Anternihit - 5 in Hindi Classic Stories by Vrajesh Shashikant Dave books and stories PDF | अंतर्निहित - 5

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अंतर्निहित - 5

[5]

येला ने दस निमिष कहा था किन्तु उससे भी पाँच निमिष पूर्व प्रार्थना कक्ष भर गया। सभी के मन में एक समान आशंका थी यह सब को विदित था किन्तु कोई अपने मुख से उसे प्रकट नहीं करना चाहता था। 

“क्या यह शिल्प शाला अब बंद हो जाएगी?’ इसी प्रश्न का उत्तर जानने के लिए प्रत्येक व्यक्ति उत्सुक था, चिंतित था। 

येला ने एक दृष्टि प्रार्थना खंड में उपस्थित सभी व्यक्तियों पर डाली। वह संतुष हो गई कि कोई भी अनुपस्थित नहीं था। येला ने अपना स्थान ग्रहण किया, आँखें बंद कर प्रार्थना आरंभ की। 

“शांताकारम भुजग शयनम पद्मनाभम सुरेशम । 

विषवाधारम गगन सदृशम मेघवर्णम शुभंगम ।।

लक्ष्मीकांतम कमलनयनम योगीभिध्यार न गम्यम । 

वंदे विष्णुम भव भय हरम सर्व लोकैक नाथम ।।”

नित्य रात्री प्रार्थना सम्पन्न हुई। येला के उपरान्त किसी का भी चित्त प्रार्थना में नहीं था। येला ने आँखें खोली। देखा तो सभी की आँखें खुली ही थी। 

“क्या आप लोगों ने आज प्रार्थना के समय आँखें बंद कर ईश्वर का चिंतन नहीं किया?”  

येला के इस प्रश्न का उत्तर सभी के मौन ने दे दिया। 

“आप सभी के मुख भाव कह रहे हैं कि आप सभी अत्यंत चिंतित हो। चिंता होना सहज है। किन्तु कभी कभी कुछ चिंताएं व्यर्थ ही होती हैं। मैं मेरी बात रखूं उससे पूर्व आप सब को आश्वस्त करना चाहूँगी कि यह शिल्प शाला जिस प्रकार अभी तक चल रही है उसी प्रकार से ही चलती रहेगी। तत्काल इसे कोई समस्या नहीं है।”

येला के इन शब्दों से सभागार प्रसन्न हो गया। येला ने सभी को निश्चिंतता से भरी उस क्षण में रहने दिया। मौन होकर सभी के आनन के भावों को देखती रही। धीरे धीरे सभा शांत होने लगी। शांत होते ही सभी का ध्यान पुन: येला पर केंद्रित होने लगा। 

जब सभी का ध्यान एक ही बिन्दु पर स्थिर हो गया तो येला बोली, “मैंने निश्चय किया है कि मैं उस शिल्प के साथ सम्बद्ध सभी प्रमाण के साथ उस स्थान पर जाऊँगी जहां पर उस घटना की जांच चल रही है। मैं संबंधित अधिकारियों से मिलूँगी तथा उस शिल्प के विषय में जो कुछ भी आवश्यक होगी वह सभी जानकारी उसे उपलब्ध कराऊँगी। 

संभव है इस कार्य में कई दिन लग जाए। मैं इसके लिए सज्ज हूँ। मेरी अनुपस्थिति में उर्मिला यहाँ का पुरा व्यवहार पूर्ववत चलाएगी। आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। मैं लौटकर अवश्य आऊँगी।”

“क्या ऐसा करना आवश्यक है?”

“ऐसा करने पर येला, तुम स्वयं समस्या को आमंत्रित कर रही हो।”

“तुम्हें वहाँ नहीं जाना चाहिए।”

सभा में से ऐसे ऐसे प्रतिभाव आने लगे। येला ने सभी को बोलने दिया। शांत चित्त से सभी के मत को सुना। 

