Kurbaan Hua - Chapter 9 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | Kurbaan Hua - Chapter 9

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Kurbaan Hua - Chapter 9

संजना की गुमशुदगी और बढ़ती चिंता

रात भर जागने के बाद भी सुबह होते ही सुषमा मासी की आंखों में कोई राहत नहीं थी। वह संजना के इंतजार में बेचैन बैठी थीं। कमरे में घुप्प सन्नाटा था, लेकिन चिंता की लहरें हर एक चेहरे पर साफ दिख रही थीं। संजना की तीनों सहेलियाँ – लवली, मिताली और अवनी – भी उसी चिंता में डूबी हुई थीं।

"अगर साहब को पता चला कि संजना अभी तक घर नहीं आई, तो वह पता नहीं क्या करेंगे," सुषमा मासी की आवाज कांप उठी। उनके माथे पर चिंता की लकीरें और गहरी हो गईं। संजना के पिता का गुस्सैल स्वभाव किसी से छिपा नहीं था। घर में उनकी बात ही कानून थी, और अगर उन्हें पता चला कि उनकी बेटी रातभर गायब रही, तो न जाने क्या होगा।

लवली ने धीरे से कहा, "आज हमारे कॉलेज का पहला दिन है। संजना तो इस दिन के लिए कितनी एक्साइटेड थी, और देखो, अब पता नहीं वो कहाँ है!" उसकी आवाज में गहरी उदासी थी।

मिताली, जो सबसे ज्यादा व्याकुल दिख रही थी, तड़पकर बोली, "मासी, हम आपको इस हालत में अकेला छोड़कर कॉलेज नहीं जा सकते। हमें संजना को ढूँढ़ना होगा।"

अवनी भी सहमति में सिर हिलाते हुए बोली, "हां, और सबसे बड़ी परेशानी यह है कि अगर उसके पिताजी का फोन आ गया, तो हम उन्हें क्या जवाब देंगे?"

"हम क्या कहेंगे?!" सुषमा मासी ने घबराकर कहा, "वो आदमी तो सुनते ही आग-बबूला हो जाएगा।"

संजना के पिताजी को जब गुस्सा आता था, तो घर में तूफान सा आ जाता था। उनका चेहरा लाल हो जाता, आंखें जलने लगतीं और जिसपर भी उनका गुस्सा बरसता, उसकी हालत खराब हो जाती। सुषमा मासी के दिमाग में उनके कठोर शब्द गूंजने लगे, "मेरी बेटी की हर बात मेरी मर्जी से चलेगी! अगर किसी ने उसे बिगाड़ने की कोशिश की, तो मैं उसे छोड़ूंगा नहीं!"

लवली के चेहरे पर चिंता और डर के मिश्रित भाव उभर आए। "अगर उन्हें संजना के गायब होने का पता चला, तो वो सबसे पहले हम पर ही चिल्लाएँगे। कहेंगे कि हम ही उसकी गैर-जिम्मेदार सहेलियाँ हैं, जो उसे संभाल नहीं पाईं।"

"हाँ, और फिर मासी को भी बुरी तरह डांट पड़ेगी," मिताली ने धीरे से कहा।

"सिर्फ डांट ही नहीं, पता नहीं वो क्या कर बैठें!" अवनी की आँखों में भय था।

सुषमा मासी ने अपनी कांपती आवाज में कहा, "हमें हर हाल में संजना को ढूंढना होगा, इससे पहले कि साहब को कुछ पता चले।"

मिताली ने फोन उठाया और तुरंत संजना के नंबर पर कॉल करने लगी। पर दूसरी तरफ से सिर्फ एक ठंडी आवाज आई, "आपका कॉल रिसीव नहीं किया जा रहा।"

"फोन बंद है!" मिताली ने हताश होकर कहा।

अवनी की आँखें भर आईं, "भगवान करे, वो सुरक्षित हो! कहीं कुछ गलत ना हो गया हो!"

सुषमा मासी की आँखों में आँसू आ गए। "मेरी बच्ची! अगर उसे कुछ हो गया तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊँगी!"

कमरे का माहौल और भी भारी हो गया था। चिंता, डर और असमंजस ने सबको जकड़ लिया था। घड़ी की सुइयाँ आगे बढ़ रही थीं, लेकिन किसी के पास कोई जवाब नहीं था।

"अब हम क्या करें?" लवली ने हताशा से पूछा।

"हमें पुलिस के पास जाना चाहिए?" अवनी ने सुझाव दिया।

"नहीं!" सुषमा मासी ने घबराकर कहा, "अगर साहब को पता चला कि हमने पुलिस बुलाई, तो हालात और भी खराब हो जाएंगे। पहले हमें खुद ही उसे ढूंढने की कोशिश करनी होगी।"

इतने में दरवाजे की घंटी बजी। सबके दिल एक साथ जोर से धड़क उठे। क्या ये संजना थी? या उसके पिता का फोन आ गया? या फिर कोई और मुसीबत खड़ी होने वाली थी?

सुषमा मासी ने घबराकर दरवाजा खोला, और जो सामने खड़ा था, उसे देखकर उनके चेहरे की रंगत उड़ गई…