प्रार्थना:राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ। सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ। श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं। मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ। मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ। हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें।
मंत्र का अर्थः
धन और धर्म को एक साथ जोड़कर ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य प्राप्त होता है। बिना कर्म के कोई भी ज्ञान और पुण्य अधूरा होता है।
गर्भ संवाद:
— मेरे प्यारे शिशु, मेरे राज दुलार, मैं तुम्हारी माँ हूँ.......माँ !
— मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तुम मेरे गर्भ में पूर्ण रूप से सुरक्षित हो, तुम हर क्षण पूर्ण रूप से विकसित हो रहे हो।
— तुम मेरे हर भाव को समझ सकते हो क्योंकि तुम पूर्ण आत्मा हो।
— तुम परमात्मा की तरफ से मेरे लिए एक सुन्दरतम तोहफा हो, तुम शुभ संस्कारी आत्मा हो, तुम्हारे रूप में मुझे परमात्मा की दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, परमात्मा ने तुम्हें सभी विलक्षण गुणों से परिपूर्ण करके ही भेजा है, परमात्मा की दिव्य संतान के रूप में तुम दिव्य कार्य करने के लिए ही आए हो। मेरे बच्चे! तुम
ईश्वर का परम प्रकाश रूप हो, परमात्मा की अनंत शक्ति तुम्हारे अंदर विद्यमान है, ईश्वर का तेज तुम्हारे माथे पर चमक रहा है, परमात्मा के प्रेम की चमक तुम्हारी आँखों में दिखाई देती है, तुम ईश्वर के प्रेम का साक्षात भण्डार हो, तुम परमात्मा के एक महान उद्देश्य को लेकर इस संसार में आ रहे हो, परमात्मा ने तुम्हें इंसान रूप में इंसानियत के सभी गुणों से भरपूर किया है।
— तुम हर इंसान को परमात्मा का रूप समझते हो, और सभी के साथ प्रेम का व्यवहार करते हो, तुम जानते हो अपने जीवन के महानतम लक्ष्य को, तुम्हें इस संसार की सेवा करनी है, सभी से प्रेम करना है, सभी की सहायता करनी है, और परमात्मा ने जो विशेष लक्ष्य तुम्हें दिया है, वह तुम्हें अच्छे से याद रहेगा।
— परमात्मा की भक्ति में तुम्हारा मन बहुत लगता है, तुम प्रभु के गुणों का गायन करके बहुत खुश होते हो, तुम्हारे रोम-रोम में प्रभु का प्रेम बसा हुआ है। स्त्रियों के प्रति तुम विशेष रूप से आदर का भाव अनुभव करते हो, सभी स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखते हो।
— तुम्हारा उद्देश्य संसार में सबको खुशियाँ बाँटना है, सब तरह से आजाद रहते हुए तुम सबको कल्याण का मार्ग दिखाने आ रहे हो, परमात्मा से प्राप्त जीवन से तुम पूर्ण रूप से संतुष्ट हो, तुम सदैव परमात्मा के साये में सुरक्षित हो।
— मानव जीवन के संघर्षो को जीतना तम्हें खूब अच्छी तरह से आता है, जीवन के प्रत्येक कार्य को करने का तुम्हारा तरीका बहुत प्यारा है, जीवन की हर परेशानी का हल ढूँढने में तुम सक्षम हो, तुम हमेशा अपने जीवन के परम लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहोगे।
— मेरी तरह तुम्हारे पिता भी तुम्हें देखने के लिए आतुर हैं, मेरा और तुम्हारे पिता का आशीष सदैव तुम्हारे साथ है।
— यह पृथ्वी हमेशा से प्रेम करने वाले अच्छे लोगों से भरी हुई है, यह सृष्टि परमात्मा की अनंत सुंदरता से भरी हुई है, यहाँ के सभी सुख तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, गर्भावस्था का यह सफर तुम्हें परमात्मा के सभी दैविक संस्कारों से परिपूर्ण कर देगा।
—घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है।
गर्भ संवाद:
“मेरे प्यारे बच्चे! जीवन में आने वाले हर अनुभव को भगवान के साथ साझा करो। चाहे वह सुख का समय हो या दुख का, भगवान के साथ अपने अनुभवों को बांटना तुम्हारे दिल को हल्का और शांत करता है। भगवान हमेशा तुम्हारी बातें सुनते हैं और तुम्हारे दिल को गहराई से समझते हैं। मैं चाहती हूं कि तुम भगवान से जुड़कर अपने जीवन के हर अनुभव को साझा करो, ताकि तुम जीवन के हर सबक को भगवान के आशीर्वाद से सीख सको।”
पहेली:
एक महल बीस कोठरी सब है फाटकदार,
खोले तो दरवाजा मिले ना राजा, पहरेदार।
कहानी: त्याग की शिक्षा
किसी बड़े शहर में रहने वाले सुरेश एक बड़े व्यवसायी थे। उनके पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनका परिवार आपसी प्यार और त्याग से रहित था। सुरेश के दो बेटे, रोहन और मोहन, अक्सर छोटी-छोटी बातों पर झगड़ते थे। दोनों अपने स्वार्थ में इतना डूबे थे कि परिवार के महत्व को समझ नहीं पाते थे।
एक दिन, सुरेश ने फैसला किया कि वह अपने बेटों को त्याग और परिवार के महत्व का पाठ सिखाएंगे। उन्होंने दोनों बेटों को बुलाया और कहा, “हमारी पारिवारिक संपत्ति का एक हिस्सा गांव में है। मैं चाहता हूं कि तुम दोनों वहां जाकर जमीन की देखभाल करो।”
दोनों भाई गांव पहुंचे और जमीन पर काम करने लगे। लेकिन वहां भी वे आपस में झगड़ने लगे कि किसे ज्यादा हिस्सा मिलेगा।
गांव के बुजुर्गों ने यह देखा और दोनों भाइयों से कहा, “अगर तुम दोनों इस तरह झगड़ते रहोगे, तो यह जमीन तुम्हारे किसी काम की नहीं होगी। जब तक तुम एकजुट होकर काम नहीं करोगे, तब तक तुम्हें इसका फल नहीं मिलेगा।”
एक दिन, भारी बारिश के कारण जमीन पर पानी भर गया। दोनों भाई अलग-अलग काम कर रहे थे, लेकिन कोई समाधान नहीं निकाल सके। अंत में, उन्होंने मिलकर काम करने का फैसला किया।
उन्होंने अपनी ताकत और समझ का इस्तेमाल किया और जमीन को बचाने के लिए एक बांध बनाया। यह काम आसान नहीं था, लेकिन जब उन्होंने मिलकर काम किया, तो उन्हें सफलता मिली।
जब वे वापस अपने पिता के पास लौटे, तो उन्होंने कहा, “पिताजी, हमें आज समझ आया कि एकजुटता और त्याग के बिना कोई भी काम सफल नहीं हो सकता।”
सुरेश ने अपने बेटों को गले लगाते हुए कहा, “त्याग और एकता ही परिवार की असली ताकत है। जब हम अपने स्वार्थ को छोड़ देते हैं, तो परिवार मजबूत होता है।”
शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि परिवार में एकता और त्याग से बड़ी कोई चीज नहीं होती। जब हम अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर काम करते हैं, तो हम न केवल खुद को, बल्कि पूरे परिवार को मजबूत बनाते हैं।
पहेली का उत्तर : प्याज
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प्रार्थना:
हम उस त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की आराधना करते है जो अपनी शक्ति से इस संसार का पालन-पोषण करते है उनसे हम प्रार्थना करते है कि वे हमें इस जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दे और हमें मोक्ष प्रदान करें। जिस प्रकार से एक ककड़ी अपनी बेल से पक जाने के पश्चात् स्वतः की आज़ाद होकर जमीन पर गिर जाती है उसी प्रकार हमें भी इस बेल रुपी सांसारिक जीवन से जन्म मृत्यु के सभी बन्धनों से मुक्ति प्रदान कर मोक्ष प्रदान करें।
मंत्र:
तपसा सर्वं समृद्धं, ज्ञानं विद्या समृद्धिता।
सर्वसुखं यथा विश्वे, सुखदं परमं यथा॥
अर्थः तपस्या से समृद्धि, ज्ञान से विद्या की प्राप्ति होती है। जैसे सम्पूर्ण संसार सुखी होता है, वैसे ही परम सुख की प्राप्ति होती है।
गर्भ संवाद:
मेरे प्यारे शिशु, मेरे बच्चे, मैं तुम्हारी माँ हूँ …… माँ!
