लोकतंत्र का प्रभाव
एक दफ़ा की बात है एक गाँव में तालाब के चारों ओर बहुत सारे घने दरख़्त थे | उन वृक्षों पर अनेक परिंदे, गिलहरियाँ, बंदर आदि रहा करते थे | उन सभी जीव-जंतुओं के हित आपस में जुड़े हुए थे | एक ही जगह पर लम्बे अरसे से रहने की वजह से उनके बीच एक अनकहा पारिवारिक रिश्ता बन चुका था जिसमें वे घुल-मिल कर रहते थे | आकार में बड़ा और ताकतवर होने की वजह से बंदरों को पक्षी, गिलहरी और अन्य छोटे जानवर आदर की दृष्टि से देखते थे और बंदर भी उन सबके साथ अपने बच्चों की तरह मोहब्बत करते थे | इस तरह वे सब वहाँ सुख शान्ति से रह रहे थे | इस सुखद जीवन के बीच परिंदों और गिलहरियों को हमेशा बिल्लियों का डर लगा रहता था जो वहाँ अक्सर शिकार की तलाश में आया करती थीं | उनमें से कई बिल्लियों का शिकार बन चुके थे | बिल्ली का आक्रमण हमेशा इतना तेज़ और अप्रत्याशित होता कि उनको सँभलने का मौक़ा भी नहीं मिलता था |
एक बार उस इलाके में कई विदेशी परिंदे आए | वे स्थानीय परिंदों से कहीं ज़्यादा समझदार जान पड़ते थे | बातों ही बातों में विदेशी परिंदों ने उन्हें बताया, “हमारे इलाके में सभी परिंदे और दूसरे जीव-जंतु एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था में रह रहे हैं | इलाके के सभी नागरिक मिलकर पाँच साल के लिए अपने प्रतिनिधि चुनते हैं जो बाद में एक सरकार बनाते हैं | जनता अपनी समस्याओं को अपने द्वारा चुनी गई सरकार के सामने उठाती है और सरकार उनकी समस्याओं को हल करती है | इस तरह से वे सब एक सुखी ज़िन्दगी जी रहे हैं | क्यों न आप भी ऐसी व्यवस्था अपना लें ? इससे आप सबकी ज़िन्दगी और अधिक सुखी, सुरक्षित और आनंदमय हो जाएगी |” स्थानीय परिंदों को अपने विदेशी मित्रों का सुझाव बहुत पसंद आया | उन्होंने आनन-फ़ानन में एक बैठक बुलाई जिसमें वहाँ रहने वाले परिंदे, गिलहरियाँ, बंदर और बिल्लियाँ आदि शामिल हुए | गहन विचार-विमर्श के बाद सभी इस बात पर सहमत हो गए कि विदेशी परिंदों द्वारा दिया गया सुझाव स्वागत योग्य है और इस प्रकार की लोकतान्त्रिक व्यवस्था उनके इलाके में भी लागू की जानी चाहिए | सभी की राय के मुताबिक यह फैसला हुआ कि नई व्यवस्था के अंतर्गत इलाके में चुनाव कराया जाएगा जिसमें वहाँ कोई भी बाशिंदा निर्दलीय या किसी पार्टी के उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़ सकता है | हर दरख़्त पर रहने वाले जीव-जंतु एक विधायक का चुनाव करेंगे और फिर सभी निर्वाचित विधायक मिलकर एक सरकार का निर्माण करेंगे | सरकार बनाने के लिए आधे से ज़्यादा विधायकों का समर्थन ज़रूरी होगा | विधायकों के रहने और खाने-पीने की व्यवस्था करना जनता की ज़िम्मेदारी होगी जिससे वे बेफिक्र होकर जनहित के कामों में अपना वक़्त लगा सकें |
