पहली बार तलवार धारण करते हुए नवयुवक कहता है कि तलवार की धातु (लोहा) अवश्य फ्रांस की है, परन्तु इसकी धार मेरी अपनी है। सोलह वर्ष की आयु में वह उप-सेनापति बना तथा अपनी मृत्यु से पहले उसने कई बार शौर्य व साहस के प्रदर्शन के फलस्वरूप मिलने वाले अलकरणों व पदकों से अपनी वर्दी को सुशोभित किया। उसने सेनापति के पद की परीक्षा कैडेट्स स्कूल पेरिस से एक साल की अल्प अवधि में उत्तीर्ण कर ली। इस अवधि में उसने पुस्तकों के अध्ययन करने में ठीक वैसी ही तल्लीनता दिखायी, जैसी वह ब्राइनी के विद्यालय में दिखाता था। स्पार्टा की रुचि वाला यह युवक फ्रासीसियों द्वारा दिखावे पर किये जाने वाले खर्च को निरर्थक मानता था। वह हमेशा ऐसे खर्च से दूर रहा। वह अपनी आयु व स्थिति के किसी भी अन्य नवयुवक की अपेक्षा प्रकृति से अधिक जुड़ा हुआ था। इसे वह सैनिक के लिए एक आवश्यक गुण मानता था। उसका मानना था कि सैनिक के लिए विलासी जीवन कदापि उपयुक्त नहीं है। अपनी निर्धनता को ध्यान में रखकर वह जमीन पर सोता था। पिता की मृत्यु के बाद उसका अपने परिवार के प्रति स्नेह बढ़ गया। यही कारण है कि किशोर होने पर भी वह अपनी मा की सहायता के लिए धन की बचत करने लगा।
परीक्षा के पश्चात् उसे अच्छा स्थान मिला। उसके उच्चाधिकारियों ने उसके सम्बन्ध में लिखा : "वह एक ऐसा गम्भीर तथा बुद्धिमान् बालक है, जो गपशप के स्थान पर अध्ययन को अधिक महत्त्व देता है तथा अच्छे लेखकों के विचारों को जानने में उसकी रुचि है। वह स्वभाव से गम्भीर, एकान्तप्रिय, भावुक, सहनशील तथा अत्यधिक स्वाभिमानी है। अल्पभाषी होने पर भी उसके उत्तर निर्णायक व प्रासंगिक होते हैं। उसकी तर्कशक्ति सराहनीय है। वह आत्मसम्मान के प्रति सतर्क एव अत्यधिक महत्त्वाकाक्षी है।"
नयी वर्दी पहने ठिगने क़द के इस उप-सेनानायक को निर्धनता के कारण वेलेंस स्थित अपनी रेजीमेण्ट तक पहुंचने का आधा रास्ता पैदल जाना पड़ा। उसके युवा मन में प्राय बुद्धिहीनों व मक्कारों द्वारा अपने साथियों के प्रति घृणा व उनके शोषण को समाप्त करने के, निर्धनता की बेड़ियों से स्वयं को मुक्त करने के तथा दूसरों पर शासन करने की योग्यता प्राप्त करने के विचार उठ रहे थे। वह साधन और साध्य दोनों को एक ही सिक्के के दो पहलू मानता था। उसने अपने मन में ठान रखा था कि मातृभूमि पर होने वाले आक्रमण के विरुद्ध युद्ध का नेतृत्व करके उसे स्वयं ही कार्सिका का सम्राट बनना है।
सैन्य छावनी वाले इस शहर में जीवन कितना नीरस है। एक नवयुवक को नृत्य आदि सीखना चाहिए तथा समाज के कलात्मक सुखों का आनन्द लेना चाहिए। वह ऐसा करने में प्रवृत्त भी होता है, परन्तु जल्दी ही इस प्रयास को छोड़ देता है, क्योंकि इससे उसकी निर्धनता उघड़ती है, जो उसके स्वाभिमान को स्वीकार नहीं। उसका स्वाभिमान उसकी निर्धनता को छिपाना चाहता है। कुलीन लोगों, वकीलों व दुकानदारों के साथ बात करते समय उसका व्यवहार ऐसा है कि उसे कोई भी एक विशिष्ट व्यक्ति ही समझेगा, क्योंकि पेरिस के अमीरज़ादे भी ऐसी भाषा नहीं बोल सकते, जैसी शिष्ट भाषा वह बोलता था। वह सोचने लगा कि क्या उसका ऐसा सोचना-समझना सही है? क्या मध्यवर्ग के युवक वाल्टेयर व माण्टेग्यू तथा रायनल के विचारों को अपना सकते हैं? क्या इन भविष्यवक्ताओं की कल्पना शीघ्र ही वास्तविकता बन सकती है? क्या क्रान्ति इतनी द्रुतगति से आ सकती है?