— आज मैं तुम्हे तुम्हारे कुछ महानतम गुणों की याद दिला रही हूँ जो तुम्हें परमात्मा का अनमोल उपहार हैं।
— प्रेम स्वरूप परमात्मा का अंश होने के कारण तुम्हारा हृदय भी प्रेम से भरपूर है, तुम्हारी हर अदा में परमात्मा का प्रेम झलकता है।
— तुम्हारे हृदय में सम्पूर्ण मानवमात्र के प्रति समभाव है।
— तुम्हारा हृदय सबके लिए दया और करुणा से भरपूर रहता है।
— क्षमाशीलता के गुण के कारण सभी तुम्हारा सम्मान करते हैं, जिससे तुम्हारा स्वभाव और विनम्र हो जाता है।
— नम्रता तुम्हारा विशेष गुण है।
— मेरे बच्चे। तुम्हारा प्रत्येक कार्य सेवा-भाव से परिपूर्ण होता है।
— सहनशीलता तुम्हारा स्वाभाविक गुण है।
— धैर्यपूर्वक प्रत्येक कार्य को करना तुम्हारी महानता है।
— तुम्हारा मन आंतरिक रूप से स्थिर और शांत है।
— मेरे बच्चे! तुम बल और साहस के स्वामी हो।
— तुम अनुशासन प्रिय हो।
— कृतज्ञता का गुण तुम्हारे व्यवहार की शोभा बढ़ाता है।
— तुम अपनो से बड़ों को सम्मान और छोटों को प्रेम देते हो।
— तुम भाव से बहुत भोले हो लेकिन जरूरत पड़ने पर अपनी कठोरता भी दिखाते हो।
— तुम अपनो से छोटों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हो।
— तुम सत् और असत के पारखी हो।
— तुम्हारा व्यवहार चन्द्रमा के समान शीतल है।
— तुम सबसे इतना मीठा बोलते हो कि सभी तुम पर मोहित हो जाते हैं।
— तुम्हारा व्यक्तित्व परम प्रभावशाली है।
— तुम हमेशा सत्य बोलना ही पसंद करते हो।
— तुम हाजिर जवाबी हो।
— तुम्हारे मुख से निकला एक-एक शब्द मधुर और आकर्षक होता है।
— तुम मन, वचन और कर्म से पवित्र हो।
— घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है। तुम्हारे रूप में मुझे जैसे दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, तुम्हे पाकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। जल्द ही इस सुन्दर संसार में तुम्हारा आगमन होगा। तुम्हारा स्वागत करने के लिए सभी बेचैन हैं।
गर्भ संवाद:
“मेरे बच्चे! जब तुम्हारे पास आत्मविश्वास होता है, तो तुम्हारे सामने आने वाली हर मुश्किल को तुम आसानी से पार कर सकते हो। आत्मविश्वास तुम्हें जीवन की हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार करता है। यह तुम्हारे भीतर की शक्ति को जागृत करता है और तुम किसी भी डर को मात दे सकते हो। मैं चाहती हूं कि तुम अपने आत्मविश्वास को हमेशा बनाए रखो, क्योंकि यही तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत है।”
पहेली:
एक घोडा ऐसा जिसकी छ: टाँगे दो सुम,
और तमाशा ऐसा देखा पीठ के ऊपर दुम।
कहानी: सपने सच होते हैं
किसी छोटे से गांव में रिया नाम की एक लड़की रहती थी। रिया का सपना था कि वह एक दिन एक प्रसिद्ध बैले डांसर बने। लेकिन उसका सपना गांव के माहौल से बिल्कुल अलग था। उसके परिवार और गांव के लोगों को यह लगता था कि बैले डांस जैसे शौक का कोई भविष्य नहीं है।
रिया के पिता एक साधारण किसान थे। उन्होंने रिया से कहा, “बेटा, डांस से कुछ नहीं होता। यह समय बर्बाद करने जैसा है। तुम्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए और सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करनी चाहिए।”
लेकिन रिया के दिल में अपने सपने को पूरा करने का जुनून था। उसने अकेले ही अपने अभ्यास को जारी रखा। वह अपने कमरे में खुद से डांस करती, ऑनलाइन वीडियो देखकर नई तकनीकें सीखती और खुद को सुधारती रहती।
एक दिन, एक डांस प्रतियोगिता के लिए घोषणा हुई, जो पास के शहर में आयोजित हो रही थी। रिया ने प्रतियोगिता में भाग लेने का निर्णय लिया। उसे पता था कि अगर उसने इस बार खुद को साबित नहीं किया, तो शायद उसे कभी और मौका न मिले। रिया के पास डांस कॉस्ट्यूम खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। उसने अपनी मां से यह बात बताई।
मां ने अपनी बचत में से पैसे दिए और कहा, “अगर तुम्हारे पिता यह नहीं समझते कि तुम्हारा सपना कितना महत्वपूर्ण है, तो मैं तुम्हें सपोर्ट करूंगी। जाओ और अपना सर्वश्रेष्ठ दो।”
प्रतियोगिता का दिन आया। जब रिया मंच पर गई, तो उसने अपनी आत्मा और जुनून के साथ परफॉर्म किया। उसकी हर हरकत में उसका समर्पण और मेहनत झलक रही थी। दर्शक उसकी परफॉर्मेंस देखकर हैरान रह गए। रिया ने प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल किया। इसके बाद, उसे शहर के एक प्रसिद्ध डांस अकादमी से प्रशिक्षण का प्रस्ताव मिला।
उसने अपने पिता से कहा, “पापा, मैंने हमेशा आपसे सीखा है कि मेहनत और ईमानदारी से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। मैंने अपने सपने को सच कर दिखाया है।”
उस दिन के बाद, रिया के पिता ने उसकी मेहनत को समझा और उसका साथ दिया। रिया ने अपने जुनून को जीने के लिए अपने सपनों का पीछा किया और वह एक प्रसिद्ध बैले डांसर बन गई।
शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सपने सच होते हैं, अगर हम उन्हें सच्चे दिल से पूरा करने की कोशिश करें। मेहनत, समर्पण और आत्मविश्वास से हर सपना साकार किया जा सकता है।
पहेली का उत्तर : तराजू
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प्रार्थना:
हे बुद्धिदाता श्रीगणेश, मुझे सदा सद्बुद्धि प्रदान कीजिए। हे विघ्नहर्ता, अपने पाश से मेरे सर्व ओर सुरक्षा कवच निर्मित कीजिए और मेरे जीवन में आने वाले सर्व संकटों का निवारण कीजिए।
हे मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम, मेरा जीवन भी आप ही की भांति आदर्श बने, इस हेतु आप ही मुझ पर कृपा कीजिए।
हे बजरंग बली, आपकी कृपा से निर्भयता, अखंड सावधानता, दास्यभाव आदि आपके गुण मुझमें भी आने दीजिए।
हे महादेव, आपकी ही भांति मुझमें भी वैराग्यभाव निर्मित होने दीजिए।
हे जगदंबे माता, मां की ममता देकर आप मुझे संभालिए। आपकी कृपादृष्टि मुझ पर निरंतर बनी रहे और आप मेरी सदैव रक्षा कीजिए।
मंत्र:
ॐ आदित्याय च सोमाय मंगळाय बुधाय च।
गुरु शुक्र शनिभ्यश्च राहवे केतवे नमः॥
अर्थः सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु सभी ग्रहों की कृपा से हमारा जीवन शांतिपूर्ण हो।
गर्भ संवाद:
मेरे प्यारे शिशु, मेरे बच्चे, मैं तुम्हारी माँ हूं…… माँ!
— आज मैं तुम्हे तुम्हारे कुछ भौतिक गुणों की याद दिला रही हूँ जो तुम्हे परमात्मा का अनमोल उपहार हैं।
— परम तेजस्वी ईश्वर का अंश होने के कारण तुम्हारे मुख पर सूर्य के समान दिव्य तेज और ओज रहता है।
— तुम्हारे नैन-नक्श तीखे और बहुत सुन्दर है, तुम्हारा सुन्दर मुखड़ा सबको बहुत प्यारा लगता है।
— तुम्हारे चेहरे का रंग गोरा और सबका मन मोह लेने वाला है।
— तुम्हारी हर अदा सुन्दरतम ईश्वर की झलक लिए हुए है, तुम्हारा माथा चौड़ा है, तुम्हारी आँखें बड़ी है, तुम्हारी भौहें तीर के आकार की तरह बड़ी है, तुम्हारी पलकें काली और बड़ी हैं।
— तुम्हारे होंठ फूल की तरह कोमल और सुन्दर हैं, तुम्हारे चेहरे पर हर पल एक मधुर मुस्कान छाई रहती है।
— तुम्हारी बुद्धि कुशाग्र है, तुम्हारी वाणी मधुर और सम्मोहन करने वाली है।
— तुम बहुत अच्छे खिलाडी हो, तुम्हारा शरीर तंदुरुस्त और फुर्तीला है। (किसी विशेष खेल के प्रति शिशु के मन में प्रतिभा विकसित करनी हो तो यहाँ कह सकते हैं)
— तुम बहुत सुंदर दिखते हो, बड़े होने पर भी तुम्हारी सुंदरता और निखरती जाएगी।
— तुम्हारी हर अदा बहुत निराली और अनोखी है।
— घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है। तुम्हारे रूप में मुझे जैसे दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, तुम्हे पाकर में बहुत प्रसन्न हूँ, जल्द ही इस सुन्दर संसार में तुम्हारा आगमन होगा। तुम्हारा स्वागत करने के लिए सभी बेचैन है।
पहेली:
बेशक न हो हाथ में हाथ,
जीता है वह आपके साथ।
कहानी: चमकने से पहले संघर्ष
अंशुल नाम का एक लड़का एक छोटे शहर में रहता था। अंशुल का सपना था कि वह एक सफल लेखक बने। वह कहानियां लिखता था, लेकिन उसकी कहानियां किसी भी प्रकाशक को पसंद नहीं आती थीं। हर बार, उसके लेखों को अस्वीकार कर दिया जाता।
अंशुल के परिवार और दोस्तों ने उससे कहा, “तुम्हारा सपना बेकार है। इसमें समय बर्बाद मत करो। एक स्थिर नौकरी ढूंढो और अपने भविष्य के बारे में सोचो।”
लेकिन अंशुल को अपनी क्षमता पर विश्वास था। उसने तय किया कि वह तब तक नहीं रुकेगा, जब तक वह अपनी कहानियों को दुनिया के सामने नहीं ला देता। उसने असफलता से हारने के बजाय इसे एक सीख के रूप में लिया।
अंशुल ने अपनी लेखन शैली को सुधारने के लिए किताबें पढ़ीं, लेखन के नए तरीके सीखे और हर दिन लिखने का अभ्यास किया। उसने अपनी कहानियों को और बेहतर बनाने के लिए आलोचना को सकारात्मक रूप से लिया।
एक दिन, उसने एक ऐसी कहानी लिखी, जो उसके दिल के बहुत करीब थी। उसने इसे एक प्रसिद्ध प्रकाशन हाउस को भेजा। हालांकि, जवाब आने में समय लगा, लेकिन इस बार उसे सफलता मिली। प्रकाशक ने उसकी कहानी को स्वीकार कर लिया।
उसकी पहली किताब प्रकाशित हुई और बहुत बड़ी हिट साबित हुई। लोग उसकी कहानियों को पसंद करने लगे। उसकी मेहनत और संघर्ष ने उसे उस मुकाम तक पहुंचाया, जहां वह हमेशा पहुंचना चाहता था।
अंशुल ने एक इंटरव्यू में कहा, “हर सफल व्यक्ति की कहानी संघर्ष से शुरू होती है। सफलता की चमक तभी आती है, जब आप असफलता की आग से गुजरते हैं। मेरा संघर्ष ही मेरी सबसे बड़ी ताकत है।”
शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हर सफलता के पीछे संघर्ष होता है। अगर हम असफलता को सीखने का अवसर मानें और निरंतर प्रयास करते रहें, तो सफलता निश्चित है।
पहेली का उत्तर : परछाई
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प्रार्थना:
तूने हमें उत्पन्न किया, पालन कर रहा है तू।
तुझसे ही पाते प्राण हम, दुखियों के कष्ट हरता तू ॥
तेरा महान् तेज है, छाया हुआ सभी स्थान।
सृष्टि की वस्तु-वस्तु में, तू हो रहा है विद्यमान ॥
तेरा ही धरते ध्यान हम, मांगते तेरी दया।
ईश्वर हमारी बुद्धि को, श्रेष्ठ मार्ग पर चला ॥
मंत्र:
धन्यं धर्मस्य कर्मणां, सुखं श्रेयोऽनुवर्तते।
सुखमात्मनि पश्यन्ति, निराकारं सदा व्रजेत्॥
अर्थः जो धर्म के कार्यों में भाग लेता है, वही धन्य है। उसका सुख स्थायी होता है और वह हमेशा निर्विकार होकर संतुष्ट रहता है।
गर्भ संवाद:
मेरे प्यारे शिशु मेरे बच्चे, मैं तुम्हारी माँ हूं…… माँ!
