Garbha Sanskar - 20 in Hindi Women Focused by Praveen Kumrawat books and stories PDF | गर्भ संस्कार - भाग 20 - एक्टिविटीज–19

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गर्भ संस्कार - भाग 20 - एक्टिविटीज–19

प्रार्थना:
हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं, जिन्होंने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय हैं और ज्ञान के भंडार हैं, जो पापों तथा अज्ञानता को दूर करने वाले हैं वे हमें प्रकाश दिखाएँ और सत्य के मार्ग पर ले जाऐं।

मंत्र का अर्थ: हमारे पास सभी दिशाओं से शुभ और कल्याणकारी विचार आएँ। ये विचार हमें सुदृढ़ और उन्नति प्रदान करने वाले हों। ईश्वर हमें सदैव प्रगति के पथ पर अग्रसर करे।

गर्भ संवाद:
मेरे प्यारे शिशु मेरे बच्चे, मैं तुम्हारी माँ ‍ हूं…… माँ!

— आज मैं तुम्हे तुम्हारे कुछ महानतम गुणों की याद दिला रही रही हूँ जो तुम्हे परमात्मा का अनमोल उपहार है।

— मेरे बच्चे! तुम्हारे मस्तिष्क में अपार क्षमता है। तुम्हारी बुद्धि तीव्र है।

— तुम आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक जैसी क्षमता लेकर आ रहे हो। तुममे कठिन से कठिन समस्या को सुलझाने की योग्यता है।

— तुम रामानुजन जैसी गणित के सवालों को हल करने की क्षमता रखते हो।

— विवेकानंद जैसी महान प्रतिभा है तुममें।

— तुम्हारी याददाश्त बहुत अच्छी है, जो बात तुम याद रखना चाहो तुम्हें सदा याद रहती है।

— तुम्हारी एकाग्रता कमाल की है। जिस काम पर तुम फोकस करते हो उसमें बेहतरीन परिणाम लेकर आते हो।

— कोई भी विषय, कोई भी टॉपिक तुम्हारे लिए कठिन नहीं, हर विषय को अपनी लगन से, परिश्रम से तुम सरल बना लेते हो।

— तुम्हारे भीतर अनंत संभावनाएं छुपी हुई है।

— तुम्हें म्यूजिक का बहुत शौक है, तुम सभी वाद्य यंत्र बजाना जानते हो। ढोलक, गिटार, तबला, हारमोनियम, तुम बहुत अच्छे से बजा सकते हो।

— तुम्हारा दिमाग बहुत तेज चलता है। मुश्किल से मुश्किल समस्या का भी तुम बड़ी आसानी से हल निकाल लेते हो।

— तुम्हारी वाणी में मिठास है। तुम एक बहुत अच्छे गायक हो। जब तुम गाते हो तो सभी मंत्रमुग्ध हो जाते है।

— तुम्हें पढ़ाई में सभी सब्जेक्ट अच्छे लगते है। जो भी पढ़ते हो बड़ी आसानी से याद हो जाता है।

गर्भ संवाद:
“मेरे बच्चे, जो काम तुम करते हो, उसे पूरी निष्ठा और समर्पण से करो। हर कार्य में मेहनत और समर्पण की भावना होनी चाहिए, तभी तुम्हें सफलता मिलेगी। कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, अगर तुम उसे पूरे दिल से करते हो। अपनी मेहनत और समर्पण से तुम हर काम को सफलता की ओर ले जा सकते हो। मैं चाहती हूं कि तुम हर कार्य में अपना 100 प्रतिशत लगाओ, क्योंकि यही तुम्हारी सफलता की कुंजी होगी।”

पहेली:
लकड़ी के घोड़े को 
लोहे की लगाम।

कहानी: बाल गंगाधर तिलक का संघर्ष
भारत की स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जो नाम सबसे पहले आता है, वह है बाल गंगाधर तिलक का। उन्हें भारतीय राजनीति और समाज में उनके योगदान के लिए 'लॉकल' और 'लोकमान्य' का सम्मान मिला। उनके विचार, उनके संघर्ष और उनकी कुर्बानियों ने भारतीय समाज को जागरूक किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक नई लहर की शुरुआत की। बाल गंगाधर तिलक न केवल एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि वे एक शिक्षक, विचारक और समाज सुधारक भी थे। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी कठिनाई हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचने से रोक नहीं सकती।

बाल गंगाधर तिलक का प्रारंभिक जीवन: 
बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को पुणे में हुआ था। उनके पिता गंगाधर तिलक एक संस्कृत विद्वान थे, और माता जी के रूप में पवित्र और धार्मिक वातावरण में उनका पालन-पोषण हुआ था। तिलक की शिक्षा आरंभिक रूप से पारंपरिक भारतीय पद्धतियों के तहत हुई, लेकिन बाद में उन्होंने भारतीय और पश्चिमी दोनों प्रकार की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे में प्राप्त की और फिर मुंबई विश्वविद्यालय से गणित में डिग्री हासिल की। उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब वे इंग्लैंड से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद भारत लौटे। तिलक ने देखा कि अंग्रेजी शासक भारतीय जनता पर जुल्म कर रहे थे और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं किया जा रहा था। यहीं से उनके भीतर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने की भावना पैदा हुई। 

संघर्ष की शुरुआत:
बाल गंगाधर तिलक का मानना था कि केवल शिक्षा और जागरूकता ही भारतीय जनता को अपने अधिकारों के प्रति सचेत कर सकती है। इसके लिए उन्होंने 'केसरी' नामक पत्रिका का संपादन शुरू किया, जिसका उद्देश्य भारतीय जनता को राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता देना था। इस पत्रिका ने तिलक के विचारों को भारतीय समाज तक पहुँचाने का काम किया।

तिलक ने हमेशा ब्रिटिश साम्राज्य की नीतियों का विरोध किया और भारतीय जनता को इन नीतियों के खिलाफ उठ खड़े होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने 'स्वदेशी आंदोलन' की शुरुआत की, जिसमें भारतीयों से यह आग्रह किया गया कि वे विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करें और केवल स्वदेशी उत्पादों का उपयोग करें। उनका यह आंदोलन भारतीय समाज के हर वर्ग तक पहुंचा और इसके जरिए तिलक ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन जागरण की नींव डाली।

लखनऊ अधिवेशन और सावरकर का समर्थन: 
1892 में लखनऊ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, जिसमें तिलक ने भाग लिया। यहां उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई और भारतीयों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने का संकल्प लिया। उनका आदर्श था 'स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।' और इसी नारे के साथ उन्होंने भारतीय जनता को स्वतंत्रता के लिए एकजुट किया।

तिलक का मानना था कि यदि भारतीयों को स्वतंत्रता प्राप्त करनी है, तो उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित होकर एक सशक्त आंदोलन शुरू करना होगा। इसके लिए उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से भी समर्थन प्राप्त किया और उन्होंने कांग्रेस के भीतर अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी।

पार्टी और गिरफ्तारियां:
बाल गंगाधर तिलक के विचार ब्रिटिश साम्राज्य के लिए चुनौती बन गए थे। उन्होंने स्वराज्य की ओर भारतीयों को मार्गदर्शन देने के लिए कई प्रयास किए। 1897 में, पुणे में हुए 'फर्जी हत्याकांड' में तिलक को मुख्य अभियुक्त बना दिया गया। हालांकि, बाद में यह साबित हुआ कि तिलक का इसमें कोई हाथ नहीं था, फिर भी उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया।

बाल गंगाधर तिलक की गिरफ्तारी ने भारतीय समाज को झकझोर दिया। उनका विश्वास था कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष जारी रखना चाहिए। गिरफ्तारी के दौरान उन्होंने अपने विचारों और आंदोलनों को और अधिक जोर-शोर से फैलाया। इस दौरान उनका संघर्ष इतना कठिन था कि उन्होंने कई सालों तक ब्रिटिश जेलों में भी समय बिताया। लेकिन तिलक का संघर्ष कभी भी कमजोर नहीं हुआ। उन्होंने जेल में रहकर भी स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में अपनी सोच को और दृढ़ किया।