तदनुसार इलाके में चुनाव का ऐलान कर दिया गया जिसके साथ ही इलाके में सियासी सरगर्मियाँ तेज़ हो गईं | सभी जीव-जंतुओं ने चुनाव लड़ने के लिए अलग-अलग जातिगत दल बना लिए जिनमें प्रमुख थे पक्षी दल, गिलहरी दल, वानर दल और बिल्ली दल | चुनाव की तैयारियों के लिए सभी दलों की अलग-अलग बैठकें होने लगीं | जल्द ही उन सबको यह एहसास हो गया कि अकेले चुनाव लड़कर वे सरकार नहीं बना सकते हैं | सभी संभावित समीकरणों पर विचार करके पक्षी दल ने फ़ैसला लिया कि उनकी मुख्य समस्या बिल्लियों से बचाव की है | अगर बिल्ली दल ने सरकार बना ली तो उन सबकी की ख़ैर नहीं | उनको सत्ता में आने से रोकने के लिए उनको समान विचार वाले दूसरे दलों से चुनाव पूर्व गठबंधन कर लेना चाहिए | तदनुसार चिड़िया दल ने गिलहरी और वानर दलों से संपर्क स्थापित किया | गिलहरी दल को उन्होंने समझाया कि बिल्ली दल उन दोनों जातियों का सबसे बड़ा दुश्मन है | उन सबकी व उनके परिवार की हिफ़ाज़त के लिए यह निहायत ज़रूरी है कि एकजुट होकर बिल्ली दल को सत्ता में आने से रोका जाए | वानर दल के सामने भी उन्होंने दलील दी कि वे सब शाकाहारी जीव हैं और उन सब को मिलकर बिल्ली दल जैसे माँसाहारी जानवरों के ख़िलाफ़ लामबंद हो जाना चाहिए जिससे कि बिल्ली दल को सत्ता से दूर रखा जा सके | एक लम्बे विचार-विमर्श के बाद पक्षी दल, गिलहरी दल और वानर दल ने मिलकर एक चुनावी गठबंधन बना लिया जिसे “शाकाहारी गठबंधन” का नाम दिया गया | इस गठबंधन ने जनता से वायदा किया कि अगर वे चुनाव जीतते हैं तो इलाके में किसी भी जानवर को मारना गंभीर अपराध घोषित कर दिया जाएगा और उसका उल्लंघन करने वालों को सख्त से सख्त सज़ा दी जाएगी |
चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हुए | इलाके के सभी बाशिंदों ने बढ़-चढ़ कर चुनाव में भाग लिया | चुनाव पूरे होने के दूसरे दिन ही परिणाम की घोषणा कर दी गई | कुल पचास सीटों में से पक्षी दल को सोलह, गिलहरी दल को चार, वानर दल को तेरह और बिल्ली दल को भी सतरह सीटें मिलीं । हालाँकि चुनाव में किसी भी अकेले दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका था, लेकिन शाकाहारी गठबंधन को करीब दो-तिहाई सीटें मिली थीं | इस प्रकार से शाकाहारी गठबंधन ने सरकार का गठन किया जबकि बिल्ली दल को यह मलाल रह गया कि सबसे बड़ा दल होने के बावजूद भी उसे सरकार बनाने का मौका नसीब नहीं हुआ | नई गठबंधन सरकार में सबसे बड़ा दल होने के नाते पक्षी दल की नेता श्रीमती बुलबुल देवी मुख्यमंत्री बनीं जबकि वानर दल के नेता बजरंगी बाबू को उपमुख्यमंत्री बनाया गया | बजरंगी बाबू उपमुख्यमंत्री होने के साथ-साथ इलाके के गृह मंत्री भी बनाए गए | सरकार बनाने के बाद गठबंधन ने उन पर विश्वास जताने के लिए जनता को धन्यवाद दिया |
