Chhaya - Bhram ya Jaal - 15 in Hindi Horror Stories by Meenakshi Mini books and stories PDF | छाया भ्रम या जाल - भाग 15

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छाया भ्रम या जाल - भाग 15

भाग 15

कवच को पाने के बाद मिली राहत कुछ देर ही रही। विवेक ने उसे अपने बैग में सुरक्षित रखा, और सबने तुरंत मंदिर के खंडहरों से अपनी कार की ओर चलना शुरू किया। दुष्ट शक्ति की भयानक चीखें शांत हो गई थीं, और हवा में घुटन कम हो गई थी, लेकिन वे जानते थे कि खतरा अभी टला नहीं था। यह बस एक अस्थायी शांति थी, जैसे तूफान से पहले का सन्नाटा। उनके कदमों में तेजी थी, लेकिन हर धड़कन में अनिश्चितता का एहसास था। वे जानते थे कि यह केवल एक पड़ाव है, मंजिल अभी दूर थी।

रास्ता, जो आते समय बाधाओं से भरा था, अब आश्चर्यजनक रूप से साफ था। गिरे हुए पेड़ और मिट्टी के ढेर गायब हो चुके थे, और पगडंडी आसानी से दिखाई दे रही थी। ऐसा लग रहा था कि कवच ने एक सुरक्षा कवच बना दिया हो, जिसने दुष्ट शक्ति के सीधे हस्तक्षेप को रोक दिया था। फिर भी, वे हर कदम पर सतर्क थे, उनकी आँखें लगातार चारों ओर घूम रही थीं। अनंत घने जंगल में भी, अब उन्हें हल्की रोशनी और पत्तियों की सरसराहट की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं, जो पहले भयावह सन्नाटे में खो गई थीं। कदम-कदम पर वे अपनी साँसें थामे हुए थे, हर आहट पर चौकन्ने हो रहे थे। जंगल के जीव-जंतु भी अब अपनी सामान्य गतिविधियों में लौटते दिख रहे थे, मानो वे भी इस परिवर्तन को महसूस कर रहे हों। पक्षियों का चहचहाना, कीटों की गुनगुनाहट, और दूर से जानवरों की आवाज़ें अब उन्हें सुनाई दे रही थीं, जो पहले दुष्ट शक्ति के प्रभाव में दब गई थीं। हवा में एक अजीब सी ताजगी थी, जो पहले की घुटन को धो रही थी। यह सब देखकर उन्हें विश्वास हो रहा था कि कवच वास्तव में काम कर रहा है, लेकिन मन में एक अज्ञात भय अभी भी बना हुआ था। वे बार-बार पीछे मुड़कर देख रहे थे, कहीं कोई पीछा तो नहीं कर रहा।

अनुराग की हालत में थोड़ा सुधार हुआ था। उसका बुखार कम हो गया था, और वह खुद चलकर कार तक पहुँच पाया, हालाँकि अभी भी कमज़ोर था। रिया ने राहत की साँस ली, उसके फोन पर अब कोई डरावनी पोस्ट या कॉल नहीं आ रही थी। छाया को भी महसूस हुआ कि उसके शरीर पर उभरे लाल निशान अब कम चुभ रहे थे। उनके चेहरों पर थोड़ी मुस्कान थी, लेकिन आँखों में अभी भी रात के खौफ की परछाई थी। अनुराग को सहारा देकर रिया चल रही थी, और छाया बार-बार अपनी बांहों को देख रही थी जहाँ निशान फीके पड़ रहे थे। इस छोटी सी जीत ने उन्हें एक नई ऊर्जा दी थी, यह जानते हुए कि वे सही रास्ते पर हैं।

