भाग 9
डॉ. मेहता के जाने के बाद सबके चेहरे पर एक अजीब सा सन्नाटा छा गया. उनकी बातों ने उनके डर को एक नया आयाम दे दिया था. यह अब सिर्फ़ भूत-प्रेत की कहानी नहीं थी, बल्कि एक प्राचीन और शक्तिशाली बुराई का सामना था. विवेक, छाया, रिया और अनुराग एक-दूसरे को देख रहे थे, उनके चेहरों पर भय, अनिश्चितता और एक अजीब सी दृढ़ता के भाव थे. श्रीमती शर्मा, जो इन सबसे दूर अपने कमरे में थीं, उनकी धीमी फुसफुसाहटें और बढ़ गई थीं, मानो वह भी इस रहस्योद्घाटन को अपनी तरह से महसूस कर रही हों.
"तो... यह सिर्फ़ एक भूत नहीं है," अनुराग ने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में अभी भी अविश्वास की झलक थी. "यह कुछ ऐसा है जिसे सदियों से दबाया गया है."
"और वह हमें उसे आज़ाद करने पर मजबूर कर रहा है," रिया ने कहा, उसके हाथ काँप रहे थे. "मेरे फ़ोन पर आने वाली वो अजीबोगरीब कॉल, सोशल मीडिया पर अपने आप पोस्ट होने वाली तस्वीरें... यह सब सिर्फ़ मुझे पागल करने के लिए था, ताकि मैं कमज़ोर पड़ जाऊँ और वह दरवाज़ा खोलने की कोशिश करूँ."
छाया ने अपनी बाहों को जकड़ लिया, उसे उस लकड़ी के दरवाज़े पर महसूस हुए झटके याद आ रहे थे. "मुझे लगा था कि वह मुझसे सीधा संपर्क साध रहा है... वह चाहता था कि मैं उसे छूऊँ, उसे खोलूँ."
विवेक ने ज़मीन पर पड़े नक्शों को उठाया. "डॉ. मेहता ने कहा कि हमें और जानकारी चाहिए. हमें पता लगाना होगा कि वह क्या है, और उसे कैसे रोका जा सकता है. यह हमारे जीवन का सवाल है." उसकी आवाज़ में एक नई दृढ़ता थी, जो अब तक की हताशा को पीछे छोड़ रही थी. उन्हें एहसास हो गया था कि भागने का कोई रास्ता नहीं था. उन्हें लड़ना ही होगा.
अगले कुछ दिन सभी के लिए बेहद मुश्किल थे. डॉ. मेहता ने उनसे संपर्क बनाए रखा. उन्होंने बताया कि वह अपने पुस्तकालय में प्राचीन ग्रंथों और पांडुलिपियों को खंगाल रहे हैं. उनका पुस्तकालय किसी पुरातत्व संग्रहालय से कम नहीं था, जहाँ धूल भरी अलमारियों पर सदियों पुरानी पुस्तकें और ताम्रपत्र रखे थे. वह लगातार शोध कर रहे थे, ऐसे प्रतीक और अनुष्ठान खोज रहे थे जो इस तरह की दबी हुई शक्तियों से निपटने में मदद कर सकें.
इस दौरान, अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में अजीबोगरीब घटनाएँ और भी बढ़ गईं. अब यह सिर्फ़ कुछ किरदारों तक सीमित नहीं था, बल्कि धीरे-धीरे पूरे भवन को अपनी चपेट में ले रहा था. रात में, हवा में एक अजीब सी ठंडक महसूस होने लगी थी, भले ही बाहर मौसम गर्म हो. कभी-कभी, खाली गलियारों से दबी हुई चीखें या पुरानी धुनें सुनाई देती थीं, जो पलक झपकते ही गायब हो जाती थीं. लिफ्ट अपने आप ऊपर-नीचे होने लगी थी, और उसमें से एक अजीब सी, सड़ी हुई गंध आती थी. निवासियों में भी बेचैनी बढ़ने लगी थी. कुछ लोगों ने अपने घरों में अजीब परछाइयाँ देखने की शिकायत की, जबकि कुछ ने अपने सामान के अपने आप हिलने या गिरने की बातें कहीं. कोई नहीं जानता था कि क्या हो रहा था, और भवन में भय और संदेह का माहौल बढ़ता जा रहा था.