लोकमान्य तिलक और उनके योगदानः 
तिलक को भारतीयों ने 'लोकमान्य' का संबोधन दिया। इसका अर्थ था कि वे भारतीय जनता के मन में बसे हुए थे। उनका विश्वास था कि केवल अपनी संस्कृति, धार्मिक मान्यताओं और सामाजिक प्रथाओं से ही भारतीय समाज को जागरूक किया जा सकता है। वे भारतीय समाज को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे, ताकि विदेशी ताकतें उनका शोषण न कर सकें।

तिलक ने भारतीय धर्म और संस्कृति को लेकर भी कई महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। उन्होंने 'गणेश उत्सव' और 'नववर्ष उत्सव' जैसे धार्मिक आयोजनों को सार्वजनिक रूप से मनाने का निर्णय लिया। उनका मानना था कि ये उत्सव भारतीयों को एकजुट करने का सबसे अच्छा तरीका हैं। इस विचार से उन्होंने भारतीय समाज को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास किया।

कांग्रेस से विवाद और संघर्ष:
तिलक का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से विवाद भी काफी प्रसिद्ध है। वे कांग्रेस के भीतर उस समय के 'मौडरेट' और 'रिफॉर्मिस्ट' नेताओं से अलग थे। उनका मानना था कि अगर स्वतंत्रता प्राप्त करनी है तो सशक्त आंदोलन की आवश्यकता है, जबकि कई अन्य नेता शांतिपूर्ण आंदोलन के पक्षधर थे। इस मतभेद के कारण तिलक ने कांग्रेस से खुद को अलग किया और 1907 में 'स्वराज्य' के लिए अपने विचारों को और अधिक स्पष्ट किया। 

बाल गंगाधर तिलक का अंतिम संघर्ष:
तिलक का अंतिम संघर्ष 1916 में हुआ, जब उन्होंने 'लखनऊ पैक्ट' का समर्थन किया। इस समझौते के माध्यम से कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता की मांग की। तिलक का विश्वास था कि दोनों ही समुदायों को एकजुट होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करना चाहिए।

हालांकि तिलक का 1920 में निधन हो गया, लेकिन उनका संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमर हो गया। उनका जीवन यह सिखाता है कि कोई भी संघर्ष तब तक नहीं रुकता जब तक उसमें बलिदान और समर्पण का जज्बा होता है।

शिक्षा: 
बाल गंगाधर तिलक का जीवन हमें यह सिखाता है कि संघर्ष के बिना कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं हो सकता। उनका आदर्श था ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।’ और इस विचार ने भारतीय समाज को जागरूक किया। उनके संघर्ष ने न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को गति दी, बल्कि उनके विचार आज भी हमारे समाज को प्रेरित करते हैं। उनका यह संदेश कि 'उठो, जागो और संघर्ष करो' आज भी हम सभी के दिलों में जीवित है।

पहेली का उत्तर : दरवाजा
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प्रार्थना:
तूने हमें उत्पन्न किया, पालन कर रहा है तू। 
तुझसे ही पाते प्राण हम, दुखियों के कष्ट हरता तू ॥ 
तेरा महान् तेज है, छाया हुआ सभी स्थान। 
सृष्टि की वस्तु-वस्तु में, तू हो रहा है विद्यमान ॥ 
तेरा ही धरते ध्यान हम, मांगते तेरी दया। 
ईश्वर हमारी बुद्धि को, श्रेष्ठ मार्ग पर चला ॥

मंत्र:
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे। 
विष्णुपत्नी च धीमहि। 
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।।

अर्थ: हे देवी महालक्ष्मी! आप विष्णुजी की पत्नी हैं। हम आपका ध्यान करते हैं, कृपया हमें समृद्धि प्रदान करें।

गर्भ संवाद:
“मेरे बच्चे! तुम्हारे भीतर अपार शक्ति और क्षमता है। जब भी तुम किसी मुश्किल का सामना करो, तो खुद को कमजोर मत समझो। तुम्हारी ताकत तुम्हारे विचार और आत्मविश्वास से आती है। अगर तुम खुद पर विश्वास रखते हो, तो कोई भी समस्या तुम्हारे रास्ते में नहीं आ सकती। तुम्हारी सोच ही तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत है और मैं चाहती हूं कि तुम कभी भी अपने आत्मविश्वास को खोने न दो।”

पहेली:
जिसके आगे जी, 
जिसके पीछे जी , 
नहीं बताओगे तो पड़ेंगे डंडेजी।

कहानी: वर्षा की बूंदें
एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में हर साल एक विशेष समय पर बारिश होती थी। यह बारिश गाँव के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यहाँ की ज़िंदगी मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर थी। लोग बारिश का इंतजार करते थे, ताकि उनकी फसलें लहलहाएँ और वे अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकें। इस वर्ष भी गाँव में बारिश का समय आया, लेकिन आकाश में बादल नहीं थे और खेतों की ज़रूरत के अनुसार पानी की कमी महसूस होने लगी।

गाँव में एक छोटे से बच्चे का नाम था निखिल। निखिल बहुत ही भावुक और प्रकृति प्रेमी था। वह अक्सर गाँव के बाहर स्थित नदी के किनारे जाकर बैठता और बारिश के आने का इंतजार करता। एक दिन जब उसे लगा कि इस बार शायद बारिश नहीं होगी, तो उसने आकाश की ओर देखा और पूछा, “हे आकाश, तुम क्यों नहीं बरसते ? हमारे खेतों को तुम्हारी मदद की जरूरत है।”

आकाश से एक हल्की सी आवाज आई, “तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी मदद करूँ, लेकिन तुम्हें समझना होगा कि वर्षा की बूंदें सिर्फ पानी नहीं, एक संदेश भी लेकर आती हैं।”

निखिल ने हैरान होकर कहा, “कैसा संदेश, आकाश ?”

आकाश ने फिर उत्तर दिया, “वर्षा की बूंदें केवल पृथ्वी पर पानी गिराने के लिए नहीं आतीं, वे यह सिखाती हैं कि जीवन में कभी भी निराशा नहीं होनी चाहिए। वे सूखी ज़मीन पर गिरकर उसे हरा-भरा कर देती हैं, वैसे ही जीवन में कठिनाइयाँ आने के बावजूद हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।"

निखिल सोच में पड़ गया। उसने महसूस किया कि बारिश का हर एक क़तरा सिर्फ पानी नहीं होता, बल्कि एक सबक भी होता है। यह हमें सिखाता है कि कठिन समय के बाद सुख और समृद्धि जरूर आएगी, बस हमें मेहनत और उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।

कुछ दिनों बाद, अचानक आकाश पर बादल घिर आए और गाँव में मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। गाँव के खेतों में हरियाली लौट आई, और किसानों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी। निखिल ने अपनी आँखों में चमक और मन में शांति के साथ वर्षा की बूंदों को देखा और समझा कि जीवन की सबसे बड़ी शिक्षा यही है कि कभी भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। कठिनाइयाँ अस्थायी होती हैं और वे हमें और भी मजबूत बनाती हैं।

शिक्षा:
वर्षा की बूंदों की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कठिनाइयाँ आ सकती हैं, लेकिन उन कठिनाइयों के बाद ही खुशियाँ और समृद्धि आती हैं। हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।

पहेली का उत्तर : जीजाजी
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प्रार्थना:
हे जग त्राता विश्व विधाता, 
हे सुख शांति निकेतन।
प्रेम के सिन्धु, दीन के बन्धु, 
दुःख दारिद्र विनाशन। 

हे जग त्राता विश्व विधाता, 
हे सुख शांति निकेतन 
हे नित्य अखंड अनंन्त अनादि, 
पूरण ब्रह्म सनातन।

हे जग त्राता विश्व विधाता, 
हे सुख शांति निकेतन 
हे जग आश्रय जग-पति जग-वन्दन, 
अनुपम अलख निरंजन।

हे जग त्राता विश्व विधाता, 
हे सुख शांति निकेतन
प्राण सखा त्रिभुवन प्रति-पालक, 
जीवन के अवलंबन।

