Hanumant Pachichi aur any Chhand - 8 in Hindi Spiritual Stories by Ram Bharose Mishra books and stories PDF | हनुमंत पच्चीसी और अन्य छंद - भाषा टीका श्री हरि मोहन लाल वर्मा - 8

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हनुमंत पच्चीसी और अन्य छंद - भाषा टीका श्री हरि मोहन लाल वर्मा - 8

हनुमंत पच्चीसी और अन्य छंद 8

'हनुमत हुंकार' संग्रहनीय पुस्तक

प्रस्तुत 'हनुमत हुंकार' पुस्तक में हनुमान जी के स्तुति गान और आवाहन से सम्बंधित लगभग 282 वर्ष पहले मान कवि द्वारा लिखे गए 25 छंद हैं , जिनके अलावा उन्ही मान कवि के छह छंद ' हनुमान पंचक' के नाम से शामिल किए हैं, तथा 'हनुमान नख शिख' के नाम से 11 छंद लिए गए हैं।

 

卐 श्री गणेशाय नमः 卐

 

श्री हनुमान पंचक

 

प्रणत मुदञ्जन जयञ्जन दसायुध, सदैव मन रञ्जन निरञ्जन कौ दूत है।

 

जो सत मखंजन जितंजन दुखंजन, कपीस ढंग खंजन को अंजन अकूत है।

 

'मान' कवि मंजन सुमित्रा सुत संजन,  सिया को शोक गंजन  पुरंजन प्रभूत है।

 

पञ्च मुख कञ्जन प्रचण्ड दस पंजन, अमित्र मुख भंजन, प्रभंजन कौ पूत है ॥१॥

 

अर्थ :- मान कवि पञ्चमुखी हनुमानजी की वन्दना करते हैं कि वे शरणागत का मोद बढ़ाने वाले हैं और दस भुजाओं में दस हथियारों से विजय प्राप्त करने वाले हैं। वे सदैव मन का रंजन करने वाले है, और परमात्मा के दूत है। वे सत्य का पोषण करने वाले, दुःखों को जीतने वाले और वानरराज केशरी के नेत्र रूपी खंजन की अपार शोभा बढ़ाने वाले हैँ। वे मान कवि को आनन्दित करने वाले, लक्ष्मण का साथ देने वाले, सीताजी के शोक को नष्ट करने वाले, तथा पुरवासी भक्तों को प्रचुर सहारा देने वाले है। पाँच मुख-कमल तथा दस प्रचंड पंजे वाले हनुमान शत्रुओं के सुख को तोड़ने वाले पवन-पुत्र है।

 

हंकन अतंक जारि लङ्क सकलङ्क करी, रङ्क लौं निशङ्क महि रावण कौ अन्त है।

 

भने कवि 'मान' कपि-सेना-भरतार, महा रुद्र अवतार, बल बिक्रम अनन्त है ॥

 

अक्ष कौ निपक्ष कालनेमि कौ प्रत्यक्ष काल, लक्ष्मण को प्राणरक्ष रक्षक ज्वलन्त है।

दुष्टन कौं दुखी करे संतन कौं सुखी, तेज तुषी राम रुखी पञ्चमुखी हनुमन्त है ॥२॥

 

अर्थ :- मान कवि कहते हैं कि अपनी आतंक भरी हुंकार से लंका को जलाने वाले हनुमानजी ने उसे कलंकित करके ही छोड़ा और किसी रंक (दीन) के समान रावण का अन्त करके पृथ्वी को निःशंक (निर्भय) बना दिया। वे बानर सेना के स्वामी है, महारुद्र का अवतार हैं, और अनन्त बल-विक्रम से युक्त है। उन्होंने अक्षकुमार को पंखहीन (असहाय) बना दिया । वे कालनेमि के लिए प्रत्यक्ष काल हैं और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा करने वाले देदीप्यमान रक्षक है। पञ्चमुखी हनुमानजी दुष्टों को दुखी और सन्तों को सुखी करने वाले हैं, तथा तेज से तृप्त (पूर्ण) होकर राम की कृपा प्राप्त कर रखने वाले हैं।

 

महाबीर बंका पञ्चमुखी हनुमन्त, बजरंग वायु पुत्र, त्राहि-त्राहि दीन जन कौं ।

 

हन-हन हाँसिन को मर्द-मर्द भञ्ज-भञ्ज, भक्ष-भक्ष भूतन को रक्ष-रक्ष जन कौं ॥

 

क्षुद्रन कौं छेद-छेद भेदिन कौं भेद-भेद, दुष्टन कौं दाहि-दाहि पाहि-पाहि प्रन कौं।

 

फार-फार फन्दन कौं मार-मार बेरिन कौं, बार-बार विष, जार-जार ज्वर गन कौं ॥३

 

अर्थ :- अत्यन्त वीर बलशाली, पाँच सुख वाले हनुमान बजरंग और

वायु-पृत्र के समक्ष दीन भक्त त्राहि-त्राहि करते हुए शरण में आते हैं। हे हनुमान, हँसी उड़ाने वालों को मार दो, बल का घमण्ड करने वालों को चूर-चूर कर दो, भूतों को खा जाओं, और भक्तों की रक्षा करी। क्षुद्रों  (नीचों) को काट डालो । भेदियों (षड़यंत्रकारियों को वेध दो, दुष्टों को जला डालो, और अपने प्रण की रक्षा करो। फन्दों (जालो) को फाड़ डालो, बैरियों को मार डालो, विष को जला रखो, और ज्वरों (कष्टों )के समूह को जला कर मिटा दो ।

 

