मैंने लैफ्टिनेण्ट बोनापार्ट को एक नये सिद्धान्त को सीखकर घर लौटने वाला मात्र धर्मोपदेशक समझा है, जबकि वास्तव में वह स्वतन्त्रता, समानता व बन्धुत्व का विचार देने वाला अवतारी पुरुष था। वह आत्म-अनुशासित तथा स्वेच्छा से पर्वतारोहण जैसे कठिन कार्यों को निभाने वाला ऐसा पुरुष था, जो दुर्भाग्यवश चर्च और कुलीनता के नाम पर जनता पर शासन करने वाले दमनकारी द्वारा बीस वर्षों तक कुचला जाता रहा।
यदि राज्य की कृपा से सुखभोगी पद संभालने वाला व कल का युवक और आज का सैन्य अधिकारी ऐसे सुख को त्याग देता है, तो इससे उसके महत्त्व में कौन-से चार चाद लग जायेंगे? क्या राज्य उसकी बपौती अथवा निजी सम्पत्ति है? जनता अपना शासन स्वयं चलाने के लिए स्वतन्त्र है। यदि निद्रा से जागकर नया फ्रास अपने को स्वायत्त होने की घोषणा कर सकता है, तो लम्बे समय से पुराने फ्रांस की दासता के बन्धनों में जकड़े हुए कार्सिका को भी स्वायत्त होने का पूरा अधिकार क्यों नहीं है? नागरिको, वह समय अब आ चुका है, अपने शस्त्र धारण करो। प्रत्येक को नये युग की प्रतीक लाल पगड़ी सिर पर धारण करनी चाहिए। पेरिस की तरह हमें राष्ट्रीय दल तैयार करना चाहिए तथा शक्ति के साधन जुटाकर राजा की सेनाओं का सामना करना चाहिए। मैं युद्ध-विद्या में विशेषज्ञ हू और तुम्हारा नेतृत्व करने को उद्यत हू।
अजाकियो की गलियों से तेज़ गति से चलने वाले युवा बोनापार्ट की देहयष्टि शिथिल, व्यक्तित्व कान्तिहीन व चेहरा निस्तेज था, परन्तु उसकी जिह्वा आग उगल रही थी। उसका प्रत्येक शब्द ओजस्वी व क्रान्तिकारी था। इस छोटे-से शहर में प्रत्येक व्यक्ति उससे परिचित है तथा उसका अनुसरण करनेवाले व्यक्तियों की सख्या लगातार बढ़ रही है। इनमें से कुछ स्वतन्त्रता पाने के इच्छुक हैं, तो अन्य लोग किसी प्रकार का परिवर्तन लाने के लिए तत्पर हैं। वह तीव्र आशा जगाने वाला मनुष्य प्रतीत होता है। उसकी छवि जनता के सच्चे प्रतिनिधि की है। इस प्रतिकूल वातावरण में व कलहकारी परिवारों (जैसा उसने बाद में कहा है) में रहने वाला व्यक्ति मानव-हृदय का अध्ययन करना सीख चुका है।
परन्तु उसे धक्का लगता है। पर्वतों से सेना नहीं पहुंचती और नियमित सेना को देखते ही क्रान्तिकारी भाग खड़े होते हैं तथा कुछ ही घण्टों में, गिरफ्तार न किये जाने पर भी, अपने हथियार फेंक देते हैं। ऐसे लोगों द्वारा स्वतन्त्रता-प्राप्ति की आशा कोरी भ्रान्ति है। यदि शहीद न होकर हारने वाला सिपाही एक लोकप्रिय नेता बनने का स्वप्न देखता है, तो वह सचमुच एक भ्रमित व्यक्ति है। उसकी स्थिति केवल चीखने व उत्तेजित होने तक सीमित रहती है। कारण जो भी हो, नेपोलियन का रक्त खौलता है और वह सोचता है कि उसे अपने को शान्त रखने के लिए कुछ-न-कुछ करना चाहिए। सबसे पहले पेरिस की राष्ट्रीय एसेम्बली में एक शिकायत प्रस्तुत हुई, जो स्वतन्त्रता का एक नया संकेत-सूत्र थी, परन्तु इसके बाद शिकायतों व शपथपत्रों की निरन्तरता ने स्थिति को नया रूप दे दिया। प्रायः सभी नागरिक राजसेवकों सहित प्रायद्वीप के फासी के फन्दे पर झूलने के लिए तैयार हो गये। फलतः एक समिति उस प्रलेख पर हस्ताक्षर करने को तुरन्त ही सहमत हो गयी।
