Hanumant Pachichi aur any Chhand - 4 in Hindi Spiritual Stories by Ram Bharose Mishra books and stories PDF | हनुमंत पच्चीसी और अन्य छंद - भाषा टीका श्री हरि मोहन लाल वर्मा - 4

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हनुमंत पच्चीसी और अन्य छंद - भाषा टीका श्री हरि मोहन लाल वर्मा - 4

हनुमंत पच्चीसी और अन्य छंद 4

'हनुमत हुंकार' संग्रहनीय पुस्तक

प्रस्तुत 'हनुमत हुंकार' पुस्तक में हनुमान जी के स्तुति गान और आवाहन से सम्बंधित लगभग 282 वर्ष पहले मान कवि द्वारा लिखे गए 25 छंद हैं , जिनके अलावा उन्ही मान कवि के छह छंद ' हनुमान पंचक' के नाम से शामिल किए हैं, तथा 'हनुमान नख शिख' के नाम से 11 छंद लिए गए हैं।

 

 

राम के जमातदार, जौमदार यार तू तौ, ढाहि आयो खलन, निवाह आयो दास कौं।

लङ्क कौं लपेट करौ अच्छ कौं निपच्छ, रन दच्छ है प्रतिच्छ रक्ष कुल के विनाश कौं ॥

कियौ ततकाल कालनेमि हू कौ काल वीर, कैसी भई तोय, जो करावे उपहास कौं।

बोल हूँ बिला दै,अरि तेज बिचला दै,  मीड़ धूलि में मिला दै, बेगि बेरी के लिवास कौं ॥१०॥

 

अर्थ :- हे हनुमान ! तुम राम के दरबारी हो, जोश भरे मित्र हो, तुम तो खलों को। ढाहते आये हो और अपने दास की बात निभाते रहे हो। पूँछ को लपेट कर तुमने अक्षयकुमार को रण में पक्षहीन कर दिया। तुम राक्षस कुल के विनाश में प्रत्यक्ष रूप से अर्थात् भली प्रकार दक्ष हो। तुम कालनेमि के लिये भी तत्काल काल बन गये। हे वीर! अब तुम्हें क्या हुआ, जो उपहास कराते हो ? तुम शत्रु का बोल (वाणी) बन्द कर दो, उसका तेज विचलित कर दो (मिटा दो), और शीघ्र ही उसके वेश को मीड़ कर धूल में मिला दो

 

हीनन कौ हद्द हितकारी है हमेश, हर आयौ हर भाँति तू हरीफ के हुलास कौं।

 गरज गरीबन की गौर कर आयौ, दौर दलमल आयौ दुष्ट दल के विलास कौं ॥

महाबीर हिम्मती हठीले हनुमन्त तोहि कैसी भई, जो न मेटे खल के खुलास कौं ।

 ज्वर सौ जला जला दै, काल प्रास सौ गिला दै, मार धूरि में मिला दै, वेगि बैरी के लिबास कौं ॥११॥

 

अर्थ :- हे हनुमान, तुम सदैव दीन-हीनों के लिये हद तक अर्थात भारी हितकारी हो, और हरीफों (शत्रुओं) के आनन्द को हर प्रकार हर लेते हो ।

गरीबों की गरज (चाह) पर गौर (दृष्टि) करने वाले हो और दुष्टों के दल के विलास को दौड़ कर दल रखने वाले हो। हे महावीर हनुमान, तुम बड़े हिम्मती और हठीले हो। तुम्हारे लिये क्या बात हो गई, जो तुम दुष्टों की उमंग (उत्साह) नहीं मेटते हो। बैरी के लिबास (वेश) को ज्वर-सा जला डालो, काल के ग्रास सा बना कर उसे नष्ट कर दो, और उसे मार कर धूल में शीघ्र ही मिला दो।

 

दासन पै दया, राम मन की समझ, खल गन की कहा है, पैज जन की विचारिये ।

दीन सुध लेवे की समात करामात, यौं जमातदार कीन्हों, अरि मात कर डारिये ॥

भनै कवि 'मान' महावीर हनूमान तौ बखानौं बलवान, जो गनीम मद गारिये ।

तू तो मरदानौ जौ प्रचण्ड उमगानौ अरि दानौ यह काँको गरदानौ टोर मारिये ॥१२॥

 

