Nepolian Bonapart - 3 in Hindi Biography by Anarchy Short Story books and stories PDF | नेपोलियन बोनापार्ट - विश्वविख्यात योद्धा एवं राजनीतिज्ञ - भाग 3

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नेपोलियन बोनापार्ट - विश्वविख्यात योद्धा एवं राजनीतिज्ञ - भाग 3

स्वभाव से ही मौन रहनेवाला, छोटे क़द का, संकोची व एकान्तप्रिय बालक बगीचे के कोने में पढ़ने के लिए बैठा है। ब्राईनी स्थित स्कूल के बगीचे में यह उसका अपना भू-खण्ड है तथा उसने इसके चारों ओर एक दीवार बनवायी है। चारदीवारी से घिरे भू-क्षेत्र का केवल एक तिहाई भाग उसका अपना है। इस प्रकार उसने अपने पड़ोसियों के भू-खण्डों को भी एक ओर से घेर रखा है। वे उसमें आते भी हैं, परन्तु उसकी निजी स्वतन्त्रता में खलल डालनेवाले लोगों को कष्ट ही उठाना पड़ता है। वह चारदीवारी के भीतर प्रवेश करने वालों पर क्रोध से झपटता है। कुछ दिन पहले जब बच्चे पटाखे छोड़ रहे थे, तो आंशिक रूप से जल गये। उसके दो सहपाठी, इसमें आश्रय लेने के लिए दौड़ते हुए आये, तो इसने उन्हें खुरपी से मार-मारकर भगा दिया।
     इस मामले में दण्ड देने से भी वह नहीं सुधरेगा-यह सोचकर अध्यापक अपना सिर झटककर रह गये और उसे कोई दण्ड नहीं मिला।
       एक अध्यापक का तो कहना था कि यह बच्चा तो वज्र का बना हुआ है तथा इसके भीतर ज्वालामुखी धधक रहा है।
         उसने बगीचे का एक भाग छीन अवश्य रखा था, परन्तु उसके इस छोटे-से साम्राज्य को कोई छू भी नहीं सकता था। उसके मन में स्वतन्त्रता की उत्कट भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। वह अपने पिता को लिखता है- "मैं एक पिछड़ा शिक्षाशास्त्री बनने के स्थान पर कारखाने में प्रगतिशील कर्मचारी बनना चाहूंगा।"
        क्या उसने ये विचार प्लूतार्क से पाये थे? निश्चित रूप से उसका साहसपूर्ण जीवन प्लूतार्क के लेख में चित्रित महान् व्यक्तियों के जीवन के समान है। विशेष कर वह रोम के शीर्ष-पुरुषों जैसा व्यक्तित्व पाने का इच्छुक था। वह ऐसा बनने का स्वप्न लगातार देख रहा था। वह इतना गम्भीर था कि किसी ने इस बच्चे को कभी हंसते हुए नहीं देखा था।
        सहपाठियों में उसकी छवि अर्धशैतान की या अधिक-से-अधिक एक अज्ञात विदेशी की-सी थी। उसको फ्रेंच का शायद ही कोई शब्द आता हो, और न ही शत्रु के देश की भाषा को सीखने में उसकी कोई रुचि थी। उस पर 'नाम बड़े और दर्शन छोटे' वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती थी। उसकी जेब में एक पैसा नहीं था, फिर भी वह अपने कुलीन होने का दावा करता था। फ्रांस के कुलीन लड़के उसका मज़ाक उड़ाते थे, परन्तु वह कार्सिका के अमीरों के उपहास की परवाह ही कहां करता था? उसकी सोच थी कि 'यदि कार्सिया के निवासी इतने बहादुर हैं, तो वे हमारी अविजित सेना के हाथों क्यों मारे जा रहे हैं?'