लगभग आधे घंटे में वे अपनी कार तक पहुँच गए। विवेक ने गाड़ी स्टार्ट की, और वे जितनी तेज़ी से हो सके, अरावली की पहाड़ियों से दूर शहर की ओर बढ़ने लगे। वापसी की यात्रा शांत थी, लेकिन उनके दिमाग में लगातार सवाल घूम रहे थे। उन्होंने एक प्राचीन दुष्ट शक्ति का सामना किया था, एक दुर्लभ नीला फूल और एक शक्तिशाली कवच हासिल किया था। यह सब किसी सपने जैसा लग रहा था। गाड़ी की खिड़की से बाहर देखते हुए, पहाड़ियों के घने पेड़ अब छोटे होते जा रहे थे, और उन्हें लगा कि वे किसी और दुनिया से वापस आ रहे हैं। उनके शरीर थके हुए थे, लेकिन उनका मन सवालों से भरा था: अब आगे क्या होगा? क्या वे वास्तव में इस दुष्ट शक्ति को हरा पाएंगे? क्या उनका जीवन कभी सामान्य हो पाएगा?

जैसे ही वे शहर के करीब पहुँचे, उनके फोन में सिग्नल वापस आ गया। विवेक ने तुरंत डॉ. मेहता को फोन लगाया। कुछ ही रिंग्स के बाद, डॉ. मेहता ने फोन उठाया, उनकी आवाज़ में चिंता थी।

"डॉ. मेहता! हम सफल हो गए! हमें नीला फूल और कवच दोनों मिल गए हैं," विवेक ने उत्साह से कहा, उसकी आवाज़ में थकान के बावजूद एक नई ऊर्जा थी।

फोन पर कुछ देर सन्नाटा रहा। फिर, डॉ. मेहता की आवाज़ आई, जो अब राहत और आश्चर्य से भरी थी। "क्या? यह अविश्वसनीय है! मुझे उम्मीद नहीं थी कि आप कवच भी ढूंढ पाएंगे। आप ठीक हैं? कोई परेशानी तो नहीं हुई?"

विवेक ने उन्हें गुफा के अंदर के अपने अनुभव, दुष्ट शक्ति द्वारा पैदा किए गए भ्रम, टॉर्च के बुझ जाने, और कैसे नीला फूल लेने पर दुष्ट शक्ति ने भयंकर प्रतिक्रिया दी, उन सबके बारे में बताया। उसने यह भी बताया कि कैसे कवच को पाने के बाद दुष्ट शक्ति का प्रभाव कम हो गया। उसने विस्तार से बताया कि कैसे गुफा के अंदर उन्हें एक-दूसरे पर शक होने लगा था, कैसे अंधेरे में उन्हें लगा कि वे कभी बाहर नहीं निकल पाएंगे, और कैसे नीले फूल की हल्की रोशनी ने उन्हें रास्ता दिखाया। विवेक ने यह भी साझा किया कि जब उसने कवच उठाया, तो एक तीव्र ऊर्जा लहर महसूस हुई थी, जिसने गुफा को हिला दिया था और दुष्ट शक्ति की चीखों को शांत कर दिया था। डॉ. मेहता ध्यान से सब सुन रहे थे, उनकी साँसें तेज हो गई थीं।

"यह अद्भुत है, विवेक," डॉ. मेहता ने कहा। "इसका मतलब है कि कवच वास्तव में उस दुष्ट शक्ति की ऊर्जा को बेअसर कर सकता है। यह हमारे लिए एक बहुत बड़ा फायदा है। आप लोग कहाँ हैं?"

"हम शहर में वापस आ रहे हैं। शायद एक-दो घंटे में अपार्टमेंट पहुँच जाएँगे," विवेक ने जवाब दिया।

"ठीक है," डॉ. मेहता ने कहा। "जैसे ही आप पहुँचें, मुझे फोन करें। मैं तुरंत आऊँगा। हमें अनुष्ठान की तैयारी करनी होगी। अमावस्या की रात बस कुछ ही दिन दूर है।"

