Garbh Sanskaar - 2 in Hindi Women Focused by Praveen Kumrawat books and stories PDF | गर्भ संस्कार - भाग 2 - एक्टिविटीज 01

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गर्भ संस्कार - भाग 2 - एक्टिविटीज 01

प्रार्थना:

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥

भावार्थ– जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की है और जो श्वेत वस्त्र धारण करती है, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली सरस्वती हमारी रक्षा करें ॥1॥

ॐ सहनाववतु सहनौ भुनक्तु। सहवीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥ 
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

भावार्थ– ईश्वर हम दोनों (गुरू एवं शिष्य) की रक्षा करें! हम दोनों का पोषण करें! हम दोनों पूर्ण शक्ति के साथ कार्यरत रहें! हम तेजस्वी विद्या को प्राप्त करें! हम कभी आपस में द्वेष न करें ! सर्वत्र शांति रहे!

ॐ असतो मा सद्गमय।।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।।
मृत्योर्मामृतं गमय।।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

भावार्थ– हे ईश्वर! हमको असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता के भाव की ओर ले चलो।

मंत्र:
ॐ भूर्भुवः स्वः। 
तत्सवितुर्वरेण्यं। 
भर्गो देवस्य धीमहि। 
धियो यो नः प्रचोदयात्॥

अर्थ– हे परमात्मा! आप सब कुछ हैं— जीवन, प्रकाश और प्रेम। हम आपके दिव्य तेज का ध्यान करते हैं। आप हमारी बुद्धियों को सन्मार्ग में प्रेरित करें।

गर्भ संवाद:
“मेरे प्यारे बच्चे, जब से मैंने तुम्हें अपने भीतर महसूस किया है, मेरी दुनिया बदल गई है। तुम्हारे आने से पहले मेरी जिंदगी अधूरी लगती थी, लेकिन अब तुम्हारे हर स्पंदन से मुझे नई ऊर्जा मिलती है। तुम मेरी हर सांस में हो, मेरी हर धड़कन में हो। जब मैं तुम्हारी हलचल महसूस करती हूं, तो यह अहसास मुझे जादुई लगता है। तुम मेरी आत्मा का हिस्सा हो, और मैं तुम्हारे बिना खुद को अधूरी मानती हूं। मैं वादा करती हूं कि तुम्हारे जीवन को हर खुशी और प्यार से भर दूंगी। तुम्हारे आने से यह घर एक मंदिर जैसा पवित्र और पूर्ण हो जाएगा। तुम मेरी दुनिया का सबसे कीमती हिस्सा हो।”

पहेली:
एक गुफा के दो रखवाले, 
दोनों लंबे दोनों काले बताओ क्या ?

कहानी: सच्चाई की ताकत
सत्यमपुर नामक एक छोटे से गाँव में रमेश नाम का एक किसान रहता था। रमेश अपनी ईमानदारी और मेहनत के लिए पूरे गाँव में प्रसिद्ध था। वह अपने छोटे से खेत में दिन-रात काम करता और अपनी पत्नी सुनीता और दो बच्चों, गोपाल और मीनू के साथ खुशहाल जीवन बिताता। उसका मानना था कि सच्चाई और मेहनत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।

एक दिन गाँव के मुखिया हरिराम ने घोषणा की कि उसके खेत से अनाज की चोरी हो गई है। मुखिया ने गाँव की सभा बुलाकर रमेश पर आरोप लगाया कि यह चोरी उसने की है। रमेश स्तब्ध रह गया। उसने अपने ऊपर लगे आरोप को पूरी सभा के सामने नकारते हुए कहा, “मुखिया जी, मैंने कोई चोरी नहीं की है। मैं अपने खेत में मेहनत करके अपने परिवार का पेट पालता हूँ।” लेकिन मुखिया ने रमेश की एक न सुनी और उसे दंड देने की माँग की।

गाँव के लोग भी दुविधा में पड़ गए। रमेश की ईमानदारी पर किसी को शक नहीं था, लेकिन मुखिया का प्रभाव इतना था कि कोई भी उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं कर रहा था। रमेश ने ठान लिया कि वह अपनी सच्चाई साबित करेगा। उसने गाँव के कुछ बुजुर्गों और अपने दोस्तों से मदद मांगी। उन्होंने उसे हिम्मत दी और कहा कि सच्चाई की ताकत को कोई हरा नहीं सकता।

रमेश ने अपनी जांच शुरू की। उसने गाँव के हर कोने में जाकर चोरी के बारे में पता लगाने की कोशिश की। धीरे-धीरे उसे मुखिया के चरित्र और उसकी योजनाओं के बारे में कुछ चौंकाने वाले तथ्य पता चले। रमेश को पता चला कि मुखिया ने खुद अपने ही गोदाम में चोरी का अनाज छिपा रखा है ताकि वह गाँव वालों को डरा सके और अपनी पकड़ मजबूत कर सके। रमेश ने इस सच्चाई के सबूत जुटाए और गाँव के लोगों को इकट्ठा करके पूरी बात बताई।