       क्रोध से फुंकारता हुआ नवयुवक दावा करता है: "हमारा एक सिपाही दस फ्रांसीसियों को हरा सकता है। मेरे जवान होने तक प्रतीक्षा करो। मैं फ्रांसीसियों को इस देश से भगा दूंगा।"
       "तुम फ्रांसीसी जो भी हो, परन्तु तुम्हारे पिता एक साधारण सिपाही से अधिक कुछ नहीं हैं।"
      अपने को चिढ़ाने वालों को चुनौती देते हुए यह बालक क्रोध से तमतमा उठता है; क्योंकि उसके हृदय के भीतर भावी नेपोलियन छिपा है। वह अपने पिता को लिखता है : "मैं इन तुच्छ विदेशी लड़कों के व्यंग्य और उपहास को सहन करते-करते ऊब चुका हूं तथा अपनी निर्धनता को बताने में हीनता अनुभव करता हूं। केवल धन के बल पर अपने को कुलीन मानने वाले, अन्यथा बौद्धिकता की दृष्टि से बौने, इन लोगों के सामने मेरा स्वयं को विनम्र बनाये रखना ज़रूरी है? इस धरती का यही नियम है कि निर्धनों को धनियों से सदैव दूर ही रहना चाहिए।"
        वह पांच वर्ष तक वहां रहता है। इस अवधि में घटी प्रत्येक छोटी-बड़ी घटना उसके साथियों के प्रति उसकी घृणा के अनुपात में उसके विद्रोह को भड़काती है। उसके अध्यापक और सभी पादरी उसके प्रति अच्छी धारणा रखते थे। गणित, इतिहास तथा भूगोल जैसे विषयों के सिवा किसी अन्य विषय में न उसकी रुचि थी और न ही गति थी। फ्रांस के नागरिकों के प्रति उसके मन में अत्यन्त घृणा के भाव थे। उसे उनके प्रत्येक कार्य से घृणा थी।
        वह सदा अपनी मातृभूमि के सम्बन्ध में सोचा करता था। फ्रांस की सरकार के अधीन अपने पिता को नौकरी करता देख वह बहुत चिढ़ता था। उसने अपने मन में एक निश्चय किया हुआ था कि आज जिस राजा की आर्थिक सहायता से वह अपनी पढ़ाई कर रहा है, अर्जित ज्ञान का उपयोग इसी राजा के विरुद्ध करेगा। उसके मन में एक दृढ़संकल्प यह था कि वह एक दिन कार्सिका को स्वतन्त्र करा लेगा। चौदह वर्ष की आयु में ही वह अपनी मातृभूमि से सम्बन्धित पुस्तकें पढ़ने में तल्लीन रहता था। उसकी सोच थी कि मातृभूमि का नया इतिहास बनाने से पूर्व इतिहास की जानकारी बहुत जरूरी है। वह कार्सिका की स्वतन्त्रता के बारे में प्रशिया के महान् शासक द्वारा अपनी मृत्यु से कुछ समय पूर्व लिखे गये लेखों के अतिरिक्त वाल्टेयर तथा रूसो जैसे विद्वानों की पुस्तकों का अध्ययन करने में तल्लीन रहता था।
      ऐसे क्रान्तिप्रिय, सतर्क, जिज्ञासु, विद्रोही व बड़े-बड़े कार्यों की योजना बनाने वाले बालक के क्या बनने की सम्भावना हो सकती थी? गहराई से चिन्तन करने वाले इस बालक की जानकारी अपनी आयु के बालकों की जानकारी से कहीं अधिक थी। जब उसका बड़ा भाई पादरी के पद को छोड़कर सेना में भर्ती होना चाहता था, तो इस नवयुवक ने उसके बारे में लिखा: "(1) उसमें युद्ध के मैदान की मुसीबतें झेलने का साहस नहीं है। वह एक अच्छा अभियन्ता (इंजीनियर) बन सकता है; क्योंकि कुशाग्र बुद्धि है। वह सुन्दर है तथा इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बना सकता है, परन्तु क्या युद्ध के मैदान में भी इन गुणों की कोई उपयोगिता है? (2) उसके चिन्तन में अब परिवर्तन नहीं हो सकता। सेना में भर्ती होने से उसे धनी होने का सुख मिलना तो सम्भव है, परन्तु इससे परिवार को लाभ मिलेगा? (3) वह सेना की किस शाखा में भर्ती होगा? क्या 'नेवी' में? (क) उसकी समझ में गणित बिल्कुल नहीं आता तथा (ब) उसका स्वास्थ्य समुद्री जीवन को नहीं झेल सकेगा। यदि वह पैदल सैन्य अधिकारी बनेगा, तो उसमें आवश्यक कार्य को करने की समझ नहीं है।" भाई में किन गुणों का अभाव है, अपने को पूर्ण मानने वाले पन्द्रह वर्ष के इस नवयुवक के अपने भाई के प्रति ये विचार सचमुच उसकी कुशाग्र बुद्धि के सूचक थे। वास्तव में उसके बड़े भाई जोसेफ़ में यही गुण-दोष मौजूद थे, जिसका वर्णन इस बालक ने किया था।
        नेपोलियन भी उसी बाप का बेटा था, परन्तु उसमें उत्तराधिकार में प्राप्त साहस, महत्त्वाकांक्षा एवं कार्यक्षमता जैसे गुण कूट-कूटकर भरे हुए थे। उसने अपनी मां से उत्तराधिकार में स्वाभिमान, साहस तथा स्पष्टता जैसे गुण प्राप्त किये थे। इस प्रकार उसने दोनों-माता-पिता से दृढ़ता एवं आत्मविश्वास के गुण अर्जित किये थे।