पेरिस से उत्तर की प्रतीक्षा में कई सप्ताह बीत जाते हैं? अन्त में वहा से दूत आता है। मिराबीऊ के प्रस्ताव के अनुसार यह प्रायद्वीप फ्रास राज्य का अग है तथा अन्य प्रान्तों के समान यहां भी फ्रांस का क़ानून लागू होगा। पाउली तथा स्वतन्त्रता के सभी पक्षधर घर लौटने के लिए स्वतन्त्र हैं। लैफ्टिनेण्ट आश्चर्यचकित है। मात्र एक प्रान्त का दर्जा? इस नये विचार के बावजूद कार्सिकानिवासी पुनः फ्रास सरकार के अधीन बने रहेंगे। स्वतन्त्रता का यह अद्भुत रूप, जिसमें कैकेडूल के नियमानुसार ही अधिकारियों द्वारा यह क्षेत्र शासित रहेगा, जहा पेरिस की डिक्री (आदेश) को आशीर्वाद समझा जायेगा। बोनापार्ट इस बन्धन के विरुद्ध अपनी योजना तैयार करता है। वह अपने प्रायद्वीप के नागरिकों के लिए क्रान्तिकारी घोषणापत्र प्रस्तुत करता है, राजनीतिक आन्दोलन में उनका समर्थन मागता है तथा शहर की परिषद की सदस्यता के लिए अपने भाई का चुनाव प्रचार करता है। इसी बीच वह कार्सिका के इतिहास पर अपना कार्य जारी रखता है तथा अपनी मा की रुचि को अपने शब्दों में वाणी प्रदान करता है।
बोनापार्ट स्वय से प्रश्न करता है कि क्या वह महान् पाउली बन सकता है? उसके युवा मन का उत्साह बीस वर्ष के देश-निष्कासन के बाद लोकप्रिय उद्घोषणाओं के बीच लौटता है। शुरू से ही उसकी बातें राजनीति से सम्बन्धित, अव्यवस्थित व आधारहीन हैं, फिर भी पाउली के राष्ट्रीय दल का नायक होने के कारण उसके शब्दों को सम्मान देना नेपोलियन के लिए आवश्यक था। इस युवा सैन्याधिकारी का पिता उसके जन्म से ठीक पहले कुछ समय तक अपने मुख्याधिकारी से कुछ समय तक निकटता से जुड़ा रहा था।
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कार्सिका के इस बालक को अनुभवी एवं ज्ञानवृद्ध पाउली के साथ बैठने व घुड़सवारी करने का अवसर मिला था। इस दौरान वह अनुभवी वृद्ध, बालक बोनापार्ट को सेना की व्यूह-रचना के साथ-साथ नये फ्रांस द्वारा प्रायद्वीप का बलात् अधिग्रहण करने की बातें बताया करता था। इन अवसरों पर पाउली ग़ौर से व उत्सुकता से बोनापार्ट के चेहरे को देखता था। वह केवल यह अनुभव करना चाहता था कि कार्सिका पर लेख लिखने वाला लेखक ऐसा कर भी सकेगा? बालक के मन तथा मस्तिष्क में शैतान घुसा हुआ था। वस्तुतः मनुष्य का मस्तिष्क विश्व का एकछत्र सम्राट बनने की छवि से आनन्दित होता है। उसके सिर को हिलाते हुए पाउली आश्चर्यजनक ढंग से कहता था-
"नेपोलियन, तुम्हारे बारे में कुछ भी नया नहीं है। तुम प्लूतार्क के युग से आये हो।"
अपने जीवन में पहली बार नेपोलियन ने अनुभव किया कि उसे किसी ने ठीक समझा है कि प्लूतार्क के रोमन नायक उसकी जिज्ञासाओं व प्रेरणाओं के सच्चे आधार बन सकते हैं। पाउली ने पहली बार बोनापार्ट में रोम के भावी नेता को देखा।
लम्बे समय तक एक ऐसा दौर रहा, जब उसका जीवन विलासिता की ओर बढ़ सकता था। अपने देश की हार पर तथा पाउली के उकसाने पर, घोषणापत्र तैयार करते समय उसने उसका शीर्षक दिया-मेरे अध्ययन का विषय- 'यिडिली में दूसरे वर्ष की 23 जनवरी! स्थिति में विकास अथवा रूढ़िवादिता या उदारता?' यद्यपि इस घोषणापत्र को जारी करने से पहले ही वह फ्रांस की सेना में भर्ती हो गया था, तथापि अनियमितता के फलस्वरूप बार-बार नवीकरण से अन्त में उसकी इच्छा मर गयी। वह सोचने लगा कि क्या उसने अपने दृढ़ निश्चय की बलि चढ़ा दी है? इससे उसका क्या प्रयोजन सिद्ध हुआ? उसे प्रायद्वीप में अब क्यों ठहरना चाहिए?