पुस्तकों के द्वारा वह विदेशी दार्शनिकों तक पहुंच जाता है। उसके लिए अध्ययन करना सास लेने जैसा सहज कार्य है। पुस्तकालय की सभी पुस्तकें पढ़ लेने के उपरान्त वह एक या दो फ्रैंक खर्च करके नयी पुस्तक खरीदता है। यह सच है कि नवयुवक जलपानगृह में भी जाता है, लेकिन उसे किसी कमरे में बिलियर्ड का आनन्द लेना पसन्द नहीं। वह गम्भीर स्वभाव का चिन्तनशील युवक है।
वह आत्मविश्लेषण करते हुए अनुभव करता है कि उसकी ऐसी भावुकता किस काम की? उसे तो अपनी पीढ़ी के प्रत्येक नवयुवक की तरह राज्य तथा समाज की गतिविधियों में रुचि लेनी चाहिए, अतः वह बिलियर्ड खेलने के कमरे से हटकर दूसरे कमरे के घुटनयुक्त वातावरण में जा बैठता है। ड्यूटी के खाली समय में, जब उसके साथी खेल-कूद या महिलाओं के साथ गपशप में डूब जाते थे, वह भविष्य में काम आने वाली विभिन्न पुस्तकें पढ़ा करता है। इसकी रुचि के विषय थे 'तोपें-सिद्धान्त व इतिहास', 'हमला करने की कला', 'प्लेटो का गणतन्त्र', 'वर्सिया का सविधान', 'एथेन्स के वासी', 'स्पार्टा राज्य', 'इंग्लैण्ड का इतिहास', 'फ्रेडरिक महान् के अभियान', 'फ्रांस की अर्थव्यवस्था', 'टारटार एवं तुर्क-तौर-तरीके व रीति-रिवाज तथा उनके देश की भौगोलिक स्थिति', 'मिस्र का इतिहास तथा कारथेज का इतिहास', 'भारत का विवरण', 'वर्तमान फ्रांस में अंगरेजों की स्थिति', 'मिराबीऊ, बफ़न तथा मैकियावली', 'स्विट्जरलैण्ड का इतिहास एवं संविधान', 'चीन, भारत व इनके राज्यों का इतिहास तथा सविधान', 'अमीरतन्त्र का इतिहास तथा अमीरों के कुकृत्यों की गाथा', 'नक्षत्र-विज्ञान, भू-विज्ञान तथा मौसम विज्ञान', 'जनसख्या वृद्धि की विधिया', 'नैतिकता की साख्यिकी' आदि। वह इन विषयों की पुस्तकें पूरे मनोयोग से पढ़ा करता था।
उसने केवल अपनी पुस्तकों के पृष्ठों को ही नहीं पलटा, बल्कि उनका गहन अध्ययन भी किया। इस समय नेपोलियन के अस्पष्ट हस्तलेख में विविध टिप्पणियों वाला एक सकलन उपलब्ध है, जिसकी विषय-वस्तु को पुन मुद्रित करके चार सौ पृष्ठों का एक सकलन तैयार किया गया है। इस संकलन में हमें सैक्सन राज्य का मानचित्र, तीन शताब्दियों के राजाओं की वशावली, प्राचीन क्रीटे में दलित जातियों के विविध रूप-भेद, सत्ताईस कैलिफ़ शासकों की शौर्य गाथाओं के अतिरिक्त उनके शासन करने की अवधि तथा उनकी पत्नियों के आचरण का विवरण भी मिलता है।
