छाया: भ्रम या जाल?
भाग 3
कैमरे लग चुके थे. छाया ने उन्हें इतनी सावधानी से छिपाया था कि अगर कोई उसके घर का चप्पा-चप्पा भी छान मारता, तो शायद ही उन्हें ढूंढ पाता. लिविंग रूम में किताबों के शेल्फ में फंसा छोटा सा बटन कैमरा, बेडरूम के लैंप के पीछे झांकता हुआ माइक्रो-लेंस, और किचन के ऊपरी कैबिनेट में लगे वेंट के पास छिपा हुआ एक और कैमरा – ये तीनों अब उसके अदृश्य रक्षक थे, या शायद उसके अंतिम गवाह. उसने अपने फोन पर ऐप खोला, लाइव फीड चेक किया. सब कुछ साफ दिख रहा था, उसके घर का हर कोना अब उसकी निगरानी में था. एक पल के लिए उसे राहत महसूस हुई, जैसे अब वह अकेली नहीं थी इस लड़ाई में. लेकिन यह राहत एक पतली परत की तरह थी, जिसके नीचे डर का गहरा समंदर अभी भी हिलोरें ले रहा था.
रात भर छाया सो नहीं पाई. वह हर घंटे ऐप खोलकर लाइव फीड देखती रही. कभी-कभी उसे लगता कि उसने कुछ देखा है – एक धुंधली परछाई, एक हल्का सा हिलना, लेकिन फिर ध्यान से देखने पर सब सामान्य लगता. उसकी आँखें दर्द करने लगी थीं, लेकिन वह पलक झपकना भी नहीं चाहती थी. सुबह की पहली किरणें जब कमरे में फैलीं, तो उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं. कोई हलचल नहीं. कैमरों ने कुछ भी रिकॉर्ड नहीं किया था.
स्कूल जाने से पहले, उसने जानबूझकर अपने कपड़ों को बिस्तर पर बिखेर दिया, कुछ किताबें फर्श पर छोड़ दीं, और किचन में नाश्ते के झूठे बर्तन सिंक में छोड़ दिए. उसने हर चीज़ को इस तरह रखा जैसे वह किसी प्रयोगशाला में प्रयोग कर रही हो, हर चीज़ की स्थिति को अपने दिमाग़ में दर्ज करते हुए. "आज तो तुम पकड़े जाओगे," उसने मन ही मन उस अदृश्य घुसपैठिए से कहा. इस बार वह रिकॉर्डिंग को मैनुअली बंद नहीं करेगी; वह चाहती थी कि हर पल कैद हो.
पूरा दिन स्कूल में छाया का मन नहीं लगा. उसकी आँखें बार-बार घड़ी की सुइयों पर अटक जाती थीं. बच्चे उसकी क्लास में शोर कर रहे थे, लेकिन उनकी आवाज़ें उसके कानों तक नहीं पहुँच रही थीं. उसे लगता था जैसे उसके दिमाग़ के भीतर कोई अलार्म बज रहा है, जो उसे लगातार चेतावनी दे रहा हो. छुट्टी होते ही, वह लगभग भागती हुई अपने अपार्टमेंट पहुँची. उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, साँसें उखड़ रही थीं. उसने दरवाज़ा खोला, उसके कदम हिचकते हुए अंदर पड़े.
उसने एक लंबी, गहरी साँस ली और सबसे पहले लिविंग रूम में गई. उसकी आँखें हर चीज़ पर टिक गईं. सोफे पर पड़ी किताबें अब मेज़ पर सजी थीं. ठीक वैसे ही, जैसे उसने कल देखा था. उसका दिल एक बार फिर ज़ोर से धड़का. वह बेडरूम की तरफ़ लपकी. बेड पर बिखरे हुए कपड़े अब अलमारी में करीने से टंगे थे. लॉन्ड्री बास्केट में कुछ धुले हुए कपड़े भी फोल्ड करके रखे थे, जो उसने पिछले दिन धोए थे पर निकालना भूल गई थी. वह किचन में गई. सिंक में एक भी झूठा बर्तन नहीं था; डिश रैक में सब कुछ अपनी जगह पर चमक रहा था.
छाया के हाथ-पैर ठंडे पड़ गए. उसे लगा जैसे उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई हो. उसने तुरंत अपना फ़ोन उठाया और कैमरों की रिकॉर्डिंग चेक करने लगी. सबसे पहले उसने लिविंग रूम के कैमरे की फुटेज देखी. एक घंटा... दो घंटे... तीन घंटे... कुछ नहीं. सिर्फ़ खाली कमरा. कोई हलचल नहीं. सिर्फ़ रोशनी का बदलना. फिर उसने बेडरूम का फुटेज चलाया. वही सन्नाटा, वही खाली कमरा. किचन में भी यही हाल था. कोई नहीं आया था. कैमरों ने एक भी अमान्य गतिविधि रिकॉर्ड नहीं की थी.
यह कैसे हो सकता था? उसने खुद अपने हाथों से चीज़ें बिखेरी थीं! उसने अपनी आँखें बंद कीं और फिर खोलीं. क्या वह सपना देख रही थी? क्या यह एक दुःस्वप्न था जिससे वह जाग नहीं पा रही थी? उसके दिमाग़ में रोहित की आवाज़ गूंजने लगी, "छाया, तुम्हें स्ट्रेस है. तुम चीज़ें भूलने लगी हो." क्या वह सच में पागल हो रही थी? क्या यह सब उसके दिमाग़ की उपज थी?
