Chhaya - Bhram ya Jaal - 2 in Hindi Fiction Stories by Meenakshi Gupta mini books and stories PDF | छाया भ्रम या जाल - भाग 2

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छाया भ्रम या जाल - भाग 2


छाया: भ्रम या जाल?
भाग 2

छाया के अपार्टमेंट में लगातार हो रही अजीबोगरीब 'व्यवस्था' ने उसकी रातों की नींद और दिन का चैन पूरी तरह से छीन लिया था. जो घर कभी उसकी शांति और सुरक्षा का ठिकाना था, वह अब एक भयानक, अनसुलझी पहेली बन गया था. हर सुबह, उसे अपने कमरे में बिखरी हुई चीज़ों को करीने से रखा हुआ देखकर उसके भीतर एक ठंडी सिहरन दौड़ जाती थी. किताबें अलमारी में सही क्रम में, कपड़े इस्त्री करके टंगे हुए, यहाँ तक कि उसके तकिए के नीचे लापरवाही से रखा हुआ उसका डायरी-पेन भी अपनी 'सही' जगह पर मेज़ पर करीने से रखा मिलता था. यह कोई सामान्य चोरी नहीं थी; यह नियंत्रण का एक भयावह प्रदर्शन था, एक अदृश्य शक्ति का यह संदेश कि वे उसे जानते हैं, उसकी आदतों को जानते हैं, और उसकी हर चाल पर लगातार नज़र रख रहे हैं. यह एहसास उसे लगातार डरा रहा था, एक ऐसा अदृश्य दबाव जो उसकी साँसों में भी महसूस होता था.
एक सुबह, स्कूल जाने से पहले, छाया ने जानबूझकर अपने मोबाइल चार्जर को बेड के एक कोने में, तकिए के नीचे छुपाकर फेंक दिया. उसने इसे ऐसे रखा था कि अगर कोई उसे हाथ लगाएगा तो वह ज़रूर हिलेगा. यह उसका पहला ठोस 'परीक्षण' था. जब वह शाम को थकी-हारी स्कूल से लौटी, तो देखा कि चार्जर उसकी नाइटस्टैंड पर, फोन के बगल में, बिल्कुल सलीके से कॉइल करके रखा हुआ था, मानो कभी बिखरा ही न हो. उसके शरीर में एक कंपकंपी दौड़ गई, उसके रोंगटे खड़े हो गए. यह कोई भ्रम नहीं था. यह कोई सपना नहीं था. कोई था. कोई था जो उसके घर में आता था. वह अपने ही घर में एक अनचाही उपस्थिति महसूस कर रही थी, जैसे कोई अदृश्य साँस उसके साथ ही कमरे में ले रहा हो.
उसका पहला विचार पुलिस को बुलाने का था, लेकिन फिर उसने खुद को रोका. उसने अपने दिमाग़ में पूरा परिदृश्य दोहराया: वह क्या बताएगी? "सर, मेरे बिखरे हुए कपड़े अलमारी में मिल रहे हैं और मेरे गंदे बर्तन धुल रहे हैं?" वे उसे पागल समझेंगे, या ज़्यादा से ज़्यादा यह कहेंगे कि वह तनाव में है, उसे मनोवैज्ञानिक मदद की ज़रूरत है. रोहित के ब्रेकअप के बाद से ही उसकी मानसिक स्थिति वैसे ही थोड़ी कमज़ोर मानी जाती थी, ऐसे में कोई उसकी बात पर यकीन नहीं करेगा. वे बस मुस्कुरा देंगे और उसे नज़रअंदाज़ कर देंगे. उसे यह लड़ाई खुद लड़नी होगी, बिल्कुल अकेले. यह विचार ही उसे और अकेला कर गया.