फोन रखने के बाद, सबमें एक नई उम्मीद जगी। वे एक बड़ी चुनौती में सफल हुए थे। नीला फूल और कवच उनके पास थे, और डॉ. मेहता उनका इंतज़ार कर रहे थे। कार में अब एक अजीब सी शांति थी, जो घबराहट की जगह थोड़ी संतुष्टि और दृढ़ संकल्प से भरी थी। हर कोई अपने-अपने विचारों में डूबा था, आने वाली चुनौती के बारे में सोच रहा था। रिया ने नीले फूल को देखा, जो अब भी हल्के नीले रंग में चमक रहा था, और छाया ने बैग में रखे कवच की ओर देखा, जिसकी आभा उसे महसूस हो रही थी।

लगभग डेढ़ घंटे बाद, वे अपने अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स पहुँचे। बाहर से सब कुछ सामान्य लग रहा था, लेकिन जैसे ही उन्होंने मुख्य गेट से अंदर कदम रखा, उन्हें फिर से वही अजीब-सी ठंडक और सन्नाटा महसूस हुआ। दुष्ट शक्ति अभी भी यहाँ मौजूद थी, अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी। यह एहसास एक चेतावनी जैसा था, जो उन्हें बता रहा था कि भले ही उन्होंने एक लड़ाई जीती हो, युद्ध अभी बाकी था। हवा में एक अजीब सी भारीपन थी, और उन्हें लगा कि जैसे अदृश्य आँखें उन्हें देख रही हों। लॉबी में कोई नहीं था, और लिफ्ट का दरवाजा अपने आप खुल गया, मानो उनका इंतजार कर रहा हो।

वे सीधे अपने अपार्टमेंट में गए। श्रीमती शर्मा का कमरा शांत था, उनकी फुसफुसाहटें अब सुनाई नहीं दे रही थीं। रिया ने दरवाज़े के पास जाकर देखा, लेकिन कमरा अँधेरे में डूबा था।

"वह ठीक होगी," छाया ने कहा, हालाँकि उसके चेहरे पर चिंता साफ दिख रही थी।

उन्होंने अपने बैग एक तरफ रखे। नीला फूल कांच के जार में अभी भी हल्की नीली रोशनी बिखेर रहा था, और कवच अपने आप में एक शक्तिशाली आभा लिए हुए था। ये दोनों चीज़ें अब उनकी सबसे बड़ी उम्मीद थीं। कवच को मेज पर रखते ही कमरे में एक हल्की चमक फैल गई, जिससे उन्हें थोड़ी शांति मिली। नीले फूल की रोशनी और कवच की आभा मिलकर एक अजीबोगरीब संगम बना रही थीं, जैसे प्रकाश और शक्ति एक साथ आ गए हों।

विवेक ने डॉ. मेहता को फोन किया। "हम पहुँच गए हैं, डॉ. मेहता।"

"मैं बस रास्ते में हूँ। 15-20 मिनट में पहुँच जाऊँगा," डॉ. मेहता ने जवाब दिया।

ग्रुप ने डॉ. मेहता का इंतज़ार किया, उनके मन में अनुष्ठान और आने वाली अंतिम लड़ाई को लेकर हजारों सवाल घूम रहे थे। उन्हें पता था कि कवच ने उन्हें एक मौका दिया था, लेकिन यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई थी। दुष्ट शक्ति अभी भी यहाँ मौजूद थी, अपनी ताकत बटोर रही थी। वे जानते थे कि अमावस्या की रात उन्हें एक ऐसी लड़ाई लड़नी होगी, जो उनके जीवन की सबसे बड़ी और शायद आखिरी लड़ाई होगी। उनकी आँखों में दृढ़ संकल्प था, लेकिन मन में एक बेचैनी भी थी। वे एक गहरी साँस लेते हुए एक-दूसरे को देखते रहे, इस बात को समझते हुए कि अगला कदम कितना महत्वपूर्ण होने वाला है। उन्होंने अपनी सारी हिम्मत बटोर ली थी, क्योंकि उन्हें पता था कि अब पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं था। यह सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि पूरी मानवता की लड़ाई थी।

यह एक ऐसी लड़ाई थी जहाँ हार का मतलब था मानवता का अंत।