गाँववालों ने जब मुखिया के गोदाम की तलाशी ली तो वहाँ चोरी का अनाज मिल गया। मुखिया की सच्चाई सबके सामने आ गई। उसकी धूर्तता देखकर सभी गाँव वाले क्रोधित हो गए और उसे तुरंत मुखिया पद से हटाने का निर्णय लिया। उन्होंने रमेश की ईमानदारी और साहस की सराहना की और उसे गाँव का नया मुखिया बनाने का प्रस्ताव दिया। रमेश ने विनम्रता से यह जिम्मेदारी स्वीकार की और वादा किया कि वह हमेशा न्याय और सच्चाई के रास्ते पर चलेगा।

इस घटना ने पूरे गाँव को यह सिखाया कि सच्चाई की ताकत सबसे बड़ी होती है। कठिनाइयाँ चाहे जितनी भी हों, अगर हमारा मन साफ और इरादे मजबूत हों, तो अंत में जीत सच्चाई की ही होती है। रमेश की कहानी सच्चाई और ईमानदारी का एक जीता-जागता उदाहरण बन गई।


पहेली का उत्तर : मूछे
================================ 01.

प्रार्थना:

माँ सरस्वती वरदान दो 
माँ सरस्वती वरदान दो, 
मुझको नवल उत्थान दो। 
यह विश्व ही परिवार हो, 
सबके लिए सम प्यार हो। 
आदर्श, लक्ष्य महान हो। 
माँ सरस्वती..........।

मन, बुद्धि, हृदय पवित्र हो,
मेरा महान चरित्र हो।
विद्या विनय वरदान दो।
माँ सरस्वती..........।

माँ शारदे हँसासिनी, 
वागीश वीणा वादिनी। 
मुझको अगम स्वर ज्ञान दो। 
माँ सरस्वती, वरदान दो। 
मुझको नवल उत्थान दो। 
उत्थान दो। 
उत्थान दो...।

मंत्र:
ॐ द्यौः शांतिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।
वनस्पतयः शांतिर्विश्वेदेवः शांतिर्ब्रह्म शांतिः
सर्वं शांतिः शांतिरेव शांतिः सा मा शांतिरेधि॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥

अर्थ– आकाश में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हो। जल में शांति हो, औषधियों में शांति हो। वनस्पतियों में शांति हो, समस्त सृष्टि में शांति हो। सभी में शांति हो।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे, मेरी ममता तुम्हारे लिए असीम है । तुम्हारी हर छोटी सी हलचल मेरे दिल को सुकून देती है। जब तुम पहली बार मेरी बाहों में आओगे, तो मैं तुम्हारे हर आंसू, हर मुस्कान को महसूस करूंगी। तुम्हारे साथ बिताए गए हर पल को मैं अपनी जिंदगी की सबसे अनमोल यादों में समेटूंगी। मैं तुम्हें हर बुरी चीज से बचाने के लिए हमेशा तैयार रहूंगी। मेरी ममता और मेरा प्यार तुम्हारे लिए कभी खत्म नहीं होगा। तुम मेरी सबसे बड़ी ताकत और सबसे प्यारा सपना हो।”

पहेली:
दुनिया भर की करता सैर, धरती पर ना रखता पैर, दिन मे सोता रात मे जगता, रात अँधेरी मेरे बगैर, अब बताओ मेरा नाम ?

कहानी: झूठ का अंजाम
गाँव गंगापुर में रघु नाम का एक व्यापारी रहता था। रघु चालाकी और झूठ बोलने में माहिर था। वह अपने फायदे के लिए लोगों को धोखा देता और हमेशा नई-नई चालें सोचता। लोग उसके झूठ से परेशान रहते थे, लेकिन सब उसे डर के कारण कुछ नहीं कहते थे।

एक दिन रघु ने गाँव के किसानों को एक नई योजना के बारे में बताया। उसने कहा, “मैं शहर से एक नई दवा लाया हूँ, जो आपकी फसलों को कीटों से बचाएगी और फसल की पैदावार दोगुनी कर देगी।” यह सुनकर किसान उत्साहित हो गए। रघु ने हर किसान को भारी कीमत पर दवा बेची। 

दवा के इस्तेमाल के कुछ दिनों बाद किसानों की फसलें खराब होने लगीं। खेतों में कीट और तेजी से फैल गए, और पैदावार कम हो गई। परेशान किसान रघु के पास शिकायत लेकर गए। रघु ने पहले तो उन्हें समझाने की कोशिश की कि उन्होंने दवा का सही इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन जब किसानों ने दबाव डाला, तो रघु ने झूठ बोलते हुए कहा, "यह दवा तो मुझे खुद शहर के बड़े व्यापारी से मिली थी, गलती मेरी नहीं है।"

कुछ समय बाद, गाँव में एक व्यापारी शहर से आया। उसने बताया कि रघु ने उनसे सस्ती और खराब दवा खरीदी थी और इसे गाँव वालों को महंगे दाम पर बेच दिया। यह सुनते ही किसानों का गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने पंचायत बुलाई और रघु को सजा देने की माँग की।