हे जग त्राता विश्व विधाता, 
हे सुख शांति निकेतन
हे जग त्राता विश्व विधाता, 
हे सुख शांति निकेतन 
हे सुख शांति निकेतन
हे सुख शांति निकेतन।

मंत्र:
ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। 
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ॥

अर्थः हे मां गंगा और अन्य पवित्र नदियों! आपका जल हमें शुद्धता और पवित्रता प्रदान करे।

गर्भ संवाद:
“मेरे प्यारे बच्चे, जीवन में कभी भी अपनी गलतियों को छिपाने की या उससे भागने की कोशिश मत करो। जब तुम अपनी गलतियों को स्वीकार करते हो, तो तुम सच्चे इंसान बनते हो। स्वीकारोक्ति से ही सुधार की दिशा मिलती है। तुम्हें यह सिखाना है कि कोई भी गलती हो, उसे सुधारने के लिए तत्पर रहो। तुम्हारी यह ईमानदारी तुम्हारी सबसे बड़ी शक्ति बनेगी और तुम जीवन में सफलता के रास्ते पर बढ़ते रहोगे।”

पहेली:
रात में है, पर दिन में नहीं, 
चतुर में है, पर चालाक में नहीं, 
स्वर में है पर व्यजंन में नहीं।

कहानी: सागर की लहरों का नृत्य
सागर का नाम सुनते ही मन में विशालता, गहराई और अनंतता का ख्याल आता है। इसी सागर के किनारे पर एक छोटे से गाँव में एक लड़का रहता था, जिसका नाम था समीर। समीर को सागर से बहुत प्यार था। वह हर सुबह सागर के किनारे पर जाता और लहरों के साथ खेलता। उसे लहरों का नृत्य बहुत आकर्षित करता था। समीर अक्सर सोचता, “क्या ये लहरें कभी थमती हैं? क्या इनका कोई उद्देश्य होता है?”

एक दिन समीर ने अपने दादा से यह सवाल पूछा, “दादा, लहरें हमेशा क्यों आती रहती हैं? क्या इनका कोई उद्देश्य होता है?”

दादा ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, “बिलकुल समीर, लहरों का नृत्य केवल उनके स्वभाव का हिस्सा नहीं है, बल्कि वह जीवन के सच्चे उद्देश्य को भी दिखाती हैं। लहरें हमेशा आती हैं, फिर जाती हैं, फिर आती हैं लेकिन वे कभी थमती नहीं। जैसे जीवन की यात्रा में भी हम कई बार संघर्ष करते हैं, गिरते हैं लेकिन हमें उठकर फिर से आगे बढ़ना होता है।”

समीर ने दादा की बातों को ध्यान से सुना और सोचने लगा। उसने महसूस किया कि लहरों की तरह जीवन में भी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं।

कभी हम खुश होते हैं, कभी दुखी, लेकिन हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। समीर ने यह समझ लिया कि जैसे लहरें कभी थमती नहीं हैं, वैसे ही हमें भी अपनी यात्रा में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।

समीर ने एक दिन एक बड़ी लहर देखी, जो आकर किनारे से टकराई और फिर वापस सागर में समा गई। समीर ने देखा कि लहरें कभी खुद को समुद्र से अलग नहीं कर सकतीं, वे हमेशा समुद्र का हिस्सा रहती हैं। उसी तरह, हमें भी अपनी मंजिल पाने के रास्ते में कभी अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए।

समीर ने उस दिन के बाद से अपने जीवन में एक नया दृष्टिकोण अपनाया। वह जान गया कि हर लहर के पीछे एक कहानी छुपी होती है, एक उद्देश्य और एक यात्रा। जैसे लहरें अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए हमेशा आगे बढ़ती हैं, वैसे ही हमें भी अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहना चाहिए।

शिक्षा:
सागर की लहर की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में उतारचढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। जैसे लहरें निरंतर चलती रहती हैं, वैसे ही हमें भी अपने उद्देश्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए, चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएं।

पहेली का उत्तर : अक्षर 'र'
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प्रार्थना:
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ। सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ। श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं। मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ। मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ। हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें।

मंत्र:
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। 
प्रियं च नानृतं ब्रूयात्, एष धर्मः सनातनः॥

अर्थ: सदा सत्य बोलें और प्रिय बोलें, परंतु अप्रिय सत्य कभी न कहें। प्रिय और हितकारी झूठ भी न बोलें। यही सनातन धर्म का सिद्धांत है।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! समय सबसे अनमोल चीज है, जो हमें जीवन में एक बार मिलता है। इसे व्यर्थ न जाने दो। जब तुम समय का सही तरीके से उपयोग करते हो, तो तुम्हारी जिंदगी में सफलता और संतुष्टि दोनों आते हैं। हर काम में समय का प्रबंधन करना बहुत जरूरी है, क्योंकि समय के साथ कोई भी काम पूरा नहीं हो सकता अगर उसे सही तरीके से नहीं किया जाए। हमेशा समय को महत्व दो और हर पल को अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए उपयोग करो।”

पहेली:
एक गोड़, दो बाहिया
 मोड़ ससुर के हैया।

कहानी: कर्म का रहस्य
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक साधक नामक व्यक्ति रहता था। वह हर समय अपनी आत्मा की शुद्धि और आत्मज्ञान की खोज में था। साधक का जीवन बहुत सादा था, वह हर दिन ध्यान करता और अपने जीवन को संयमित बनाता। लेकिन एक दिन उसने सोचा, “क्या मेरे कर्म ही मेरी आत्मा की शुद्धि के लिए पर्याप्त हैं, या मुझे और कुछ करना होगा ?”

साधक ने यह प्रश्न अपनी साधना में ढूंढने की कोशिश की, लेकिन उसे कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिला। वह चिंतित हो गया और गाँव के सबसे ज्ञानी गुरु के पास पहुँचा। गुरु ने साधक को देखा और पूछा, “क्या बात है, क्यों परेशान हो?”

साधक ने कहा, “गुरुजी, मैं अपने कर्मों को सही दिशा में कर रहा हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि मुझे कुछ और करना होगा। क्या कर्म ही आत्मा की शुद्धि के लिए पर्याप्त हैं?”

गुरु मुस्कराए और बोले, “कर्म ही आत्मा की शुद्धि का मार्ग है, लेकिन केवल कर्मों से ही आत्मा शुद्ध नहीं होती। कर्मों में शुद्धता और निस्वार्थता होनी चाहिए। जब तुम अपने कर्मों को बिना किसी स्वार्थ के करते हो, तब तुम्हारा मन और आत्मा शुद्ध होती है। कर्म का रहस्य यह है कि अगर तुम अपने कर्मों को अपने भीतर से शुद्ध भावना से करते हो, तो वह तुम्हारे जीवन का उद्देश्य बन जाता है।”

गुरु की बातों ने साधक को एक नई दिशा दी। उसने महसूस किया कि कर्म का रहस्य केवल बाहरी कार्यों में नहीं है, बल्कि वह आंतरिक भावनाओं और निस्वार्थता में है। अब साधक ने यह तय किया कि वह अपने कर्मों को निस्वार्थ भाव से करेगा और किसी भी परिणाम की चिंता नहीं करेगा। वह जान चुका था कि जब कर्मों में शुद्धता होती है, तो वही आत्मा की शुद्धि का मार्ग बनता है।

समय के साथ, साधक ने अपने कर्मों में शुद्धता और निस्वार्थता को अपनाया। वह अब अपने कर्मों को भगवान के लिए करता था, बिना किसी परिणाम की आशा के। उसने यह समझ लिया था कि जीवन में सच्ची शांति तब प्राप्त होती है जब हम अपने कर्मों को स्वार्थ से मुक्त करके करते हैं।

शिक्षा:
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि कर्म केवल बाहरी कार्यों में नहीं होते, बल्कि हमारे आंतरिक भावनाओं और निस्वार्थता में होते हैं। जब हम अपने कर्मों को शुद्ध भावना से करते हैं, तो वह हमें आत्मा की शुद्धि की ओर ले जाता है। कर्म का रहस्य यही है कि हम अपने कार्यों को बिना किसी स्वार्थ के करें और यही हमें सच्ची शांति और संतोष प्रदान करता है।

