16 ----- बाजार की ये अनमोल किश्त ---- अंधेरा इसके बाद रोशनी... फिर अंधेरा। ऐसे ही जीवन चलता जाता हैं... कही भीड़ थी अब नहीं हैं। जानते हो जो लोग तुम्हे नफ़रत करते हैं, वो कभी भी तुम्हारा भगवान से बुरा माँग भी सकते हैं। बहुत कम लोग अच्छे होते हैं... जिनका कोई मतलब नहीं होता... ज़िन्दगी एक सड़क की तरा हैं.. ठिकाना समझ के मत बैठो, बना कर बैठो... जो करने आये हो करो ? रुको मत... चलो बस... चलते चलो बस।
सूद खाने वाले किसी को नहीं बख्शते.. चाये वो नाग से ही समझौते कर के भी उसे मार देंगे।
कहना चाहता हूँ, " रानी को। "
" जैसे तैसे भी संभाल ले, देव को... " हाँ उसके पास ही रहती हैं बेशक शादी नहीं भी हुई।
देव लिली के प्यार को किताब से निकाल जो वो लिखती थी, सिनेमा के पर्दे पे लाना चाहता था। रानी से बात हुई थी... पर कोई निर्देशक आगे नहीं आता था... कयोकि जो वो लिखती थी जो लिखा था, कोई प्रड़ूसर हाथ नहीं डालता था, हर कोई प्रॉफिट के माफिक था.. कोई घाटा नहीं खा सकता था...
कुछ पलो के बाद।
टेबल पे एक बोतल नयी खुल चुकी थी.. साथ मे थे मछी के पकोडे... प्याज़ बगैरा बगैरा। दो साथी थे पहले कभी इंडस्ट्री मे नहीं दिखे थे बिलकुल नये। वो फ्लेट मे ही थे। यहाँ देव था। देव को आपना शगिर्द मानते थे। हाँ पता चला उसके ही शहर दिल्ली के थे। नुकड़ नाटक से खप चुके थे। दुःखद कहानी सुना चूका था... देव उनको। वो उनको ही काम कह सकते थे.. देव ने कहा था, ये ज़िन्दगी जो कैमरो की हैं, बहुत घटिया किस्म की हैं। सब झूठ होता हैं " बनावटी पन जयादा। "
हाँ बहुतो को मैंने आसमान मे चमका दिया। उसमे तुम भी हो मेरे दोस्त... मै वैसे समझा रहा हूँ, असली दुनिया छोड़ कर बनावटी पख की और मत जयादा निकल जाना। इस बनावटी फूलो से जल्दी ऊब जाओगे। लोगों यहाँ परशावो से प्यार करते हैं, और आदमी की असली ज़िन्दगी से कोई मतलब नहीं। दरवाज़े पर एकाएक रानी थी ---- " वाह जी वाह, आप इसको छोड़ नहीं सकते। " देव ने उसके तेवर देखे। " किस लिए रानी भड़क रही हो, दिल्ली से मित्र आये हैं, यही काम करने... एक हैं रजिद्रर और दूसरा हैं हेमत डसुजा। जानते हो इनको काम दोनों को रानी ने ही देव के कहने पर दिया था।
अब खमोशी थी। टाइम घड़ी पे 10 pm वजा रही थी। किचन मे आज मुंशी नहीं रानी तरकारी अरबी और मसाला संग मछली बना रही थी। मुंशी जी हसते हुए कह रहे थे, " बेटी नमक नीचे पड़ा हैं वो सामने.... हाँ थोड़ा डालना " देव चक्र काटने आया था। " मुंशी जी ---- रानी को किचन मे देख ज़िन्दगी जैसे ठहर जाये ऐसा लगता हैं। " रानी भाभूक हो गयी थी। उसकी आखें नम थी।
आज भी वो साड़ी मे ही थी.... मुंशी दूध लेने के लिए निकल गया था, ख़डी रानी के पीछे देव आज करीब हो गया था, रानी जैसे उसकी बाहो मे मदहोश सी हो गयी थी। कितना प्यार था रानी का और देव का... दोनों की आखें बंद थी... मुंशी जी ने गले को साफ किया... जोर से।
जैसे वक़्त थम सा गया हो। देव ने उसकी दोनों बाहे छोड़ दी थी। और नीचा सा देखते हुए, दोनों ने झूठे से होकर देव ने तरकारी मे बड़े चमच से मारते हुए तैयार करने का भागीदारी की थी।
तभी मोबइल की गीत सुर लगी....
ये फोन रानी का था। रानी ने कहा " हेलो। "
आप कौन "
"माथुर लेब से बोल रहा हूँ, मिस रानी जी "
"बोलो जी " रानी ने कुछ लम्मा सास लिया।
" देव के ब्लड मे, पीलिया पाया गया हैं.. और लीवर की तीसरी सीढ़ी भी टूट चुकी हैं, मिस रानी... अगर उन्हों ने शराब नहीं छोड़ी, तो सब खत्म हो जायेगा... " डॉ माथुर ने उसे आगाह कर दिया था।
आज वो मुंशी जी को किचन का काम देकर ऊपर छत पर आ गयी थी। दुबारा से माथुर जी को फोन लगा कर पूछा था.... " हांजी आप कैसे उनका इलाज कर सकते हैं। "
"इलाज ---- आप ही कर सकती हैं, उन्हें शपथ खिलाये...
दुबारा से इंडस्ट्री मे लाये, नहीं तो अकेला पन शराबी कर देगा.. Plz.."
"खत्म कर देगा उसे, अकेलापन।" डॉ ने दुबारा से रपीट किया था उसे। दुःख बहुत हुआ था। रानी नीचे उतर रही थी। अगर सोच रही थी, वो उसे जहाँ ले आया हैं, तो आगे भी जोड़ देगा।
(चलदा नीरज शर्मा