— आज मैं तुम्हे तुम्हारे कुछ महानतम गुणों की याद दिला रही रही हूँ जो तुम्हे परमात्मा का अनमोल उपहार है।
— मेरे बच्चे! तुम्हारे मस्तिष्क में अपार क्षमता है। तुम्हारी बुद्धि तीव्र है।
— तुम आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक जैसी क्षमता लेकर आ रहे हो। तुममे कठिन से कठिन समस्या को सुलझाने की योग्यता है।
— तुम रामानुजन जैसी गणित के सवालों को हल करने की क्षमता रखते हो।
— विवेकानंद जैसी महान प्रतिभा है तुममें।
— तुम्हारी याददाश्त बहुत अच्छी है, जो बात तुम याद रखना चाहो तुम्हें सदा याद रहती है।
— तुम्हारी एकाग्रता कमाल की है। जिस काम पर तुम फोकस करते हो उसमें बेहतरीन परिणाम लेकर आते हो।
— कोई भी विषय, कोई भी टॉपिक तुम्हारे लिए कठिन नहीं, हर विषय को अपनी लगन से, परिश्रम से तुम सरल बना लेते हो।
— तुम्हारे भीतर अनंत संभावनाएं छुपी हुई है।
— तुम्हें म्यूजिक का बहुत शौक है, तुम सभी वाद्य यंत्र बजाना जानते हो। ढोलक, गिटार, तबला, हारमोनियम, तुम बहुत अच्छे से बजा सकते हो।
— तुम्हारा दिमाग बहुत तेज चलता है। मुश्किल से मुश्किल समस्या का भी तुम बड़ी आसानी से हल निकाल लेते हो।
— तुम्हारी वाणी में मिठास है। तुम एक बहुत अच्छे गायक हो। जब तुम गाते हो तो सभी मंत्रमुग्ध हो जाते है।
— तुम्हें पढ़ाई में सभी सब्जेक्ट अच्छे लगते है। जो भी पढ़ते हो बड़ी आसानी से याद हो जाता है।
गर्भ संवाद:
“असफलता को अपने जीवन का हिस्सा समझो, क्योंकि वह तुम्हे सिखाती है। हर असफलता से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है और यही सीख हमें अगले कदम में सफलता दिलाती है। जब तुम असफलता को एक सबक मानकर उसे सुधारने का प्रयास करते हो, तो वह तुम्हारे लिए सफलता के नए रास्ते खोल देती है। मैं चाहती हूं कि तुम असफलता से निराश न होकर, उससे ताकत और ज्ञान प्राप्त करो।”
पहेली:
जो तुझमे है वह उसमे नहीं, जो झंडे में है वह डंडे में नहीं।
कहानी: छठ पूजा का अद्भुत दृश्य
उत्तर भारत के एक छोटे से गांव में छठ पूजा का उत्सव बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता था। यह त्योहार सूर्य देवता और छठी मैया की आराधना का प्रतीक था, जिसमें लोग अपने जीवन में समृद्धि और सुख-शांति की कामना करते थे।
इस गांव में पूजा की सबसे पुरानी परंपरा को निभाने वाली शारदा देवी थीं। हर साल वह अपनी पूरी निष्ठा और भक्ति के साथ छठ पूजा करती थीं। उनके व्रत और पूजा को देखकर गांव के लोग प्रेरित होते थे। शारदा देवी के परिवार में उनकी बहू अंजलि भी थी, जो हाल ही में शादी के बाद पहली बार छठ पूजा में शामिल हो रही थी।
अंजलि को पूजा की विधियों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। उसने अपनी सास से पूछा, “मांजी, यह पूजा इतनी कठिन क्यों होती है? उपवास करना, गंगा किनारे घंटों खड़े रहना। क्या यह सब जरूरी है?”
शारदा देवी ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, छठ पूजा केवल एक अनुष्ठान नहीं है। यह हमारी आस्था, त्याग, और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। जब हम सूर्य देवता की पूजा करते हैं, तो हम जीवन और ऊर्जा के स्रोत का धन्यवाद करते हैं।”
अंजलि ने पहली बार छठ पूजा का व्रत रखने का निर्णय लिया। उसने पूरे दिल से तैयारी की। गांव की महिलाएं सुबह से ही गंगा किनारे इकट्ठा होने लगीं। पूजा स्थल को फूलों और दीपों से सजाया गया था। जैसे ही शाम का समय हुआ, सभी महिलाएं गंगा के ठंडे पानी में खड़ी होकर सूर्य देवता की आराधना करने लगीं।
अंजलि के लिए यह अनुभव अद्भुत था। जब उसने पहली बार सूर्य को अर्घ्य दिया, तो उसकी आंखों में आंसू थे। उसने महसूस किया कि यह पूजा केवल परंपरा नहीं, बल्कि आत्मा से जुड़ने का एक माध्यम है।
सुबह की पहली किरण के साथ, सभी ने फिर से गंगा के किनारे अर्ध्य दिया। यह दृश्य इतना अद्भुत था कि अंजलि ने अपनी सास से कहा, “मांजी, अब मुझे समझ में आया कि छठ केवल एक त्योहार नहीं है। यह हमारी आत्मा और प्रकृति के साथ एक गहरा संबंध है।”
शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में त्याग, आस्था, प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है।
पहेली का उत्तर : ‘झ’
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सप्तश्लोकी गीता:
श्री भगवान ने कहा— अनुभव, प्रेमाभक्ति और साधनों से युक्त अत्यंत गोपनीय अपने स्वरूप का ज्ञान मैं तुम्हें कहता हूं, तुम उसे ग्रहण करो।
मेरा जितना विस्तार है, मेरा जो लक्षण है, मेरे जितने और जैसे रूप, गुण और लीलाएं हैं—मेरी कृपा से तुम उनका तत्व ठीक-ठीक वैसा ही अनुभव करो।
सृष्टि के पूर्व केवल मैं-ही-मैं था। मेरे अतिरिक्त न स्थूल था न सूक्ष्म और न तो दोनों का कारण अज्ञान। जहां यह सृष्टि नहीं है, वहां मैं-ही-मैं हूं और इस सृष्टि के रूप में जो कुछ प्रतीत हो रहा है, वह भी मैं ही हूं और जो कुछ बचा रहेगा, वह भी मैं ही हूं।
वास्तव में न होने पर भी जो कुछ अनिर्वचनीय वस्तु मेरे अतिरिक्त मुझ परमात्मा में दो चंद्रमाओं की तरह मिथ्या ही प्रतीत हो रही है, अथवा विद्यमान होने पर भी आकाश-मंडल के नक्षत्रो में राहु की भांति जो मेरी प्रतीति नहीं होती, इसे मेरी माया समझना चाहिए।
जैसे प्राणियों के पंचभूतरचित छोटे-बड़े शरीरों में आकाशादि पंचमहाभूत उन शरीरों के कार्यरूप से निर्मित होने के कारण प्रवेश करते भी है और पहले से ही उन स्थानों और रूपों में कारणरूप से विद्यमान रहने के कारण प्रवेश नहीं भी करते, वैसे ही उन प्राणियों के शरीर की दृष्टि से मैं उनमें आत्मा के रूप से प्रवेश किए हुए हूं और आत्म दृष्टि से अपने अतिरिक्त और कोई वस्तु न होने के कारण उन में प्रविष्ट नहीं भी हूं।
यह ब्रह्म नहीं, यह ब्रह्म नहीं— इस प्रकार निषेध की पद्धति से और यह ब्रह्म है, यह ब्रह्म है— इस अन्वय की पद्धति से यही सिद्ध होता है कि सर्वातीत एवं सर्वस्वरूप भगवान ही सर्वदा और सर्वत्र स्थित है, वही वास्तविक तत्व है। जो आत्मा अथवा परमात्मा का तत्व जानना चाहते हैं, उन्हें केवल इतना ही जानने की आवश्यकता है।
ब्रह्माजी! तुम अविचल समाधि के द्वारा मेरे इस सिद्धांत में पूर्ण निष्ठा कर लो। इससे तुम्हें कल्प-कल्प में विविध प्रकार की सृष्टि रचना करते रहने पर भी कभी मोह नहीं होगा।
मंत्र का अर्थः
जो व्यक्ति अपने कर्मों को भगवान के प्रति समर्पित कर, उनका परिणाम भगवान पर छोड़ देता है, वह किसी भी पाप से बचा रहता है और भगवान के शुद्ध रूप को देखता है।
गर्भ संवाद:
— मेरे प्यारे शिशु, मेरे राज दुलार, मैं तुम्हारी माँ हूँ.......माँ !
— मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तुम मेरे गर्भ में पूर्ण रूप से सुरक्षित हो, तुम हर क्षण पूर्ण रूप से विकसित हो रहे हो।
— तुम मेरे हर भाव को समझ सकते हो क्योंकि तुम पूर्ण आत्मा हो।
— तुम परमात्मा की तरफ से मेरे लिए एक सुन्दरतम तोहफा हो, तुम शुभ संस्कारी आत्मा हो, तुम्हारे रूप में मुझे परमात्मा की दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, परमात्मा ने तुम्हें सभी विलक्षण गुणों से परिपूर्ण करके ही भेजा है, परमात्मा की दिव्य संतान के रूप में तुम दिव्य कार्य करने के लिए ही आए हो। मेरे बच्चे! तुम
ईश्वर का परम प्रकाश रूप हो, परमात्मा की अनंत शक्ति तुम्हारे अंदर विद्यमान है, ईश्वर का तेज तुम्हारे माथे पर चमक रहा है, परमात्मा के प्रेम की चमक तुम्हारी आँखों में दिखाई देती है, तुम ईश्वर के प्रेम का साक्षात भण्डार हो, तुम परमात्मा के एक महान उद्देश्य को लेकर इस संसार में आ रहे हो, परमात्मा ने तुम्हें इंसान रूप में इंसानियत के सभी गुणों से भरपूर किया है।
— तुम हर इंसान को परमात्मा का रूप समझते हो, और सभी के साथ प्रेम का व्यवहार करते हो, तुम जानते हो अपने जीवन के महानतम लक्ष्य को, तुम्हें इस संसार की सेवा करनी है, सभी से प्रेम करना है, सभी की सहायता करनी है, और परमात्मा ने जो विशेष लक्ष्य तुम्हें दिया है, वह तुम्हें अच्छे से याद रहेगा।
— परमात्मा की भक्ति में तुम्हारा मन बहुत लगता है, तुम प्रभु के गुणों का गायन करके बहुत खुश होते हो, तुम्हारे रोम-रोम में प्रभु का प्रेम बसा हुआ है। स्त्रियों के प्रति तुम विशेष रूप से आदर का भाव अनुभव करते हो, सभी स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखते हो।
— तुम्हारा उद्देश्य संसार में सबको खुशियाँ बाँटना है, सब तरह से आजाद रहते हुए तुम सबको कल्याण का मार्ग दिखाने आ रहे हो, परमात्मा से प्राप्त जीवन से तुम पूर्ण रूप से संतुष्ट हो, तुम सदैव परमात्मा के साये में सुरक्षित हो।
— मानव जीवन के संघर्षो को जीतना तम्हें खूब अच्छी तरह से आता है, जीवन के प्रत्येक कार्य को करने का तुम्हारा तरीका बहुत प्यारा है, जीवन की हर परेशानी का हल ढूँढने में तुम सक्षम हो, तुम हमेशा अपने जीवन के परम लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहोगे।
— मेरी तरह तुम्हारे पिता भी तुम्हें देखने के लिए आतुर हैं, मेरा और तुम्हारे पिता का आशीष सदैव तुम्हारे साथ है।
— यह पृथ्वी हमेशा से प्रेम करने वाले अच्छे लोगों से भरी हुई है, यह सृष्टि परमात्मा की अनंत सुंदरता से भरी हुई है, यहाँ के सभी सुख तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, गर्भावस्था का यह सफर तुम्हें परमात्मा के सभी दैविक संस्कारों से परिपूर्ण कर देगा।
—घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है।
पहेली:
आगे से गाँठ गठीला, पीछे से वो टेढ़ा।
हाथ लगाए कहर खुदा का, बूझ पहेली मेरी ।
कहानी: गुरु नानक जयंती का संदेश
पंजाब के एक छोटे से गांव में हर साल गुरु नानक जयंती बड़े हर्षोल्लास से मनाई जाती थी। यह दिन गुरु नानक देव जी के उपदेशों और उनके द्वारा दिए गए जीवन के महत्वपूर्ण संदेशों को याद करने का अवसर था।
इस गांव में रहने वाला हरजीत सिंह हर साल इस दिन अपने दोस्तों और परिवार के साथ गुरुद्वारा जाता था। लेकिन इस बार गुरु नानक जयंती का यह पर्व हरजीत के लिए खास था।
हरजीत का बेटा करण, जो विदेश में पढ़ाई कर रहा था, इस बार अपने पिता के साथ त्योहार में शामिल होने के लिए आया था। करण ने गुरुद्वारे में जाकर कहा, “पापा, मैंने हमेशा देखा है कि आप गुरु नानक जयंती पर इतनी श्रद्धा से सेवा करते हैं। क्या आप मुझे उनके जीवन के बारे में और उनके संदेशों के बारे में बता सकते हैं?”
हरजीत ने मुस्कुराते हुए अपने बेटे को समझाया, “गुरु नानक देव जी ने हमें सिखाया कि सच्चा धर्म सेवा, परोपकार और ईमानदारी है। उन्होंने यह भी सिखाया कि भगवान हर जगह हैं और हर इंसान में उनकी झलक है। उनके तीन प्रमुख संदेश— नाम जपो, कीर्तन करो और वंड छको। हमें एक सच्चा जीवन जीने का मार्ग दिखाते हैं।”
गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब के पाठ के बाद लंगर का आयोजन हुआ। हरजीत और करण ने लंगर की सेवा में हिस्सा लिया। करण ने देखा कि लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ बैठकर खाना खा रहे थे। उसने अपने पिता से कहा, “पापा, यह तो अद्भुत है। यह सिखाता है कि सब लोग समान हैं।”
हरजीत ने कहा, “यही गुरु नानक देव जी का संदेश है। उन्होंने हमेशा सिखाया कि इंसान को जात-पात, धर्म और आर्थिक स्थिति के भेदभाव से ऊपर उठकर जीना चाहिए । यही सच्ची मानवता है।”
करण ने उस दिन महसूस किया कि गुरु नानक देव जी के उपदेश केवल धार्मिक शिक्षा नहीं, बल्कि एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए प्रेरणा हैं। उसने अपने पिता से वादा किया कि वह उनके उपदेशों का पालन करेगा और दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहेगा।
शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि गुरु नानक देव जी के उपदेश आज भी हमारे जीवन को सही दिशा देने और समाज को बेहतर बनाने में सहायक हैं। सेवा, ईमानदारी और समानता के उनके संदेश को अपनाकर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
पहेली का उत्तर : बिच्छू
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प्रार्थना:
हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं, जिन्होंने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय हैं और ज्ञान के भंडार हैं, जो पापों तथा अज्ञानता को दूर करने वाले हैं वे हमें प्रकाश दिखाएँ और सत्य के मार्ग पर ले जाऐं।
मंत्र का अर्थ: अर्थः
इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का स्वामी भगवान है। जो कुछ भी जगत में है, वह भगवान का है। इसलिए उसका त्याग करके ही उसे भोगो और किसी की संपत्ति हड़पने का प्रयास मत करो।
गर्भ संवाद:
मेरे प्यारे शिशु, मेरे बच्चे, मैं तुम्हारी माँ हूँ …… माँ!
— आज मैं तुम्हे तुम्हारे कुछ महानतम गुणों की याद दिला रही हूँ जो तुम्हें परमात्मा का अनमोल उपहार हैं।
— प्रेम स्वरूप परमात्मा का अंश होने के कारण तुम्हारा हृदय भी प्रेम से भरपूर है, तुम्हारी हर अदा में परमात्मा का प्रेम झलकता है।
— तुम्हारे हृदय में सम्पूर्ण मानवमात्र के प्रति समभाव है।
— तुम्हारा हृदय सबके लिए दया और करुणा से भरपूर रहता है।
— क्षमाशीलता के गुण के कारण सभी तुम्हारा सम्मान करते हैं, जिससे तुम्हारा स्वभाव और विनम्र हो जाता है।
— नम्रता तुम्हारा विशेष गुण है।
— मेरे बच्चे। तुम्हारा प्रत्येक कार्य सेवा-भाव से परिपूर्ण होता है।
— सहनशीलता तुम्हारा स्वाभाविक गुण है।
— धैर्यपूर्वक प्रत्येक कार्य को करना तुम्हारी महानता है।
— तुम्हारा मन आंतरिक रूप से स्थिर और शांत है।
— मेरे बच्चे! तुम बल और साहस के स्वामी हो।
— तुम अनुशासन प्रिय हो।
— कृतज्ञता का गुण तुम्हारे व्यवहार की शोभा बढ़ाता है।
— तुम अपनो से बड़ों को सम्मान और छोटों को प्रेम देते हो।
— तुम भाव से बहुत भोले हो लेकिन जरूरत पड़ने पर अपनी कठोरता भी दिखाते हो।
— तुम अपनो से छोटों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हो।
— तुम सत् और असत के पारखी हो।
— तुम्हारा व्यवहार चन्द्रमा के समान शीतल है।
— तुम सबसे इतना मीठा बोलते हो कि सभी तुम पर मोहित हो जाते हैं।
— तुम्हारा व्यक्तित्व परम प्रभावशाली है।
— तुम हमेशा सत्य बोलना ही पसंद करते हो।
— तुम हाजिर जवाबी हो।
— तुम्हारे मुख से निकला एक-एक शब्द मधुर और आकर्षक होता है।
— तुम मन, वचन और कर्म से पवित्र हो।
— घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है। तुम्हारे रूप में मुझे जैसे दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, तुम्हे पाकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। जल्द ही इस सुन्दर संसार में तुम्हारा आगमन होगा। तुम्हारा स्वागत करने के लिए सभी बेचैन हैं।
गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे! तुम्हारा भविष्य तुम्हारे हाथों में है, और तुम्हें उसे बनाने के लिए अभी से काम शुरू करना होगा। भविष्य कभी भी स्वतः नहीं आता, उसे अपने प्रयासों, दृढ़ता और सही निर्णय से बनाना पड़ता है। मैं चाहती हूं कि तुम आज से ही अपने भविष्य को आकार देना शुरू करो, क्योंकि जितना जल्दी तुम काम शुरू करोगे, उतना ही तुम्हारा भविष्य उज्जवल होगा।”
पहेली:
कमर बाँध कोने में पड़ी,
बड़ी सबेरे अब है खड़ी।
कहानी: धरती का स्नेह
धरती, हमारी मां की तरह है। यह हमें न केवल जीवन देती है, बल्कि अपनी गोदी में हमें हर प्रकार की सुख-सुविधाएं भी प्रदान करती है। यह कहानी एक छोटे से गाँव के एक बच्चे की है, जो धरती के स्नेह को महसूस करता है और धीरे-धीरे इसे समझने लगता है।
गाँव में एक छोटा सा लड़का था, जिसका नाम रवी था। रवी का घर गाँव के बाहर खेतों के पास था, जहाँ उसके माता-पिता खेती करते थे। रवी को हर दिन सुबह-सुबह खेतों में काम करने का आदी बना दिया गया था, ताकि वह धरती से जुड़ा रहे और जीवन की कठिनाइयों को समझ सके।
एक दिन रवी अपने पिता के साथ खेत में हल चला रहा था। उसने देखा कि खेतों में उग रहे हर पौधे में अद्वितीय सौंदर्य था। चिड़ियाँ खेतों में उड़ रही थीं, तितलियाँ फूलों के बीच रंग-बिरंगी हो रही थीं, और हवा के हल्के झोंके उसे शीतलता का अहसास दिला रहे थे। रवी ने अपने पिता से पूछा, “पापा, ये धरती हमें इतनी सारी खुशियाँ क्यों देती है?”