छाया को सबसे ज़्यादा परेशानियाँ हो रही थीं. उसे हर रात भयानक सपने आते थे जिनमें वह एक अँधेरी, दलदली जगह पर फँसी हुई थी, जहाँ से अनगिनत आँखें उसे घूर रही थीं. जागने पर भी उसे ऐसा लगता था जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसके पास बैठी है, उसकी साँसों को महसूस कर रही है. उसे हर समय एक घुटने का एहसास होता था, जैसे हवा में प्राण कम हो गए हों. उसकी त्वचा पर कभी-कभी लाल निशान उभर आते थे, जैसे किसी ने उसे खरोंचा हो, और उनमें भयानक दर्द होता था.
रिया का डिजिटल उत्पीड़न अब चरम पर पहुँच गया था. उसके फ़ोन पर लगातार अज्ञात नंबरों से कॉल आती थीं, जिनमें सिर्फ़ डरावनी फुसफुसाहटें और कभी-कभी उसकी अपनी आवाज़ की विकृत गूँज सुनाई देती थी. उसके सामाजिक मीडिया खाते अब अपने आप अजीबोगरीब वीडियो पोस्ट कर रहे थे, जिनमें खंडहरों और प्राचीन प्रतीकों की झलक थी, और साथ में एक भयानक, नीची आवाज़ कुछ अजीबोगरीब भाषा में कुछ बुदबुदा रही थी. ये वीडियो खुद-ब-खुद हट जाते थे, लेकिन उनके निशान रह जाते थे, जिससे उसके दोस्त और भी दूर होने लगे थे. उसे लगने लगा था कि वह सचमुच पागल हो रही है, या कोई उसे बाहरी दुनिया से पूरी तरह काटना चाहता है.
विवेक के शोध में भी अजीब बाधाएँ आने लगी थीं. जब भी वह बेसमेंट के नक्शे या प्रतीकों पर काम करता, उसका लैपटॉप अपने आप बंद हो जाता, या स्क्रीन पर भयानक आकृतियाँ उभर आती थीं जो पलक झपकते ही गायब हो जाती थीं. उसकी किताबें अपने आप पन्ने पलटने लगती थीं, और कभी-कभी उसे ऐसा महसूस होता था जैसे कोई उसकी पीठ पर खड़ा होकर देख रहा है. उसे रात में धातु के टकराने की आवाज़ें सुनाई देती थीं, जो ठीक उसी जगह से आती थीं जहाँ बेसमेंट का छिपा हुआ दरवाज़ा था, मानो कोई उसके पीछे कुछ कर रहा हो.
अनुराग ने अब अपने दोस्तों के साथ ही ज़्यादा समय बिताना शुरू कर दिया था. वह अकेले रहने से डरता था, और उसे लगता था कि घर में हर जगह परछाइयाँ हैं, और हर आवाज़ उसे चौंका देती थी. उसकी नींद पूरी नहीं हो पा रही थी, और उसका स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था. उसे अब लगातार सर्दी-खाँसी बनी रहती थी, और उसका शरीर कमज़ोर होता जा रहा था.
श्रीमती शर्मा की हालत सबसे गंभीर थी. वह अब पूरी तरह से वास्तविकता से कट चुकी थीं. वह लगातार बेसमेंट से आने वाली फुसफुसाहटों की बात करती रहती थीं, और उन्हें लगता था कि कोई अदृश्य शक्ति उनके साथ कमरे में मौजूद है, जो उनकी हर बात सुन रही है और उन्हें आदेश दे रही है. उनके हाथ लगातार काँपते रहते थे और वे किसी से बात करने से भी कतराने लगी थीं. वह अक्सर हवा में अपने हाथ लहराती थीं, जैसे किसी अदृश्य वस्तु को दूर हटाने की कोशिश कर रही हों.
कई दिनों की गहन खोज के बाद, डॉ. मेहता ने सभी को एक वीडियो कॉल पर बुलाया. उनके चेहरे पर थकान थी, लेकिन आँखों में एक नई चमक थी. "मुझे कुछ मिला है," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ में एक अजीब सा उत्साह था. "एक बहुत ही प्राचीन ग्रंथ में, जिसका नाम 'अज्ञात के बंधन' (The Binding of the Unknown) है, मुझे कुछ ऐसे ही प्रतीकों का ज़िक्र मिला है जो आप लोगों ने बेसमेंट के दरवाज़े पर देखे हैं."
उन्होंने बताया, "यह ग्रंथ ईसा पूर्व की तीसरी शताब्दी का है, और इसमें उन प्राचीन शक्तियों और संस्थाओं का वर्णन है जिन्हें धरती के नीचे, विशेष स्थानों पर 'गाढ़ा' या 'सील' किया गया था. यह ग्रंथ बताता है कि ये शक्तियाँ कभी-कभी निष्क्रिय हो जाती हैं, लेकिन अगर उन्हें छेड़ा जाए, या उनके ऊपर किसी ऐसी संरचना का निर्माण हो जो उनकी ऊर्जा को बाधित करे, तो वे जाग उठती हैं और अपने बंधन को तोड़ने का प्रयास करती हैं."