सरकार बनते ही गृह मंत्री ने पुलिस बल में बंदरों की भर्ती करना शुरू कर दी | उनका विचार था कि समाज के अन्य प्राणियों के मुकाबले अधिक बलशाली होने के कारण बन्दर अपराध रोकने में ज़्यादा सक्षम हैं | कुछ दिन बाद गठबंधन सरकार ने जनता से किए गए अपने वायदे के अनुसार किसी भी जानवर को मारकर खाना एक गंभीर अपराध घोषित कर दिया और साथ ही पुलिस को ये आदेश दिए गए कि कानून के उल्लंघन करने वालों पर वे सख्त कार्यवाही करें | इस घोषणा का चिड़िया और गिलहरी समाज ने दिल खोलकर स्वागत किया | अब वे बेख़ौफ़ होकर घूम-फिर सकते थे | लेकिन इस कानून के बनने के बाद बिल्लियों का जीना ही हराम हो गया था और अब यह उनकी बिरादरी के सामने जीवन-मृत्यु का प्रश्न बन गया था | जो चिड़ियाँ और गिलहरियाँ कल तक उनके नाम सुनते ही डर के मारे थर-थर काँपती थीं, वे अब न केवल उनके सामने बेख़ौफ़ होकर नाच रही थीं बल्कि उनके बच्चे भी उनका मज़ाक उड़ाने लगे थे और वे चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे | दूसरी तरफ़ आहार न मिलने के कारण बिल्लियाँ अब भूखी मरने के कगार पर आ गई थीं | कई बूढ़ी बिल्लियाँ तो भूख की वजह से भगवान को प्यारी हो गई थीं | अगर कोई बिल्ली गलती से किसी चिड़िया या गिलहरी को मार देती तो पुलिस वाले बन्दर उनको पटक-पटक कर अधमरा कर देते | बिल्ली समाज के लोग अपनी परेशानियाँ लेकर बिल्ली दल के नेताओं से मिले और उनसे प्रार्थना की कि उनके प्रतिनिधि होने के नाते वे इस परेशानी का हल निकालें | बिल्ली दल जो पहले से ही सरकार न बना पाने का मातम मना रहा था, वह अब इस अभूतपूर्व परिस्थिति में ख़ुद को नि:सहाय पा रहा था | समाज में अब उनकी हैसियत दो कौड़ी की भी नहीं रह गई थी | न तो सरकार उसकी सुन रही थी और न ही वह अपने बिरादरीवालों को कोई दिलासा दे पाने की स्थिति में थे | फिर भी समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने की ख़ातिर दल के नेता अपने समाज के लोगों को लेकर मुख्यमंत्री से मिले व उन्हें अपनी समस्या विस्तार से बताई | उनसे अनुरोध किया कि वे तुरंत इस भेद्भावपूर्ण कानून को हटाएँ लेकिन मुख्यमंत्री ने उनके इस अनुरोध को मानने से साफ़ इंकार कर दिया | उनका साफ़ कहना था कि अब समय बदल चुका है | इस नये ज़माने में छोटे जीव-जंतुओं पर बरसों से होते आ रहे जुल्मों को और बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है | बिल्ली समाज को भी छोटे जीव-जंतुओं को बराबरी का हक़ देना चाहिए | जितनी जल्दी वे इस बात को समझ जाएँ उतना ही अच्छा होगा नहीं तो उन्हें दूसरी तरह से समझाना पड़ेगा | मुख्यमंत्री से टका सा जवाब पाकर बिल्ली दल का प्रतिनिधि मंडल बेइज्ज़त होकर लौट आया | उन सबको ताज्जुब हो रहा था कि कुछ दिन पहले तक यही बुलबुल देवी उनको दूर से ही देखकर डर के मारे भागती फिरती थी और आज वही मुख्यमंत्री बन जाने पर उनसे कैसे अपमानजनक शब्दों में बात कर रही है | अगर यह सब थोड़े दिन और चलता रहा तो वे सब भूख के कारण तड़प-तड़प कर मर जाएँगे | इस कारण से बिल्ली समाज में अपने प्रतिनिधियों के प्रति असंतोष गहराने लगा | नेताओं को स्पष्ट सन्देश दे दिया गया कि या तो वे उनकी समस्या का समाधान निकालें या फिर इस्तीफा दे दें जिससे कि उनकी जगह पर दूसरे ज़्यादा काबिल विधायक चुने जा सकें |