पंचायत ने रघु को बुलाया और उसके झूठ का पर्दाफाश किया। रघु के पास अपनी सफाई में कहने के लिए कुछ नहीं बचा। पंचायत ने फैसला सुनाया कि रघु को किसानों का सारा पैसा लौटाना होगा और उसे गाँव छोड़ने का आदेश दिया। रघु को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

गाँव वालों ने इस घटना से यह सबक सीखा कि झूठ और धोखा भले ही थोड़े समय के लिए लाभ दे, लेकिन उसका अंत हमेशा बुरा होता है। रघु की कहानी गाँव में सच्चाई और ईमानदारी का प्रतीक बन गई, और लोग इसे याद करके सच्चाई के रास्ते पर चलने की प्रेरणा लेते रहे।

पहेली का उत्तर : चाँद

==============================02

प्रार्थनाः 

हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ 
तू स्वर की देवी, ये संगीत तुझसे। 
हर शब्द तेरा, ये हर गीत तुझसे।।
हम हैं अकेले, हम हैं अधूरे।
तेरी शरण हम, हमें प्यार दे माँ।
 हे शारदे माँ .....

मुनियों ने समझी, गुणियों ने जानी। 
वेदों की भाषा, पुराणों की वाणी।।
हम भी तो समझें, हम भी तो जानें।
विद्या का हमको तू अधिकार दे माँ।।
हे शारदे माँ .....

तू श्वेतवर्णी कमल पे विराजे। 
हाथों में वीणा मुकुट सिर पे साजे।। 
मन से हमारे मिटा दो अँधेरे। 
उजालों का हमको तू संसार दे माँ।।
हे शारदे माँ .....

मंत्र:

सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत।।

अर्थ— सब लोग सुखी रहें। सब लोग निरोगी रहें। 
सब लोग मंगलमय घटनाएँ देखें। किसी को भी दुख न हो।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! मैं तुम्हारी मासूम मुस्कान देखने का इंतजार कर रही हूं। तुम्हारी हंसी मेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशी होगी। जब तुम पहली बार मुस्कुराओगे, तो मेरी आत्मा को वो खुशी महसूस होगी, जिसे मैंने कभी नहीं जाना। तुम्हारी मुस्कान मेरे लिए दुनिया का सबसे बड़ा खजाना होगी। मैं वादा करती हूं कि तुम्हारे चेहरे पर हमेशा खुशी बनी रहेगी। तुम्हारा हर दर्द, हर तकलीफ को मैं अपने प्यार से मिटा दूंगी।”

पहेली:
लाल घोडा रुका रहे, 
काला घोडा भागत जाये 
बताओ कौन ?

कहानी: परिश्रम का फल
गाँव हरिपुर में मोहन नाम का एक किसान रहता था। मोहन गरीब जरूर था, लेकिन मेहनती और ईमानदार था। उसके पास खेती के लिए एक छोटा सा खेत था, जिसमें वह कड़ी मेहनत करता और अपनी पत्नी और बच्चों का पालन-पोषण करता।

गाँव के बाकी किसान बड़े खेतों और आधुनिक साधनों के कारण अधिक फसल उगाते थे, जबकि मोहन के पास केवल अपनी मेहनत और लगन थी। लोग अक्सर उसे ताना मारते और कहते, “तू इतनी मेहनत करता है, फिर भी तेरी फसल इतनी कम क्यों होती है? अगर हमारे जैसे साधन हों, तो फिर देख तेरी हालत।” लेकिन मोहन ने कभी हार नहीं मानी और अपना काम पूरी निष्ठा से करता रहा।

एक बार गाँव में भयंकर सूखा पड़ा। बड़े किसानों की फसलें पानी की कमी के कारण खराब होने लगीं। उन्होंने अपने महंगे उपकरण और साधनों का इस्तेमाल किया, लेकिन सूखे के सामने सब बेकार साबित हुआ। वहीं, मोहन ने अपनी समझदारी और परिश्रम से खेत में पानी के संरक्षण के उपाय किए। उसने खेत में तालाब बनाया और पानी की बर्बादी रोकी।

जब फसल कटाई का समय आया, तो मोहन की फसल लहलहा रही थी, जबकि बाकी किसानों की जमीनें सूखी पड़ी थीं।

यह देखकर गाँव के लोग हैरान रह गए। वे मोहन के पास आए और उससे पूछा, “तुमने यह कैसे किया?” मोहन ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैंने कभी परिश्रम करना नहीं छोड़ा। चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों, अगर हम मेहनत करते रहें और अपनी बुद्धि का सही इस्तेमाल करें, तो सफलता जरूर मिलती है।”

गाँव वालों ने मोहन से सीख लेकर अपने खेतों में भी पानी के संरक्षण के उपाय शुरू किए। मोहन की मेहनत और समझदारी ने उन्हें यह सिखाया कि बड़े साधनों से ज्यादा जरूरी है परिश्रम और सही दृष्टिकोण।

शिक्षा
यह कहानी हमें सिखाती है कि कठिन परिश्रम और लगन से हर समस्या का समाधान संभव है। साधन सीमित हो सकते हैं, लेकिन अगर इंसान में मेहनत और सच्चाई हो, तो वह असंभव को भी संभव बना सकता है। परिश्रम का फल मीठा होता है, और यह हमें सम्मान और सफलता दोनों दिलाता है।

पहेली का उत्तर : आग और धुँआ
=============================03

प्रार्थना:
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे।।
जग सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे।।
हे हंसवाहिनी......
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे ॥ १ ॥ 
हे हंसवाहिनी .....
लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥२॥
हे हंसवाहिनी ......

