दो
इधर वसन्त ऋतु के आगमन के साथ ही गतिविधि बढ़ जाती है। शत्रु ने दमन नीति अपनायी है, तो द्वीप के बच्चों ने भी एक बार पुनः अपने हाथों में हथियार उठा लिये हैं। महिलाओं ने भी अपने पतियों के साथ युद्धभूमि की ओर जाने की ठान ली है। इस बार न तो उनका गर्भवती होना और न ही ऋतु का प्रतिकूल (शीत) होना उन्हें युद्धक्षेत्र में जाने से रोक सकता है। गर्भवती होने तथा ऋतु के शीत होने पर भी वे युद्धक्षेत्र में जाने को तत्पर हैं।
"युद्ध के समाचारों की जानकारी लेने के लिए मैं इस पहाड़ी के शिखर से युद्धभूमि की ओर प्रस्थान करूंगी, गोलियों की आवाज़ सुनूंगी, परन्तु यह सब मैं अपनी मातृभूमि के लिए करूंगी। यही हमारी मातृभूमि वर्षों बाद हमारी वीरगाथा हमारी अगली पीढ़ी को सुनायेगी।"
मई में कार्सिकनों की हार हुई। नुकीले एवं कठोर पर्वतों पर व घने जंगलों में भयंकर युद्ध हुआ। हजारों पुरुषों व कुछ महिलाओं के बीच खच्चर पर सवार लितिज़िआ, अपने एक वर्ष के अबोध शिशु को गोद में तथा हाथ में हथियार लेकर गयी थी। समुद्रतट तक वह सुरक्षित पहुंच गयी। जून में पाउली के हारे हुए कुछ सैनिकों को इटली के लिए प्रस्थान करना पड़ा। जुलाई में पाउली के सैन्य-प्रशासक (लितिज़िआ के पति) ने अपने अन्य सैन्य अधिकारियों के साथ मिलकर विजेता को आत्मसमर्पण के लिए विवश कर दिया। इससे उस द्वीप को अपनी खोयी प्रतिष्ठा वापस प्राप्त हो गयी। इधर अगस्त में इस प्रशासक की पत्नी लितिज़िआ ने एक प्रचण्ड तेजस्वी फ्रांस के भावी शासक शिशु को जन्म दिया, जिसका नाम 'नेपोलियन' रखा गया।
रणभूमि में एक महान् नायिका की भूमिका निभानेवाली एवं पुरुपों की भांति ही शौर्य का प्रदर्शन करनेवाली यह व्यवहारकुशल व बुद्धिमती महिला अब समुद्रतट पर स्थित एक महल की गृहस्वामिनी है। नित-नूतन संकल्पशक्ति वाला उसका युवा पति अपनी आय की चिन्ता छोड़कर देश की समृद्धि की योजनाएं बनाने पर अधिक ध्यान देने लगा। वह अनेक वर्षों तक अपनी मातृभूमि से सम्बन्धित कानूनी उलझनों को ही सुलझाने में लगा रहा। पीसा में अध्ययन करते समय उसके मित्र उसे 'काउण्ट बोनापार्ट' के नाम से जानते थे। वह शालीनता से तो रहा, परन्तु समुचित शिक्षा न ले पाया। अपने दूसरे पुत्र के जन्म के पश्चात् उसने अध्ययन करना बन्द कर दिया। जीवन के प्रति उसके विचार इस प्रकार थे विपदा मानव को संसार का यथार्थ रूप दिखाती है तथा वह विजेता के ढंग से विचार करता है। यही कारण है कि इस द्वीप में दीर्घकाल तक अबाध शासन बनाये रखने के लिए फ्रांसीसियों ने कार्सिकन नागरिकों के प्रति सहानुभूति बरतना शुरू कर दिया था।
वह शीघ्र ही नये न्यायालय में एक कर-निर्धारक बना व फिर शहतूत उगाने जैसी लताओं के विकास से सम्बन्धित पौधालय का अधीक्षक बन गया। उसका भाई एक चर्च का पादरी होने के अतिरिक्त समुद्रतट पर भेड़ों व फलदार लताओं का स्वामी था और उसकी पत्नी का दूसरा धर्मभाई पुजारी था। वह एक व्यापारी का पुत्र था और बुद्धिमान् होने के साथ-साथ सांसारिक मामलों में व्यावहारिक भी था।
सुन्दर पत्नी के आकर्षण तथा यौवन के उन्माद ने उसको तीस से चालीस वर्ष की आयु के वीच पांच पुत्रों व तीन पुत्रियों का पिता बना दिया। विद्रोह व गृह-कलह की परम्पराओं को मानने वाले द्वीपवासियों की धारणा के अनुसार उसकी अधिक सन्तानें होना उचित ही था। आठ बच्चों का पालन-पोषण करना बहुत कठिन कार्य होने से बच्चे अपने माता-पिता को बार-बार धन के अभाव के बारे में बातें करते हुए सुनते थे। कुछ समय बाद उसे आर्थिक समस्या का निदान सूझ गया। अपने दस व ग्यारह वर्ष की उम्र के दो बड़े पुत्रों के साथ वह फ्रांस में टाउलन से वरसैलीज़ तक नाव चलाने लगा।
वह कार्सिका में मार्शल की सिफ़ारिश पाने में सफल हो जाता है, जिसके फलस्वरूप उसे पेरिस स्थित हैरल्ड कॉलेज द्वारा दी जाने वाली इटली की कुलीनता-सूचक उपाधि 'बोनापार्ट' प्रदान की जाती है। राजा लुई लगातार दस दर्षों तक राष्ट्र के प्रति वफ़ादार रहने वाले कार्सिका के इस अधिकारी को दो हज़ार फ्रैंक का पुरस्कार देता है। उसके दो पुत्रों व एक पुत्री को नोबल स्कूल द्वारा छात्रवृत्तियां दी जाती रहीं। आगे चलकर एक पुत्र पादरी बना तथा दूसरा एक अधिकारी।