जाने के लिए आपको अनुमति लेनी होगी।”
“वह कैसे मिलेगी?”
“वह आप मुझ पर छोड़ दीजिए।” विजेंदर ने दो पन्नों का एक फॉर्म निकाला और सारा के सामने धर दिया,
“इसे भरकर मुझे दे दीजिए। मैं आगे की कार्यवाही कर दूंगा।”
सारा ने फॉर्म को देखा। सोचा, ‘मैं कहाँ जाना चाहती हूँ? क्यों? कुछ भी तो नहीं जानती और विजेंदर ने तो मेरे सामने फॉर्म ही रख दिया। अब मैं क्या करूँ?’
‘सारा जी। इसे ले लीजिए। भरकर दे दीजिए।”
सारा की विचार तंद्रा भंग हुई।
“जी। धन्यवाद आपका, विजेंदर भाईजान।”
“भाई। केवल भाई। जान नहीं।”
“पर हम तो भाईजान ही कहते हैं।”
“आपके देश में भाई तथा जान में कोई अंतर नहीं होता। भाई को आप कब जान बना देती हो कोई नहीं जानता। हमारे यहाँ भाई भाई ही रहता है, कभी जान नहीं बनता। और मैं भाई बनकर ही रहना चाहता हूँ।”
“अरे, आप तो नाराज हो गए। मेरा कहने का अर्थ ..।”
“जो भी हो, मेरे कहने का अर्थ मैंने स्पष्ट कर दिया है। कोई संशय है इस विषय में?”
“नहीं।” सारा ने कहा और फॉर्म लेकर चली गई।
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सारा कक्ष में लौट गई।
‘विजेंदर ने जो बातें कही वह दोनों बातों से मेरा मन उद्विग्न हो गया है।
एक, शैल के आने तक उस कक्ष में वह प्रवेश ही नहीं कर सकती। कोई काम भी नहीं कर सकती।
दूसरी, भाई और भाईजान का अंतर उसने स्पष्ट कर दिया है। अत: अब मैं विजेंदर को भी हनी ट्रैप में फंसा नहीं सकती।’
‘तो क्या तुमने अपनि योजना पर काम करने का निश्चय कर ही लिया है?’
‘अभी मैं कोई निर्णय नहीं कर रही हूँ।’
‘तो यह क्या था?’
‘मैं तो केवल संभावनाओं को देख रही थी।’
‘वह तो समाप्त हो गई।’
‘कैसे?’
‘प्रथम शैल और अब विजेंदर। दोनों हाथ आने वाले नहीं लगते हैं।’
‘कोई और संभावना देखूँगी।’
‘अर्थात तुम वह काम तो करोगी ही?’
‘मैं नहीं जानती। मैंने उसे समय पर छोड़ दिया है।’
‘जो भी करो, सोच समझ कर करना। यह भारत है, पाकिस्तान नहीं।’
‘जी।’