इसमें विशेष रूप से मिस्र तथा भारत के अनेक दर्शनीय व उल्लेखनीय स्थलों का विवरण भी उपलब्ध है। इसमें विशाल पिरामिडों व बहमन पन्थ का भी विस्तृत विवरण है। वह रायनल की पुस्तक के इस अवतरण को उद्धृत करता है 'मिस्र की दो समुद्रों के मध्य स्थिति वस्तुतः पूर्व व पश्चिम के मध्य की स्थिति थी। इस रूप में इसके विश्व का प्रमुख व्यापार केन्द्र होने के कारण एलेक्जेण्डर महान् समूचे विश्व को जीतकर मिस्र को अपनी राजधानी बनाना चाहता था, क्योंकि इस विश्वविजेता ने यह अनुभव किया कि अफ्रीका, एशिया व यूरोप के बीच केन्द्र-बिन्दु बने हुए मिस्र का उपयोग करके, वह जीते गये दूसरे सभी देशों पर यहां से शासन कर सकता था। तीस वर्ष बाद भी उसे ये शब्द याद थे और वह इन्हें प्रायः दोहराया करता था।
छोटी अवस्था में ही उसने तोप लगाना, आत्महत्या, सम्राट् के प्राधिकार, पुरुषों की असमानता आदि विषयों पर एक दर्जन से अधिक निबन्ध व विवरण लिख डाले। इन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण था-कार्सिका के समस्त विवरण को उपलब्ध कराना। उन दिनों का सर्वाधिक प्रसिद्ध लेखक रूसो भी नेपोलियन के यथार्थवाद से मात खा गया। इस युवा अधिकारी ने मानव जाति की उत्पत्ति से सम्बन्धित रूसो के विचारों को अतिविशिष्ट ढंग से प्रस्तुत किया, परन्तु उसने इस टिप्पणी के साथ उसके महत्त्व को श्रीहीन कर दिया "मैं इसके एक शब्द पर भी विश्वास नहीं करता।" इसके आगे दो पृष्ठों में उसने अपने तर्क प्रस्तुत किये हैं। उसकी मान्यता है कि मानव जाति प्रारम्भसे ही न तो एकान्तप्रिय है और न ही घुमन्तू है। वह स्वभाव से सम्पर्कप्रिय है, परन्तु कुछ गिने-चुने स्वार्थी लोग अलगाववादी होते हैं तथा वे ही अपनी मान्यता को लोकमान्यता का रूप दे देते हैं। पृथ्वी पर जनसंख्या के सघन होने पर अलगाव का विचार हृदय में होता है, जिसे गम्भीर स्वभाव के महत्त्वाकांक्षी लोग हवा देते हैं। महिलाओं पर अत्याचार करने वाले दुष्ट प्रवृत्ति के बहुरूपिए ही नवयुवकों की स्वच्छन्दता पर नियन्त्रण लगाते हैं तथा सभी कार्यों को अपने ढंग से व्यवस्थित करते हैं।
क्या हम अंधेरी गुफा में कैद इस नवयुवक को अपनी बेड़िया खनखनाते नहीं सुनते? क्या उसके लेखों से इन बेड़ियों की झनझनाहट का स्वर स्पष्ट सुनाई नहीं देता? क्या हमें इन लेखों में समाज की मर्यादाओं को तोड़ने वाले कपटी व्यक्तियों के विरुद्ध, उसके मन में व्याप्त घृणा व आक्रोश को व्यक्त करने वाले विद्रोही लेखक की छवि नहीं दिखाई देती?