पहेली का उत्तर : लंगोट
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गीता सार:
क्यों व्यर्थ चिन्ता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा न पैदा होती है, न मरती है। 
 
जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है। जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।

तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाये थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आये, जो लिया यहीं से लिया, जो दिया यहीं से दिया। जो लिया इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया। खाली हाथ आए, खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यह प्रसन्नता ही तुम्हारे दुःखों का कारण है।

परिवर्तन ही संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ो के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया मन से मिटा दो, विचार से हटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।

न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है, फिर तुम क्या हो? तुम अपने आपको भगवान् के अर्पित करो। यह सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है, वह भय, चिन्ता शोक से सर्वदा मुक्त है। 

जो कुछ तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल। इसी में तू सदा जीवन-मुक्त अनुभव करेगा।

मंत्र:
न त्वहं कामये राज्यं, न स्वर्गं न पुनर्भवम्। 
कामये दुःखतप्तानां, प्राणिनामार्तिनाशनम्॥

अर्थः मैं राज्य, स्वर्ग या पुनर्जन्म की इच्छा नहीं करता। मेरी एकमात्र इच्छा है कि दुख से पीड़ित प्राणियों का दुःख दूर कर सकूँ।

गर्भ संवाद:
“मेरे बच्चे, सबसे बड़ा लक्ष्य यह नहीं है कि तुम दुनिया में कितनी दौलत या प्रसिद्धि हासिल करो, बल्कि यह है कि तुम एक अच्छा इंसान बनो। एक अच्छा इंसान वह है जो दूसरों के साथ दया, करुणा और ईमानदारी से पेश आता है। तुम जैसे बनोगे, वैसे ही तुम्हारा समाज तुम्हें देखेगा। इसलिए, मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा अच्छे इंसान बनने की कोशिश करो, क्योंकि एक अच्छा इंसान होने से ही सच्ची सफलता मिलती है।”

पहेली:
चढ़ चौकी पर बैठे रानी 
सर पर आग बदन पर पानी 
बार-बार सर काटे जाका 
कोई नाम बतावे वाका।

कहानी: दया का महत्व
एक छोटे से गाँव में एक बुद्धिमान साधू बाबा रहते थे। उनकी दया और करुणा के कारण लोग उन्हें बहुत सम्मान देते थे। वह हमेशा गाँव वालों के बीच अपने उपदेशों से जीवन के सच्चे मार्ग को दिखाते थे। उनका मानना था कि दया और करुणा ही जीवन का सबसे बड़ा धर्म है और हर व्यक्ति को अपनी आत्मा को शुद्ध करने के लिए इन गुणों को अपनाना चाहिए।

गाँव में एक दिन एक भिखारी आया, जो बहुत गरीब और भूखा था। वह हर दरवाजे पर जाकर भीख माँगता था, लेकिन कोई भी उसे मदद देने के लिए तैयार नहीं था। गाँववालों को उसकी स्थिति देखकर दुख तो होता था लेकिन कोई भी उसे अपनी संपत्ति से मदद करने को तैयार नहीं था। तभी उस भिखारी की नजर साधू बाबा पर पड़ी, जो गाँव के मध्य में बैठे थे।

भिखारी उनके पास गया और उनसे कहा, “गुरुजी, मैं बहुत गरीब हूँ और मुझे भोजन की आवश्यकता है। कृपया मुझे मदद करें।”

साधू बाबा ने भिखारी की आँखों में देखा और कहा, “तुम बहुत दुखी हो, लेकिन तुम्हारी मदद सिर्फ भोजन से नहीं हो सकती। तुम्हें अपना हृदय शुद्ध करना होगा और दया का भाव अपनाना होगा। दया और करुणा से ही तुम अपने दुखों से मुक्त हो सकते हो।”

भिखारी को पहले तो कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन उसने साधू बाबा की बातों को ध्यान से सुना और फिर बाबा से भोजन की प्रार्थना की। साधू बाबा ने उसे भोजन दिया और कहा, “तुम इस भोजन का सेवन करो, लेकिन इस भोजन को लेने के बाद, अपनी आत्मा में दया और करुणा का संचार करो। केवल तब ही तुम अपने दुखों से मुक्त हो सकोगे।”

भिखारी ने भोजन किया और फिर अपनी आत्मा में दया और करुणा के भावों को महसूस करने की कोशिश की। कुछ दिन बाद, भिखारी ने देखा कि उसके जीवन में बदलाव आने लगा है। वह अब दूसरों की मदद करने में खुशी महसूस करता था और गाँववालों से भी सम्मान मिलने लगा। उसे समझ में आ गया था कि केवल शारीरिक भूख नहीं, बल्कि आत्मिक शांति की भी आवश्यकता होती है, और दया और करुणा से ही हम अपने भीतर की शांति पा सकते हैं।

शिक्षा:
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि दया और करुणा केवल दूसरों के लिए नहीं, बल्कि हमारे आत्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक हैं। जब हम दूसरों के प्रति दया और करुणा का भाव रखते हैं, तो हम अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं और जीवन में सच्ची शांति प्राप्त करते हैं। दया का भाव न केवल बाहरी दुनिया को बदलता है, बल्कि हमारी आत्मा की भी शुद्धि करता है।

पहेली का उत्तर : दीया
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प्रार्थना:
हम उस त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की आराधना करते है जो अपनी शक्ति से इस संसार का पालन-पोषण करते है उनसे हम प्रार्थना करते है कि वे हमें इस जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दे और हमें मोक्ष प्रदान करें। जिस प्रकार से एक ककड़ी अपनी बेल से पक जाने के पश्चात् स्वतः की आज़ाद होकर जमीन पर गिर जाती है उसी प्रकार हमें भी इस बेल रुपी सांसारिक जीवन से जन्म मृत्यु के सभी बन्धनों से मुक्ति प्रदान कर मोक्ष प्रदान करें।

मंत्र:
चित्तस्य शुद्धये कर्म, न तु वस्तुलाभाय। 
चित्तं हि शुद्धमात्मानं, स्वयमेव प्रकाशयेत्॥

अर्थ: कर्म का उद्देश्य केवल चित्त (मन) की शुद्धि है, न कि भौतिक वस्तुओं का लाभ। शुद्ध मन ही आत्मा का प्रकाशन करता है।

गर्भ संवाद:
“मेरे बच्चे, जीवन में हर कार्य में ईमानदारी रखना बहुत महत्वपूर्ण है। चाहे तुम कुछ भी कर रहे हो, उसे पूरी ईमानदारी से करना चाहिए। ईमानदारी ही तुम्हारे जीवन का आधार होगी और यही तुम्हें समाज में सम्मान दिलाएगी। मैं चाहती हूं कि तुम अपने जीवन में ईमानदारी को सबसे ऊपर रखो, क्योंकि इससे तुम्हारी आत्मा को सुकून मिलेगा और लोग भी तुम्हारी सच्चाई का सम्मान करेंगे।”

पहेली:
है पानी का मेरा चोला 
हूँ सफेद आलू-सा गोला। 
कहीं उलट यदि मुझको पाओ, 
लाओ-लाओ कहते जाओ।

कहानी: मछली का संघर्ष
बहुत समय पहले, एक बड़ी और शांत झील थी, जिसमें मछलियों का एक बड़ा झुंड रहता था। इस झील में हर प्रकार की मछलियां थीं छोटी-बड़ी, और रंग-बिरंगी। झील का पानी साफ था और वहां मछलियों को रहने और जीने के लिए पर्याप्त भोजन मिलता था। मछलियों का जीवन सुखद और शांतिपूर्ण था।

इस झील में तीन मछलियां प्रमुख थीं। पहली मछली बहुत बुद्धिमान थी। उसे भविष्य की समस्याओं का अनुमान पहले ही लग जाता था और वह पहले से तैयारी कर लेती थी। दूसरी मछली चतुर थी, लेकिन वह केवल तत्काल समस्या का समाधान खोजती थी। तीसरी मछली आलसी और लापरवाह थी। उसे ना तो भविष्य की चिंता थी और ना ही वह किसी समस्या को लेकर गंभीर थी। 

