लैफ्टिनेण्ट को अब निर्णायक की भूमिका निभानी थी। जन-आन्दोलन के ज़ोर पकड़ जाने के कारण अपनी लोकप्रियता को बढ़ाना व इसके लिए जनता की भावनाओं को अपने अनुकूल बनाना आवश्यक था। आर्कडिकन लूसियन बोनापार्ट ने इसे कुछ करने का सुविधाजनक अवसर माना। उसका परिवार पहले की अपेक्षा अधिक सुखी था। उसने अपने मामा फ़ैश को जैकोबियन क्लब जाने को विवश किया; क्योंकि जोसेफ़ शहर की परिषद में लोगों के विचारों को आकर्षित कर सकता था। वस्तुतः प्रायद्वीप की व्यवस्था को चुनौती देने वाला वह सर्वाधिक सक्षम व्यक्ति था? राष्ट्रीय गार्ड के नेता की वास्तविक शक्ति उसके हाथ में थी, परन्तु क्या इतना होने पर भी चुनाव जीता जा सकता था?
उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि इस बार उसका अनधिकृत अवकाश नये वर्ष तक चल सकता है। वह अपने सैन्य अधिकारी को लिखता है-अनिवार्य परिस्थितियां मुझे अधिक समय तक इधर रहने को विवश कर रही हैं, लेकिन मुझे अपने को कोसने का कोई कारण नहीं है; क्योंकि मैं समझता हूं कि अपनी ओर से अत्यधिक कर्मनिष्ठा एवं समर्पण के साथ काम कर रहा हूं।" वह उम्मीद करता है कि उसे पद से मुक्त नहीं किया जायेगा, परन्तु उसे उसके पत्र का कोई उत्तर नहीं मिलता। फिर भी वह जूझने के निर्णय पर अटल रहता है।
अब नेशनल गार्ड के कमाण्डेण्ट का चुनाव करने का समय आया है। मित्र एवं नाते-रिश्तेदार सभी जगह हैं, परन्तु यह पर्याप्त नहीं है। उसकी मां दल के सदस्यों के लिए घर के दरवाज़े खुले रखती है। पहाड़ी क्षेत्र के सहानुभूति प्रकट करने वाले मित्रों को रात में रोका भी जाता है। यही वोट पाने का एकमात्र ढंग है। एक सिपाही को लगता है कि नेपोलियन स्वभाव से ही चुपचाप रहने वाला अवश्य है, परन्तु एक दिन विचारों को वाणी देने वाला बनेगा और वह केवल तब ही प्रसन्न होगा। तब वह देश तथा समस्त आगन्तुकों के पास जाने के लिए तत्पर रहेगा व उनके अन्तर्मन को पूरी तरह प्रभावित कर सकेगा। सेना के आने पर उसे अपने घरों में ज़बरदस्ती रोक दिये जाने वालों में वह भी एक था। विद्रोह के समर्थक कुचले जायें, इसका उसे पूरा ध्यान था। यह कार्सिका का चुनाव है, परन्तु ज्यों-ज्यों निर्णायक दिन निकट आता गया, त्यों-त्यों नेपोलियन अपने आधार को सुदृढ़ करता गया। लैफ्टिनेण्ट कर्नल के पद पर पहुंचकर वह सेना में दूसरे नम्बर का सर्वोच्च अधिकारी बन गया है।
क्या इटली के इस नागरिक के लिए फ्रांस में अपना प्रार्थनापत्र भेजने से अवसर प्राप्त करना सम्भव होगा? क्या वह फ्रांस की सेवा त्याग दे? महान् सेनानायकों के अनुभव के आधार पर उसके लिए सावधान रहना बेहतर है। उसके लिए प्रत्येक स्थिति के लिए तैयार रहना ही बुद्धिमानी है। इस कठिन परिस्थिति में वह वेलेंस को लिखता है : "कार्सिका के प्रबुद्ध नागरिक का सम्मान उसके अपने देश में है। इसी कारण मेरा अपना देश मुझे फ्रांस से वापस लौटने की प्रेरणा दे रहा है। सरकारी सेवा की उपेक्षा करने वाला मैं अकेला नहीं हूं, फिर भी मैंने सरकारी सेवा का त्याग करने का मन बना लिया है।" अपने प्रार्थनापत्र में वह बकाया वेतन की मांग करता है तथा फ्रांस को 'तुम्हारा राष्ट्र' कहता है। इसके जवाब में फ्रांस के सैन्य अधिकारी उसे पद से निष्कासित कर देते हैं।
