हनुमंत पच्चीसी और अन्य छंद 2
'हनुमत हुंकार' संग्रहनीय पुस्तक
प्रस्तुत 'हनुमत हुंकार' पुस्तक में हनुमान जी के स्तुति गान और आवाहन से सम्बंधित लगभग 282 वर्ष पहले मान कवि द्वारा लिखे गए 25 छंद हैं , जिनके अलावा उन्ही मान कवि के छह छंद ' हनुमान पंचक' के नाम से शामिल किए हैं, तथा 'हनुमान नख शिख' के नाम से 11 छंद लिए गए हैं।
श्री हनुमते नमः
श्री हनुमन्त पचीसी
ढक्का देत जम कौं कुदक्का कौ न झक्का खात, नक्का दे झटक्का हरि धामैं जात सरकौ।
प्रभु सौं अटक्का पक्का राखत कक्कादार, खल पे खड्क्कादार हक्का के उभर कौ ॥
'मान' कवि छक्का तेज थक्का सौ तड़क्कादार, मानत न जक्का टक्का बाँध जो नजर कौ।
नाम के कनिक्का करे पापन के तिक्का फेरे, सबन पै सिक्का धन्य इक्का रघुबर कौ ॥१॥
अर्थ: मान कवि कहते हैं कि हनुमानजी भगवान रामचन्द्र के इक्का है, जिन्होंने सब पर प्रभाव डला रखा है। वे यमराज को धक्का दे देते हैं, और चाहे जैसी उड़ान या कुदान में तनिक भी नहीं झिझकते। एक झटके मात्र से वे अपनी भक्ति करने वाले को प्रभु के धाम भेज देते हैं। प्रभु से उन्होंने पक्का कड़क सम्बन्ध बना रखा है। दुष्टों पर उनकी हुंकार का भारी भय छाया रहता है। मान कवि कहते हैं कि वे तेज से छके या भरे हुए हैं और तड़ाकेदार काम करते हैं। जो उनकी ओर नजर की टकटकी बाँध कर रहता है, उसके लिये वे तनिक भी जक्का या संकोच नहीं मानते। उनके नाम के कण मात्र से पापों के समूह विलीन हो जाते हैं। रघुनाथजी के सेवक हनुमानजी ने सब पर प्रभाव जमा रखा है।
महाबीर बङ्का पञ्चमुखी हनुमन्त भगवन्त सिया कन्त कौ इकन्त चर दूत है।
संकट संहारवे कौं विधन बिड़ारवे कौं, सूढ़न के मारवे कौं महा मजबूत है ॥
'मान' कवि रंजन कौं गर्व गढ़ गंजन कौं,अरि मुख भंजन कौं समर सपूत है।
शत्रु तेज तर्जन कौं दीन जन अर्जन कौं, विमुख विमर्दन कौं मर्द पौन पूत है ॥२॥
अर्थ :- अत्यन्त वीर, बलशाली, पाँच मुख वाले पूज्य हनुमान सीतापति भगवान रामचन्द्र के एकमात्र गुप्तचर दूत है। संकटों को नष्ट करने के लिये, बिघ्नों को टालने के लिये, तथा दुष्टों को मारने के लिये वे अत्यन्त सबल हैं । मान कवि (तथा भक्तों) को आनन्द देने के लिये, अहंकार के दुर्ग को नष्ट करने के लिये, तथा शत्रु के मुख को तोड़ने के लिये वे साहसी शूरवीर है। शत्रु क्रे तेज को मिटाने के लिये, दीन व्यक्तियों को पालने के लिये, तथा विरोधियों को कुचलने के लिये पवन पुत्र हनुमानजी महासमर्थ हैं।
बार डार बेरिन कौं मार डार मूढ़न कौं, जार डार जौमिन को झार डार बल कौं।
चोरन चखल डार खेचरें खखल डार, अखल बखल डार द्रोहिन के दल कौं ॥
वीर हनुमन्त दौड़ दुष्टन दबाय डार, चुगले चबाय डार गंज डार गल कौं।
लाय डार लोभिन हलाय डार हूँड़न कौं, खाय डार खोपड़ी खपाय डार खल कौं ॥३॥
अर्थ: हे हनुमान, बैरियों को भस्म कर दो ,दुष्टों को मार डालो. घमंडियों को जला दो और बलवानों को झाड़ दो अर्थात बलवानों को अच्छी डाँट बताओ। चोरों और दुष्टों को मसल डालो , नभचारियों को झकझोर दो और द्रोहियो (बैरियों) को तहस-नहस कर दो।
हे वीर हनुमान, दुष्टों को दबा दो और चुगलों को चबा डालो। उनके गले को पकड़ कर उन्हें समूल नष्ट कर डालो। लोभियों को सजा दो और हूँड़ों (उजड्ड या हठी लोगों ) को हिला डालो । खलों (दुष्टों) को मार कर (खपा कर) उनकी खोपड़ी खा डालो अर्थात् उनके सिर काट डालो।
उद्धित उदार सिरदार जौमदार दिलदार, एंड्दार फौजदार कपि भीर कौ।
प्रबल प्रभूत भूतपति सौ सपूत मजबूत, रजपूत दूत रणधीर राम कौ ॥
'मान' भनै भारी रण रंग अधिकारी कालनेमि कौ प्रहारी प्राणहारी अच्छ वीर कौ।
मारे मति मन्दन बिदारै दुख दंदन, पछारे फर फन्दन सुनन्दन समीर कौ ॥४॥
अर्थ :- पवन के पुत्र हनुमानजी जाने हुए उदार सरदार है, वे जोमदार है-उत्साह से भरे हुए है, दिलदार है- सहृदय हैं , ऐंडदार अर्थात् गर्वीले हैं । कपियों की सेना में वे फौजदार (सेनापति) हैं। अत्यन्त पराक्रमी भूतनाथ शंकर जैसे वे मजबूत सपूत हैं, और क्षत्रिय राजपूत के गुणों से सम्पन्न है। वे रन में धैर्यशाली राम के दूत हैं। मान कवि कहते हैं कि वे रण-रंग में अधिकारी है। कालनेमि पर उन्होंने तगड़ा प्रहार किया, और बीर अक्षकुमार के प्राणों को हर लिया। वे हरि से विमुख मतिमन्द कुबुद्धियों को मारने वाले है, दुख-द्वन्दों को विदीर्ण करने वाले है, और षड़यंत्रकारियों को पछाड़ने वाले समीर के सुपुत्र हैँ।