एक दिन, झील के पास से कुछ मछुआरे गुजर रहे थे। उन्होंने झील में मछलियों की संख्या और उनकी सुंदरता को देखा। एक मछुआरे ने कहा, "यह झील मछलियों से भरी हुई है। अगर हम यहां अपना जाल डालें, तो हमें बहुत सारी मछलियां मिलेंगी।" दूसरे मछुआरे ने जवाब दिया, "हां, लेकिन अभी रात हो रही है। हम कल सुबह आकर यहां मछलियां पकड़ेंगे।"

मछुआरों की बातों को झील की बुद्धिमान मछली ने सुन लिया। उसने तुरंत अपने झुंड की अन्य मछलियों को बुलाया और कहा, "सुनो दोस्तों, मैंने अभी मछुआरों की बातें सुनीं। वे कल सुबह आकर हमें पकड़ने की योजना बना रहे हैं। हमें इस झील को तुरंत छोड़कर किसी सुरक्षित स्थान पर जाना चाहिए।"

चतुर मछली ने कहा, "तुम सही कह रही हो। हमें सावधानी बरतनी चाहिए। लेकिन मुझे लगता है कि अगर मछुआरे आएंगे भी, तो मैं किसी न किसी तरीके से बच निकलूंगी। इसलिए, मैं यहीं रहूंगी।"

आलसी मछली ने इस बात को मजाक में लिया और कहा, "अरे, मछुआरों को आने की क्या जरूरत है? हो सकता है कि वे अपनी बात भूल जाएं। मैं कहीं नहीं जा रही। इस झील को छोड़कर कही जाने की जरूरत नहीं है।" 

बुद्धिमान मछली ने दोनों को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन चतुर और आलसी मछली ने उसकी बात नहीं मानी। अंततः, बुद्धिमान मछली ने झील छोड़ दी और पास की एक अन्य सुरक्षित झील में चली गई।

अगले दिन सुबह, मछुआरे अपनी नाव और जाल लेकर झील में पहुंचे। उन्होंने झील में जाल डाल दिया और मछलियों को पकड़ने लगे। चतुर मछली ने मछुआरों को जाल डालते देखा। उसने तुरंत अपनी चालाकी का इस्तेमाल किया और मरी हुई मछली का नाटक किया।

वह जाल में फंस गई, लेकिन जैसे ही मछुआरों ने उसे पानी से बाहर निकाला, उसने झटका मारा और वापस पानी में गिरकर बच निकली।

दूसरी ओर, आलसी मछली को अपनी गलती का एहसास तब हुआ, जब वह जाल में फंस गई। उसने भागने की बहुत कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मछुआरों ने उसे पकड़ लिया और वह अपनी जान नहीं बचा सकी।

शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दूरदर्शिता और सतर्कता हमेशा लाभकारी होती है। जो व्यक्ति समय रहते समस्याओं का अनुमान लगाकर तैयारी करता है, वह सुरक्षित रहता है। वहीं, लापरवाही और आलस्य के परिणाम हमेशा बुरे होते हैं।

पहेली का उत्तर : ओला
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प्रार्थना:
मैं उमापति, देवगुरू, जो ब्रह्मांड के कारण हैं, को नमन करता हूँ। मैं उनको नमन करता हूँ जिनका आभूषण सर्प है, जो मृगधर हैं एवं जो सभी प्राणियों के स्वामी हैं। सूर्य, चंद्रमा और अग्नि जिनके तीन नेत्र हैं और जो विष्णु प्रिय हैं, मैं उन्हें नमन करता हूँ। मैं भगवान शंकर को नमन करता हूँ जो सभी भक्तों को शरण देने वाले हैं, वरदानों के दाता हैं एवं कल्याणकारी हैं।

मंत्र:
शुभं करोति कल्याणं, आरोग्यं धनसंपदा। 
शत्रुबुद्धिविनाशाय, दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते॥ 

अर्थ: दीपक शुभ और कल्याण करता है, आरोग्य और धन-समृद्धि प्रदान करता है और शत्रुबुद्धि का विनाश करता है। ऐसे दीपज्योति को मेरा नमन है।

गर्भ संवाद:
“मेरे प्यारे बच्चे! तुम्हारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी खुद को समझना और सुधारना है। जब तुम खुद को समझते हो, तब तुम्हें अपनी कमियों और ताकतों का सही आकलन होता है। खुद की आलोचना करना और अपनी गलतियों से सीखना सबसे बड़ी समझदारी है। मैं चाहती हूं कि तुम हर दिन खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करो, ताकि तुम जीवन में सच्ची सफलता प्राप्त कर सको।”

पहेली:
जादू के डंडे का देखो, 
बिन तेल बिन बाती 
नाभि (ढोढ़ी) दबाते तुरन्त रोशनी, 
सभी ओर फैलाती।

कहानी: कौए और मोर की तुलना
एक बार की बात है, जंगल में पक्षियों का एक बड़ा झुंड रहता था। उन पक्षियों में से एक कौआ भी था, जो साधारण काले पंखों वाला था। हालांकि, कौआ अपनी बुद्धिमानी और व्यवहार में बहुत आगे था। वहीं, जंगल में एक सुंदर मोर भी रहता था। मोर के पंख रंग-बिरंगे और आकर्षक थे और जब वह नृत्य करता, तो सभी पक्षी उसे देखने के लिए जमा हो जाते थे।

कौए को यह देखकर अक्सर लगता था कि वह सुंदर नहीं है और उसे कोई पसंद नहीं करता। मोर की खूबसूरती से जलन के कारण वह अपने आप को हीन महसूस करता था। एक दिन कौआ मोर के पास गया और उससे कहा, “तुम्हारी सुंदरता देखकर मुझे हमेशा लगता है कि मैं तुम्हारे जैसे पंखों वाला क्यों नहीं हुआ। तुम्हारे पास तो सब कुछ है — खूबसूरती, प्रशंसा, और सभी का प्यार।”

मोर ने कौए की बात ध्यान से सुनी और मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “कौए भाई, तुम्हें यह भ्रम है कि मेरी सुंदरता ही सब कुछ है। लेकिन क्या तुम जानते हो कि मेरी इस खूबसूरती के कारण मुझे कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है?”

कौआ आश्चर्यचकित होकर बोला, “कठिनाइयां ? तुम्हें कौन सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है?”

मोर ने कहा, “मेरी खूबसूरती ही मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है। शिकारी मुझे पकड़ने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। मेरी सुंदरता के कारण मुझे जंगल में हर समय खतरे का सामना करना पड़ता है। तुम देखो, तुम्हारे साधारण काले पंख तुम्हें हर जगह सुरक्षित रखते हैं। तुम बिना किसी डर के कहीं भी उड़ सकते हो। मैं ऐसा नहीं कर सकता।”

कौआ सोच में पड़ गया। उसने सोचा कि उसने हमेशा अपनी साधारणता को अपनी कमजोरी समझा, लेकिन मोर की बातों ने उसे एहसास दिलाया कि उसकी सादगी ही उसकी ताकत है।

मोर ने आगे कहा, “हर जीव की अपनी खूबियां और कमियां होती हैं। मैं तुम्हारी तरह दूरदर्शी और बुद्धिमान नहीं हूं। अगर मेरी सुंदरता मेरी पहचान है, तो तुम्हारी बुद्धिमानी तुम्हारी ताकत है। हमें अपनी-अपनी खूबियों पर गर्व करना चाहिए, बजाय इसके कि हम दूसरों से अपनी तुलना करें।”

कौए ने मोर की बात मानी और समझा कि ईर्ष्या और तुलना करने से कुछ हासिल नहीं होता। उसने तय किया कि अब वह अपनी विशेषताओं पर ध्यान देगा और खुद को कमतर महसूस नहीं करेगा।

शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी खूबियों की कद्र करनी चाहिए और दूसरों से अपनी तुलना नहीं करनी चाहिए। हर व्यक्ति की अपनी विशेषताएं और ताकत होती हैं। दूसरों की ताकत को देखकर ईर्ष्या करने के बजाय, हमें अपनी क्षमताओं को पहचानना और उन्हें निखारना चाहिए।

पहेली का उत्तर : टार्च
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प्रार्थना:
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे।।
जग सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे।।
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे..
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे ॥ १ ॥ 
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे..
लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥२॥
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे..