अगले कुछ दिनों तक छाया का यही हाल रहा. वह लगातार प्रयोग करती. चीज़ें बिखेरती, फिर कैमरों की फुटेज देखती. हर बार नतीजा वही होता – खाली फ्रेम, व्यवस्थित सामान. उसे लगता जैसे कैमरे उसका मज़ाक उड़ा रहे हैं, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे देख रही है और उसके कैमरों को 'ब्लैंक' कर दे रही है. उसकी नींद पूरी तरह से उड़ चुकी थी. वह रात भर जागती, कभी कमरे में घूमती, कभी कैमरों की लाइव फीड देखती, इस उम्मीद में कि वह 'उसे' पकड़ लेगी. उसकी आँखों के नीचे गहरे काले घेरे पड़ गए थे, उसका चेहरा पीला पड़ गया था. वह अपने स्कूल के बच्चों के सामने भी ध्यान नहीं दे पाती थी, उसकी आवाज़ में एक अनकहा डर छिपा रहता था.
एक शाम, जब वह घर पर अकेली थी, उसने अचानक अपने फ़ोन पर 'पड़ोसी' नामक एक ऐप का विज्ञापन देखा. यह ऐप अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स के निवासियों को एक-दूसरे से जुड़ने और सामान्य मुद्दों पर चर्चा करने की अनुमति देता था. उसने सोचा, शायद कोई और भी हो जिसे ऐसी अजीब समस्याएँ आ रही हों. शायद यह बिल्डिंग में कोई ख़राबी हो, या कोई ऐसा रहस्य जो सब साझा कर रहे हों. हिम्मत करके उसने ऐप डाउनलोड किया और अपना अकाउंट बनाया.
ऐप पर कुछ ग्रुप्स बने हुए थे – 'बच्चों के खेल', 'योगा क्लब', 'सिक्योरिटी इश्यूज'. उसने 'सिक्योरिटी इश्यूज' वाले ग्रुप को खोला. वहाँ कुछ पुरानी पोस्ट्स थीं – लिफ्ट का ख़राब होना, कभी-कभी बिजली जाना, पैकेजेस का ग़ायब होना. लेकिन कुछ भी ऐसा नहीं था जो उसके अनुभव से मेल खाता हो. फिर उसने एक नई पोस्ट लिखने का फैसला किया.
उसने लिखा: "नमस्ते, मैं 9वीं मंजिल से छाया हूँ. मुझे पिछले कुछ समय से अपने अपार्टमेंट में कुछ अजीब चीज़ें महसूस हो रही हैं. मेरा सामान खुद-ब-खुद व्यवस्थित हो जाता है, और मुझे ऐसा लगता है जैसे कोई मेरे घर में आता-जाता है. क्या किसी और को भी ऐसी ही समस्याएँ आ रही हैं? मैं जानना चाहती हूँ कि क्या मैं अकेली हूँ."
उसने पोस्ट कर दिया और डरते हुए इंतज़ार करने लगी. कुछ ही मिनटों में, एक जवाब आया. यह 7वीं मंजिल पर रहने वाले एक व्यक्ति का था जिसका नाम 'विवेक' था. उसने लिखा था: "हाँ, छाया जी. मुझे भी कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ है. मेरा भी सामान कभी-कभी अपनी जगह पर मिलता है, और मुझे लगता है कि कोई मेरे अपार्टमेंट में आता-जाता है, लेकिन कभी कोई सबूत नहीं मिलता. मैंने भी कैमरों से कोशिश की, पर कुछ नहीं मिला."
यह संदेश पढ़कर छाया को एक पल के लिए राहत मिली, और अगले ही पल डर ने फिर से उसे घेर लिया. वह अकेली नहीं थी! यह भ्रम नहीं था! कोई और भी था जिसके साथ यह सब हो रहा था. लेकिन अगर कैमरे कुछ रिकॉर्ड नहीं कर रहे थे, तो यह कौन कर रहा था? और कैसे? विवेक का संदेश एक उम्मीद की किरण था, जिसने उसे लगा कि वह अपनी समझ नहीं खो रही है. लेकिन साथ ही, यह एक नए, गहरे रहस्य के दरवाजे भी खोल रहा था.
उसने तुरंत विवेक को प्राइवेट मैसेज किया: "विवेक जी, आपसे बात करके अच्छा लगा. मुझे लगा मैं अकेली हूँ. क्या हम मिल सकते हैं और इस बारे में बात कर सकते हैं?"
कुछ देर बाद विवेक का जवाब आया: "ज़रूर, छाया जी. कल शाम को 6 बजे, बिल्डिंग के पास वाले पार्क में मिल सकते हैं?"
छाया ने सहमति दे दी. उसकी उम्मीद और डर एक साथ बढ़ रहे थे. वह इस रहस्य को सुलझाने के लिए बेताब थी, लेकिन यह भी जानती थी कि वह जिस रास्ते पर जा रही थी, वह बहुत ख़तरनाक हो सकता था. उसे अभी यह नहीं पता था कि 'व्यवस्थित अजनबी' केवल उसके अपार्टमेंट तक ही सीमित नहीं था, बल्कि यह एक बहुत बड़े और भयावह जाल का हिस्सा था, जिसमें अब वह भी फंसने जा रही थी.
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