उसके पिता ने मुस्कुराते हुए कहा, “रवी, धरती अपने स्नेह को हम तक पहुंचाती है, क्योंकि हम उसी का हिस्सा हैं। जैसे हम अपने बच्चों का ख्याल रखते हैं, वैसे ही धरती भी हमसे प्यार करती है और हमें साकार रूप से सब कुछ देती है। हमें भी इसका आदर करना चाहिए और इसे नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए।”
रवी ने अपने पिता की बातों को ध्यान से सुना और उसने तय किया कि वह जीवन भर धरती के साथ अच्छा व्यवहार करेगा। उसने अपने दोस्तों को भी यह सिखाया कि धरती हमें जो कुछ भी देती है, उसका हमें सही तरीके से उपयोग करना चाहिए।
धीरे-धीरे, रवी का गाँव अन्य गाँवों के मुकाबले हरियाली और साफ-सफाई में बढ़ने लगा। रवी की यह छोटी सी पहल धीरे-धीरे एक बड़े आंदोलन में बदल गई, जिसमें सभी लोग धरती के प्रति अपना प्रेम और स्नेह दिखाने लगे।
शिक्षा:
धरती का स्नेह हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी मां के साथ ही साथ धरती का भी सम्मान और प्रेम करना चाहिए। धरती हमें जीवन देती है, और हमें इसे संरक्षित रखने का दायित्व है। जब हम इसका ध्यान रखेंगे, तभी यह हमें अपनी गोदी में सुरक्षित रखेगी।
पहेली का उत्तर : झाडू
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प्रार्थना:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
भावार्थ: हम उस त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की आराधना करते है जो अपनी शक्ति से इस संसार का पालन-पोषण करते है उनसे हम प्रार्थना करते है कि वे हमें इस जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दे और हमें मोक्ष प्रदान करें। जिस प्रकार से एक ककड़ी अपनी बेल से पक जाने के पश्चात् स्वतः की आज़ाद होकर जमीन पर गिर जाती है उसी प्रकार हमें भी इस बेल रुपी सांसारिक जीवन से जन्म मृत्यु के सभी बन्धनों से मुक्ति प्रदान कर मोक्ष प्रदान करें।
मंत्र:
ॐ अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राणवल्लभे।
ज्ञान वैराग्य सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वती॥
अर्थः हे मां अन्नपूर्णा! आप हमें भोजन, ज्ञान और वैराग्य का आशीर्वाद दें।
गर्भ संवाद:
मेरे प्यारे शिशु, मेरे बच्चे, मैं तुम्हारी माँ हूं…… माँ!
— आज मैं तुम्हे तुम्हारे कुछ भौतिक गुणों की याद दिला रही हूँ जो तुम्हे परमात्मा का अनमोल उपहार हैं।
— परम तेजस्वी ईश्वर का अंश होने के कारण तुम्हारे मुख पर सूर्य के समान दिव्य तेज और ओज रहता है।
— तुम्हारे नैन-नक्श तीखे और बहुत सुन्दर है, तुम्हारा सुन्दर मुखड़ा सबको बहुत प्यारा लगता है।
— तुम्हारे चेहरे का रंग गोरा और सबका मन मोह लेने वाला है।
— तुम्हारी हर अदा सुन्दरतम ईश्वर की झलक लिए हुए है, तुम्हारा माथा चौड़ा है, तुम्हारी आँखें बड़ी है, तुम्हारी भौहें तीर के आकार की तरह बड़ी है, तुम्हारी पलकें काली और बड़ी हैं।
— तुम्हारे होंठ फूल की तरह कोमल और सुन्दर हैं, तुम्हारे चेहरे पर हर पल एक मधुर मुस्कान छाई रहती है।
— तुम्हारी बुद्धि कुशाग्र है, तुम्हारी वाणी मधुर और सम्मोहन करने वाली है।
— तुम बहुत अच्छे खिलाडी हो, तुम्हारा शरीर तंदुरुस्त और फुर्तीला है। (किसी विशेष खेल के प्रति शिशु के मन में प्रतिभा विकसित करनी हो तो यहाँ कह सकते हैं)
— तुम बहुत सुंदर दिखते हो, बड़े होने पर भी तुम्हारी सुंदरता और निखरती जाएगी।
— तुम्हारी हर अदा बहुत निराली और अनोखी है।
— घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है। तुम्हारे रूप में मुझे जैसे दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, तुम्हे पाकर में बहुत प्रसन्न हूँ, जल्द ही इस सुन्दर संसार में तुम्हारा आगमन होगा। तुम्हारा स्वागत करने के लिए सभी बेचैन है।
गर्भ संवाद:
“मेरे बच्चे! सपने सच होते हैं, लेकिन उनके लिए साहस और संघर्ष की जरूरत होती है। जब तुम अपने सपनों को पूरा करने की ठान लेते हो, तो तुम्हें अपने डर और संदेह को पार करना होता है। यह साहस ही तुम्हें हर कदम पर मदद करेगा और तुम्हारे लक्ष्य तक पहुंचने का रास्ता दिखाएगा। मैं चाहती हूं कि तुम अपने सपनों के पीछे साहस से दौड़ो, क्योंकि यही तुम्हारी सफलता की कुंजी है।”
पहेली:
हाल पानी का देखकर बहुत ताज्जुब आए,
दरख्त में डूबा भरा, डालियाँ, चिड़ियाँ प्यासी जाए।
कहानी: संघर्षों की कहानी
किसी छोटे से शहर में सुनीता नाम की एक मां अपने तीन बच्चों के साथ रहती थी। उसके पति की मृत्यु एक दुर्घटना में हो गई थी और सुनीता पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ गई थी।
सुनीता ने कभी हार नहीं मानी। उसने दूसरों के घरों में काम करना शुरू किया और अपने बच्चों की हर जरूरत पूरी करने की कोशिश की। वह अपने बच्चों से हमेशा कहती, “हम गरीब जरूर हैं, लेकिन हमारी मेहनत और ईमानदारी हमें जिंदगी में आगे बढ़ाएगी।”
सबसे बड़ा बेटा राजू, पढ़ाई में बहुत होशियार था। वह इंजीनियर बनना चाहता था। लेकिन उसकी पढ़ाई के लिए पैसे जुटाना सुनीता के लिए आसान नहीं था।
एक दिन, राजू ने अपनी मां से कहा, “मां, मैं अपनी पढ़ाई छोड़ देता हूं। आप इतनी मेहनत कर रही हैं, मैं आपको और परेशान नहीं करना चाहता।”
सुनीता ने अपने बेटे का हाथ पकड़कर कहा, “बेटा, जिंदगी में संघर्ष ही सफलता की कुंजी है। मैं तुम्हारी पढ़ाई के लिए कुछ भी करूंगी। तुम्हें बस मेहनत करनी है।”
सुनीता ने रातों-रात और काम शुरू किया। वह दिनभर काम करती और रात को कपड़े सिलने का काम करती। उसने अपने बेटे की फीस भरने के लिए अपने गहने तक बेच दिए।
राजू ने अपनी मां की मेहनत को देखकर और भी मेहनत की। उसने अपनी पढ़ाई में उत्कृष्टता हासिल की और एक बड़ी कंपनी में नौकरी पाई।
तो जब वह अपनी पहली तनख्वाह लेकर अपनी मां के पास आया, उसने कहा, “मां, यह सब आपकी मेहनत और संघर्ष का नतीजा है। आपने मुझे सिखाया कि जिंदगी में कुछ भी आसान नहीं होता, लेकिन मेहनत और संघर्ष से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है।”
शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि मां का संघर्ष और उसका समर्पण बच्चों के जीवन को बदल सकता है। कठिन परिस्थितियों में भी मां अपने बच्चों के लिए हर मुमकिन प्रयास करती है।
पहेली का उत्तर : ओस
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प्रार्थना:
प्रह्लाद, नारद, पाराशर, पुंडरीक, व्यास, अंबरीश, शूक, शौनक, भीष्म, दाल्भ्य, रूक्मांगद, अर्जुन, वशिष्ठ और विभीषण आदि इन परम पवित्र वैष्णवो का मै स्मरण करता हूं।
वाल्मीकि, सनक, सनंदन, तरु, व्यास, वशिष्ठ, भृगु, जाबाली, जमदग्नि, कच्छ, जनक, गर्ग, अंगिरा, गौतम, मांधाता, रितुपर्ण पृथु, सगर, धन्यवाद देने योग्य दिलीप और नल, पुण्यात्मा युधिष्ठिर, ययाति और नहुष ये सब हमारा मंगल करें।
मंत्र
ॐ आदित्याय विद्महे।
भास्कराय धीमहि।
तन्नो: भानु: प्रचोदयात्॥
अर्थ: मैं सूर्य देवता को नमन करता हूं। हे प्रभु, दिन के निर्माता, मुझे बुद्धि दो और मेरे मन को प्रकाशित करो
गर्भ संवाद:
मेरे प्यारे शिशु मेरे बच्चे, मैं तुम्हारी माँ हूं…… माँ!
