और फिर सनजना खाना खाकर सोने चली गई | लेकिन हर्षवर्धन वापस हाॅल में जाकर बैठ गया उसे सनजना के साथ बिताए पलों कि वजह से आज सदियों बाद अच्छा महसूस हो रहा था | वरना तो उस हादसे ने उसे जैसे बेजान ही कर दिया था उसे ना तो कुछ महसूस होता ना ही अच्छा लगता था | अचानक ही हर्षवर्धन सोचते सोचते वही सो गया | तभी हर्षवर्धन को सपने में एक लड़की दिखाई थी, वो लड़की हंस रही थी हर्षवर्धन भी उसे बातों प्यार कर रहा था | तभी लड़की को एक गोली लगी जिसे देख हर्षवर्धन चिखते हुए हर्षवर्धन सपने से जाग गया |
हर्षवर्धन अचानक ज़ोर से चिल्लाते हुए जाग गया। उसका पूरा शरीर पसीने से भीग चुका था, साँसें तेज़ हो गई थीं। उसने घबराकर इधर-उधर देखा, लेकिन वहाँ बस सन्नाटा था। हॉल की हल्की रोशनी में उसने घड़ी पर नज़र डाली—रात के तीन बज रहे थे।
उसका दिल अब भी तेज़ धड़क रहा था। वो सपना... वो लड़की... उसकी हंसी, उसकी बातें... और फिर अचानक वो गोली!
हर्षवर्धन ने अपने चेहरे पर हाथ फेरा, जैसे खुद को यकीन दिलाने की कोशिश कर रहा हो कि यह बस एक सपना था, लेकिन सपना था या कोई याद? उसका दिमाग उलझ गया। उसने अपना सिर पकड़ लिया।
"क्या हो रहा है मेरे साथ?" वो खुद से बड़बड़ाया।
उसका दिल बेचैन था, उस लड़की की हंसी अब भी उसके कानों में गूंज रही थी, और फिर वो चीख... वो गोली...
वो अचानक उठकर पानी लेने किचन की तरफ बढ़ा। लेकिन उसके हाथ काँप रहे थे। जैसे ही उसने पानी का गिलास उठाया, वो उसके हाथ से छूटकर ज़मीन पर गिर गया और टुकड़ों में बिखर गया।
उसने गहरी सांस ली और खुद को सँभालने की कोशिश की।
इस वक़्त हर्षवर्धन बहोत बेचैनी महसूस कर रहा था | वो खुद से ही बडबडाते हुए बोला " तूने मेरा प्यार छीना है मैं तेरी दुनिया बर्बाद कर दूगा आज तेरी बेटी मेरे कब्जे में है देखता हूं तू इसे छूडाने कैसे नहीं आएगा | तेरी बेटी को इतना दर्द दूगा कि तेरी रूह कांप उठेगी किसी अपने का दर्द अपने दर्द से कही जाता होता है |
हॉल की अधूरी रोशनी में हर्षवर्धन की परछाईं दीवारों पर भयानक शक्लें बना रही थी। उसकी आँखों में नफरत की आग जल रही थी, मुट्ठियाँ भिंची हुई थीं, और साँसें तेज़ हो चली थीं। वो बुदबुदाते हुए आगे-पीछे टहलने लगा।
"अब तू रोएगा... चीखेगा... गिड़गिड़ाएगा!" उसकी आवाज़ में ज़हर घुला हुआ था। "तेरी बेटी... हाह! तेरा नाज़, तेरा अभिमान! अब वो मेरी क़ैद में है। देखता हूँ, तुझे कैसा लगता है जब कोई तेरा सबकुछ छीन ले।"
उसने एक गहरी साँस ली और सिर झटका। "पर मैं इसे जल्दी खत्म नहीं करूँगा... नहीं, नहीं। मैं इसे धीरे-धीरे दर्द दूँगा। पहले इसके डर को बढ़ाऊँगा... इसकी आँखों में वो खौफ भरूँगा, जिससे इसकी रूह काँप उठे। फिर देखूँगा, कैसे तेरा गुरूर टूटता है!"
उसके चेहरे पर एक शैतानी हँसी उभर आई। "तेरी बेटी को मैं इतनी तकलीफ दूँगा कि जब तू इसे देखेगा, तो तेरा दिल खुद ही तुझे जीने नहीं देगा। शायद तू खुद अपने हाथों से अपनी जिंदगी खत्म कर ले। और तब... तब मैं चैन से बैठूँगा और तुझे तड़पते हुए देखूँगा!"
वो ठहाका लगाकर हँस पड़ा, उसकी गूँज पूरी घर में फैल गई। हॉल की खिड़कियाँ धीमी हवा से सरसराने लगीं, मानो डर के मारे काँप रही हों। उसकी आँखों में नफरत और बदले की आग और तेज़ हो गई थी।
तभी हर्षवर्धन को देर रात किसी का फोन आया उसे सजन वो सनजना कज पास कमरे में गया सनजना को एक पल को उसके दिल कि आग शांत सी हो गई |
हर्षवर्धन कमरे में धीमे कदमों से दाखिल हुआ। हल्की चांदनी खिड़की से छनकर संजना के चेहरे पर पड़ रही थी। वो मासूमियत भरी नींद में थी, उसकी पलकों की कोरों पर ठहरी शांति हर्षवर्धन के अंदर अजीब सी हलचल पैदा कर रही थी।
वो उसके करीब आकर खड़ा हो गया। बदले की आग, नफरत की लपटें... सब कुछ जैसे उस एक पल में ठहर गया। उसकी नजरें संजना के चेहरे की मासूमियत पर अटक गईं। वो दुश्मन की बेटी थी, लेकिन इस वक्त वो बस एक नाज़ुक एहसास की तरह लग रही थी—जिसे छूने पर भी टूट जाने का डर हो।
हर्षवर्धन ने अनजाने में अपना हाथ बढ़ाया और संजना की एक लट को उसके चेहरे से हटाया। उसकी उंगलियों का हल्का स्पर्श पाकर संजना ने करवट ली और उसके स्पर्श को महसूस कर हल्की सी मुस्कान बिखेर दी। हर्षवर्धन की सांसें गहरी हो गईं।
"ये मैं क्या कर रहा हूँ?" उसने खुद से सवाल किया, लेकिन दिल ने कोई जवाब नहीं दिया। बदले की आग में जलता हुआ हर्षवर्धन पहली बार किसी और एहसास में घिर गया था—एक ऐसा एहसास, जिससे बचना नामुमकिन था।
वो संजना के करीब झुका, उसके चेहरे को और गौर से देखने लगा। उसकी धड़कनें तेज हो गईं। एक पल को उसने सब कुछ भुला दिया—नफरत, दुश्मनी, बदला। इस पल में बस वही थी... और उसकी धड़कनों का बेबस संगीत।