Gaumata in Hindi Short Stories by Rakesh Kaul books and stories PDF | गौमाता

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गौमाता

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आज मेरे जीवन का सबसे बदनसीब दिन है, जब मुझे मेरे ही घर से निकाल दिया गया  है और वह भी मेरे अपनों द्वारा । मैं बहुत रोई-गिड़गिड़ाई उनके सामने कि इस उम्र में मुझे घर में ही रहने दो, लेकिन किसी का दिल न पिघला । मेरे बच्चे भी मेरी यह दशा देखकर सकते में थे । पप्पू ने तो डंडे मार-मार कर मुझे घर के बाहर ठेल दिया और मेरे गले में बँधी रस्सी एक अजनबी के हाथ में थमा दी । इस समय वह मुझे बेरहमी से खींचता हुआ चला जा रहा है । मेरा दिल बुरी तरह  ग़मज़दा है, लेकिन मजबूरी में मैं घिसटती हुई उसके पीछे चली जा रही हूँ । पता नहीं किस्मत में आगे क्या लिखा है?

समझ में नहीं आ रहा है कि मेरे अपनों ने आज मेरे साथ ऐसा बर्ताव क्यों किया ?  मैंने तो हमेशा ही इस घर और घरवालों का भला ही चाहा । करीब पंद्रह बरस से मैं इस घर में रह रही हूँ । बाबूजी इतने प्यार से मुझे इस घर में लाए थे । परिवार की महिलाओं ने प्यार से मेरे माथे पर टीका लगाकर आरती उतारी थी । मुझे एक बड़ी नाँद में चारा और दूसरी में पानी दिया गया । बाबू जी ने प्यार से मेरा नाम आरती रखा था। मुझे रोज़ नहला-धुला कर साफ़ किया जाता । बाबूजी और घर के बच्चे मेरे माथे और गर्दन को सहला कर प्यार करते । मेरा भी घर में मन लग गया था । हमेशा ख़ुश रहती, सबका प्यार और दुलार पाकर । एक साल बाद मुझे एक प्यारा सा बेटा हुआ, जिसका नाम सोमू रखा गया । बचपन से ही वह बहुत शैतान था, हमेशा उछल-कूद करता रहता । बच्चों को तो जैसे उनका दोस्त मिल गया था । सब उसके साथ खेलते रहते । सोनू को पिलाने के बाद जितना दूध बचता, वह परिवार में सब के काम आता । कभी-कभी वे दूध से दही, मक्खन, घी और मावा भी बनाते । मेरा शुध्द दूध पीते रहने से घर के बच्चे-बूढ़े सब तंदुरुस्त दिखने लगे थे । सोमू के बाद मंगल और फिर रानी का जन्म हुआ । समय के साथ सोमू और मंगल जवान होकर खेती में हाथ बँटाने लगे थे । दोनों भोर होते ही निकल जाते और शाम को थक कर घर वापिस आते । अच्छी ख़ुराक मिलने से वे मज़बूत और बलवान दिखते थे । रानी भी अब बड़ी हो गई थी । हर साल गोवर्धन पूजा के दिन हमारा बहुत आदर-सत्कार किया जाता । सुबह-सुबह हमें नहला-धुला कर चने का साग खिलाया जाता । छोटे-बड़े सब मुझे और रानी को माता कहकर हमारे पाँव छूते और आशीर्वाद लेते । इतना आदर-सत्कार पाकर मैं फूली नहीं समाती । मैं हमेशा सोनू और मंगल को समझाती कि जिस परिवार से हमें इतना प्यार-सम्मान मिल रहा है उसकी सेवा में कभी कोई कमी ना रखना ।