— आज मैं तुम्हे तुम्हारे कुछ महानतम गुणों की याद दिला रही रही हूँ जो तुम्हे परमात्मा का अनमोल उपहार है।
— मेरे बच्चे! तुम्हारे मस्तिष्क में अपार क्षमता है। तुम्हारी बुद्धि तीव्र है।
— तुम आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक जैसी क्षमता लेकर आ रहे हो। तुममे कठिन से कठिन समस्या को सुलझाने की योग्यता है।
— तुम रामानुजन जैसी गणित के सवालों को हल करने की क्षमता रखते हो।
— विवेकानंद जैसी महान प्रतिभा है तुममें।
— तुम्हारी याददाश्त बहुत अच्छी है, जो बात तुम याद रखना चाहो तुम्हें सदा याद रहती है।
— तुम्हारी एकाग्रता कमाल की है। जिस काम पर तुम फोकस करते हो उसमें बेहतरीन परिणाम लेकर आते हो।
— कोई भी विषय, कोई भी टॉपिक तुम्हारे लिए कठिन नहीं, हर विषय को अपनी लगन से, परिश्रम से तुम सरल बना लेते हो।
— तुम्हारे भीतर अनंत संभावनाएं छुपी हुई है।
— तुम्हें म्यूजिक का बहुत शौक है, तुम सभी वाद्य यंत्र बजाना जानते हो। ढोलक, गिटार, तबला, हारमोनियम, तुम बहुत अच्छे से बजा सकते हो।
— तुम्हारा दिमाग बहुत तेज चलता है। मुश्किल से मुश्किल समस्या का भी तुम बड़ी आसानी से हल निकाल लेते हो।
— तुम्हारी वाणी में मिठास है। तुम एक बहुत अच्छे गायक हो। जब तुम गाते हो तो सभी मंत्रमुग्ध हो जाते है।
— तुम्हें पढ़ाई में सभी सब्जेक्ट अच्छे लगते है। जो भी पढ़ते हो बड़ी आसानी से याद हो जाता है।
गर्भ संवाद:
“मेरे बच्चे! जब तुम किसी चीज़ को ठान लेते हो, तो वह तुम्हारे लिए एक चुनौती नहीं, बल्कि एक अवसर बन जाती है। ठान लेने से तुम्हारे भीतर ऐसा उत्साह और शक्ति आती है, जो तुम्हे हर मुश्किल से पार कराती है। कोई भी बाधा तुम्हारे रास्ते में तब तक नहीं आएगी, जब तक तुम उस पर विश्वास रखकर उसे पार करने की ठान नहीं लेते। मैं चाहती हूं कि तुम कभी भी किसी लक्ष्य को छोटा न समझो, क्योंकि जब तुम ठान लेते हो, तो कोई भी मुश्किल तुम्हें रोक नहीं सकती।”
पहेली:
काटते है, फीसते हैं
बाँटते हैं, पर खाते नहीं।
कहानी: समय का महत्व
एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में रामू नाम का एक किसान रहता था। रामू बहुत मेहनती था, लेकिन वह अपने कामों को हमेशा टाल देता था। जब भी कोई काम सामने आता, वह कहता, “अभी तो बहुत समय है। कल कर लूंगा।” यह आदत धीरे-धीरे उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई।
एक दिन, रामू के खेत में पानी की समस्या हो गई। उसे अपने खेतों में पानी भरने के लिए समय पर नहर से जुड़ने का काम करना था। गाँव के बुजुर्गों ने उसे चेतावनी दी कि अगर वह नहर का काम जल्द नहीं करता, तो उसकी फसल बर्बाद हो जाएगी। लेकिन रामू ने उनकी बात को हल्के में लिया और सोचा, “अभी तो बहुत समय है। मैं कुछ दिनों बाद यह काम कर लूंगा।”
दिन बीतते गए, और नहर का काम अधूरा ही रहा। अचानक बारिश बंद हो गई और खेतों में पानी की कमी हो गई। रामू ने जब तक नहर बनाने का काम शुरू किया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसकी फसल सूख चुकी थी और उसका सारा परिश्रम बेकार चला गया।
रामू को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने सोचा, “अगर मैंने समय पर काम कर लिया होता, तो मेरी फसल आज बच जाती। समय का महत्व समझना कितना जरूरी है।”
रामू ने अपनी आदत बदलने का फैसला किया। अब वह हर काम समय पर करता है और कभी भी चीजों को टालता नहीं। धीरे-धीरे, उसकी स्थिति में सुधार हुआ और वह फिर से सफल किसान बन गया।
शिक्षा:
यह कहानी हमें सिखाती है कि समय का सही उपयोग करना बहुत जरूरी है। समय की बर्बादी जीवन की बर्बादी है। हमें अपने कामों को टालने के बजाय, उन्हें समय पर पूरा करना चाहिए। समय का महत्व समझने वाला व्यक्ति ही जीवन में सफल होता है।
पहेली का उत्तर : ताशपत्ती
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प्रार्थना:
1. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे (दुःखे), न दुभाया (दुःखाया) जाए या दुभाने (दुःखाने) के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे, ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दीजिए ।
2. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी धर्म का किंचितमात्र भी प्रमाण न दुभे, न दुभाया जाए या दुभाने के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
मुझे किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभाया जाए ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दीजिए।
3. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी उपदेशक साधु, साध्वी या आचार्य का अवर्णवाद, अपराध, अविनय न करने की परम शक्ति दीजिए।
4. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति न अनुमोदित किया जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
5. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी भी कठोर भाषा, तंतीली भाषा न बोली जाए, न बुलवाई जाए या बोलने के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोले तो मुझे, मृदु-ऋजु भाषा बोलने की शक्ति दीजिए।
6. हे भगवान! मुझे, किसी भी देहधारी के प्रति स्त्री, पुरुष या नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किंचितमात्र भी विषय-विकार संबंधी दोष, इच्छाएँ, चेष्टाएँ या विचार संबंधी दोष न किए जाएँ, न करवाए जाएँ या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
मुझे, निरंतर निर्विकार रहने की परम शक्ति दीजिए।
7. हे भगवान! मुझे, किसी भी रस में लुब्धता न हो ऐसी शक्ति दीजिए।
समरसी आहार लेने की परम शक्ति दीजिए।
8. हे भगवान! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष, जीवित अथवा मृत, किसी का किंचितमात्र भी अवर्णवाद, अपराध, अविनय न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
9. हे भगवान ! मुझे, जगत् कल्याण करने का निमित्त बनने की परम शक्ति दीजिए, शक्ति दीजिए, शक्ति दीजिए।
मंत्र का अर्थ:
जो व्यक्ति संसार के प्रति बिना किसी मोह के और सभी प्राणियों के कल्याण में रत होकर तत्त्व की खोज करता है, वह मेरे प्रिय भक्तों में से एक हो जाता है।
गर्भ संवाद:
— मेरे प्यारे शिशु, मेरे राज दुलार, मैं तुम्हारी माँ हूँ.......माँ !
— मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तुम मेरे गर्भ में पूर्ण रूप से सुरक्षित हो, तुम हर क्षण पूर्ण रूप से विकसित हो रहे हो।
— तुम मेरे हर भाव को समझ सकते हो क्योंकि तुम पूर्ण आत्मा हो।
— तुम परमात्मा की तरफ से मेरे लिए एक सुन्दरतम तोहफा हो, तुम शुभ संस्कारी आत्मा हो, तुम्हारे रूप में मुझे परमात्मा की दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, परमात्मा ने तुम्हें सभी विलक्षण गुणों से परिपूर्ण करके ही भेजा है, परमात्मा की दिव्य संतान के रूप में तुम दिव्य कार्य करने के लिए ही आए हो। मेरे बच्चे! तुम
ईश्वर का परम प्रकाश रूप हो, परमात्मा की अनंत शक्ति तुम्हारे अंदर विद्यमान है, ईश्वर का तेज तुम्हारे माथे पर चमक रहा है, परमात्मा के प्रेम की चमक तुम्हारी आँखों में दिखाई देती है, तुम ईश्वर के प्रेम का साक्षात भण्डार हो, तुम परमात्मा के एक महान उद्देश्य को लेकर इस संसार में आ रहे हो, परमात्मा ने तुम्हें इंसान रूप में इंसानियत के सभी गुणों से भरपूर किया है।
— तुम हर इंसान को परमात्मा का रूप समझते हो, और सभी के साथ प्रेम का व्यवहार करते हो, तुम जानते हो अपने जीवन के महानतम लक्ष्य को, तुम्हें इस संसार की सेवा करनी है, सभी से प्रेम करना है, सभी की सहायता करनी है, और परमात्मा ने जो विशेष लक्ष्य तुम्हें दिया है, वह तुम्हें अच्छे से याद रहेगा।
— परमात्मा की भक्ति में तुम्हारा मन बहुत लगता है, तुम प्रभु के गुणों का गायन करके बहुत खुश होते हो, तुम्हारे रोम-रोम में प्रभु का प्रेम बसा हुआ है। स्त्रियों के प्रति तुम विशेष रूप से आदर का भाव अनुभव करते हो, सभी स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखते हो।
— तुम्हारा उद्देश्य संसार में सबको खुशियाँ बाँटना है, सब तरह से आजाद रहते हुए तुम सबको कल्याण का मार्ग दिखाने आ रहे हो, परमात्मा से प्राप्त जीवन से तुम पूर्ण रूप से संतुष्ट हो, तुम सदैव परमात्मा के साये में सुरक्षित हो।
— मानव जीवन के संघर्षो को जीतना तम्हें खूब अच्छी तरह से आता है, जीवन के प्रत्येक कार्य को करने का तुम्हारा तरीका बहुत प्यारा है, जीवन की हर परेशानी का हल ढूँढने में तुम सक्षम हो, तुम हमेशा अपने जीवन के परम लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहोगे।
— मेरी तरह तुम्हारे पिता भी तुम्हें देखने के लिए आतुर हैं, मेरा और तुम्हारे पिता का आशीष सदैव तुम्हारे साथ है।
— यह पृथ्वी हमेशा से प्रेम करने वाले अच्छे लोगों से भरी हुई है, यह सृष्टि परमात्मा की अनंत सुंदरता से भरी हुई है, यहाँ के सभी सुख तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, गर्भावस्था का यह सफर तुम्हें परमात्मा के सभी दैविक संस्कारों से परिपूर्ण कर देगा।
—घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है।
गर्भ संवाद:
“मेरे प्यारे बच्चे! तुम्हारे भीतर वह शक्ति है, जो किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक पूरा कर सकती है। जब तुम खुद पर विश्वास करते हो, तो तुम दुनिया की किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हो। आत्मविश्वास से हर रास्ता आसान लगता है, क्योंकि जब तुम खुद पर भरोसा रखते हो, तुम किसी भी कठिनाई से पार पा सकते हो। मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा खुद पर विश्वास रखो, क्योंकि तुम्हारे पास हर चीज़ को बदलने की ताकत है।”
पहेली:
चार हैं चिड़ियाँ,
चार हैं रंग।
चारों के बदरंग,
चारों जब बैठे साथ,
लगे एक ही रंग।
कहानी: छोटे कार्य, बड़ी सफलता
एक समय की बात है, एक गाँव में विट्ठल नाम का एक लड़का रहता था। विट्ठल हमेशा सोचता था कि वह जीवन में कुछ बड़ा करेगा। लेकिन जब भी कोई काम सामने आता, वह कहता, “यह काम तो बहुत छोटा है। इससे क्या फर्क पड़ेगा?”