इस विचित्र स्थिति पर विचार करने के लिए बिल्ली दल की तत्काल एक आपाकालीन बैठक बुलाई गई | सभी संभावित उपायों पर विचार करने के बाद यह सहमति बनी कि मौजूदा सरकार के रहते उन्हें राहत मिलने की कोई उम्मीद नहीं है इसलिए इस सरकार को गिराने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए | सभी विधायकों का विचार था कि इस अभूतपूर्व स्थिति से निपटने के लिए साम, दाम दण्ड और भेद सभी प्रकार के तरीकों का इस्तेमाल करने में किसी प्रकार का संकोच नहीं किया जाना चाहिए | तदनुसार बिल्ली दल ने अपनी सबसे कुटिल सदस्या पूसी मौसी को मौजूदा सरकार गिराने के लिए संभावित दलों से संपर्क करने की ज़िम्मेदारी सौंपी | पूसी मौसी ने वानर दल के नेता बजरंगी बाबू से संपर्क किया और उन्हें समझाया, “आप बुद्धि और बल में हम सबसे बहुत बड़े हैं लेकिन हमें सदा महसूस होता है कि आप अपने भोलेपन की वजह ग़लत संगति में फँस गए हैं | आपको मंत्रिमंडल में वह सम्मान नहीं मिल रहा है जिसके आप हक़दार हैं | कल हमारे साथ बैठक में मुख्यमंत्री ने कई बार आपके लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया जिसे सुनकर हमें बहुत पीड़ा हुई | आप जैसे बड़े और शक्तिशाली वानर का एक छोटी सी चिड़िया के मातहत काम करना आपकी प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं हैं | आपकी काबिलियत और शक्ति के अनुसार आपको इलाके का मुख्यमंत्री होना चाहिए |” अपनी प्रशंसा सुनकर बजरंगी बाबू थोड़ा नरम पड़े | उन्होंने कुछ सोचकर जवाब दिया, “आपका कहना कुछ हद तक सही है लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि हम जनता के समक्ष एक गठबंधन के रूप में गए थे और जनादेश भी इस गठबंधन के लिए ही है | अगर आज मैं अपनी महत्वाकांक्षा के कारण गठबंधन तोड़ता हूँ तो जनता के बीच दोबारा कौन सा मुँह लेकर जाऊँगा और फिर हमारे दल के पास सरकार बनाने के लिए ज़रूरी विधायक भी तो नहीं हैं |” बजरंगी बाबू को अपने जाल में फँसता देखकर घाघ पूसी मौसी ने अपना अगला पाँसा फेंकते हुए कहा, “भाई साहब, इसीलिए तो मैं कहती हूँ कि आप बहुत भोले हैं, राजनीति नहीं समझते | अभी तो अगले चुनाव में चार बरस से भी ज़्यादा हैं | उस समय कौन चार बरस पुरानी घटना याद रखेगा ? इस दौरान अनेकों और मुद्दे उठेंगे फिर भी अगर ज़रुरत पड़ी तो कोई नस्ली, भाषा या कोई और नया मुद्दा उठाकर जनता में ध्रुवीकरण कर देंगे | एक बार जनता ने अपना वोट दे दिया तो फिर अगले पाँच बरस तक उसे जवाब देने की कोई ज़रुरत नहीं | जहाँ तक ज़रूरी विधायकों की संख्या का सवाल है आप हम पर भरोसा कर सकते हैं | हमारी तो सदा ही यह ख्वाइश रही है कि आप इलाके के मुख्यमंत्री बनें और हमें आपके मातहत काम करने का सौभाग्य प्राप्त हो | आपके और हमारे दल मिल कर एक लम्बे समय तक जनता की सेवा कर सकते हैं |” बजरंगी बाबू अब काफ़ी हद तक पूसी मौसी के बिछाए जाल में फँस चुके थे लेकिन अभी भी वे पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे | उनकी हिचकिचाहट की मुख्य वजह यह थी कि वे अकारण सरकार से समर्थन वापिस कैसे ले सकते हैं ? जनता के सामने उसका औचित्य