मंत्र:
ॐ असतो मा सद्गमय। 
तमसो मा ज्योतिर्गमय। 
मृत्योर्मामृतं गमय॥

अर्थ— हे प्रभु! हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलें। 
अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलें। 
मृत्यु से अमरता की ओर ले चलें।

गर्भ संवाद 
“तुम्हारे आने से पहले ही मैं तुम्हारे लिए खुशियों और प्यार का संसार बसा रही हूं। तुम मेरे जीवन में एक रोशनी की तरह हो, जो हर अंधेरे को मिटा देगी। तुम्हारा जन्म मेरे लिए भगवान का सबसे बड़ा तोहफा होगा। तुम्हारे आने का इंतजार मेरे हर दिन को खूबसूरत बना रहा है। मैं तुम्हें अपनी बाहों में लेकर हर दिन को तुम्हारे साथ जीने के लिए उत्सुक हूं।”

पहेली:
बीमार नही रहती मैं, फिर भी खाती हूँ गोली, बच्चे बूढ़े सब डर जाते, सुन कर इसकी बोली बताओ क्या ?

कहानी: प्रह्लादजी की भक्ति
हिरण्यकश्यप एक अत्यंत अहंकारी और शक्तिशाली राजा था। वह भगवान को नहीं मानता था और अपने राज्य में सभी से अपनी पूजा करवाता था। उसकी प्रजा और यहां तक कि उसके परिवार के लोग भी उसके क्रूर स्वभाव से डरते थे।

हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु के परम भक्त थे। वे अपने पिता के आदेशों के बावजूद भगवान विष्णु का ध्यान करते और उनकी महिमा का गुणगान करते। यह बात हिरण्यकश्यप को अत्यंत क्रोधित करती। उसने कई बार प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया कि वह भगवान विष्णु की पूजा छोड़ दे और केवल उसकी पूजा करे, लेकिन प्रह्लादजी ने हमेशा कहा, “भगवान विष्णु ही सबके स्वामी हैं। उनकी भक्ति ही सच्चा धर्म है।”

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को भक्ति से दूर करने के लिए अनेक यातनाएं दीं। उसने प्रह्लाद को ऊंचे पहाड़ से गिरवा दिया, जंगली हाथियों के सामने फेंक दिया, और यहां तक कि उन्हें जहर भी दिया, लेकिन प्रह्लाद हर बार भगवान विष्णु की कृपा से सुरक्षित बच गये।

एक दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से क्रोधित होकर पूछा, “तुम्हारा भगवान हर जगह है, तो क्या वह इस खंभे में भी है?” प्रह्लाद ने निडर होकर उत्तर दिया, “हाँ, भगवान हर जगह हैं।” यह सुनकर हिरण्यकश्यप ने क्रोध में आकर खंभे पर प्रहार किया।

उसी क्षण खंभे से भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।

प्रह्लादजी की भक्ति और सच्चाई ने अंततः उन्हें विजय दिलाई। उनकी निष्ठा और ईश्वर के प्रति समर्पण ने यह सिद्ध कर दिया कि सच्चे भक्त की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं।

शिक्षा
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और ईश्वर के प्रति निष्ठा हर संकट को पार कर सकती है। भगवान हर जगह हैं और सच्चे भक्त की रक्षा करने में कभी पीछे नहीं रहते। इसलिए हमें सच्चाई और भक्ति के मार्ग पर चलना चाहिए।

पहेली का उत्तर : बन्दूक
============================04

प्रार्थना:
तुम ही हो माता, पिता तुम्ही हो। 
तुम ही हो बंधू, सखा तुम्ही हो।

तुम्ही हो साथी, तुम ही सहारे। 
कोई न अपना, सिवाए तुम्हारे।

तुम्ही हो नैया, तुम्ही खिवैया। 
तुम ही हो माता, पिता तुम्ही हो ....

जो खिल सके न, वो फूल हम हैं।
तुम्हारे चरणों की धुल हम हैं।

दया की दृष्टि सदा ही रखना। 
तुम हो माता, पिता तुम्ही हो ....

