सपने और हकीकत की उलझन
सुषमा मासी ने जैसे ही दरवाजा खोला, उनका दिल जोर से धड़क उठा। सामने जो शख्स खड़ा था, उसे देखते ही उनके चेहरे का रंग उड़ गया। कुछ पलों तक तो वो बस टकटकी लगाए देखती रह गईं, मानो यकीन न कर पा रही हों कि ये सच में हो रहा है। उन्होंने ध्यान से देखा, तो पाया कि यह कोई और था—किसी अजनबी की शक्ल संजना के डैड से काफी मिलती-जुलती थी, लेकिन वो नहीं थे।
सुषमा मासी की घबराहट थोड़ी कम हुई, लेकिन दिमाग में सवाल घूमने लगे—आखिर यह इंसान कौन है? और यहां क्या कर रहा है? पर उससे पहले कि वह कुछ पूछ पातीं, उस शख्स ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "माफ कीजिए, शायद मैंने गलत दरवाजा खटखटा दिया।" इतना कहकर वह पलटकर जाने लगा।
सुषमा मासी अभी भी चौंक गई थीं, लेकिन उन्होंने खुद को संभाला और दरवाजा बंद कर लिया। उनकी नजरें अब भी दरवाजे पर टिकी थीं, मानो सोच रही हों कि यह आदमी कौन था और क्यों आया था।
दूसरी तरफ…
वैयरहाउस के एक कमरे में हल्की धूप छनकर अंदर आ रही थी। सूरज की किरणें पर्दों के बीच से गुजरकर कमरे में सुनहरी रोशनी फैला रही थीं। एक हल्की ठंडी हवा खिड़की के खुले पल्ले से अंदर आ रही थी, जिससे कमरे में एक सुकून भरी ताजगी महसूस हो रही थी।
संजना की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। उसने लंबी अंगड़ाई ली और बिस्तर पर बैठ गई। उसकी आँखें अब भी नींद से भरी थीं, लेकिन चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी।
वह धीरे से बड़बड़ाई, "वाओ यार… कल रात क्या सपना था! रोमेंटिक और डरावना, दोनों ही!"
वह थोड़ी देर तक अपने हाथों से चेहरे को सहलाती रही, मानो सपने की गहराई में खोई हो। फिर अपनी उंगलियों को आपस में फँसाकर आगे खींचते हुए बोली, "जो भी था, सपने वाला बंदा बड़ा ही हैंडसम था! मैंने अपनी जिंदगी में ऐसा कोई नहीं देखा…"
संजना की आँखों में एक चमक थी। उसे अभी भी लग रहा था कि वह बस एक खूबसूरत सपना था। लेकिन उसके भीतर कहीं न कहीं एक अजीब सी बेचैनी भी थी—जैसे सपना इतना असली क्यों लग रहा था?
वह खुद से बातें करने लगी, "यार, वो आँखें… वो गहरी, काली आँखें… जैसे उनमें कोई राज छुपा हो। और उसकी आवाज, इतनी गहरी और रहस्यमयी कि सुनते ही दिल धड़कने लगे। वो जिस तरह से मेरी तरफ देख रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे मैं कोई पुरानी पहेली हूँ, जिसे वह सुलझाने की कोशिश कर रहा है।"
वह हल्का सा हँसी और तकिए पर गिर पड़ी। कुछ देर छत की ओर देखते हुए बोली, "काश, ये सपना सच होता! लेकिन नहीं, ऐसे सपने सिर्फ फिल्मों में होते हैं। असल जिंदगी में थोड़ी न कोई ऐसा परफेक्ट होता है!"
संजना कुछ देर तक लेटी रही, लेकिन फिर अचानक उसे कल की घटनाएँ याद आने लगीं—वैयरहाउस, रहस्यमय माहौल, अजीब सी हलचल, और फिर वह आदमी!
उसका मन अजीब-सी उलझन में फँस गया। अगर वह सपना था, तो इतना असली क्यों लग रहा था? और अगर असलियत थी, तो वह यहाँ वैयरहाउस में कैसे पहुँची?
उसने सिर झटका और खुद को समझाया, "नहीं, नहीं, यह सब सिर्फ एक सपना था। हाँ, बिल्कुल! और वैसे भी, इतनी परफेक्ट चीज़ें असल जिंदगी में थोड़ी न होती हैं।"
लेकिन उसके दिल की धड़कन अब भी तेज थी। उसे एहसास हो रहा था कि यह सपना नहीं, कोई सच्चाई थी—एक ऐसी सच्चाई, जिससे वह बच नहीं सकती थी!और फिर संजना ने अपने चारों और ध्यान से देखा तब उसे रिलाइज हुआ कि वो कल कि रात कोई सपना नही हकिकत थी एक कडवी डरवानी हकिकत, संजना ", नहीं ऐसा नहीं हो सकता है | ओ गोड ये सब सच नहीं हो सकता है |वो हर्षवर्धन सच में नहीं हो सकता है कितना बुरा है | मैं यहाँ नहीं रह सकती |