Anternihit - 6 in Hindi Classic Stories by Vrajesh Shashikant Dave books and stories PDF | अंतर्निहित - 6

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अंतर्निहित - 6

[6]

मृतदेह मिलने की घटना को तीन दिन हो गए। शैल ने अपने अन्वेषण के सभी पक्षों से प्रयास किया किन्तु अभी तक उसे इस अन्वेषण में सहायक हो सके ऐसे किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल सका। वह उस बात से चिंतित था और ऊपर से दो नई बातें उसके समक्ष प्रस्तुत हो गई थी। 

एक, कोई अज्ञात स्त्री उससे मिलना चाहती है, इस घटना के विषय में। 

दूसरा, पाकिस्तान इस अन्वेषण में जुड़ना चाहता है और उसने किसी सारा उलफ़त को प्रस्तुत कर दिया है। 

‘यह सारा कहाँ से आ गई? पाकिस्तान का इस विषय से जुड़ना तो निश्चित तथा किन्तु सारा? यदि सुल्तान आता तो बात रोचक होती। अब यह सारा से..।’ शैल विचार कर ही रहा था कि तभी उसके कक्ष में अज्ञात स्त्री ने प्रवेश किया। वह येला थी। 

येला को, एक विदेशी स्त्री को देखकर शैल क्षणभर अचंभित रह गया। 

‘यह कौन हो सकती है? इसका इस घटना से क्या संबंध हो सकता है?’ ऐसे अनेक विचार शैल के मन में जागे किन्तु बिना उत्तर के शांत हो गए। 

शैल को मौन देखते ही येला ने कहा, “नमस्ते शैल जी। मैं येला। येला स्टॉकर। आपसे कुछ बात करना चाहती हूँ।”

विदेशी येला ने बात का प्रारंभ हिन्दी में किया। वह सुनकर शैल को एक और आश्चर्य हुआ। 

“क्या आप मेरी बात सुनने को तत्पर हो? सज्ज हो?”

येला के शब्दों ने शैल को सावध कर दिया।  

“जी। आप यहाँ बैठ सकती हैं।” शैल ने एक कुर्सी की तरफ संकेत करते हुए कहा। येला बैठ गई। 

“येला, प्रथम आप अपना पूरा परिचय दें तो कैसा रहेगा?”

“मेरी बात में वह स्वयं प्रकट हो जाएगा। मेरे विषय में आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मेरी बातों से मिल जाएंगे। किन्तु कोई विघ्न आए उससे पूर्व मुझे मेरी बात कह देनी चाहिए।”

शैल येला के सम्मुख बैठ गया। “कहो, जो भी कहना चाहती ही।”

“समाचार माध्यमों में प्रस्तुत सभी चित्रों को मैंने देखा। सतलज नदी के प्रवाह में उलटे पड़े देह को भी देखा। यह भी देखा कि देह का अर्ध भाग भारत की सीमा में तथा दूसरा अर्ध भाग पाकिस्तान की सीमा में था। यह सभी बातें आपके लिए आश्चर्य हो सकती हैं। किन्तु ....।” येला क्षण भर रुकी। शैल ने उसे रुकने दिया। येला ने गहन सांस ली। 

“किन्तु से आगे आप कुछ कहना चाहती हैं? केवल इतनी बात बताने के लिए तो आप मुझसे मिलने नहीं आई होंगी। मैं ठीक कह रहा हूँ न, मिस येला?”

“किन्तु से आगे की बात ही महत्वपूर्ण है। मैं दुविधा में हूँ कि वह बात आपसी करूं या ना करूं? करूं तो कैसे करूँ?”

“मुझसे बात करना आवश्यक है तभी तो आप यहाँ तक आ पहुंची हो। हाँ, उस बात को कहने में थोड़ा समय ले सकती हो। यदि कोई समस्या हो तो मैं किसी महिला पुलिस को साथ रखने से आपत्ति नहीं रखता। क्या किसी को बुला लूँ?”