सभी ने ध्वनि मत से अपने इस निर्णय को निरस्त करने का येला को आग्रह किया। 

“आपकी भावना का मैं सम्मान करती हूँ। किन्तु मेरी बात ध्यान से सुनो। जो शिल्प हमारी शिल्प शाला में पिछले  आठ वर्षों से स्थित है उसे असंख्य व्यक्तियों ने देखा है। इस पर्वत पर आनेवाले प्रत्येक प्रवासी ने उसे देखा है। इन प्रवासियों में भांति भांति के लोग होंगे। कई पुलिसकर्मी भी होंगे। और आज जो समाचार संचार माध्यमों में प्रसारित हुए हैं, उसमें जो चित्र और चलचित्र दिखाए गए हैं उनसे इस शिल्प को कोई भी जोड़ सकता है। पुलिस को सूचित कर सकता है। तब पुलिस को यहाँ आने में विलंब नहीं होगा। पुलिस यहाँ आए उससे तो उचित यही होगा कि मैं पुलिस के पास जाकर सब बात बता दूँ। अत: इस घटना में मेरा पुलिस से मिलना अनिवार्य है, उचित ही है। तो अब विलंब क्यों करें? जितना शीघ्र हो उतना शीघ्र हम सभी को इस चिंता से मुक्त होना है। यही उचित रहेगा न?” येला ने सभा पर प्रश्न छोड़ दिया। 

सभा कुछ समय तक परस्पर चर्चा करने में व्यस्त हो गई। पश्चात सभी ने एकमत से येला को जाने की स्वीकृति दे दी। सभा सम्पन्न हो गई। 

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“शैल, पाकिस्तान सरकार की ओर से प्रस्ताव आया था कि उसका एक दल भी इस घटना के अन्वेषण में जुड़ना चाहता है।” विजेंदर ने सूचित किया। 

“हमारी सरकार ने उस प्रस्ताव पर क्या उत्तर दिया?”

“प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी।”

“इतनी त्वरित स्वीकृति दे भी दी?”

“हाँ। केवल एक व्यक्ति के लिए ही अनुमति दी है।” 

“तब तो सुल्तान आ रहा होगा। आने दो उसे।”

“नहीं सुल्तान नहीं आ रहा।”

“तो कौन आ रहा है?

“आ रहा नहीं, आ रही है। कल प्रात: वह तुम्हारे साथ होगी।”

“अर्थात? कोई महिला आ रही है? कौन है वह?”

“वरिष्ठ इंस्पेक्टर सारा उलफ़त नाम है उसका।”

“सारा? सारा का अर्थ तो परी होता है ना?”

“और उलफ़त का अर्थ प्रेम होता है शैल जी। एक परी प्रेम लेकर आ रही है। सावधान रहिएगा, श्रीमान।”

“और वह भी शत्रु देश से? उलफ़त कहीं उलझन न बन जाए।” शैल हंस पड़ा। विजेंदर भी। 

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“दो स्त्रीयां आपसे मिलने की प्रतीक्षा मैं हैं, श्रीमन शैल।”

“दो? बात तो एक की थी। क्या पाकिस्तान ने दो को भेज दिया है? विजेंदर, एक के साथ एक नि:शुल्क?”

“एक तो सारा प्रतीत होती है, दूसरी पाकिस्तान से नहीं आई है। उसके विषय में कुछ ज्ञात नहीं है।”

“तो जानो कि कौन है वह।”

“मैंने पूरा प्रयास किया किन्तु वह केवल तुमसे ही मिलना चाहती है।”

“क्या नाम है उसका?”

“वह अपना नाम भी नहीं बता रही है।”

“ओह। उसे यहाँ तक आने की अनुमति कैसे मिल गई?”

“उसके पास अनुमति पत्र है। उसने उचित पहचान पत्र अधिकारियों को दिखाए होंगे।”

शैल ने कोई उत्तर नहीं दिया। 

“तो प्रथम किस को भेजूँ?” विजेंदर ने व्यंग में पूछा। 

“यह समय व्यंग का नहीं है विजेंदर।”

“तो बिना व्यंग के कहो किसको भेजूँ?”

“अभी रुको। मुझे सोचने दो।” 

“मैं बाहर प्रतीक्षा करता हूँ।” वह चला गया। 

शैल दुविधा में पड गया। 

“कौन हो सकती है? अपना नाम भी नहीं बता रही। केवल मुझसे ही मिलना चाहती है। कुछ तो रहस्य है उस स्त्री में। यदि सारा से प्रथम मिल लिया तो वह स्त्री जो कहेगी उसे मुझे सारा को भी बताना पड़ेगा। इस स्थिति में प्रथम उस अज्ञात स्त्री को ही मिलना चाहिए।” 

“विजेंदर।”

“जी, कहिए। क्या निर्णय हुआ?”

“प्रथम उस अज्ञात स्त्री को भेज दो। तब तक तुम सारा का आतिथ्य सत्कार करो।”