उस रात, छाया सोई नहीं. उसने कॉफ़ी बनाई, और अपने लिविंग रूम में अँधेरे में बैठी रही. उसकी आँखें अपार्टमेंट के हर कोने में घूम रही थीं, जैसे कोई अदृश्य साया तलाश रही हो. उसके कान हर आहट पर लगे थे – पंखे की धीमी आवाज़, पड़ोसियों की दूर से आती फुसफुसाहट, या सड़क पर गुज़रती कार का शोर. उसे लगता था जैसे हर आवाज़ में एक संदेश छिपा है, जैसे कोई उसे इशारे कर रहा हो. सुबह होते ही उसे एहसास हुआ कि उसकी यह कोशिश बेकार थी. जो भी यह कर रहा था, वह इतना शातिर था कि उसे अपनी मौजूदगी का ज़रा भी एहसास नहीं होने देता था. उसने खुद को ठगा हुआ महसूस किया, जैसे कोई उससे खेल रहा हो, और वह लगातार हार रही हो.
उसने अपनी जाँच-पड़ताल शुरू करने का फैसला किया. सबसे पहले, उसने अपने अपार्टमेंट के स्मार्ट लॉक को चेक किया. उसने एक नई सिक्योरिटी सेटिंग डाली, जिससे हर बार दरवाज़ा खुलने और बंद होने पर उसे अपने फ़ोन पर नोटिफिकेशन मिले. अगर कोई चाबी से आता भी है, तो भी उसे पता चल जाएगा. अगले दो दिनों तक, कोई नोटिफिकेशन नहीं आया. दरवाज़ा उसके अलावा किसी और ने नहीं खोला था, यहाँ तक कि बिल्डिंग के गार्ड भी दरवाज़े के पास नहीं दिखे थे. लेकिन अजीब घटनाएं जारी थीं. उसकी रसोई की दराज में रखे चम्मच और कांटे अब व्यवस्थित तरीके से रखे हुए थे, जबकि उसने उन्हें बेतरतीब ढंग से फेंका था. उसके बाथरूम में रखे तौलिए, जो अक्सर ज़मीन पर छूट जाते थे, अब हैंगर पर करीने से टंगे मिलते थे.
छाया को लगा कि अगर दरवाज़े से कोई नहीं आ रहा, तो फिर रास्ता क्या है? खिड़की? वह नौवीं मंजिल पर थी, और बालकनी के दरवाज़े पर भी अंदर से मजबूत लॉक था. सेंट्रल एयर कंडीशनिंग वेंट्स? क्या कोई इतना छोटा हो सकता है कि उन तंग वेंट्स से अंदर घुस सके? यह सब उसे और भी ज़्यादा भ्रमित कर रहा था, उसके दिमाग़ में तर्कों का एक भंवर सा उठ रहा था. हर तार्किक रास्ता बंद था, और यही बात उसे सबसे ज़्यादा डरा रही थी.
उसने अपने स्मार्टफोन से अपने लिविंग रूम और बेडरूम की कुछ तस्वीरें खींचीं, जहाँ चीज़ें जानबूझकर बिखरी हुई थीं. उसने अपने तकिए को तिरछा रखा, किताबें फर्श पर गिरा दीं, और कॉफ़ी मग को मेज़ पर उलटा रख दिया. फिर उसने जानबूझकर उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया और स्कूल चली गई. शाम को वापस आकर उसने फिर से तस्वीरें लीं. कैमरे में कैद तस्वीरों में साफ दिख रहा था कि बिस्तर पर पड़े तकिए अब करीने से रखे हैं, और सोफे पर पड़ी किताबें अब मेज़ पर सजी हैं. कॉफ़ी मग भी अपनी सही जगह पर सीधा रखा था. तस्वीरों में 'पहले' और 'बाद' का अंतर साफ़ था, जो इस बात का अकाट्य सबूत था कि कोई उसके घर में घुस रहा था और उसकी चीज़ों को व्यवस्थित कर रहा था. यह सबूत उसे सुकून देने की बजाय और बेचैन कर गया, क्योंकि अब उसे पता था कि कोई उससे झूठ नहीं बोल रहा, बल्कि कोई सच में उसके साथ यह खेल खेल रहा है.