इस प्रकार नेपोलियन अपेक्षा से भी कम समय में अपने भाग्य का विधाता बन गया। उसके पास आत्मनिर्भर बनने का दृढ़ आधार नहीं था। उसके पास तो एकमात्र अधिकार नेशनल गार्ड्समैन का क्रान्तिकारी अधिकारी होना था। यह सेना का एक ऐसा सदस्य होता है, जिसके विरुद्ध आरोप सिद्ध होने पर उसके टुकड़े-टुकड़े किये जा सकते हैं। ऐसे अधिकारी के लिए सर्वथा एवं अत्यन्त गुप्त रूप से आन्तरिक संघर्ष का मार्ग अपनाना ही बेहतर रहता है। वह शहर के नागरिकों व गार्ड के बीच सम्बन्ध स्थापित करायेगा। उसके लिए उसे ऐसी आन्तरिक आग लगाना ज़रूरी है, जिससे सामान्य भ्रान्ति के बीच-बचाव करने वाले अधिकारी की भूमिका निभा सके। क्या यह राजा की नियमित सेनाओं द्वारा जीते गये क़िले के समान नहीं है? यही स्थायी षड्यन्त्र कहलाता है? क्या फ्रेडरिक और सीज़र ने हमेशा क़िलों में विद्रोह की ज्वाला भड़काकर संघर्ष नहीं किया था? सेना के प्रमुख अधिकारी को पकड़ लो और सेना को खदेड़ दो तथा इस प्रकार एक ही झटके में प्रायद्वीप को आज़ाद करा लो। इस समय युद्ध में फंसा हुआ फ्रांस कार्सिका को हथियाने की नहीं सोच पायेगा और फिर जीतने में समर्थ नहीं हो सकेगा। वह कार्सिका को आज़ादी दिलाने वाला एक लोकप्रिय नायक बनेगा। फलतः तब वृद्ध पाउली का महत्त्व एक कथानक से अधिक नहीं रह जायेगा।
सन् 1792 में ईस्टर के रविवार को एक खुला संघर्ष हुआ। प्रश्न यह है कि क्या नेशनल गार्ड ने इस संघर्ष को भड़काया था या फिर शहर की जनता दुहरा खेल खेल रही थी? संघर्ष किसने छेड़ा, यह समझना एक जटिल समस्या थी। यह सही था कि अपनी बटालियन के प्रधान अधिकारी बोनापार्ट ने क़िले को क़ब्ज़े में लेने की कोशिश की, परन्तु उसे क़िले में स्थित सेना को भयाक्रान्त नहीं करना चाहिए था। इसी से उसके आदमियों पर बन्दूकें तन गयीं और उन्हें हार माननी पड़ी। पेरिस में इस युवा अधिकारी के विरुद्ध शिकायत दर्ज की गयी। उस पर सशस्त्र विद्रोह का आरोप लगाया गया। राजद्रोह का मुक़दमा चलना स्वाभाविक था। उसके स्पष्टीकरण ने किसी को प्रभावित नहीं किया। अपने उपद्रवी साथियों के दुस्साहस का शिकार बनने वाले पाउली ने तुरन्त ही फ्रांस के प्रति अपनी वफ़ादारी की उद्घोषणा कर दी तथा अपने पुराने मित्र के पुत्र को पद से निष्कासित करने में कोई ढील नहीं दिखायी।
बोनापार्ट ने सोचा कि यदि पाउली मेरे विरुद्ध गया, तो मैं भी उसके विरुद्ध हो जाऊंगा। इस प्रकार उसे सावधानीपूर्वक प्रत्येक विषय पर विचार करना था। पेरिस के विषय में जल्दबाज़ी नहीं करनी थी। वह जानता था कि जहां सोच-विचार कर काम किया जाता है, सार्थक क्रान्ति वहीं सम्भव होती है।'
फ्रांस की राजधानी की गलियों से जोखिम भरे कार्यों को करते हुए गरमी के दिन गुज़र रहे हैं। उसके पास न धन है, न पद। फ्रांस में वह एक लैफ्टिनेण्ट था, परन्तु उसे एक अवाञ्छित व्यक्ति समझा जाता था। कार्सिका में वह पद से निष्कासित लैफ्टिनेण्ट है। उसके विरुद्ध गम्भीर आरोप लगाये जा सकते हैं और जल्दी ही वह भूखों मर सकता है। जैकोबिन उसकी अन्तिम आशा हैं और वह रोबेस्पीरी के युद्ध में शामिल होता है; क्योंकि वंश की रक्षा के सिवा उसे दूसरा कोई मार्ग दिखाई नहीं देता। अतः परम्परागत प्रथा का पूर्णतः उल्लंघन करना ही उसके लिए ज़रूरी हो गया है।