गाँव में एक दिन एक प्रसिद्ध विद्वान, गुरु वसंतदेव, आए। उन्होंने गाँव के लोगों को जीवन के मूल्य सिखाने के लिए एक सभा रखी। विट्ठल भी सभा में शामिल हुआ। गुरुजी ने अपनी बात शुरू करते हुए कहा, “बड़े कार्य हमेशा छोटे-छोटे प्रयासों से शुरू होते हैं। अगर आप छोटे कामों को नजरअंदाज करते हैं, तो आप कभी बड़ा नहीं बन सकते।
गुरुजी ने एक कहानी सुनाई:
एक बार एक राजा ने अपने राज्य में एक बड़ा पुल बनाने का सोचा। उसने अपने राज्य के सभी लोगों को मदद के लिए बुलाया। हर किसी को अपनी क्षमता के अनुसार योगदान देना था।
एक गरीब बूढ़ा व्यक्ति, जो ज्यादा कुछ नहीं कर सकता था, ने सोचा, “मैं क्या कर सकता हूँ? मैं तो केवल छोटी-छोटी ईंटें ला सकता हूँ।” लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और हर दिन एक ईंट लेकर पुल बनाने की जगह पर जाने लगा।
धीरे-धीरे, उसकी छोटी-छोटी ईंटें एक बड़े ढांचे का हिस्सा बन गईं। पुल बन जाने के बाद, राजा ने देखा कि बूढ़े व्यक्ति का योगदान कितना महत्वपूर्ण था। उसने कहा, “यह पुल न केवल मेरे आदेश से बना है, बल्कि इस बूढ़े व्यक्ति की मेहनत और समर्पण से भी संभव हुआ है।”
गुरुजी ने कहा, “छोटे-छोटे कार्य मिलकर बड़े कार्य का निर्माण करते हैं।”
विट्ठल ने गुरुजी की कहानी को ध्यान से सुना और समझा कि कोई भी कार्य छोटा नहीं होता। उसने अपने जीवन में छोटे-छोटे कार्यों को महत्व देना शुरू किया। धीरे-धीरे, उसकी मेहनत और छोटे प्रयासों ने उसे बड़े कामों की ओर बढ़ाया। कुछ वर्षों में, वह गाँव का सबसे सम्मानित व्यक्ति बन गया।
शिक्षा:
यह कहानी हमें सिखाती है कि हर छोटा कार्य महत्वपूर्ण है। बड़े लक्ष्य हमेशा छोटे प्रयासों से पूरे होते हैं। हमें कभी भी किसी कार्य को छोटा या महत्वहीन नहीं समझना चाहिए, क्योंकि यही छोटे-छोटे कार्य मिलकर बड़ी सफलताओं का आधार बनते हैं।
पहेली का उत्तर : पान
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गीता सार:
क्यों व्यर्थ चिन्ता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा न पैदा होती है, न मरती है।
जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है। जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाये थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आये, जो लिया यहीं से लिया, जो दिया यहीं से दिया। जो लिया इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया। खाली हाथ आए, खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यह प्रसन्नता ही तुम्हारे दुःखों का कारण है।
परिवर्तन ही संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ो के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया मन से मिटा दो, विचार से हटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है, फिर तुम क्या हो? तुम अपने आपको भगवान् के अर्पित करो। यह सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है, वह भय, चिन्ता शोक से सर्वदा मुक्त है।
जो कुछ तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल। इसी में तू सदा जीवन-मुक्त अनुभव करेगा।
मंत्र:
ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये।
वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नमः॥
अर्थः हे सिद्धि विनायक! आप हमें सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करें।
गर्भ संवाद:
मेरे प्यारे शिशु, मेरे बच्चे, मैं तुम्हारी माँ हूँ …… माँ!
— आज मैं तुम्हे तुम्हारे कुछ महानतम गुणों की याद दिला रही हूँ जो तुम्हें परमात्मा का अनमोल उपहार हैं।
— प्रेम स्वरूप परमात्मा का अंश होने के कारण तुम्हारा हृदय भी प्रेम से भरपूर है, तुम्हारी हर अदा में परमात्मा का प्रेम झलकता है।
— तुम्हारे हृदय में सम्पूर्ण मानवमात्र के प्रति समभाव है।
— तुम्हारा हृदय सबके लिए दया और करुणा से भरपूर रहता है।
— क्षमाशीलता के गुण के कारण सभी तुम्हारा सम्मान करते हैं, जिससे तुम्हारा स्वभाव और विनम्र हो जाता है।
— नम्रता तुम्हारा विशेष गुण है।
— मेरे बच्चे। तुम्हारा प्रत्येक कार्य सेवा-भाव से परिपूर्ण होता है।
— सहनशीलता तुम्हारा स्वाभाविक गुण है।
— धैर्यपूर्वक प्रत्येक कार्य को करना तुम्हारी महानता है।
— तुम्हारा मन आंतरिक रूप से स्थिर और शांत है।
— मेरे बच्चे! तुम बल और साहस के स्वामी हो।
— तुम अनुशासन प्रिय हो।
— कृतज्ञता का गुण तुम्हारे व्यवहार की शोभा बढ़ाता है।
— तुम अपनो से बड़ों को सम्मान और छोटों को प्रेम देते हो।
— तुम भाव से बहुत भोले हो लेकिन जरूरत पड़ने पर अपनी कठोरता भी दिखाते हो।
— तुम अपनो से छोटों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हो।
— तुम सत् और असत के पारखी हो।
— तुम्हारा व्यवहार चन्द्रमा के समान शीतल है।
— तुम सबसे इतना मीठा बोलते हो कि सभी तुम पर मोहित हो जाते हैं।
— तुम्हारा व्यक्तित्व परम प्रभावशाली है।
— तुम हमेशा सत्य बोलना ही पसंद करते हो।
— तुम हाजिर जवाबी हो।
— तुम्हारे मुख से निकला एक-एक शब्द मधुर और आकर्षक होता है।
— तुम मन, वचन और कर्म से पवित्र हो।
— घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है। तुम्हारे रूप में मुझे जैसे दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, तुम्हे पाकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। जल्द ही इस सुन्दर संसार में तुम्हारा आगमन होगा। तुम्हारा स्वागत करने के लिए सभी बेचैन हैं।
गर्भ संवाद:
“मेरे प्यारे बच्चे! सकारात्मक सोच हर कदम पर तुम्हारे जीवन को आसान बनाती है। जब तुम हर परिस्थिति को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखते हो, तो वह तुम्हारे लिए एक अवसर बन जाती है। चाहे जीवन में कितनी भी समस्याएं आएं, तुम अपनी सोच के साथ उन्हें बेहतर बना सकते हो। मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा सकारात्मक सोच रखते हुए हर कार्य करो, क्योंकि यही तुम्हे हर स्थिति में सफल बनाएगा।”
पहेली:
छूने में शीतल,
सूरत में लुभानी,
रात में मोती और दिन में पानी।
कहानी: ऋषि दुर्वासा की कड़ी शिक्षा
ऋषि दुर्वासा अपने क्रोध और तपस्या के लिए जाने जाते थे। उनकी कहानियों में हमेशा कोई न कोई गहरी शिक्षा छिपी रहती है। यह कहानी तब की है, जब ऋषि दुर्वासा ने अपनी कड़ी शिक्षा से एक राजा को सही मार्ग दिखाया।
एक बार, इंद्रपुरी में स्वर्ग के राजा इंद्र को अपने साम्राज्य पर बहुत गर्व हो गया। इंद्र को लगने लगा कि वह सभी देवताओं में सबसे श्रेष्ठ है और उऩका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। उनके अहंकार को देखते हुए, ऋषि दुर्वासा ने उन्हें सबक सिखाने का निश्चय किया।
ऋषि दुर्वासा ने अपनी तपस्या से एक दिव्य माला बनाई, जो शक्ति और सौभाग्य का प्रतीक थी। उन्होंने यह माला इंद्र को भेंट दी। इंद्र ने माला को स्वीकार तो किया, लेकिन उसके महत्व को समझे बिना, उसने माला को अपने ऐरावत हाथी की गर्दन में डाल दिया। ऐरावत ने माला को फेंक दिया और पैरों तले कुचल दिया।
ऋषि दुर्वासा यह देख कर क्रोधित हो गए। उन्होंने इंद्र से कहा, “तुमने इस दिव्य माला का अपमान किया है, जो देवी लक्ष्मी का प्रतीक है। तुम्हारे इस अहंकार और अनुचित व्यवहार के कारण, अब तुम्हारा साम्राज्य लक्ष्मीजी की कृपा से वंचित रहेगा।”
ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण इंद्र का साम्राज्य कमजोर हो गया। स्वर्ग से सारी समृद्धि और शक्ति गायब हो गई। दानवों ने स्वर्ग पर आक्रमण किया और इंद्र को पराजित कर दिया।
इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और माफी मांगी। भगवान विष्णु ने इंद्र को समुद्र मंथन का सुझाव दिया, जिससे देवी लक्ष्मी फिर से प्रकट हों और स्वर्ग की समृद्धि लौट आए।
इंद्र ने दानवों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया और देवी लक्ष्मी को प्रसन्न किया। उन्होंने समझ लिया कि अहंकार और लापरवाही से केवल नुकसान होता है।
शिक्षा:
यह कहानी हमें सिखाती है कि अहंकार हमें विनाश की ओर ले जाता है। हमें हर उपहार और आशीर्वाद का आदर करना चाहिए। विनम्रता और आदर से ही जीवन में सच्ची समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।
पहेली का उत्तर : ओस
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प्रार्थना:
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
तू स्वर की देवी, ये संगीत तुझसे
हर शब्द तेरा है, हर गीत तुझसे
हम है अकेले, हम है अधूरे
तेरी शरण हम, हमें प्यार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
मुनियों ने समझी, गुणियों ने जानी
वेदों की भाषा, पुराणों की बानी
हम भी तो समझे, हम भी तो जाने
विद्या का हमको अधिकार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
तू श्वेतवर्णी, कमल पर विराजे
हाथों में वीणा, मुकुट सर पे साजे
मन से हमारे मिटाके अँधेरे
हमको उजालों का संसार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
मंत्र:
यत्र धर्मस्तत्र विजय: सत्यं धर्मं च सर्वदा।
सत्यादारायणं शुद्धं धर्मेण विदितं हि तत्॥
अर्थ: जहाँ धर्म होता है, वहाँ विजय निश्चित होती है। सत्य और धर्म का पालन सच्चे मार्ग पर चलने से ही होता है।
गर्भ संवाद:
— मेरे प्यारे शिशु, मेरे राज दुलार, मैं तुम्हारी माँ हूँ.......माँ !
— मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तुम मेरे गर्भ में पूर्ण रूप से सुरक्षित हो, तुम हर क्षण पूर्ण रूप से विकसित हो रहे हो।
— तुम मेरे हर भाव को समझ सकते हो क्योंकि तुम पूर्ण आत्मा हो।
— तुम परमात्मा की तरफ से मेरे लिए एक सुन्दरतम तोहफा हो, तुम शुभ संस्कारी आत्मा हो, तुम्हारे रूप में मुझे परमात्मा की दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, परमात्मा ने तुम्हें सभी विलक्षण गुणों से परिपूर्ण करके ही भेजा है, परमात्मा की दिव्य संतान के रूप में तुम दिव्य कार्य करने के लिए ही आए हो। मेरे बच्चे! तुम
ईश्वर का परम प्रकाश रूप हो, परमात्मा की अनंत शक्ति तुम्हारे अंदर विद्यमान है, ईश्वर का तेज तुम्हारे माथे पर चमक रहा है, परमात्मा के प्रेम की चमक तुम्हारी आँखों में दिखाई देती है, तुम ईश्वर के प्रेम का साक्षात भण्डार हो, तुम परमात्मा के एक महान उद्देश्य को लेकर इस संसार में आ रहे हो, परमात्मा ने तुम्हें इंसान रूप में इंसानियत के सभी गुणों से भरपूर किया है।
— तुम हर इंसान को परमात्मा का रूप समझते हो, और सभी के साथ प्रेम का व्यवहार करते हो, तुम जानते हो अपने जीवन के महानतम लक्ष्य को, तुम्हें इस संसार की सेवा करनी है, सभी से प्रेम करना है, सभी की सहायता करनी है, और परमात्मा ने जो विशेष लक्ष्य तुम्हें दिया है, वह तुम्हें अच्छे से याद रहेगा।
— परमात्मा की भक्ति में तुम्हारा मन बहुत लगता है, तुम प्रभु के गुणों का गायन करके बहुत खुश होते हो, तुम्हारे रोम-रोम में प्रभु का प्रेम बसा हुआ है। स्त्रियों के प्रति तुम विशेष रूप से आदर का भाव अनुभव करते हो, सभी स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखते हो।
— तुम्हारा उद्देश्य संसार में सबको खुशियाँ बाँटना है, सब तरह से आजाद रहते हुए तुम सबको कल्याण का मार्ग दिखाने आ रहे हो, परमात्मा से प्राप्त जीवन से तुम पूर्ण रूप से संतुष्ट हो, तुम सदैव परमात्मा के साये में सुरक्षित हो।
— मानव जीवन के संघर्षो को जीतना तम्हें खूब अच्छी तरह से आता है, जीवन के प्रत्येक कार्य को करने का तुम्हारा तरीका बहुत प्यारा है, जीवन की हर परेशानी का हल ढूँढने में तुम सक्षम हो, तुम हमेशा अपने जीवन के परम लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहोगे।
— मेरी तरह तुम्हारे पिता भी तुम्हें देखने के लिए आतुर हैं, मेरा और तुम्हारे पिता का आशीष सदैव तुम्हारे साथ है।
— यह पृथ्वी हमेशा से प्रेम करने वाले अच्छे लोगों से भरी हुई है, यह सृष्टि परमात्मा की अनंत सुंदरता से भरी हुई है, यहाँ के सभी सुख तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, गर्भावस्था का यह सफर तुम्हें परमात्मा के सभी दैविक संस्कारों से परिपूर्ण कर देगा।
—घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है।
गर्भ संवाद:
“मेरे प्यारे बच्चे! असफलता कोई बुरी चीज़ नहीं है यह हमें सफल बनने का रास्ता दिखाती है। हर असफलता से हमें कुछ नया सीखने को मिलता है और यही हमें अपने लक्ष्य के करीब पहुंचाता है। जब तुम किसी चीज़ में असफल होते हो, तो समझो कि तुमने कुछ नया सीखा है और अगली बार तुम और भी बेहतर करोगे। मैं चाहती हूं कि तुम असफलताओं को एक रास्ता समझो, जो तुम्हे सफलता की ओर ले जाता है।”
पहेली:
नहीं चाहिये इंजन मुझको,
नहीं चाहिये खाना,
मुझ पर चढ़कर आसपास का
कर लो सफर सुहाना।
कहानी: आत्म-साक्षात्कार
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक युवक, अर्जुन, अपने माता-पिता के साथ रहता था। अर्जुन का जीवन सरल था, लेकिन उसे हमेशा यह सवाल परेशान करता था कि वह कौन है और उसका जीवन किस दिशा में जा रहा है। वह खुद से पूछता, “मेरी असली पहचान क्या है? मैं किसलिए यहाँ हूँ?” हालांकि उसने बहुत से तात्त्विक और धार्मिक ग्रंथ पढ़े थे, लेकिन वह अब भी अपनी असली पहचान को समझने की कोशिश कर रहा था।
अर्जुन के मन में आत्म-ज्ञान की एक गहरी लालसा थी। उसे लगता था कि दुनिया के सभी सुख और सफलता बाहरी चीजों में छिपे हैं, लेकिन कहीं न कहीं उसकी आत्मा में कुछ गहरे सवाल थे, जिनका जवाब वह नहीं ढूंढ पा रहा था। वह समझना चाहता था कि जीवन का असली उद्देश्य क्या है और उसकी आत्मा का वास्तविक स्वरूप क्या है।
एक दिन अर्जुन ने अपने जीवन की उलझनों को सुलझाने के लिए किसी महान योगी के पास जाने का निश्चय किया, जिनके बारे में सुन रखा था कि वह आत्मा और आत्म-साक्षात्कार के विषय में गहरी जानकारी रखते हैं। अर्जुन ने अपनी यात्रा शुरू की और कुछ दिनों बाद उस योगी के आश्रम तक पहुँच गया।
योगी ने अर्जुन को देखा और उसकी आँखों में गहरे सवालों का प्रतिबिंब देखा। उसने कहा, “तुम कुछ जानना चाहते हो अर्जुन, लेकिन वह ज्ञान सिर्फ किताबों और बाहरी शिक्षा से नहीं मिलेगा। तुम्हें अपने भीतर जाकर उस सत्य को पहचानना होगा, जो तुम्हारी आत्मा में छिपा है।”
अर्जुन ने कहा, “गुरुजी, मैं समझता हूँ कि आत्मा का वास्तविक रूप क्या है, लेकिन मुझे यह नहीं पता कि कैसे अपने भीतर झाँककर उसे पहचानूं। क्या आप मुझे इसका तरीका बता सकते हैं?”
योगी हंसते हुए बोले, “तुम्हे इसे जानने के लिए किसी विशेष मंत्र या तकनीक की आवश्यकता नहीं है। तुम्हें बस खुद से सच्चा प्रेम करना होगा और खुद को समझने की गहरी इच्छा होनी चाहिए। अपने भीतर के शोर और भ्रम को शांत करना होगा। जब तुम अपने भीतर की चुप्पी को सुन सको, तब तुम्हे आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होगी।”
अर्जुन ने गुरु की बातों को ध्यान से सुना और वह पूरी निष्ठा के साथ ध्यान की विधि को समझने लगा। गुरु ने उसे एक साधारण ध्यान विधि सिखाई, जिसमें उसे रोज सुबह सूर्योदय से पहले और रात को चाँदनी रात में ध्यान लगाना था। “ध्यान का उद्देश्य सिर्फ अपनी बाहरी दुनिया को छोड़ना नहीं है बल्कि अपने भीतर की गहरी शांति और सच्चाई को महसूस करना है।”
अर्जुन ने गुरु के निर्देशों का पालन करते हुए ध्यान लगाना शुरू किया। पहले दिन, उसे अपनी मानसिक उथल-पुथल और विचारों को नियंत्रित करना बहुत कठिन लगा। लेकिन वह हार मानने वाला नहीं था। दूसरे दिन उसने थोड़ा और ध्यान किया, और तीसरे दिन, जैसे ही वह गहरी शांति में डूबा, उसे अपने भीतर एक अद्भुत अनुभव हुआ। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी आत्मा उसके शरीर से बाहर निकल गई हो और वह शांति और आत्म-ज्ञान के एक गहरे स्त्रोत से जुड़ गया हो।
उसके मन में गहरी समझ का अहसास हुआ, “मैं वही हूँ, जो सोचता हूँ। मेरा शरीर, मेरी विचारधारा, मेरी इच्छाएं — ये सभी मेरी असली पहचान नहीं हैं। मैं उस परमात्मा का अंश हूँ, जो सबमें है। मेरे भीतर वह अनंत शक्ति है, जो समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त है।” अर्जुन को अब यह समझ में आया कि आत्मा केवल शरीर का हिस्सा नहीं है, बल्कि वह अनंत और सर्वव्यापी है। वह शांति का स्रोत है, और हर जीवित प्राणी के भीतर वही आत्मा है।
अर्जुन ने महसूस किया कि उसका असली स्वरूप वह शांति और ज्ञान था, जो भीतर से बाहर की दुनिया से कहीं अधिक महत्वपूर्ण था। उसकी आत्मा किसी बाहरी तत्व से प्रभावित नहीं होती, वह स्वाभाविक रूप से शुद्ध और निरंतर स्थिर रहती है। उसने अपने सारे भ्रमों को दूर किया और आत्म-साक्षात्कार की गहरी समझ प्राप्त की।
अर्जुन ने गुरु के पास वापस जाकर कहा, “गुरुजी, अब मुझे समझ में आ गया है। आत्मा वही है, जो अडिग और स्थिर रहती है, और यह कभी नष्ट नहीं होती। मेरी पहचान मेरे शरीर और मन से परे है। मैं उस परम सत्य का अंश हूँ, जो हर स्थान और हर समय में व्याप्त है। अब मैं जानता हूँ कि मेरी आत्मा को जानने का अर्थ है, जीवन की सच्चाई को जानना।”
गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा, “अर्जुन, अब तुमने अपने भीतर के सत्य को पहचान लिया है। यह सच्चाई सभी के भीतर है, लेकिन हम इसे अपने विचारों, इच्छाओं, और बाहरी प्रभावों से ढँक लेते हैं। जब तुम अपने भीतर की चुप्पी और शांति को पहचान सको, तब तुम सत्य को जान पाते हो। आत्म-साक्षात्कार ही जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य है, क्योंकि यही तुम्हें अपनी असली पहचान से जोड़ता है।”
अर्जुन ने उस दिन से अपने जीवन में सच्चाई और आत्म-ज्ञान को सर्वोपरि रखा। वह पहले जैसा युवक नहीं रहा; अब वह अपने भीतर की शांति में स्थापित था और उसकी दुनिया में बदलाव आ गया था। अब वह दूसरों को भी आत्म-साक्षात्कार की राह पर चलने की प्रेरणा देने लगा, क्योंकि उसने महसूस किया था कि असली शांति और खुशी आत्मा के भीतर ही छिपी है, जिसे जानने के बाद जीवन का हर क्षण सार्थक हो जाता है।
पहेली का उत्तर : साईकिल
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