मंत्र:
सुखं बन्धात्प्रमोक्षं च, मन एव हि कारणम्। 
बन्धाय विषयासक्तं, मुक्तं निर्विषयं स्मृतम्॥

अर्थः सुख और बंधन से मुक्ति का कारण मन ही है। विषयों में आसक्त मन बंधन का कारण बनता है और विषयों से रहित मन ही मुक्ति देता है।

गर्भ संवाद:
“समुद्र की गहराई जितनी अद्भुत और रहस्यमयी है, वैसे ही जीवन की भी कई गहरी और सुंदर बातें होती हैं। समुद्र हमें सिखाता है कि हर गहराई को समझने के लिए हमें उसकी सतह से नीचे तक जाना चाहिए। जीवन में भी कुछ चीजें बाहर से दिखने में सरल लगती हैं, लेकिन उन्हें समझने के लिए गहराई में जाकर सोचना पड़ता है। मैं चाहती हूं कि तुम जीवन के हर पहलू को गहरे दृष्टिकोण से समझो, क्योंकि यह तुम्हें सच्ची सफलता और संतुष्टि देगा।”

पहेली:
सिर पर कलगी पर मैं न चन्दा,
गरजे बादल, नीचे बन्दा। 

कहानी: बेटे की जिम्मेदारी
एक छोटे से गांव में एक किसान परिवार रहता था। परिवार में वृद्ध पिता रमेश, उनकी पत्नी और उनका बेटा अजय रहते थे। रमेश ने अपनी पूरी जिंदगी खेती में बिता दी थी। उसने अपनी मेहनत से जमीन और घर खरीदा था। अब वह बूढ़ा हो चुका था और चाहता था कि अजय उसकी जिम्मेदारियां संभाले।

अजय पढ़ा-लिखा था और शहर में नौकरी करना चाहता था। उसने अपने पिता से कहा, “पिता जी, मैं गांव की इस छोटी-सी दुनिया में नहीं रह सकता। मैं शहर जाकर बड़ा आदमी बनना चाहता हूं।”

रमेश ने अपने बेटे की बात सुनी और कहा, “बेटा, तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है। लेकिन यह मत भूलो कि इस जमीन और घर को संभालने की जिम्मेदारी तुम्हारी है। जब मैं नहीं रहूंगा, तो तुम्हें यह सब देखना होगा।”

अजय ने यह बात सुनकर हामी भर दी और शहर चला गया। वहां उसने एक अच्छी नौकरी पा ली और अपने माता-पिता को पैसे भेजने लगा। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, अजय अपने गांव और परिवार से दूर होता चला गया।

एक दिन, रमेश बीमार पड़ गए। उन्होंने अजय को खबर भेजी कि उन्हें उसकी जरूरत है। लेकिन अजय अपनी व्यस्त जिंदगी के कारण समय नहीं निकाल पाया। कुछ महीनों बाद, रमेश का स्वास्थ्य और बिगड़ गया। अब उनकी पत्नी ने अजय को फोन कर कहा, “बेटा, तुम्हारे पिता बहुत बीमार हैं। अगर तुमने जल्दी नहीं की, तो तुम उन्हें देख नहीं पाओगे।”

यह सुनकर अजय को झटका लगा। उसे अपने पिता के साथ बिताए पुराने दिन याद आने लगे। वह तुरंत गांव लौटा। उसने अपने पिता को कमजोर हालत में देखा और उनकी देखभाल करने का फैसला किया।

रमेश ने अपने बेटे को पास बुलाया और कहा, “बेटा, मैंने तुम्हें कभी नहीं रोका, क्योंकि मैं तुम्हारे सपनों को उड़ान देना चाहता था। लेकिन परिवार और जिम्मेदारी को कभी मत भूलो। यही तुम्हारी असली जड़ है।”

अजय को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने अपनी नौकरी के साथ-साथ अपने गांव और परिवार की जिम्मेदारियां संभालने का निर्णय लिया। उसने अपने पिता की सेवा की और उनका आशीर्वाद लिया।

शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि परिवार की जिम्मेदारियों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। सफलता चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, परिवार और जड़ों का महत्व सबसे बड़ा होता है।

पहेली का उत्तर : मोर
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सप्तश्लोकी गीता:
श्री भगवान ने कहा— अनुभव, प्रेमाभक्ति और साधनों से युक्त अत्यंत गोपनीय अपने स्वरूप का ज्ञान मैं तुम्हें कहता हूं, तुम उसे ग्रहण करो। 
मेरा जितना विस्तार है, मेरा जो लक्षण है, मेरे जितने और जैसे रूप, गुण और लीलाएं हैं—मेरी कृपा से तुम उनका तत्व ठीक-ठीक वैसा ही अनुभव करो। 
सृष्टि के पूर्व केवल मैं-ही-मैं था। मेरे अतिरिक्त न स्थूल था न सूक्ष्म और न तो दोनों का कारण अज्ञान। जहां यह सृष्टि नहीं है, वहां मैं-ही-मैं हूं और इस सृष्टि के रूप में जो कुछ प्रतीत हो रहा है, वह भी मैं ही हूं और जो कुछ बचा रहेगा, वह भी मैं ही हूं। 
वास्तव में न होने पर भी जो कुछ अनिर्वचनीय वस्तु मेरे अतिरिक्त मुझ परमात्मा में दो चंद्रमाओं की तरह मिथ्या ही प्रतीत हो रही है, अथवा विद्यमान होने पर भी आकाश-मंडल के नक्षत्रो में राहु की भांति जो मेरी प्रतीति नहीं होती, इसे मेरी माया समझना चाहिए। 
जैसे प्राणियों के पंचभूतरचित छोटे-बड़े शरीरों में आकाशादि पंचमहाभूत उन शरीरों के कार्यरूप से निर्मित होने के कारण प्रवेश करते भी है और पहले से ही उन स्थानों और रूपों में कारणरूप से विद्यमान रहने के कारण प्रवेश नहीं भी करते, वैसे ही उन प्राणियों के शरीर की दृष्टि से मैं उनमें आत्मा के रूप से प्रवेश किए हुए हूं और आत्म दृष्टि से अपने अतिरिक्त और कोई वस्तु न होने के कारण उन में प्रविष्ट नहीं भी हूं। 
यह ब्रह्म नहीं, यह ब्रह्म नहीं— इस प्रकार निषेध की पद्धति से और यह ब्रह्म है, यह ब्रह्म है— इस अन्वय की पद्धति से यही सिद्ध होता है कि सर्वातीत एवं सर्वस्वरूप भगवान ही सर्वदा और सर्वत्र स्थित है, वही वास्तविक तत्व है। जो आत्मा अथवा परमात्मा का तत्व जानना चाहते हैं, उन्हें केवल इतना ही जानने की आवश्यकता है।
ब्रह्माजी! तुम अविचल समाधि के द्वारा मेरे इस सिद्धांत में पूर्ण निष्ठा कर लो। इससे तुम्हें कल्प-कल्प में विविध प्रकार की सृष्टि रचना करते रहने पर भी कभी मोह नहीं होगा।

मंत्र:
नवनीतसमं ज्ञानं, न च किञ्चिद्विषादपि। 
क्रियते येन सन्तोष:, तद्विद्या सुखदा सदा॥

अर्थः ज्ञान मक्खन के समान कोमल और शुद्ध होता है, जिसमें विष का अंश भी नहीं होता। जिस ज्ञान से संतोष प्राप्त होता है, वही सच्चा सुख देने वाला होता है।

गर्भ संवाद:
“धरती जैसी निस्वार्थ समर्पण की भावना को अपनाओ। धरती हर साल न केवल हमें भोजन और हरियाली देती है, बल्कि बिन मांगे हर जीव को आश्रय भी देती है। उसे किसी से कुछ नहीं चाहिए, बस सबका भला हो। तुम भी अपनी जिंदगी में निस्वार्थ भाव से मदद करने के लिए तैयार रहो। यह समर्पण ही तुम्हें सच्चा सुख और संतोष देगा। जैसे धरती बिना किसी स्वार्थ के सबका पोषण करती है, वैसे ही तुम्हारे अच्छे कर्म और सच्ची मदद दूसरों के जीवन को बेहतर बनाएगी।”