मंत्र:
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकिसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। 
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः॥

अर्थ— हे देवकी के पुत्र भगवान कृष्ण! आप हमें संतति का सुख प्रदान करें। हम आपकी शरण में हैं।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे, तुम मेरी हर धड़कन में शामिल हो। जब भी मैं तुम्हें महसूस करती हूं, तो ऐसा लगता है जैसे मेरी हर सांस तुम्हारे लिए बनी है। तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी अधूरी और खाली होती। मैं तुम्हें इस दुनिया में हर खुशी देने का वादा करती हूं। तुम मेरे दिल का सबसे अनमोल हिस्सा हो, और मैं तुम्हें कभी भी अकेला नहीं छोडूंगी।”

पहेली:
काला घोडा सफ़ेद सवारी एक उतरे तो दूसरे की बारी ?

कहानी: हनुमान का पराक्रम
त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने जब रावण से अपनी पत्नी सीता को छुड़ाने के लिए लंका पर चढ़ाई करने का निश्चय किया, तब उनके सबसे बड़े भक्त हनुमान ने अपने पराक्रम और समर्पण से सभी को प्रभावित किया। यह कहानी उनकी अद्भुत शक्ति और भक्ति का वर्णन करती है।

हनुमान, पवनदेव और अंजना के पुत्र, बचपन से ही असाधारण शक्तियों के धनी थे। उनके बाल्यकाल की अनेक कहानियाँ प्रसिद्ध हैं, जैसे सूर्य को फल समझकर निगलने का प्रयास। लेकिन उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय श्रीराम की सेवा में शुरू हुआ।

जब श्रीराम और उनके अनुज लक्ष्मण, वनवास के दौरान माता सीता की खोज कर रहे थे, तब उनकी भेंट हनुमान से हुई। हनुमान ने रामजी को पहचानकर तुरंत उनके चरणों में प्रणाम किया और कहा, “हे प्रभु, मैं आपकी सेवा के लिए सदैव तैयार हूँ।” श्रीराम ने हनुमान को अपने स्नेह और आशीर्वाद से विभूषित किया।

सीताजी की खोज में वानर सेना को दक्षिण की ओर भेजा गया। जब सभी वानर हताश हो गए और उन्हें कोई सुराग नहीं मिला, तब जटायु के भाई संपाति ने बताया कि सीता लंका में रावण के महल में हैं। यह सुनकर हनुमान ने लंका जाने का संकल्प लिया।

हनुमान ने अपने पराक्रम का परिचय देते हुए विशाल समुद्र को एक ही छलांग में पार कर लिया। समुद्र पार करते समय उन्हें सुरसा और सिंहिका जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी बुद्धि और शक्ति से उन्होंने सभी को पराजित किया। लंका पहुँचने के बाद हनुमान ने माता सीता को अशोक वाटिका में पाया।

अशोक वाटिका में हनुमानजी ने माता सीता को प्रभु राम का संदेश दिया और उनकी चिंता को दूर किया। जब रावण के सैनिकों ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की, तब हनुमान ने अपना विराट रूप धारण कर पूरी वाटिका को तहस-नहस कर दिया। उन्होंने रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध किया और अंत में रावण के दरबार में पहुँचकर उसे श्रीराम का संदेश सुनाया।

रावण ने हनुमानजी का अनादर करते हुए उनकी पूँछ में आग लगाने का आदेश दिया। लेकिन हनुमान ने अपनी पूँछ की आग से पूरी लंका को जला दिया और सुरक्षित लौटकर श्रीराम को माता सीता का समाचार दिया।

लंका दहन के बाद, राम-रावण युद्ध में हनुमान ने अपनी अद्भुत शक्ति और चतुराई का प्रदर्शन किया। युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण मेघनाद के शक्तिबाण से मूर्छित हो गए, तब हनुमानजी ने संजीवनी बूटी लाने के लिए हिमालय की ओर उड़ान भरी। रास्ते में अनेक बाधाओं का सामना करते हुए, उन्होंने पूरा पर्वत ही उठा लिया और समय पर लौटकर लक्ष्मणजी का जीवन बचाया।

हनुमान ने युद्ध के हर चरण में अपनी शक्ति और भक्ति से श्रीराम की सहायता की। उनकी निष्ठा और समर्पण ने श्रीराम के कार्य को सफल बनाया और रावण का अंत हुआ।

यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और निष्ठा के साथ यदि हम अपने कर्तव्य का पालन करें, तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है। साहस, समर्पण, और बुद्धिमानी के साथ किया गया कार्य हमेशा सफलता दिलाता है। हनुमान जी का जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास और सेवा की भावना हमें हर परिस्थिति में विजयी बनाती है।

शिक्षा
हनुमानजी का जीवन हमें सिखाता है कि जब हम सच्चे दिल से अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होते हैं, तो हमें किसी भी परिस्थिति से डरने की आवश्यकता नहीं होती। उनकी भक्ति और पराक्रम प्रेरणा देते हैं कि सच्चाई, साहस और विश्वास से सभी बाधाओं को पार किया जा सकता है। उनके कार्यों से यह शिक्षा मिलती है कि अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए परोपकार और निष्ठा का मार्ग अपनाना चाहिए।