अगला कदम था और भी पुख्ता सबूत इकट्ठा करना. उसने ऑनलाइन गुप्त कैमरे (spy cameras) के बारे में सर्च करना शुरू किया. उसे कुछ छोटे, वाई-फाई से कनेक्ट होने वाले कैमरे मिले जिन्हें आसानी से छिपाया जा सकता था, जैसे USB चार्जर या पेन की तरह दिखने वाले कैमरे. उसने तुरंत ऑर्डर कर दिए. डिलीवरी में दो दिन लगेंगे, यह सोचकर वह और भी ज़्यादा बेचैन हो गई. हर गुज़रता घंटा उसे एक अनकही बेचैनी में डाल रहा था.
इन दो दिनों में, छाया ने खुद को लगभग बंदी बना लिया. वह स्कूल से सीधे घर आती, और घर से बाहर कदम भी नहीं रखती. वह हर आवाज़ पर चौकन्नी रहती, हर छाया पर नज़र रखती. उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं, और उसके दिल की धड़कनें उसे अपने कानों में स्पष्ट सुनाई देती थीं. रात को उसे नींद नहीं आती थी, और अगर आती भी तो बुरे सपने आते, जिनमें कोई अदृश्य हाथ उसे छूता था और उसकी चीज़ों को व्यवस्थित करता था. उसे लगता कि कोई उसे देख रहा है, उसकी साँसों की आवाज़ सुन रहा है. उसकी पसंदीदा चीज़ें, जो कभी उसे खुशी देती थीं, अब उसे डरावनी लग रही थीं, जैसे उनमें किसी और की आत्मा समा गई हो, जो उसे चुपचाप देख रही हो.
उसने अपनी सबसे अच्छी दोस्त, नीला से बात करने की सोची. नीला एक समझदार और व्यावहारिक लड़की थी, जिसे छाया अपनी हर बात बताती थी. लेकिन जब छाया ने उसे अपनी 'व्यवस्थित करने वाले अजनबी' की कहानी सुनाई, तो नीला ने पहले तो हँस दिया. "छाया, मज़ाक मत करो! कौन भला किसी का सामान ठीक करने के लिए चोरी करेगा? ये सब तुम्हारे स्ट्रेस की वजह से हो रहा है. तुम्हें आराम की ज़रूरत है, शायद कुछ थेरेपी." नीला ने उसे अपने ब्रेकअप से उबरने और 'रिलैक्स' करने की सलाह दी.
नीला की बात सुनकर छाया को और गहरा अकेलापन महसूस हुआ. उसे लगा कि कोई भी उसकी बात पर विश्वास नहीं करेगा. वे सब उसे पागल ही समझेंगे. यह लड़ाई उसे अकेले ही लड़नी थी. उसकी आँखों के नीचे गहरे काले घेरे पड़ गए थे, और उसकी भूख भी खत्म हो चुकी थी. बच्चों को पढ़ाते हुए भी उसका मन कहीं और रहता था, उसे लगता था जैसे कोई उसे देख रहा हो, उसकी हर गलती पर नज़र रख रहा हो, जैसे वह एक बड़े मंच पर हो और कोई अदृश्य दर्शक उसे देख रहा हो. उसकी ऊर्जा खत्म होती जा रही थी, और उसके भीतर का डर लगातार बढ़ रहा था.
अंत में, जब गुप्त कैमरे डिलीवर हुए, तो छाया ने उन्हें बहुत सावधानी से अपार्टमेंट के अलग-अलग कोनों में छिपा दिया – एक लिविंग रूम में किताबों के शेल्फ में, दूसरा बेडरूम के लैंप के पीछे, और तीसरा किचन के ऊपरी कैबिनेट में. उसने उन्हें अपने फ़ोन से कनेक्ट किया और उनकी रिकॉर्डिंग शुरू कर दी. अब वह इंतज़ार कर रही थी, हर गुज़रते पल के साथ उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो रही थीं. उसे विश्वास था कि ये कैमरे उस अदृश्य घुसपैठिए को पकड़ लेंगे, और वह साबित कर पाएगी कि वह पागल नहीं हो रही थी.

लेकिन उसे यह नहीं पता था कि यह खेल अभी बस शुरू हुआ था, और उसके सामने आने वाला सच उसकी कल्पना से कहीं ज़्यादा भयानक होने वाला था, जो उसकी वास्तविकता की हर धारणा को तोड़ देगा.