फ्रासीसी समुदाय से अलग-थलग इस युवक की दृष्टि अपनी मातृभूमि पर लगी रहती है। अपनी मातृभूमि कार्सिका की नयी समाज-व्यवस्था के सम्बन्ध में वह खुलकर चर्चा करता है। उसने एक निबन्ध में लिखा है "यह कहना कितना गलत है कि अपहरणकारी के शासन को तोड़ना दैवी नियम के विरुद्ध है। यदि ऐसा सत्य होता, तो वध करके सिंहासन का हथियाने वाले व खाली सिंहासन पर कब्ज़ा करनेवाले प्रत्येक आततायी से ईश्वर पराजित की रक्षा करता। जबकि वास्तविकता
यह है कि पराजित का सिर उड़ा दिया जाता है। जब ऐसा होता है, तो अपहरणकारी को अपने राज्य से खदेड़ने के अलावा उस राज्य का हित अधिकार कैसा होता है? कार्सिका के नागरिक ऐसे कायर नहीं हैं कि अपने अधिकारों को न समझते हों? जिस प्रकार हमने जेनेवा की गुलामी के जुए को तोड़ डाला, ठीक उसी प्रकार हम फ्रास के जुए को भी तोड़ सकते हैं।
ठीक इसी समय उच्चकोटि के शीर्षस्थ विद्वानों ने नेपोलियन को प्रोत्साहित किया। नेपोलियन को कार्सिका पर उपन्यास व कुछ लघु कथाए लिखने को प्रेरित किया। ये सभी फ्रांस सरकार के कोपभाजन बने, परन्तु इनमें से किसी को भी न तो दण्डित किया गया और न ही किसी लेख पर रोक लगायी जा सकी। वह तीव्र इच्छा तथा भावुकता से परिपूर्ण अपनी मनःस्थिति को नियन्त्रित करने का प्रयास कर रहा था। विचार ससार पर शासन तो कर सकते हैं, परन्तु नियम या व्यवस्था ही वह अस्त्र है, जिससे विचारों को व्यावहारिकता प्राप्त होती है। "अपने कार्य-जैसी न त्यागी जा सकने वाली कोई भी दूसरी चीज़ नहीं है। मैं अपने वस्त्र सप्ताह में केवल एक बार बदलता हूं। बीमार होने के कारण मैं बहुत कम सो पाता हूं। मैं दिन में केवल एक बार भोजन करता हूं, परन्तु इन सबका अर्थ यह कदापि नहीं कि मैं अपने विचारों को बदल दू।"
वह युद्ध में काम आने वाले गोला-बारूद व तोप का अध्ययन हमेशा अकों में हिसाब लगाकर करता था, इसीलिए उसे जन्मजात गणितज्ञ कहा जाता है। अपने विचारों को लिपिबद्ध करने के साथ ही वह कार्सिका में उन उपयुक्त स्थानों के पते-ठिकाने व उनका भूगोल भी तैयार करता था, जहां युद्ध के समय खाइया खोदी जा सकती थीं, गोला-बारूद छिपाया जा सकता था या सेना को सुरक्षित रखा जा सकता था। भावुकता व देशप्रेम की कविताओं के कारण जहां वह सम्पूर्ण कार्सिका में छाया हुआ था, वहीं दूसरी ओर वह नक्शे बनाते समय उन स्थानों पर गुणनचिह्न लगाता जाता था, जहां तोपें लगायी जानी थीं। उसके कमरे में चारों ओर नक़्शे ही नक्शे टगे रहते थे और वह जलपान गृहों में होने वाली चर्चाओं का पुन विश्लेषण करता रहता था। वेस्टमिंसटर में होने वाली ससदीय कार्यवाहियों की सभी रिपोर्ट भाषणों की प्रतिया भी लेता था तथा कार्सिका के सीमावर्ती भागों के चित्र बनाता था। उसके अपनी टिप्पणियोंवाली रिपोर्टों और पुस्तिकाओं के अन्त में लिखा रहता था अटलाण्टिक महासागर में स्थित छोटा प्रायद्वीप सेण्ट हेलेना एक अगरेजी उपनिवेश है।