पहेली का उत्तर : तवा और रोटी
============================05

प्रार्थना:
असतो मा सद्गमय। 
तमसो मा ज्योतिर्गमय। 
मृत्योर्मामृतं गमय॥ 

दया कर दान विद्या का हमे परमात्मा देना, 
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना। 
हमारे ध्यान में आओ, प्रभु आँखों में बस जाओ, 
अँधेरे दिल में आकर के परम ज्योति जगा देना।
बहा दो प्रेम की गंगा, दिलों में प्रेम का सागर, 
हमे आपस में मिलजुल के प्रभु रहना सीखा देना। 
हमारा कर्म हो सेवा, हमारा धर्म हो सेवा,
सदा ईमान हो सेवा, वो सेवक चर बना देना। 
वतन के वास्ते जीना, वतन के वास्ते मरना, 
वतन पे जा फ़िदा करना, प्रभु हमको सीखा देना।
 दया कर दान विद्या का हमे परमात्मा देना,
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना। 

ॐ सह नाववतु। 
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै। 
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।

मंत्र:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

अर्थ— हम त्रिनेत्र वाले भगवान शिव की आराधना करते हैं। जो हमें जीवन, आरोग्य और मोक्ष का वरदान दें।

गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे, जब भी मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूं, तो मुझे हर मुश्किल छोटी लगती है। तुम्हारे लिए मैं हर दर्द और परेशानी झेलने के लिए तैयार हूं। तुम मेरी जिंदगी को नया उद्देश्य और नई दिशा देते हो। तुम्हारे साथ मैं हर दिन को एक नए जश्न की तरह देखती हूं। तुम मेरे हर सपने को सच करने की प्रेरणा हो।”

पहेली:
अगर नाक पे चढ़ जाऊ, कान पकड़ के तुम्हे पढ़ाउ बताओ क्या ?
पहेली का उत्तर : चश्मा (ऐनक)
============================06

प्रार्थना:
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम 
ऐसे हों हमारे करम
नेकी पर चलें और बदी से टलें
ताकि हंसते हुए निकले दम....

ये अँधेरा घना छा रहा तेरा इंसान घबरा रहा 
हो रहा बेखबर, कुछ न आता नज़र
सुख का सूरज छुपा जा रहा 
है तेरी रौशनी में जो दम 
तू अमावास को कर दे पूनम
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम.....

जब जुल्मों का हो सामना 
तब तू ही हमें थामना
वो बुराई करे हम भलाई भरें
नहीं बदले की हो कामना
बढ़ उठे प्यार का हर कदम 
और मिटे बैर का ये भरम
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम.....

बड़ा कमज़ोर है आदमी, 
अभी लाखों हैं इसमें कमी 
पर तू जो खड़ा है दयालू बड़ा
तेरी कृपा से धरती थमी
दिया तूने हमे जब जनम 
तू ही झेलेगा हम सबके ग़म 

ऐ मालिक तेरे बन्दे हम 
ऐसे हों हमारे करम
नेकी पर चलें और बदी से टलें
ताकि हंसते हुए निकले दम....

मंत्र:
ॐ क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा ।

अर्थः हे श्री कृष्ण! आप गोविंद और गोपीजनों के प्रिय हैं। आप हमें प्रेम, शांति और भक्ति का आशीर्वाद दें।

गर्भ संवाद 
“मेरे बच्चे, तुम्हारी मासूमियत मेरे दिल को छू लेती है। जब भी मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूं, तो मेरी आत्मा को एक अद्भुत सुकून मिलता है। तुम्हारी मासूमियत और प्यारा चेहरा मेरे लिए दुनिया की सबसे बड़ी खुशी है। मैं वादा करती हूं कि मैं तुम्हें हर बुरी चीज से दूर रखूंगी।”

पहेली:
एक दिन, एक वकील और उसके बेटे का एक्सीडेंट हो गया उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया ऑपरेशन रूम में डॉक्टर ने लड़के को देख के कहा की ये मेरा बेटा है। बताओ डॉक्टर ने उस लड़के को अपना बेटा क्यों कहा?

कहानी: विवेकानंद का प्रेरणादायक भाषण
स्वामी विवेकानंद का 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में दिया गया भाषण भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की गहरी गूंज है, जिसने न केवल भारत का गौरव बढ़ाया, बल्कि विश्व को यह संदेश दिया कि , धर्म मानवता के उत्थान और एकता का माध्यम होना चाहिए। यह भाषण आज भी प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत है। विवेकानंद ने अपनी वाणी में ऐसा ओज भरा कि उनके शब्द श्रोताओं के हृदय में सीधे उतर गए।

जब स्वामी विवेकानंद मंच पर पहुंचे, तो उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” कहकर की। इन शब्दों ने न केवल श्रोताओं का दिल जीत लिया, बल्कि यह भी सिद्ध कर दिया कि भारतीय संस्कृति सभी को अपने परिवार का हिस्सा मानती है। उनके इन शब्दों पर पूरा सभागार तालियों की गूंज से भर गया। यह उनके भीतर छिपे विश्वबंधुत्व की भावना और उनके विचारों की गहराई का प्रतीक था।

