हनुमंत पच्चीसी और अन्य छंद
'हनुमत हुंकार' संग्रहनीय पुस्तक
प्रस्तुत 'हनुमत हुंकार' पुस्तक में हनुमान जी के स्तुति गान और आवाहन से सम्बंधित लगभग 282 वर्ष पहले मान कवि द्वारा लिखे गए 25 छंद हैं , जिनके अलावा उन्ही मान कवि के छह छंद ' हनुमान पंचक' के नाम से शामिल किए हैं, तथा 'हनुमान नख शिख' के नाम से 11 छंद लिए गए हैं।
"हनुमंत पच्चीसी" मान कवि द्वारा रचित छंद का संग्रह है। इन कुल 25 छंदों को 'हनुमत हुंकार' के नाम से दतिया के महत्त्वपूर्ण कवि, गद्य लेखक, भक्त और इतिहास विशेषज्ञ श्री हरिमोहन लाल वर्मा दतिया वालों ने 1985 में संकलित करके उनकी भाषा टीका प्रस्तुत की थीं। जिसका प्रकाशन सत साहित्य प्रकाशन कोलकाता अग्रसेन स्मृति भवन पी 308 कलाकार स्ट्रीट कोलकाता से हुआ था। इसके पूर्व यही छंद 'हनुमत हुंकार' के ही नाम से सन् 1977 में हिंदी साहित्य समिति दतिया द्वारा यह पुस्तक प्रकाशित की गई थी। प्रस्तुत 'हनुमत हुंकार' पुस्तक में हनुमान जी के स्तुति गान और आवाहन से सम्बंधित लगभग 282 वर्ष पहले मान कवि द्वारा लिखे गए 25 छंद हैं , जिनके अलावा उन्ही मान कवि के छह छंद ' हनुमान पंचक' के नाम से शामिल किए हैं, तथा 'हनुमान नख शिख' के नाम से 11 छंदद लिए गए हैं। इस पुस्तक की भाषा टीका करते समय गुरुवर हरिमोहन लाल वर्मा जी ने बहुत सरल भाषा में उपयोग की है । उनके द्वारा दुर्लभ पांडुलिपियों को खोज कर यह ग्रंथ संकलित व संपादित कर उसमें शामिल छंदों की भाषा टीका की गई है। कहा जाता है कि इस हनुमत हुंकार का पूर्ण पाठ या हनुमत पचीसी का दैनिक पाठ लोग तंत्रपूजा के उद्देश्य के लिए भी प्रयोग करते हैं। अपनी भक्ति के लिए भी, हनुमान जी के प्रसन्नता के लिए भी और अपने शत्रुओं के विनाश के लिए भी अनुष्ठान के रूप में इस पुस्तक के छंदों का पाठ किया जाता है।
इस पुस्तक की समीक्षा तो कोई नहीं कर सकता, हां इस पुस्तक का परिचय ही दिया जा सकता है। श्री हरि मोहन लाल वर्मा बड़े विद्वान रहे हैं, वे बहुत बड़े लेखक भी थे। उन्होंने ढाई सौ से अधिक ग्रंथ लिखे व संपादित किए थे। हनुमान जी के भी विशेष भक्त थे। इसलिए उन्होंने हनुमत हुंकार नामक इस पुस्तक की भूमिका में लिखा है "राम भक्त कवियों की परंपरा में मान या खुमान कवि हनुमान जी के परम भक्त थे। बुंदेलखंड के चरखारी राज्य में संबंध 1830 से 1880 के बीच इनका कविता कल आचार्य शुक्ल द्वारा निर्धारित किया गया है। इनके ग्रंथों में हनुमान नख शिख, हनुमान पंचक तथा हनुमान पच्चीसी के अतिरिक्त नरसिंह चरित्र और नरसिंह पच्चीसी एवं लक्ष्मण शतक उल्लेखनीय हैं (भूमिका पृष्ठ घ)
इसी भूमिका में यशस्वी सम्पादक वर्मा सर ने आगे लिखा है " हनुमान जी की भक्ति से संबंधित साहित्य में मानकवि का अनूठा महत्व है। 'हनुमान नख शिख' ' हनुमत पचासा' के नाम से भी जाना जाता जाता है। इसमें 53 कवित्त हैं जो मान ने चरखारी के निकट ग्राम काकनी में एक पहाड़ी पर स्थित पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा के समक्ष सुनाए थे। प्रसिद्ध है कि मान के राजकीय सम्मान के प्रतिद्वंद्वी एक मैथिल पंडित ओझा को अपने कवित्व का बड़ा गुमान था। दोनों के बीच श्रेष्ठता निर्धारित किए जाने के लिए यह तय पाया गया कि दोनों काकनी के हनुमान जी की मूर्ति के समक्ष अपने-अपने काव्यों का पाठ करें और जिसकी पाठ से प्रतिमा में कुछ परिवर्तन परिलक्षित हो उसी को श्रेष्ठ स्वीकार किया जाएगा। कहा जाता है कि प्रथम दिन विशाल जन समूह के समक्ष ओझा जी का पाठ हुआ और दूसरे दिन मान कवि का। ज्यों ही मान ने अंतिम कवित्त सुनाया हनुमान जी की प्रस्तर प्रतिमा में कंपन उत्पन्न हुआ और उनकी गर्दन मान की ओर झुकी हुई दिखाई दी । मूर्ति आज भी ज्यों की त्यों टेढ़ी है और श्रद्धालुओं की सिद्धि प्रदाता बनी हुई है। (इसी पुस्तक की भूमिका पृष्ठ ङ्)
सारांशतः पुस्तक को मांन कवि का साहित्य या कविता संग्रह भी माना जा सकता है और दैनिक पाठ के लिए पोथी भी औऱ तांत्रिक छंदों का सँग्रह भी ।
श्री हरिमोहन लाल वर्मा जी का श्रम और ज्ञान इस पुस्तक से पता लगता है तो पाठको को हनुमानजी का नया रूप दिखाई देता है। पुस्तक संग्रहनीय है।
मेरी इस टिप्पणी के प्रमाण में पुस्तक का अविकल उद्धरण यहां प्रस्तुत है।
राम भरोसे मिश्रा
पूर्व प्राध्यापक
निजी महाविद्यालय आलमपुर
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