पिछले साल रानी ने एक प्यारी सी गुड़िया को जन्म दिया - गुलाबो । गुलाबो इतनी सुंदर और नाज़ुक दिखती थी कि हर कोई उसे प्यार करता । उसके जन्म के बाद रानी को भी दुहा जाने लगा । इधर मेरी उम्र बढ़ने के साथ ही मेरा दूध आना कम हो गया था । पिछले एक महीने से तो यह बिल्कुल ही बंद हो चुका था । इसके साथ ही मुझे परिवारजनों के रुख़ में कुछ बदलाव महसूस होने लगा था । उनका सारा लाड़-प्यार अब रानी और गुलाबो पर रहता । मैं उनके व्यवहार में आ रहे बदलाव का कारण समझ नहीं पा रही थी । मैं तो जैसी पहले थी वैसे ही अभी भी शांति से रहती थी, बस थोड़े से प्यार की उम्मीद रखती थी परिवारजनों से ।

आज सुबह से ही मेरा मन कुछ अनहोनी की आशंका से घबरा रहा था - न खाने की इच्छा थी और न ही अपने बच्चों से बात करने की । शाम को पप्पू इस अजनबी को लेकर घर आया था, मुझे दिखाने । उसकी शक्ल देख कर ही मैं सहम गई थी, बहुत खूँख़ार दिख रहा था वह । थोड़ी देर बात करने के बाद उसने पप्पू को जेब से निकालकर कुछ हरे कागज़ दिए और बदले में पप्पू ने मेरी रस्सी खूँटे से खोल कर उसके हाथ में थमा दी । मैं तो सकते में आ गई थी । आँखों से आँसू की धारा बहने लगी थी और सामने अँधेरा ही अँधेरा छा रहा था । जिस घर में सब मुझे माँ के समान आदर-सत्कार देते थे, आज उसी घर से माँ को निकाल कर एक अजनबी के हाथों क्यों सौंपा जा रहा था?

दिमाग़ में उमड़ रहे विचारों के तूफ़ान को लेकर, मैं घिसटती हुई अजनबी के पीछे चली जा रही हूँ । अब अँधेरा हो चला है । चलते-चलते वह एक बाड़े के पास जा कर रुका, जहाँ पहले से ही मेरी जैसी दो गायें बँधी हुई हैं । मुझे भी उनके पास बाँध दिया गया है । यहाँ के माहौल में एक अजीब सा डर लग रहा है | चारों तरफ़ बदबू ही बदबू है । पास में बँधी हुई दोनों गायें भी बुरी तरह सहमी दिख रहीं हैं । हम तीनों ने रात जागकर गुज़ारी, न कुछ खाया न पिया । सुबह होते-होते कुछ-कुछ दिखने लगा है । सामने के कमरे में कोई पानी से फर्श धो रहा है । कमरे से बाहर बहते हुए गंदे पानी की सड़ाँध बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा है । कुछ देर बाद वही अजनबी आदमी आकर मेरे पास बँधी गाय को खोल कर ले जाने लगा । बेचारी रो-रोकर चिल्लाती रही, लेकिन इंसान की क्रूरता के आगे बेबस जानवर की कहाँ चलती है । तीन आदमी उसे धक्के देते हुए कमरे के भीतर ले गए । फिर एक ज़ोर की आवाज के साथ गाय की दर्दनाक चीख गूँजी और फिर एक लाल ख़ून की तेज़ धारा कमरे से बाहर आती दिखी । वह बेचारी मार दी गई है और अब हम दोनों की बारी है । कुछ ही मिनटों में यही दशा हमारी भी होने वाली है । इस वक्त हम बुरी तरह दहशत में हैं - आँखों से आँसू बह रहे हैं और पाँव डर के मारे थर-थर काँप रहे हैं । लाख कोशिश करने पर भी मुँह से आवाज़ निकल नहीं पा रही है । लेकिन इस वक्त हमारा दुःख-दर्द और बेबसी महसूस करने वाला यहाँ कोई नहीं है । जब तक हम दूध दे रहीं थीं, इंसान हमें माता के समान पूज रहा था और उसके बंद होते ही माता को बेच दिया, कटने को । आगे भी ऐसा ही चलता रहेगा । आज मैं जहाँ हूँ, वहाँ कल रानी और परसों गुलाबो होगी । वाह रे इंसान, धन्य है तेरी इंसानियत जिसके आगे हम जानवर बेबस और लाचार हैं ।