"इस ग्रंथ में आपके द्वारा देखे गए प्रतीकों को 'मृत्यु के द्वार' कहा गया है," डॉ. मेहता ने गंभीर होकर कहा. "यह किसी भौतिक दरवाज़े का प्रतीक नहीं, बल्कि दो आयामों के बीच के एक अज्ञात मार्ग का प्रतीक है. यह मार्ग उस शक्ति को हमारे आयाम में पूरी तरह से प्रकट होने से रोकता है."
उन्होंने आगे बताया, "ग्रंथ में यह भी लिखा है कि ऐसी शक्तियों को आज़ाद होने से रोकने के लिए कुछ विशेष अनुष्ठान और मंत्र होते हैं. लेकिन ये अनुष्ठान बहुत जटिल और खतरनाक होते हैं, क्योंकि इनमें उस शक्ति की ऊर्जा को सीधे चुनौती दी जाती है. इसमें एक विशेष प्राचीन कलाकृति का भी उल्लेख है जिसे 'प्रकाश का कवच' कहा जाता है. माना जाता है कि यह कलाकृति उस शक्ति की नकारात्मक ऊर्जा को बेअसर करने में सक्षम है, लेकिन यह कहाँ मिलेगी, इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है."
"क्या इसका मतलब है कि हमें उसे खोलना होगा?" अनुराग ने डरते हुए पूछा.
"नहीं," डॉ. मेहता ने तुरंत जवाब दिया. "ग्रंथ में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इन 'द्वार' को सीधे खोलने की कोशिश करने से दुष्ट शक्ति तुरंत मुक्त हो जाती है, और फिर उसे रोकना लगभग असंभव हो जाता है. हमें एक शांत और नियंत्रित तरीका अपनाना होगा. ग्रंथ में एक अनुष्ठान का वर्णन है . इस अनुष्ठान के लिए कुछ विशेष सामग्री की आवश्यकता होगी और इसे विशेष समय पर, सही उच्चारण के साथ करना होगा. यह अनुष्ठान उस द्वार के बंधन को फिर से मजबूत कर सकता है, जिससे वह दुष्ट शक्ति फिर से निष्क्रिय हो जाएगी."
उन्होंने कुछ सामग्री के नाम बताए: शुद्ध लौह धातु, एक विशेष प्रकार की मिट्टी, और एक प्राचीन वनस्पति का अर्क जिसे अब पाना लगभग असंभव था. सबसे महत्वपूर्ण बात, अनुष्ठान करने के लिए तीव्र मानसिक एकाग्रता और समूह की सामूहिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता होगी. "अगर आप में से कोई भी उस समय डरता है या पीछे हटता है, तो अनुष्ठान विफल हो सकता है और इसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं."
सभी को यह सब सुनकर गहरा सदमा लगा. एक तरफ राहत थी कि उन्हें एक रास्ता मिल गया था, दूसरी तरफ चिंता थी कि यह रास्ता कितना जोखिम भरा था. "लेकिन वो प्राचीन वनस्पति?" विवेक ने पूछा. "हमें वह कहाँ मिलेगी?"
"यही चुनौती है," डॉ. मेहता ने स्वीकार किया. "यह बहुत दुर्लभ है, लेकिन ग्रंथ में एक स्थान का उल्लेख है जहाँ यह अभी भी पाई जा सकती है – अरावली की प्राचीन पहाड़ियों में, एक गुप्त गुफा है. हालाँकि, वहाँ पहुँचना आसान नहीं होगा, और गुफा भी शायद किसी प्राचीन जाल से सुरक्षित हो सकती है."
यह एक लंबा सफर था, और उसमें कई खतरे थे. लेकिन उनके पास कोई और रास्ता नहीं था. वे अब उस प्राचीन बुराई के खिलाफ अपनी लड़ाई में एक नए चरण में प्रवेश कर चुके थे. डॉ. मेहता ने उन्हें बताया कि वह जल्द ही एक बार फिर उनसे मिलने आएँगे ताकि अनुष्ठान की बारीकियों पर चर्चा कर सकें और उन्हें उस गुफा तक पहुँचने के लिए कुछ और जानकारी दे सकें. सभी को ये एहसास हो गया था कि उनका सामना अब सिर्फ़ एक प्रेतवाधित घर से नहीं था, बल्कि एक ऐसी शक्ति से था जिसके खिलाफ उन्हें अपनी जान दाँव पर लगानी होगी.