इसी दौरान उसे अपनी मां का एक पत्र मिला, जिसमें उसके शक्तिशाली एवं सरक्षक पिता के देहान्त की सूचना थी। घर के मुखिया के मर जाने से शहतूत का बगीचा भी अब आय का साधन नहीं रह गया था। जोसेफ़ का कोई उद्यम लाभप्रद नहीं था, अत वह अपने दूसरे बेटे से सहायता की मांग कर रही थी। मा के इस आग्रह पर वह तुरन्त अपने घर जा पहुंचा। क्या यहा हम उसे एक भावुक हृदय व्यक्ति मान लें? एक ऐसा युवक, जो अपनी योजनाओं तथा स्वप्नों को त्याग रहा था। इस शका के समाधान के लिए उसके द्वारा उसकी डायरी में लिखे गये निम्नलिखित कथन को पढ़ना उचित रहेगा ।
"लोगों की भीड़ से घिरा रहने पर भी सर्वथा एकाकी विचारवाला, मैं, अपने घर लौट रहा हू। मैं जानता हू कि मैं अकेला अपनी मा के स्वप्नों और उसके हृदय की व्याकुलता को दूर कर सकता हूं। क्या अब मेरे गम्भीर विचारों की मृत्यु हो जानी चाहिए? मैं जीवन की दहलीज़ पर खड़ा हू तथा चिर-काल तक जीवित रहने की आशा करता हू। पिछले छः या सात वर्षों से मैं अपने देश से बहुत दूर रहा। यह कितने हर्ष की बात है कि मैं अपने लोगों को एक बार पुनः देखूंगा। ऐसी दशा में मेरा पलायन कितना बुरा है? दुर्भाग्य मेरे पैरों में बेड़िया डाल रहा है और मुझे लगता है कि अब कुछ भी नहीं बचा। अतः मैं सोचता हूं कि ऐसा जीवन क्यों जीना चाहिए, जिसमें सब कुछ दुःखमय है? मातृभूमि के सभी लोग पराधीनता की ज़जीरों में जकड़े हुए हैं तथा अपने पर प्रहार करने वाले हाथों को चूमने के लिए विवश हैं। मैं मातृभूमि के प्रति अटल श्रद्धा रखकर अपने जीवन को देश के लिए समर्पित क्यों न करू? अपने अस्त्र-शस्त्रों को ही पत्नी मानकर व उसके गले में बांहें डालकर अपनी रातों को रगीन क्यों न बनाऊ? यही आचरण मुझे सच्चा सुख व प्यार दे सकता है। स्वतन्त्रता के बिना खुशियों का समय स्वप्नों की भांति निरर्थक है। फ्रांसीसियों ने हमें अपने आप से अलग कर दिया है, तभी तो हम अपने नैतिक आदर्शों को भूल गये हैं। मुझे देश से प्यार है, फिर भी इसे आज़ाद कराने की शक्ति मुझमें नहीं है। इस ससार को छोड देने के लिए क्या यह पर्याप्त कारण नहीं है? मैं इस ससार से घृणा करता हू। हमें अपनी स्वतन्त्रता के बीच खड़ी निजी स्वार्थ की दीवार को तोड़ना है। मुझे तुरन्त क्रियाशील होना चाहिए। मेरे लिए जीवन भार-स्वरूप हो गया है। मेरे जीवन में क्षणमात्र का भी सुख नहीं है। जब मैं अपने तरीके से नहीं जी सकता, तो मेरे लिए मुख के विचारों का कोई अर्थ ही नहीं है।"