पेरिस में बहुत महंगाई है। वह अपनी कलाई की घड़ी गिरवी रखने के बाद भी ऋणग्रस्त है। अभी तक उसे अभाव से बचाने का एक साधन कलाई की यह घड़ी थी। उस पर शराब-विक्रेता का पन्द्रह फ्रैंक ऋण हो गया। वह अपने दोस्त बाउरिनी के आगे प्रस्ताव रखता है कि वे दोनों घरों में काम करके गुज़ारा कर लेंगे। क्या इसका अर्थ यह समझना चाहिए कि वह उच्च पदों पर कार्यरत लोगों से ईर्ष्या करता है? नहीं, वह तो उनसे घृणा करता है। बीते हुए घटनाक्रम के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति को यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि लोग शायद ही उसके सम्बन्ध में कुछ सोचेंगे। मानव जाति अत्यधिक स्वार्थी व निर्दय है। साहस केवल साहस है। फ्रांस इसकी परवाह नहीं करता तथा इसे दिखावा मानता है। कोई भी व्यक्ति अपना स्वार्थ सिद्ध करने के अलावा किसी अन्य बात के लिए चिन्तित नहीं है। प्रत्येक के लिए मात्र अपना परिवार ही सब कुछ है तथा चार या पांच हजार फ्रैंक की स्थायी आय ही उनका भगवान् है। यदि वे कुछ सोचते हैं, तो केवल इतना कि व्यक्ति कुछ पाने के लिए ही उठा करते हैं तथा मिल जाने पर सन्तुष्ट हो जाते हैं।
दुःख तो परम्परागत विचारों से बंधे व्यक्तियों को होता है। क्या विदेशी सुविधाएं सुलभ हो जाने से देश की समस्याएं सुलझ सकती हैं? क्या व्याप्त अव्यवस्था देश को जटिलता से बाहर निकाल सकती है? क्या इस परिस्थिति में विशाल सम्भावनाओं को यूं ही छोड़ा जा सकता है। इटली का एक नागरिक (विदेशी) होने से, क्या वह इन फ्रांसीसियों के भाग्य का निष्पक्ष विधाता बन सकता है? क्या शान्त एवं स्थिर प्रकृति का यह व्यक्ति जोखिम में हाथ डालकर उनके भाग्य को अपनी इच्छानुसार ढाल सकता है? जैकोबिन पहले से ही संघर्ष करने के लिए आगे आने लगे हैं।
जब ट्विलरीज में ज़बरदस्त तूफ़ान आया, तो उस समय बोनापार्ट केवल तटस्थ दर्शक बना रहा। दुःख के समय मनुष्य के विचार कैसे होते हैं? ईश्वर का धन्यवाद कि हम एक बार पुनः स्वतन्त्र हो गये हैं, परन्तु सैन्य अधिकारी की टिप्पणी दर्शनीय है : मैंने सिपाहियों को नागरिकों से भयभीत होते हुए देखा, तो मुझे बहुत अधिक दुःख हुआ। यदि राजा स्वयं घोड़े पर चढ़कर आया होता व उसने विजय प्राप्त की होती, तो स्थिति भिन्न होती, परन्तु ऐसा न होने पर उस समय लोगों की मनःस्थिति यही थी। कुछ दिन पहले जब राजा स्वतन्त्रता का झूठा स्वप्न दिखा रहा था, उस समय नेपोलियन ने यह लिखा था : "यह कैसी मूर्खता है, उसने गोलाबारी क्यों नहीं की? हज़ारों विद्रोहियों में कुछ के मारे जाने पर शेष भाग गये होते।"
इसके बावजूद उसका मुख्य विचार स्वतन्त्रता था। उसके शत्रु पराजित हो चुके थे। ट्विलरीज़ की बग़ावत के दूसरे दिन उसने अपने चाचा को पत्र लिखा : "आपको अपने भतीजों की चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं है, वे अपनी परवाह करना स्वयं जानते हैं।" नयी सरकार ने नेपोलियन को एक बढ़िया काम सौंपा। उसे न केवल पुनः सेवा में ले लिया गया, बल्कि उसे पदोन्नति देकर कप्तान भी बना दिया गया, परन्तु उसे अपनी रेजीमेण्ट में जाने की कोई जल्दी नहीं थी। प्रशिया के राजा के मोसिली में न होने से क्या अन्तर पड़ता है। वह सोचता है कि उसे फ्रांस के युद्ध से क्या लेना-देना है? वह तो कार्सिका का नागरिक है और वापस अपने देश लौटना चाहता है।