कैसे साबित करेंगे ? उनकी दुविधा भाँप कर पूसी मौसी ने एक कुशल राजनेता की तरह उन्हें समझाते हुए कहा, “यह भी कोई समस्या है ? ऐसे तो कई मुद्दे हो सकते हैं | उदहारण के लिए भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, जनता की सुरक्षा आदि कई चिरस्थाई आरोप हैं जो किसी भी सरकार पर कभी भी लगाए जा सकते हैं | आप भी ये मुद्दे उठा कर सरकार से समर्थन वापिस ले सकते हैं | हमारा दल आपको मुख्यमंत्री बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा | बदले में आपको हमारे हित में अपने नये कानून में थोड़ी छूट देनी होगी जिससे कि हम लोगों का भी पेट भरता रहे |” बजरंगी बाबू के दिल में मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा जाग चुकी थी और इस समय वे एक कुशल राजनेता की तरह अपने गठबंधन को तोड़ने का नापाक कदम उठाने के लिए तैयार थे | अब उनके सामने सार्वजनिक जीवन में नैतिकता और आचार-विचार की मर्यादा कोई मायने नहीं रखती थी | अर्जुन की तरह उन्हें केवल अपना लक्ष्य दिखाई दे रहा था – इलाके का मुख्यमंत्री पद | उन्होंने बिल्ली दल के तरफ़ से आया हुआ प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया | उसी रात उन्होंने इस प्रस्ताव पर अपने विधायकों के साथ चर्चा की | कई विधायकों की राय थी, “तात्कालिक फ़ायदे के लिए उठाए गए इस कदम के गम्भीर दीर्घकालिक प्रभाव होंगे | इससे जनता में हमारी विश्वसनीयता बुरी तरह प्रभावित होगी और साथ ही हम किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे | यह कदम न केवल अपने दल के लिए नुकसानदेह होगा बल्कि यह एक ग़लत परंपरा की शुरुआत भी करेगा | साथ ही बिल्ली दल की जग ज़ाहिर कुटिलता के कारण उस पर ज़्यादा विश्वास नहीं किया जाना चाहिए |” लेकिन बजरंगी बाबू को तो उस वक़्त मुख्यमंत्री की कुर्सी के अलावा कुछ और दिखाई नहीं दे रहा था | उन्होंने विधायकों के भारी विरोध के बावजूद भी अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए सबको अपनी बात मानने पर मजबूर कर दिया | विधायकों को भी पता था बजरंगी बाबू दल के एकमात्र लोकप्रिय नेता थे और उनका विरोध करके दल में रहना मुश्किल हो जाएगा | आख़िरकार हारकर उन्होंने बजरंगी बाबू का प्रस्ताव स्वीकार कर ही लिया | दूसरे दिन योजनानुसार वानर दल ने सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के मुद्दे पर सरकार से समर्थन वापिस ले लिया | उनके इस अप्रत्याशित कदम से चिड़िया और गिलहरी दल तो सकते में आ गए थे | उन्हें वानर दल से इस तरह की वादाखिलाफ़ी की कतई उम्मीद नहीं थी | किसी को समझ नहीं आ रहा था कि कल तक दोस्तों की तरह मिलने वाले बजरंगी बाबू आज दुश्मन क्यों हो गए हैं ? लेकिन होनी को कौन टाल सकता था | गठबंधन सरकार से समर्थन वापिस लेकर बजरंगी बाबू ने बिल्ली दल के साथ सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया | चूँकि दोनों दलों को मिलाकर बहुमत के लिए ज़रूरी विधायक थे उन्होंने बहुत जल्द बजरंगी बाबू के नेतृत्व में सरकार का गठन किया | सरकार में बिल्ली दल की नेता पूसी देवी उपमुख्यमंत्री बनीं |