स्वामी विवेकानंद ने इस भाषण में भारतीय धर्म और संस्कृति के मूल तत्वों को बड़े ही सहज और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि भारत वह भूमि है जिसने सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पूरी दुनिया को सिखाया। यह वह देश है जहां विभिन्न धर्मों ने सह-अस्तित्व में रहना सीखा है।

उनके इन शब्दों ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय धर्म न केवल सहिष्णुता को मानता है, बल्कि वह हर धर्म की सच्चाई को भी स्वीकार करता है।

उन्होंने अपने भाषण में यह भी कहा कि धर्म का उद्देश्य केवल पूजा-पाठ या कर्मकांड नहीं है। धर्म का असली उद्देश्य मानवता को जोड़ना और उसे उच्चतम आदर्शों की ओर प्रेरित करना है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक धर्म मानव जीवन को श्रेष्ठता की ओर नहीं ले जाता, तब तक वह अधूरा है। उनका यह विचार न केवल हिंदू धर्म, बल्कि सभी धर्मों के लिए था। 
स्वामी विवेकानंद ने वेदांत और उपनिषदों की शिक्षाओं को प्रस्तुत करते हुए कहा कि हर व्यक्ति के भीतर ईश्वर का वास है। यह व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने भीतर की दिव्यता को पहचाने और उसे अपने जीवन में उतारे। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय संस्कृति का मुख्य उद्देश्य आत्मा की उन्नति और शाश्वत शांति की प्राप्ति है। उनका यह विचार पश्चिमी सभ्यता के लिए नई प्रेरणा था, जहां भौतिकता को अधिक महत्व दिया जाता था।

शिक्षा
स्वामी विवेकानंद का भाषण हमें यह सिखाता है कि धर्म का उद्देश्य केवल आत्मा की उन्नति नहीं, बल्कि मानवता के कल्याण के लिए कार्य करना है। यह हमें यह भी सिखाता है कि सच्ची शिक्षा वह है जो आत्मविश्वास, सेवा और मानवता के प्रति समर्पण सिखाए। उनका जीवन और विचार यह संदेश देते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर अनंत शक्तियां और संभावनाएं हैं, जिन्हें पहचानना और उन्हें सही दिशा देना ही जीवन का असली उद्देश्य है।

स्वामी विवेकानंद के शब्द केवल उस समय के लिए नहीं थे, बल्कि वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उनका संदेश हमें यह याद दिलाता है कि सच्ची शक्ति सत्य, प्रेम और सहिष्णुता में है। उनके विचार और उनकी शिक्षाएं हमें अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने और मानवता की सेवा करने की प्रेरणा देती हैं। उनका भाषण एक ऐसी विरासत है, जो आने वाली पीढ़ियों को धर्म, अध्यात्म और मानवता के सही अर्थ को समझने का मार्ग दिखाता रहेगा।


पहेली का उत्तर : 
वो डॉक्टर लेडीज थी और वो लड़का उसका बेटा।
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प्रार्थना:
हमारी ही मुठ्ठी में आकाश सारा
जब भी खुलेगी चमकेगा तारा
कभी ना ढले जो, वो ही सितारा
दिशा जिससे पहचाने संसार सारा

हथेली पे रेखायें हैं सब अधूरी
किसने लिखी हैं नहीं जानना है
सुलझाने उनको न आएगा कोई
समझना हैं उनको ये अपना करम है
अपने करम से दिखाना है सबको
खुद का पनपना, उभरना है खुद को
अँधेरा मिटाए जो नन्हा शरारा, दिशा जिससे ...

हमारे पीछे कोई आए ना आए
हमें ही तो पहले पहुचना वहाँ है
जिन पर हैं चलना नई पीढ़ीयों को
उन ही रास्तों को बनाना हमें हैं
जो भी साथ आये उन्हें साथ ले ले
अगर ना कोई साथ दे तो अकेले
सुलगा के खुद को मिटा ले अँधेरा, दिशा जिससे ...

मंत्र:
ॐ ब्रह्मा मुरारि त्रिपुरान्तकारी। भानुः शशि भूमिसुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः। सर्वे ग्रहा शान्ति करा भवन्तु॥ 

अर्थः हे ब्रह्मा, विष्णु और महेश!
सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु सभी ग्रह हमारे जीवन में शांति और सुख लाएँ।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! हर दिन मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करती हूं। भगवान से बस यही मांगती हूं कि तुम्हारा जीवन खुशियों से भरा हो। तुम्हारी हर इच्छा पूरी हो और तुम्हारे जीवन में कोई भी दुख न आए। तुम मेरी दुनिया का सबसे प्यारा हिस्सा हो, और मैं तुम्हारे बिना अधूरी हूं।”

पहेली:
खरीदने पर काला जलाने पे लाल फेंकने पे सफ़ेद बताओ क्या है ?

