"मैं अनेक ग्रामीणों के साथ लम्बी वार्ता करने के बाद एक किसान की कुटिया से तुम्हें लिख रहा हू। इस समय शाम के चार बजे हैं, मौसम कुछ-कुछ खुशगवार है। इस समय मुझे घूमना अच्छा लग रहा है। अभी बर्फ़ तो नहीं गिर रही, परन्तु हवा बर्फीली है। मैंने किसानों को हर जगह हड़ताल करते देखा है। वे सभी सविधान के लिए मरने को तैयार हैं। महिलाओं का देशप्रेम भी दर्शनीय है। ऐसा लगता है कि वे स्वतन्त्रता को अपने प्राणों से भी अधिक महत्त्व देती हैं और उसे तुरन्त प्राप्त करना चाहती हैं। दौफ़िन में पादरियों ने राज्य के लिए सब कुछ करने की सौगन्ध ले ली है। वह बिशप पर यह कहते हुए व्यंग्य करते हैं "प्रत्येक चार नागरिकों में से तीन अमीरों वाला यह समाज कितना अच्छा है, जो ब्रिटिश संविधान की निन्दा करता है। यह सच है कि पैरिटी ने मिराबीऊ को कटार दिखाकर भयभीत किया, परन्तु यह हमारे सम्मान के लिए बहुत छोटी बात है। देशभक्त समाज के लिए मिराबीऊ को हमारे देश के परिधान यथा बिरैटा, गंजी, जांघिये और कच्छे, नुकीली जेब, चूड़ीदार पायजामा, पिस्टल तथा मस्कट को भेंट में देना आवश्यक है। इस सबका निश्चित रूप से अच्छा प्रभाव पडेगा।"
जोसेफ़ द्वारा नेपोलियन के मामा को लिखे गये इस पत्र की प्रत्येक बात राजनीतिक प्रभाव का मूल्यांकन तथा निरीक्षण करने का एक प्रमाण है। मौसम, राज्य, पैदल यात्रा, उच्च पद वाले व्यक्ति के विचार, मनुष्यों की प्रेरणाए आदि सभी सावधानीपूर्वक विचार करने की बातें हैं। दम्भ व विश्वासघात ऐसी दुर्बलताए हैं, जिन पर की गयी अपील का सफलतापूर्वक निदर्शन किया जा सकता है। हम उसके द्वारा अपने विरोधी के प्रयोग में लिखे गये पत्र के अशिष्ट शब्दों से उसके मन की थाह पा सकते हैं। मानव-स्वभाव के अध्ययन की कला ने तुम्हें प्रत्येक मनुष्य में साहस का मूल्याकन करना सिखाया है। तुम्हारे लिए मनुष्यों के चरित्र के बीच के अन्तर को समझना सरल है।
तेरह वर्ष का लुई उसके साथ फ्रांस वापस लौटा था। उस समय लैफ्टिनेण्ट बोनापार्ट व उसके भाई बेलिस के पास भोजन, वस्त्र तथा उस बालक को शिक्षा देने के लिए पिचासी फ्रैंक से अधिक धन न था।
नेपोलियन को एक निबन्ध पर लायस एकेडमी से पुरस्कार मिला। इस निबन्ध का शीर्षक था-"धन भोग-विलास का नहीं, बल्कि मनुष्य के आदर्श कार्यों को पूरा करने का साधन है।" बारह सौ फ्रैंक की इस पुरस्कार-राशि से कार्सिका के आधे नागरिकों को अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित किया जा सकता था। मानव जाति के सुख के लिए किन उद्देश्यों की पूर्ति महत्त्वपूर्ण होती है? युवा लैफ्टिनेण्ट यह सोचकर मुसकराता है। वस्तुतः यह विषय उसे बहुत पसन्द है। पहले तो वह इस विषय को अपनी रुचि का अनुसरण करने वाले शिक्षा-शास्त्रियों के लिए छोड़ देता है, क्योंकि वह जानता है कि वे सब रूसो के शिष्य हैं। वह प्रकृति, मित्रता, अत्यधिक प्रमाद-इन तीन विषयों को लेकर अपने निबन्ध को आरम्भ करता है, परन्तु न यह सब उसके पास था और न वह उनके विषय में कुछ अधिक जानता ही था। एकाएक उसका मन राजाओं द्वारा सम्पत्ति तथा अधिकार के मुक्त आनन्द लेने की