नई सरकार बनते ही गृहमंत्री पूसी देवी ने पुलिस महकमे में धड़ल्ले से बिल्लियों की भर्ती करनी शुरू कर दी | कुछ ही दिन बाद मुख्यमंत्री ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर यह घोषणा की “छोटे जीव-जंतुओं के शिकार पर लगे प्रतिबंधों के कारण बिल्ली जाति के जानवरों को अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ रहा है | उनके कई बुज़ुर्ग और बच्चे भूख से तड़प-तड़प कर जान दे चुके हैं | उनकी इन तकलीफ़ों को देखते हुए और साथ ही पक्षियों और गिलहरियों जैसे छोटे जीव-जंतुओं की सुरक्षा को भी मद्देनज़र रखते हुए सरकार ने सम्बंधित कानून में कुछ शिथिलता लाने का निर्णय लिया है | नए कानून के अनुसार बिल्ली जाति के जानवरों को दिन में सिर्फ़ एक शिकार करने की अनुमति दी जा रही है | बीमार और गर्भवती बिल्लियों को दिन में दो शिकार की अनुमति दी जाती है | सरकार के इस निर्णय से न केवल समाज के सभी वर्गों का भला होगा बल्कि लोकतंत्र भी मज़बूत होगा |”
इसके बाद तो पक्षियों और गिलहरियों पर जैसे कहर ही टूट पड़ा | कानून में छूट मिलने के बाद तो बिल्ली जाति के जानवर बेख़ौफ़ होकर धड़ल्ले से उनका शिकार करने लगे | हालाँकि कानूनन उन्हें दिन में केवल एक शिकार की ही अनुमति थी लेकिन वे दिन में तीन – चार शिकार करने लगे और वे ऐसा करें भी क्यों न, जब सईँया भये कोतवाल तो डर काहे का | अब तो पक्षियों और गिलहरियों का घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया | हमेशा डर लगा रहता था कि वे ज़िन्दा जा तो रहे हैं लेकिन पता नहीं ज़िन्दा वापिस घर आएँगे कि नहीं | उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही थी | शिकायत लेकर जब वे पुलिस थाने जाते तो वहाँ भी कोई मोटा बिल्ला बैठा मिलता जो या तो उनको डाँट कर भगा देता या फिर कार्यवाही के लिए उनसे ही दोषियों के ख़िलाफ़ सबूत माँगता | आख़िर वे बिल्लियों के ख़िलाफ़ दिन में एक से अधिक शिकार करने के सबूत कहाँ से लाते | हार कर वे अपनी समस्या ले कर अपने दलों के नेताओं से मिले और उन्हें स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी कि उन्होंने पार्टी को अपना वोट इसी आधार पर दिया था कि वे उनके शिकार पर रोक लगाएँगे लेकिन बंदिश तो दूर, बिल्लियाँ अब खुलेआम उनका अँधा-धुंध शिकार कर रही हैं | अगर कुछ महीने ऐसे ही चलता रहा तो उनकी पूरी जाति ही नेस्तनाबूद हो जाएगी | यदि उनका दल उनकी समस्या हल नहीं करता है तो अगले चुनाव में वे उनका पूरी तरह से बहिष्कार करेंगे | पक्षियों और गिलहरियों की समस्या वास्तव में गंभीर थी | दोनों दलों के नेताओं को भी यह एहसास हो चला था कि अगर जल्द ही इसका समाधान नहीं निकाला गया तो उनका जनाधार ही ख़तरे में पड़ जायेगा | मसले को पूरी संजीदगी से लेते हुए चिड़िया और गिलहरी दलों की एक आपात संयुक्त बैठक बुलाई गई जिसमें उनके