अर्थ: हे हनुमानजी, आप दासों  पर दया करने वाले हैं, राम के मन की बात समझने वाले हैँ। दुष्टों का आपके सामने क्या बस चल सकता है ! आप तो भक्तों के प्रण का ध्यान कीजिये। दीनों की सुधि लेने के लिये आपमें सब प्रकार की सामर्थ्य  और करामात है। आपने हमें जमात को साथ लेकर चलने वाला बनाया है। आप शत्रु को परास्त कर डालिये।

 

मान कवि कहते हैं कि हे महावीर हनुमान! मैं आपको बलवान तमी बखानूँगा (कहूँगा) जब आप शत्रु के अहंकार को गला डालेंगे अर्थात् चूर कर डालेंगे। आप तो मर्द (बहादुर) हो- यह जो शत्रु प्रचण्ड रूप से उमड़ा है, यह किसके बल पर है- इसकी गर्दन तोड़ कर इसे मार डालिये।

 

 दासन अवासन प्रकाशन विलासन कौं अरि कुल नाशन तराशन कृपन कौं।

विद्वेषन द्वेषिन कौं मोहन मदांधन कौं, थंभन प्रलंभन कौं खेसरी प्रपन कौं ॥

दीठ मूठ डाटन उपाटन कुयोग, पर यन्त्र मन्त्र काटन उचाटन रिपुन कौं।

 जन को जयङ्कर भयङ्कर खलन, हनुमन्त, रूप शङ्कर वशङ्कर  नृपन कौं ॥१३॥ 

 

अर्थ :- हे हनुमान, आप दासों को आवास (अर्थात् शरण) देने वाले हैं, और विलास (अर्थात् आनन्द) का प्रकाश करने वाले हैं, शत्रु के कुल का नाश करने वाले है और कृपण (कंजूसों) को त्रास देने वाले या तराशने (चीरने-फारने) वाले हैं। द्वेष रखने वालों से आपको विद्वेष है। मदांधों (घमण्डियों) को आप मोह लेते हैं। आप छलना या धोखे को रोक देने वाले हैं, दीन शरणागत के लिये सहारा हैं, दीठ (दृष्टि) और मूठ को डाटने या रोकने वाले हैं, कुयोग को उखाड़ फेंकने वाले हैं, दूसरे के यंत्र और मंत्र को काट देने वाले हैं, और शत्रुओं का उच्चाटन करने वाले हैं। आप भक्तों को विजय दिलाने वाले हैं, दृष्टों के लिये भयंकर हैं, हनुमान के रूप में आप स्वयं शंकर है और राजाओं को वश में करने वाले हैं।

 

 

चुगल चबाइन कौं बाँध दे बदन, सोखी साध दै गनीमन की नाध दै रिपुन कौं।

 जौमिन को जार दै, उजार दै कुमति, कवि 'मान' पेज पाल दै निवाह दे प्रपन कौं ॥

दान कौं दिवा दै, सनमान कौं सजा दै , औ सुझाय दै सठन, समझाय है कृपन कौं।

गार दै गरब, तू बगार दै सुयश, देव दासन के पाँयन पै डार दे नृपन कौं ॥१४॥

 

अर्थः- हे हनुमान, चुगलखोर निन्दको का तुम मुँह बाँध दो, और शत्रुओं की शोखी (शैतानी) को साध लो या सम्हालो । बैरियों को तुम नाघ दो, अर्थात् उन्हें बेलों की भाँति जुए में बाँध रखो, अहंकारियों को जला दो, कुमति (कुबुद्धि) वालों को उजाड़ दो। कवि मान की प्रतिज्ञा की रक्षा करो, शरणागतो का निर्वाह करो। पुरष्कार को दिला दो और मेरे सम्मान की रक्षा करो, शठो (दुष्टों) को सुबुद्धि दो, और कृपणों को समझा दो कि धन की शोभा दान में है। अहंकार को नष्ट कर दो, सुयश को बगार (फैला) दो, और देवदास (प्रभु के दासों) के पैरों पर नृपों (राजाओं) को गिरा दो। अर्थात् भक्तों के अहंकार को मिटा कर उनके सुयश का विस्तार करो, और बड़ो बड़ों को उनके चरणों में बैठने के लिये बाध्य करो ।