बाजार ----15 वा धारावाहिक....
पता ही नहीं चला कब मौसम खराब हो गया था। कहने को कुछ भी हो, बम्बे का मौसम
आदमीजैसा ही हैं... मिनट मे क्रोध.. मिनट मे नरमी। जैसे बम्बे का गुस्सा एक बाप का हो....
वक़्त घड़ी का कब से रुका हुआ था। छोटी सुई बारा पर बड़ी पांच पर, सेकंड की सुई दस पर। आज आटोमेटीक सैल रानी ने घड़ी मे डाल दिए थे। उसने कहा मुंशी से ---" बाबा जिस घर की घड़ी ख़डी हो, कैसे चल सकती हैं जिंदगीया " रानी घड़ी ख़डी को बहुत ही बुरा मानती थी।
मुंशी ज़ी ने कहा ----" बेटी जिसको स्त्री संबाल ले घर को, फिर कोई झझट नहीं रहता। " रानी आपनी खुशमंदी सुन कर खुश हो गयी थी।
" मुंशी जी, अब मैं आपके साहब को रोकेगी... जो ये बहुत पीते हैं... पूरा प्यार दूगी... मुंशी जी " रानी ने स्तवाबना भरे लहजे से कहा।
रब तुझे हर ख़ुशी दें बच्चा... बस मन की यही एक तृष्णा हैं, कि देव को ये आँखो से सही हालत मे देख जाऊ। तभी फोन की घंटी वजी..... " हेलो "
" आप कौन बोल रहे हैं "
"मैं संगीत झुर बोल रहा हूँ...."उधर से घुटी सी आवाज थी।
"आप कौन हसीना जानी पसीना बोल रही हैं ----" बहुत ही मिसयूज प्रश्न पूछने वाले को रानी ने फोन ही बंद कर दिया था।
" पता नहीं कौन बेवकूफ था.... मुंशी जी -----किस किस के कैसे कैसे फोन आते हैं... बापरे... देव कहा हैं मुंशी जी। "
"---यही हैं रानी जी... सौ रहे होंगे। " समय गयारा का हो गया था।
" इतना लेट उठते हैं, आपके साहब...." काफ़ी का एक कप तैयार कर खुद रानी उनके बेडरूम को जाने को कदम बड़ाए थे।
यूँ ही कदम दरवाज़े पर जा कर थम गए। दरवाजे पर दस्तक दी। दरवाजा खोला ही था।
एकाएक वो काँप गयी। देव बेसुध पड़ा था बेड पर... पास मैं नीद की टेबलेट की सीसी खुली हुई थी।
काफ़ी का कप नीचे गिर गया... ठा की आवाज हुई... मुंशी भागा हुआ आया।
"कया हुआ मैडम " कहने से पहले ही एम्बुलेंस घर के आगे आ चुकी थी।
देव और रानी साथ मे मुंशी तीनो ही हॉस्पिटल मे थे.... देव को अमरजेंसी मे रखा गया था, डॉ ने कहा :- " हलात बेहतर हैं.. अगर कुछ टाइम और जयादा हो जाता तो शायद देव को बचाना मुश्किल हो जाता.... पत्रकार एक दम से पता नहीं किधर से कहा से हॉस्पिटल मे आ गए थे।
खबरें इस प्रकार लगी थी।
एक तो रीना के रिश्ते के बारे....
दूसरी वाहजात खबरें जो बस पूछो ही मत।
देव को अगले दिन छुट्टी मिल गयी थी, देखने वाली बात ये थी, कि बस रानी हद से भी जयादा फ़िक्रमद थी, देव को घुमाने के लिए उसे सागर किनारे ले जाती थी.... और खूब हसते थे। साड़ी के इलावा कभी उसने और कोई परिधान नहीं डाला था। कयोकि वो साड़ी मे अक्सर देव का प्यार बन कर रह जाना चाहती थी।
देव ने कहा था " रानी अगर तुम न होती मैं शायद गहरे सपनो मे कभी न जागता... " उसने आपनी बेवकूफी को रानी के आगे कहा था।
"----रानी फिर तुम आज साड़ी मे बहुत सुंदर लगती हो"
"शुक्रिया देव जी " रानी ने उतसकता से पूछा।
देव ने डलते सूरज को देखा, जो बादलो के ओझल हो गया था। " एक दिन सब इस तरा ही डूब जायेगे... एक नये जीवन की तलाश मे -----"रानी ने ' हूँ 'कहा, पर जैसे वो कुछ कहना चाह रही हो, कह ना पा रही थी। देव ने बिना भय के कहा ---" जो कहना चाहती हो कहो, रानी। "
"कया कहु ---अल्फाज़ गुम हैं, ये कितनी बार देव कितनो ने कहा होगा, कि तुम इतनी मत पियो, अंदरला कलाकार मार रहे हो, कयो ----?
देव जोर से हसा...
" किस के लिए न पियो... कोई नहीं हैं मेरा अब... मैं अकेला हूँ । "
"वाह --- बहुत खूब... हम तुम्हारे कुछ नहीं लगते... " फिर एकाएक उसने गहरी सास छोड़ी फिर बोली ----" इतनी मत पियो... देव.. " फिर रानी चुप कर गयी।
" -- शायद तुमाहरा दिल दुखा हो रानी " देव ने खासते हुए कहा।
"----दिल कहा हैं इस ना चीज के पास " रानी ने तोल मोल के बोला। " वो तो मै हार चुकी हूँ। "
"----किस पर हारा हैं, हम भी तो सुने.... " मुस्कराते हुए देव ने कहा।
"-----तुम पर हार गए हम, सच मे।" रानी ने एक एक अल्फाज पे जोर डाला।
----" हा हा हा ----" एक दम चुप था देव।
रानी उनकी गहरी आँखो मे डूब गयी थी। पर देव बहुती देर ऐसा नहीं कर पा रहा था।
(चलदा ) ----- नीरज शर्मा
-------- शाहकोट, जालंधर।
पिन :- 144702....