“नहीं, शैल जी। मेरी बात किसी और को नहीं कहनी है। केवल आपको ही यह बात बतानी है।”

“तो कहिए। मैं सज्ज हूँ, सुनने के लिए।”

“आज से लगभग आठ वर्ष पूर्व की बात है। गंगटोक में विश्व के बड़े बड़े शिल्पकार का मिलन हुआ था। वहाँ अनेक शिल्पकारों ने अपनी अपनी श्रेष्ठ रचनाओं को प्रदर्शित किया था। मैं भी उसमें उपस्थित थी। प्रदर्शनी में उत्तम से उत्तम शिल्प प्रस्तुत हुए थे। प्रत्येक शिल्प अपने में अनूठा था। किन्तु एक शिल्प ने सभी को आकर्षित किया था, अचंभित किया था। प्रत्येक शिल्पकार उस शिल्प को देखकर स्वयं के शिल्प को कनिष्ठ मानने लगा था। प्रदर्शनी के तीसरे दिन जब सर्वश्रेष्ठ रचना का चयन करना था तब सभी शिल्पकारों ने एक मत से उस शिल्प को ही चुना।”

“ठीक है। कोई विशेष बात रही होगी उस शिल्प में। किन्तु मेरी रुचि कभी शिल्प में नहीं रही।”

“यदि आप उस शिल्प को देखते तो पुलिस अधिकारी होने के कारण आपकी रुचि सभी शिल्पकारों से भी अधिक होती। और यदि आप उसे आज देखोगे तो निश्चय ही आप शिल्प में भी, शिल्पकार में भी रुचि रखने लगोगे।”

“विस्तार से कहो, स्पष्ट कहो।”

“प्रथम किसके विषय में कहूँ? शिल्प या शिल्पकार?”

“शिल्प के विषय में ही कहो। आवश्यक हुआ तो शिल्पकार का स्मरण कर लेंगे।”

“वह शिल्प आज से आठ वर्ष पूर्व बनाया गया था। वह शिल्प में एक नदी, जिसका नाम सतलज है, थी। नदी भारत की सीमा से पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश करती थी। उस नदी पर एक उल्टा शव बनाया गया था। वह शव भी आधा भारत की सीमा में था, आधा पाकिस्तान की सीमा में।”

“क्या? यह तो .. ?”

“यही सत्य है। जो दृश्य आपने संचार माध्यमों में प्रसारित किए थे वह दृश्य एक शिल्पकार ने आज से आठ वर्ष पूर्व अपने शिल्प से रच डाला है।”

शैल कुछ क्षण रुका, विचार करने लगा। एक गहन सांस लेकर वह बोला, “आप किस आधार पर कह  सकते हो कि शिल्प की वह नदी सतलज ही थी? अन्य नदी भी हो सकती है न? और वह भारत से पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर रही थी?”

“यह मैं नहीं कह रही हूँ। वह तो स्वयं शिल्पकार ने अपने शिल्प में स्पष्ट रूप से दर्शाया है। नदी का नाम, देश के नाम लिखे हैं। स्पष्ट रूप से दोनों देशों की सीमा रेखा भी दिखाई है।”

“तो उस उलटे पड़े शव का भी नाम लिखा ही होगा। क्या नाम लिखा था?” 

“बस यही उसने नहीं दर्शाया।”

“तुम सत्य कह रही हो? क्या ऐसा ही हुआ था?”

“शत प्रतिशत सत्य।”

“इसका अर्थ है कि उस शिल्पकार ने आज से आठ वर्ष पूर्व ऐसी घटना को मूर्त रूप दे दिया था जो तब घटी ही नहीं थी। अर्थात वह शिल्पकार .... !” शैल रुक गया। विचार में व्यस्त हो गया। उसने एक तीव्र दृष्टि येला की आँखों में डाली। येला उससे विचलित नहीं हुई। 

‘इसका अर्थ है कि येला सत्य कह रही है। यदि यह सत्य है तो इस मंजूषा में यह प्रथम महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह सूचना इस मंजूषा को उपयुक्त दिशा दे सकती है। उस शिल्पकार से मिलना पड़ेगा। शीघ्र ही मिलना चाहिए।’

“येला, तुम उस शिल्पकार को जानती हो? क्या नाम है उसका? कहाँ रहता है वह? किस देश से आया था? मुझे  उस शिल्पकार के विषय में सबकुछ बताओ।”

“उसका नाम वत्सर है। वह भारतीय है। मैं उसे जानती हूँ। मेरे पास उसके घर का पता है।”

“भारतीय है? यह तो उत्तम बात है। क्या तुम मुझे उस शिल्पकार तक पहुँचा सकती हो? क्या नाम बताया?”

“वत्सर। मैं आपको अवश्य ले जाऊँगी। बोलो कब चलना है?”

“आज ही। अभी चलें?”

“चलो।”

“किन्तु जाना कहाँ है?”

“हमें केरल जाना होगा। वह केरल के किसी छोटे से ग्राम में रहता है जो तिरुवनंतपुरम से पचीस किलो मीटर के अंतर पर स्थित है।”

“केरल में?”

“हाँ। कोई समस्या है क्या?”