जै, जै भय भञ्जनी सुअञ्जनी कुमार, जनरञ्जनी सौ फूल्यो मन बांछित फलन कौं।

 

पर कृत जन्त्र-मन्त्र-तन्त्रन कौं मेटि-मेटि, सङ्कट कौं काट-काट छेदि के छलन कौं ॥

 

दीठ मूठ डाकिनी पिशाचिनी कौं पीस-पीस मीस-मीस मारे खेट-खेट के खलन कौं।

 

डाढ़ मुख सांग विष रोग बन्ध प्रेत बन्ध, बन्ध दुष्ट दानव दपेटन दलन कौं ॥४॥

 

अर्थ :- मान कवि कहते हैं कि अञ्जनी के कुमार हनुमानजी की जय हो। वे भय को नष्ट करने वाले हैं। लोगों के मन को रंजित करते हुए वे मन-चाहे फलों से भरे-पूरे हैं। वे प्रार्थना करते हैं कि दूसरे के मन्त्र, जन्त्र, तन्त्र को अर्थात् सब प्रकार के बल को हनुमानजी मिटा रखें, संकट को शीघ्र काट डालें, और छलों को छेद डालें। कुदृष्टि, मूठ, डाकिनी, पिशाचिनी आदि के कुप्रभावों को वे पीस डालें, और खोज-खोज कर या खदेड़ कर दुष्टों को मसल कर मार डालें । वे दौड़ कर दुष्ट दानवों के सुखों को डाढ़ दें या जला दें, शक्ति से बरछी फेंक कर विष को मार दें। रोग, प्रेतबाधा और दुष्टता को बाँध डालें, और इन सभी को दल डालें ।

 

ओं नमो हनुमते पञ्चमुखाय नमः रुद्र रूपाय वज्रांग ता कारिणे ।

 

 डाकिनी शाकिनी दुष्ट कृत्या  महा मारिका प्रेत भूतादि भय हारिणे ॥

 

मंथ मध्या दिशा बन्ध बन्ध्या हिते  प्रेम बस सर्वदा नेम , पग धारिणे ।

 

राम दूताय सुत्राम कुल रक्षिणे, पौन पुत्राय सुर शत्रु संहारिणे ॥५॥*

 

अर्थ :- मैं ब्रह्म-रूप हनुमानजी को नमन करता हूँ। पाँच मुख वाले

हनुमान को नमस्कार ! वे रूद्र के रूप हैं और इस कारण वज्र जैसी उनकी देह है, वे डाकिनी, शाकिनी, दुष्ट कृत्या (एक भयंकर राक्षसी), महामारी, भूत-प्रेत आदि के भय को हरने वाले हैं। वे राम के दूत हैं, और कुल रक्षा करने वाले अलंकार है। पवन के पुत्र हनुमान देवताओं के शत्रुओं अर्थात् राक्षसों का संहार करने वाले हैं। बाल-ब्रह्मचारी होने के नाते वे मध्या नायिका की दिशा से दूर रहते है, पर वन्ध्या (बाँझ) के हित के लिये बँधे हुए है। प्रेम के वश में होकर वे सदैव नियमों पर पग रखने वाले हैं।

 

*कवि ने स्रग्विणी छन्द अथवा आचार्य केशवदास के प्रिय दण्डक छन्द के दंग पर इस वर्णिक वृत्त की रचना की है, परन्तु 'पञ्चमुखाय' जैसे स्थानों में लय की कमी है, जो लिपिकार का प्रमाद भी नहीं है, और पाठ को पूर्णतः बदल रखने के हम भी अधिकारी नहीं, यद्यपि एक सुझाव के अनुसार 'ओंम नमो मर्कटायास्य पञ्चायते' पाठ छन्द के अनुकूल होता ।

 

नाशन अरिष्टन कौ प्रकाशन विलासन कौ, दासन कौ सुखद प्रासन असन्त कौ।

 

सिद्ध तन्त्र मन्त्र सौ प्रसिद्ध वलधारी, भगे भूत प्रेत मारी रोग हारी जीव-जन्तु कौ।

 

भने कवि 'मान' फुरै बिनही विधान, विवधान जो निधान मोद मङ्गल अनन्त   कौ।

 

सुमिरै तमाम करें पूरे मन काम, रिद्ध सिद्धिन कौ धाम, बन्दों नाम हनुमन्त को ॥६॥

 

अर्थः श्री हनुमानजी का नाम अमंगलों या दुर्भाग्य को नष्ट करने वाला और आमोद-प्रमोद को बढ़ाने वाला है। वह भक्तों  के लिए सुखदायी है और दुष्टों को त्रास देने वाला है। वह सफल तन्त्र-मन्त्र के समान प्रसिद्ध बलशाली है, जिससे भूत-प्रेत और महामारी भागते हैं, और जो जीव-जन्तुओं अर्थात् सभी प्राणियों के रोगों या कष्टों को हरने वाला है। मान कवि कहते हैं कि वह बीच में आने वाली बाधा को बिना किसी पद्धति विशेष के नष्ट कर डालता है, तथा वह अनन्त आनन्द और कल्याण का आश्रय है। उसका स्मरण करने से सम्पूर्ण मनोकामनाएँ पूरी होती है। वह ऋद्धि-सिद्धियों का धाम या भण्डार है। हनुमानजी के ऐसे नाम की मैं वन्दना अर्थात् स्तुति करता हूँ।

मंजुल मंगल मोदमय मूरति मारुत पूत। सकल सिद्धि  कर कमल तल सुमिरत रघुवर दूत।

( रामाज्ञा)