समाज की इस अभूतपूर्व समस्या पर पूरी संजीदगी से विचार किया गया | सभी सदस्यों की राय थी कि उनकी पिछली सरकार द्वारा लिए गए जनहित के निर्णयों को अब पूरी तरह से पलट दिए जाने के कारण ही उनकी जाति पर परेशानियों का सैलाब टूट पड़ा है | इन सब मुसीबतों का मुख्य कारण है बजरंगी बाबू की मुख्यमंत्री बनने की असीम लालसा, जिसके लिए उन्होंने अपने सारे उसूलों और जनता को दिए गए वायदों को सूली पर टाँग दिया है | मुख्यमंत्री तो वे सिर्फ़ नाम के हैं | असली शासन तो उनके नाम पर गृहमंत्री पूसी देवी चला रही हैं | जब तक उनका शासन चलता रहेगा उनकी जातियों पर हो रहे अत्याचार भी बेरोकटोक चलते रहेंगे | अपनी जाति की सुरक्षा और अस्तित्व के लिए इस सरकार का जल्दी से जल्दी हटाया जाना निहायत ज़रुरी है लेकिन असली समस्या है कि इस सरकार को हटाएँ कैसे ? हमारे पास तो सरकार बनाने के लिए ज़रूरी विधायक हैं ही नहीं | पार्टी के एक चतुर युवा सदस्य काक भुसंडी ने सुझाव दिया, “कुछ दिन पहले मेरी वानर पार्टी के कुछ विधायकों से चर्चा हुई थी | पार्टी के कई विधायक पूसी देवी की सरकार में उनकी बढ़ती ताक़त से ख़फ़ा हैं | उनमें से ज़्यादातर की शिकायत है कि सरकार में उनकी अब कोई पूछ-परख नहीं बची है | क़रीब सत्तर फ़ीसदी मलाईदार ओहदों पर बिल्ली दल के लोगों का कब्ज़ा है | बजरंगी बाबू तो पूरी तरह से पूसी देवी के चंगुल में फँसे हुए हैं | न तो उन्हें सरकार की सार्वजनिक छवि की कोई फ़िक्र है और न ही उन्हें याद हैं चुनाव में किए गए अपने वायदे | अगर ऐसे ही चलता रहा तो वे अगले चुनाव में जनता को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे | इसी तरह से बिल्ली दल में भी कुछ महत्वाकांक्षी विधायक मंत्री न बन पाने के कारण असंतुष्ट हैं | क्यों न हम इन असंतुष्ट विधायकों को अच्छे पद का लालच दे कर अपने साथ मिला लें ? अगर हम छह विधायक भी फोड़ सके तो इस सरकार को गिराकर अपनी सरकार बना सकते हैं |” दल के सभी सदस्यों ने इस प्रस्ताव का ज़ोरदार स्वागत किया और दल के उस युवा सदस्य को वानर और बिल्ली दल के असंतुष्ट विधायकों से संपर्क कर उन्हें अपनी तरफ़ फोड़ने की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी सौंपी गई | काक भुसंडी में एक कुशल और कुटिल राजनेता के सारे गुण मौजूद थे | उसने फ़ौरन ही दूसरे दलों में मौजूद अपने संपर्क सूत्रों को काम पर लगा दिया | कुछ दिनों की अथक कोशिशों के बाद उन्हें सफलता प्राप्त हुई | वानर दल के पाँच और बिल्ली दल के दो विधायक मलाईदार पद मिलने के लालच में पाला बदलने के लिए तैयार हो गए | योजना के मुताबिक इन सातों विधायकों को कुछ दिनों के लिए अज्ञात स्थानों पर रखा गया | साथ ही पक्षी और गिलहरी दलों के विधायकों को भी सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया गया जहाँ दूसरे दल के लोग उन पर दबाव और प्रलोभन देकर दूसरी तरफ़ तोड़ न सकें | सारे ज़रूरी इंतज़ाम करने के बाद पक्षी और गिलहरी दल के नेताओं ने संयुक्त