सामान्य प्रवृत्ति के विरुद्ध विद्रोही हो उठता है। इसके पश्चात् कुछ वर्ष पूर्व के एक गम्भीर विद्यार्थी की भांति वह अपनी मनःस्थिति का उल्लेख इस प्रकार करता है "तेजस्वी व महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति व्यग्य की कुटिल हंसी हसकर अपराध करता है व गूढ़ योजनाए बनाता है तथा लम्बे समय के बाद शक्ति प्राप्त कर भीड़ को बरगलाने का षड्यन्त्र करता है। बड़ी महत्त्वाकांक्षा वाले लोगों ने इसी प्रकार (लोगों को मूर्ख बनाकर) सुख चाहा है तथा यश प्राप्त किया है।"
यह कल्पनाशील युवा प्लूतार्क के प्रत्येक गुण की प्रशंसा करता है। लेखक अपनी दुःखगाथा व्यक्त करता है। उसका आदर्श स्पार्टा है, जिसमें साहस तथा शक्ति के असाधारण गुण हैं। स्पार्टा का प्रत्येक नागरिक जीवन में अपनी शक्ति पर दृढ़ विश्वास लिये है। प्रकृति के सम्पर्क में रहने वाला ऐसा व्यक्ति सदा प्रसन्न रहता है। शक्तिशाली एवं सुदृढ़ विचारों वाला व्यक्ति ही अच्छा होता है। वस्तुतः दुर्बलता ही दोष है। इन शब्दों से एक अन्य भावना भी प्रस्फुटित होती है-सही अर्थों में महान् व्यक्ति चमकते हुए सितारे की तरह हैं। वे चमकने के पश्चात् स्वयं भले ही समाप्त हो जायें, परन्तु धरती के अधेरे को प्रकाश में बदल सकते हैं।
लायंस एकेडमी द्वारा निवन्ध को अनुशंसनीय न मानना एक घोर अन्याय था। ऐसा करना सर्वथा उचित नहीं था। इससे एक नयी निराशा उत्पन्न हुई, क्योंकि उसका प्रयास व्यर्थ गया। इससे न धन मिला और न ही प्रसिद्धि, फिर भी उसने निष्काम भाव से अपनी मनःस्थिति पर नियन्त्रण रखकर, कार्सिका के उपन्यास पर ध्यान केन्द्रित करके प्रेम पर एक विवेचन तैयार किया।
क्या इस उदासीन युवक के मस्तिष्क में 'प्रेम' शब्द ने आशा की किरण जगा दी? रूसो की विचारधारा से प्रभावित मस्तिष्क में क्या इससे कुछ परिवर्तन आ गया? इस सम्बन्ध में बाईस वर्ष के युवा लैफ्टिनेण्ट का उत्तर है "मैंने भी एक बार प्रेम के क्षेत्र में प्रवेश किया, परन्तु इससे घृणा को परिभाषित करने लायक़ बहुत कुछ सीखा। मेरा मानना है कि प्रेम केवल विचार-विशेष से इधर-उधर भटकता है। मैं इसके महत्त्व को नकारने के साथ ही इसे समाज के लिए घातक व व्यक्ति की खुशियों का अपहरण करने वाला मानता हू। इसे छोड़ देने पर ही व्यक्ति स्वर्ग-सुख को प्राप्त कर सकता है।
राजनीतिक एवं सामाजिक मर्यादाओं में दिखावे की भावना बाधक बनती है। लुई सोलहवां पेरिस के दिखावों से बचने का प्रयास कर रहा था, परन्तु वारेनेस में पकड़ लिया गया तथा वापस लाया गया। लोगों ने विजय-नाद बजाये तथा क्रान्तिकारी आन्दोलन भड़क उठा। बैस्टील के विजय की द्वितीय वर्षगाठ पर रेड लैफ्टिनेण्ट ने देशभक्तों को दावत दी। प्रायद्वीप से उठे शका व अविश्वास के स्वर उस तक भी पहुंचे। तानाशाही के विरुद्ध लोगों ने अपनी व्याकुलता व असहमति व्यक्त की। अत्याचार के विरुद्ध इन वर्षों में पेरिस से उठी अशान्ति व अव्यवस्था की लहरें समुद्र से दूरस्थ द्वीपों तक पहुंचने लगीं। कार्सिका में भी आन्तरिक झगड़ों ने प्रबल रूप धारण कर लिया। दूसरे प्रयास के लिए उसे पुनः वहां लौटना पड़ा।