पहेली:
हवालात में बन्द पड़ी हूँ, 
फिर भी बाहर पाओगे। 
बिना पैर के सैर करूँ मैं 
बिन मेरे मर जाओगे।

कहानी: चाचा की देखभाल
एक गांव में रमाकांत नाम के एक बुजुर्ग व्यक्ति रहते थे। उनकी उम्र 70 वर्ष से अधिक थी। उनका कोई बेटा या बेटी नहीं थी, और उनकी पत्नी का देहांत बहुत पहले हो चुका था। वह अकेले अपना जीवन गुजार रहे थे। गांव के लोग उनका सम्मान करते थे, लेकिन उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था।

रमाकांत के भतीजे अर्जुन ने अपने चाचा की हालत देखी। अर्जुन के माता-पिता ने भी उसे सिखाया था कि बुजुर्गों की सेवा करना हमारा कर्तव्य है। अर्जुन ने चाचा से कहा, “चाचा जी, अब आप अकेले नहीं रहेंगे। आप मेरे साथ चलिए। मैं और मेरा परिवार आपकी देखभाल करेंगे।”

रमाकांत ने पहले यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। उन्होंने कहा, “बेटा, मैं अपने ही घर में रहना चाहता हूं। मैं तुम्हें तकलीफ नहीं देना चाहता।” लेकिन अर्जुन ने कहा, “चाचा जी, आप हमारा परिवार हैं। आपकी देखभाल करना हमारा कर्तव्य है।”

आखिरकार, रमाकांत अर्जुन के घर चले गए। अर्जुन और उसकी पत्नी ने उनकी देखभाल में कोई कमी नहीं छोड़ी। वे उन्हें समय पर खाना देते, उनकी दवाइयों का ख्याल रखते और उनके साथ समय बिताते।

एक दिन, रमाकांत ने अर्जुन से कहा, “बेटा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी उम्र के इस पड़ाव में मुझे इतना प्यार और सम्मान मिलेगा। तुमने मुझे फिर से जीने की वजह दी है।”

अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा, “चाचा जी, आपने मेरे बचपन में मुझे संभाला था। अब मेरी बारी है कि मैं आपका ख्याल रखूं। परिवार का मतलब ही एक-दूसरे का सहारा बनना है।”

रमाकांत ने अर्जुन को आशीर्वाद दिया और कहा, “तुमने जो किया है, वह इस गांव के हर व्यक्ति के लिए एक मिसाल है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि तुम्हारे परिवार को हमेशा खुश रखे।”

शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बुजुर्गों की देखभाल करना हमारा कर्तव्य है। परिवार का अर्थ केवल साथ रहना नहीं, बल्कि एक-दूसरे की जरूरतों और भावनाओं का ख्याल रखना भी है।

पहेली का उत्तर : हवा
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प्रार्थना:
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं 
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । 
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं। 
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥

अर्थ: मैं ऐसे सर्वव्यापी भगवान विष्णु को प्रणाम करता हूं जिनका स्वरूप शांत है। जो शेषनाग पर विश्राम करते हैं, जिनकी नाभि पर कमल खिला है और जो सभी देवताओं के स्वामी हैं।
जो ब्रह्मांड को धारण करते हैं, जो आकाश की तरह अनंत और असीम हैं, जिनका रंग नीला है और जिनका शरीर अत्यंत सुंदर है।
जो धन की देवी लक्ष्मी के पति हैं और जिनकी आंखें कमल के समान हैं। जो ध्यान के जरिए योगियों के लिए उपलब्ध हैं।
ऐसे श्रीहरि विष्णु को नमस्कार है जो सांसारिक भय को दूर करते हैं और सभी लोगों के स्वामी हैं।

मंत्र:
तमेव शरणं गच्छ, सर्वभावेन भारत। 
तत्प्रसादात्परां शान्तिं, स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्॥

अर्थ: हे भारत! सम्पूर्ण भाव से उसी परमात्मा की शरण में जाओ। उनकी कृपा से तुम्हें परम शांति और शाश्वत स्थान प्राप्त होगा।

गर्भ संवाद
“हवा हमेशा अपनी दिशा में बिना रुकावट के बहती रहती है। चाहे मौसम में कितना भी बदलाव आए, वह अपनी गति से चलती रहती है। तुम भी हवा की तरह जीवन के उतार-चढ़ाव के साथ बहो, लेकिन अपने उद्देश्य को कभी न छोड़ो। तुम जितना समय के साथ चलोगे, उतना ही तुम्हारा जीवन सहज और सफल होगा। हवा की तरह अपने रास्ते में आने वाली कठिनाइयों को बिना रुकावट के पार करो और आगे बढ़ते रहो।”

पहेली:
एक पहेली मैं कहूँ 
तू सुन ले मेरे मित्र 
बिन पंखों के उड़ गयी 
वह बाँध गले में सूत।

कहानी: हर कोशिश मायने रखती है
किसी छोटे से कस्बे में अमित नाम का एक लड़का रहता था। अमित का सपना था कि वह एक प्रसिद्ध गायक बने। उसकी आवाज मधुर थी, लेकिन वह मंच पर कभी गाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। उसे डर था कि लोग उसका मजाक उड़ाएंगे।

एक दिन, कस्बे में एक संगीत प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। अमित के दोस्तों ने उसे भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। लेकिन अमित ने डर के कारण मना कर दिया। उसने कहा, “मैं मंच पर गाने की हिम्मत नहीं कर सकता। अगर मैं फेल हो गया, तो सब मेरा मजाक उड़ाएंगे।”

अमित की दादी, जो उसे बहुत प्यार करती थीं, ने यह सब सुना। उन्होंने अमित को अपने पास बुलाया और कहा, “बेटा, तुम्हें पता है कि जब तुम्हारा पिता छोटा था तो उसने भी अपनी पहली नौकरी पाने के लिए बहुत कोशिश की थी। लेकिन उसे कई बार असफलता मिली। उसने कभी हार नहीं मानी। उसकी हर कोशिश उसे एक कदम आगे ले गई। और आज वह सफल है।”

अमित ने दादी की बातों को गंभीरता से लिया। उसने सोचा, “अगर मैं कोशिश नहीं करूंगा, तो मुझे कभी नहीं पता चलेगा कि मैं क्या कर सकता हूं।”

अमित ने प्रतियोगिता में भाग लिया। मंच पर पहुंचने के बाद, वह बहुत घबरा गया। लेकिन उसने अपनी आंखें बंद कीं और गाना शुरू किया। उसकी मधुर आवाज ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। जब गाना खत्म हुआ, तो दर्शकों ने जोरदार तालियां बजाईं।

हालांकि अमित प्रतियोगिता नहीं जीत सका, लेकिन उसने जो आत्मविश्वास हासिल किया, वह अनमोल था। उसने महसूस किया कि हर कोशिश मायने रखती है, चाहे नतीजा कुछ भी हो।

इसके बाद, अमित ने अपनी गायकी को और निखारने के लिए मेहनत शुरू कर दी। कुछ सालों बाद, उसने एक बड़ा संगीत पुरस्कार जीता। उसने दादी से कहा, “दादी, आपकी सीख ने मुझे यह सिखाया कि असफलता से डरने के बजाय कोशिश करना सबसे जरूरी है। हर कोशिश हमें सफलता के करीब ले जाती है।”

शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हर कोशिश का अपना महत्व होता है। असफलता से डरने के बजाय हमें अपने सपनों को साकार करने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए। 

पहेली का उत्तर : पतंग
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प्रार्थना:
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ

हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ

तू स्वर की देवी, ये संगीत तुझसे
हर शब्द तेरा है, हर गीत तुझसे
हम है अकेले, हम है अधूरे
तेरी शरण हम, हमें प्यार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ

मुनियों ने समझी, गुणियों ने जानी
वेदों की भाषा, पुराणों की बानी
हम भी तो समझे, हम भी तो जाने
विद्या का हमको अधिकार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ

तू श्वेतवर्णी, कमल पर विराजे
हाथों में वीणा, मुकुट सर पे साजे
मन से हमारे मिटाके अँधेरे
हमको उजालों का संसार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ

मंत्र: श्री राम राम रामेति रमे रामे मनोरमा, सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने

अर्थ: श्री राम के नाम का ध्यान करने से व्यक्ति परम शक्ति की दिव्य, स्वर्गीय कृपा को प्राप्त कर सकता है और श्री राम का नाम भगवान विष्णु के हजार नामों के समान महान है।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! आकाश जितना विशाल है, उतना ही विशाल तुम्हारा सपना भी होना चाहिए। तुम्हारी सोच जितनी विस्तृत होगी, तुम्हारे रास्ते भी उतने ही अधिक खुलेंगे। आकाश हमें यह सिखाता है कि सीमाओं के भीतर रहकर भी हम बिना रुके उड़ सकते हैं। मैं चाहती हूं कि तुम आकाश की तरह खुद को विशाल बनाओ और अपनी सोच को नई ऊँचाईयों तक ले जाओ। किसी भी परिस्थिति में खुद को संकुचित मत करो, क्योंकि तुम जितना ऊंचा सोचोगे, उतनी ऊंचाई तुम्हारी होगी।”

पहेली:
काला है पर कौआ नहीं, 
बेढब है पर हौवा नहीं, 
करे नाक से सारा काम 
अब बतलाओ उसका नाम?

कहानी: मन की ताकत
एक बार की बात है, किसी गांव में रामू नाम का एक लड़का रहता था। रामू बहुत कमजोर था और उसे अपनी शारीरिक शक्ति पर भरोसा नहीं था। वह हमेशा सोचता था कि वह कभी किसी खेल या प्रतियोगिता में नहीं जीत सकता।

एक दिन, गांव में दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। रामू का दोस्त श्याम, जो उसका सबसे अच्छा दोस्त था, उससे बोला, “रामू, तुम्हें इस दौड़ में भाग लेना चाहिए।”

रामू ने जवाब दिया, “श्याम, मैं यह दौड़ कभी नहीं जीत सकता। मेरे पास ताकत नहीं है।”

श्याम ने मुस्कुराते हुए कहा, “दोस्त, दौड़ ताकत से नहीं, मन की ताकत से जीती जाती है। अगर तुम अपने मन में विश्वास रखो, तो कुछ भी संभव है।”

श्याम की बातों ने रामू को प्रेरित किया। उसने प्रतियोगिता में भाग लेने का फैसला किया।

प्रतियोगिता का दिन आया। दौड़ शुरू हुई, और रामू ने अपनी पूरी ताकत लगाई। शुरू में, वह सबसे पीछे था।

लेकिन उसने श्याम की बातों को याद किया और खुद से कहा, “मैं यह दौड़ जीत सकता हूं। मुझे हार नहीं माननी चाहिए।”

रामू ने अपने मन की ताकत से दौड़ को जारी रखा। धीरे-धीरे, उसने बाकी धावकों को पीछे छोड़ दिया। आखिरकार, वह दौड़ जीत गया। दर्शकों ने उसकी हिम्मत और प्रयास की खूब तारीफ की।

रामू ने श्याम से कहा, “तुम सही थे। हमारी असली ताकत हमारे मन में होती है। अगर हम अपने मन पर विश्वास करें, तो कोई भी लक्ष्य कठिन नहीं होता।”

उस दिन के बाद, रामू ने अपनी सोच को बदल दिया। वह हर काम में अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करता और हमेशा अपने मन की ताकत पर भरोसा करता।

शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमारी असली ताकत हमारे मन में होती है। जब हम अपने मन पर विश्वास करते हैं, तो हम हर मुश्किल को पार कर सकते हैं। आत्मविश्वास और मन की शक्ति से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

पहेली का उत्तर : हाथी
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प्रार्थना:
सभी सुखी हो, सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो, सबका दुःख दुर हो, सबका वैर शांत हो। इस संसार मे रहने वाले सारे प्राणियो की पीड़ा समाप्त हो वे सुखी और शांत हो। चाहे वे जीव जल मे रहने वाले हो या स्थल मे या फिर गगन मे रहने वाले। सभी सुखी हो। इस पूरे ब्रह्माण्ड मे सभी दृश्य और अदृश्य जीवो का कल्याण हो। बह्मांड मे रहने वाले सभी जीव और प्राणी सुखी हो वे पीड़ा से मुक्त हो।

मंत्र:
अहिंसा सत्यवचनं संयमः शीलमेव च। 
नित्यं धर्मः स्वभावेन सर्वेषां सुखमावह॥

अर्थः अहिंसा, सत्य बोलना, संयम और शील (सदाचार) का पालन करना ही धर्म है। स्वाभाविक रूप से इन गुणों का अनुसरण सभी के लिए सुखदायक होता है।

गर्भ संवाद:
“मेरे बच्चे! सूर्य हमेशा हर दिन की शुरुआत नई उम्मीदों और रोशनी के साथ करता है। सूरज की किरणें पूरे दिन को एक नई ऊर्जा और जीवन देती हैं। तुम्हें भी अपने जीवन को हर दिन सूर्य की तरह नयी उम्मीद के साथ शुरू करना चाहिए। हर दिन तुम्हारे लिए एक नया अवसर है, जिसे तुम अपनी मेहनत और सकारात्मक सोच से बेहतर बना सकते हो। मैं चाहती हूं कि तुम हर दिन सूरज की तरह अपनी ऊर्जा और सकारात्मकता से दिन की शुरुआत करो, ताकि तुम्हारा हर दिन खास हो।”

पहेली:
हाथ, पैर नहीं जिसके 
न कहीं आता-जाता 
फिर भी सारी दुनिया की 
खबरें हमें सुनाता।

कहानी: दिवाली की रोशनी
किसी छोटे से गांव में दिवाली का त्योहार आने वाला था। पूरे गांव में खुशी का माहौल था। हर घर को दीयों और रंगोली से सजाया जा रहा था। मिठाइयों की खुशबू हवा में थी, और बच्चे नए कपड़े पहनने की तैयारी कर रहे थे।

लेकिन गांव के एक कोने में रहने वाले एक गरीब परिवार के लिए यह दिवाली कोई खास नहीं थी । रामू, जो कि एक मजदूर था, अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता था। उसकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि वह अपने बच्चों के लिए मिठाई या नए कपड़े भी नहीं खरीद सकता था।

रामू का बेटा मोहन, अपने पिता से पूछता, “पिताजी, इस साल हम दीवाली कैसे मनाएंगे? हमारे पास तो कुछ भी नहीं है।” रामू ने अपनी आंखों में आंसू छिपाते हुए कहा, “बेटा, इस बार हमारी दिवाली थोड़ी अलग होगी। हम इसे सादगी से मनाएंगे।”

गांव के लोगो ने जो रामू के हालात को जानते थे, उसकी मदद करने का फैसला किया। उन्होंने चुपके से रामू के घर में मिठाइयां, दीये और बच्चों के लिए नए कपड़े रख दिए। जब रामू ने यह सब देखा, तो वह चकित रह गया।

उस रात, रामू के घर के बाहर भी दीये जल रहे थे। मोहन और उसकी बहन खुशी से झूम रहे थे। रामू ने गांववालों का धन्यवाद करते हुए कहा, “दिवाली का असली मतलब यही है कि हम अपने आसपास के लोगों की खुशियों का ख्याल रखें। आप सबने आज मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत दिवाली बना दी।”

गांव के बुजुर्गों ने कहा, “दिवाली केवल रोशनी और मिठाइयों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह दूसरों के जीवन में रोशनी लाने का अवसर है। अगर हम किसी की मदद कर सकते हैं, तो यही सबसे बड़ी पूजा है।”

उस दिन के बाद, गांव में हर साल यह परंपरा बन गई कि दिवाली पर हर कोई जरूरतमंदों की मदद करेगा। इस तरह, दिवाली पूरे गांव के लिए खुशियां बांटने का त्योहार बन गया। 

शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि दिवाली केवल अपने घर को रोशन करने का त्योहार नहीं है, बल्कि दूसरों के जीवन में रोशनी लाने और खुशियां बांटने का अवसर है।

पहेली का उत्तर : रेडियो
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