रूप से सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव रखा | अपने विधायकों के अचानक गायब होने से वानर और बिल्ली दलों में ख़लबली मच गई | सारी सरकारी मशीनरी गायब विधायकों को खोजने में लगा दी गई लेकिन लाख़ कोशिशों के बावजूद भी विधायको को ढूँढ़ा नहीं जा सका, जिसके फलस्वरूप सरकार बहुमत सिद्ध नहीं कर पाने के कारण गिर गई | अब पक्षी और गिलहरी दलों ने दूसरे दलों से फोड़े गए दलबदलू विधायकों के साथ श्रीमती बुलबुल देवी के नेतृत्व में नई साझा सरकार बनाई | वायदे के मुताबिक वानर और बिल्ली दलों से आए असंतुष्ट विधायकों को मंत्री पद से नवाज़ा गया | नई सरकार ने अपने पारम्परिक वोट बैंक की सुरक्षा और अस्तित्व की ख़ातिर पक्षियों और छोटे जानवरों के शिकार पर पुन: कड़े प्रतिबन्ध लगा दिए | इस बदलाव से इन दोनों जाति के लोगों ने फिर से चैन की साँस ली |
लेकिन ख़तरा अभी पूरी तरह से टला नहीं था | सरकार के बिल्ली-विरोधी रुख के कारण बिल्ली दल फिर से सरकार अस्थिर करने के लिए सभी प्रकार के हथकंडे अपना रहा था | चूँकि सरकार गिराने के लिए केवल दो विधायकों की ही ज़रुरत थी इसलिए सत्ता पक्ष भी अपने विधायकों पर कड़ी नज़र रख रहा था | अब किसी का भी किसी पर भरोसा नहीं रह गया था | पता नहीं कब कौन दगा दे जाए | हालाँकि पहले भी बिल्लियाँ पक्षियों और गिलहरियों को अपना शिकार बनाती रही थीं | इसके बावजूद भी सभी जातियों में और विभिन्न जातियों के बीच हमेशा एक विश्वास और सद्भाव का माहौल था लेकिन लोकतान्त्रिक व्यवस्था लागू होने के बाद समाज के हर तबके में राजनीति के गहरे दुष्प्रभाव दिखने लगे हैं | इसका सबसे बड़ा नुकसान है - इलाके के जीव-जंतुओं के बीच आपसी सम्मान, विश्वास और सद्भाव का ह्रास | न कोई किसी का सगा रह गया है और न ही किसी की ज़ुबान का कोई मोल बचा है | कब, कौन अपने फ़ायदे के लिए दुश्मन से मिल कर भीतरघात कर जाए कोई नहीं जानता | हर कोई एक-दूसरे को शक़ की नज़र से देखने लगा है | इस माहौल में कई बुज़ुर्ग जीव-जंतु अक्सर अपने पुराने दिनों को याद करते हैं जब बिना किसी औपचारिक व्यवस्था के एक अदृश्य सुन्दर व्यवस्था मौजूद थी जहाँ सभी के बीच एक अनकहा रिश्ता था - प्यार और भाई-चारे का | लेकिन समाज में आई इस बीमारी के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था को दोष देना भी ठीक नहीं है | यह सुविचारित और विस्तृत व्यवस्था एक अच्छे उद्देश्य के साथ लागू की गई थी लेकिन शायद हम इसके लायक नहीं हैं | किसी भी व्यवस्था की सफलता या विफलता इसे लागू करने वालों के हाथ में रहती है | हमारे प्रतिनिधियों ने इसे जनसेवा की जगह स्वार्थसिद्धि का ज़रिया बना लिया है जिसकी वजह से यह अब पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है | हमारे नेताओं के कुटिल और अवसरवादी आचरण का असर अब समाज के हर तबकों में तेज़ी से फैलता जा रहा है | समाज में आ रही इस गंभीर नैतिक गिरावट की भरपाई होना निकट भविष्य में आसान नज़र नहीं आता है |