कहानी: प्रकृति की गोद में
एक बार एक छोटे से गांव में एक बच्चा रहता था जिसका नाम आरव था। आरव स्वभाव से बहुत चंचल और जिज्ञासु था। उसे प्रकृति के हर पहलू में कुछ नया खोजने की आदत थी। उसके दादा जी उसे हमेशा सिखाते थे कि प्रकृति हमारी सबसे बड़ी शिक्षक है और हमें इससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

आरव हर दिन गांव के पास के जंगल में जाता, जहां वह पक्षियों के गीत सुनता, बहती नदी का संगीत महसूस करता, और पेड़ों की ठंडी छांव में बैठता। उसे वहां जाकर ऐसा लगता जैसे वह प्रकृति की गोद में आ बैठा हो। 

एक दिन उसने देखा कि जंगल का एक हिस्सा सूखने लगा है। पक्षियों का चहचहाना कम हो गया, और वहां की हरियाली भी फीकी पड़ने लगी। यह देखकर आरव चिंतित हो गया। उसने गांव के बुजुर्गों से इस बारे में बात की। उन्होंने उसे बताया कि पिछले कुछ महीनों से लोग जंगल से लकड़ी काट रहे हैं और पेड़ कम हो रहे हैं, जिसके कारण जंगल की सुंदरता खत्म हो रही है।

आरव को यह सुनकर बहुत दुख हुआ। उसने तय किया कि वह कुछ करेगा। उसने अपने दोस्तों और गांव के बच्चों को इकट्ठा किया और सभी को समझाया कि हमें अपने जंगल को बचाना होगा।

बच्चों ने आरव के साथ मिलकर एक योजना बनाई। उन्होंने पेड़ लगाने का संकल्प लिया और गांव के हर घर में जाकर लोगों को समझाया कि पेड़ों की कितनी जरूरत है।

धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाई। गांव के लोग जागरूक हुए और पेड़ों की कटाई बंद कर दी। सभी ने मिलकर नए पेड़ लगाए और जंगल को फिर से हरा-भरा बनाया । पक्षी वापस आ गए, नदी का संगीत लौट आया, और जंगल फिर से जीवंत हो गया।

आरव ने महसूस किया कि जब हम प्रकृति के करीब होते हैं, तो हमें उससे अपार सुख और शांति मिलती है। लेकिन जब हम इसे नुकसान पहुंचाते हैं, तो यह हमें वापस प्यार देने में सक्षम नहीं होती। 

शिक्षा
प्रकृति हमारी मां है। यदि हम उसकी रक्षा करेंगे, तो वह हमें अपनी गोद में सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देती रहेगी। हमें उसकी देखभाल करनी चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां भी उसकी सुंदरता का आनंद ले सकें।


पहेली का उत्तर : कोयला
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प्रार्थना: 
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे, भूलकर भी कोई भूल हो ना
दूर अज्ञान के हो अँधेरे, तू हमें ज्ञान की रौशनी दे
हर बुराई से बचके रहें हम, जितनी भी दे भली ज़िन्दगी दे
बैर हो ना किसी का किसी से भावना मन में बदले की हो ना
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना
हम न सोचें हमें क्या मिला है हम ये सोचें किया क्या है अर्पण
फूल खुशियों के बांटें सभी को सबका जीवन ही बन जाए मधुवन
अपनी करुणा का जल तू बहा के कर दे पावन हर एक मन का कोना
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना
हर तरफ़ ज़ुल्म है, बेबसी है, सहमा सहमा सा हर आदमी है
पाप का बोझ बढ़ता ही जाए, जाने कैसे ये धरती थमी है
बोझ ममता से तू ये उठा ले, तेरी रचना का ये अंत हो ना
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे, भूल कर भी कोई भूल हो ना
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना
हम अँधेरे में हैं रोशनी दे, खो ना दे खुद को ही दुश्मनी से
हम सज़ा पायें अपने किए की, मौत भी हो तो सह ले ख़ुशी से
कल जो गुज़ारा है फिर से ना गुज़रे, आने वाला वो कल ऐसा हो ना
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना

मंत्र:
ॐ पृथ्वी शान्तिरापः शान्तिरग्निः शान्तिः। 
वायुः शान्तिर्ब्रादित्यः शान्तिर्चन्द्रमाः शान्तिः। 
नक्षत्राणि शान्तिरापः शान्तिः।
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः॥

अर्थ— पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश में शांति हो। 
सूर्य, चंद्रमा और तारों में शांति हो। 
सभी तत्वों में शांति बनी रहे।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! तुमने मुझे सिखाया है कि सच्चा प्यार क्या होता है। तुम्हारे बिना मेरी दुनिया अधूरी होती। तुम्हारे आने से मेरी जिंदगी का हर कोना रोशन हो गया है। तुम्हारे साथ बिताया हर पल मेरे लिए अमूल्य है। मैं तुम्हें अपनी ममता और स्नेह से इस दुनिया की हर खुशी देने का वादा करती हूं।”

पहेली:
एक राजा की अनोखी रानी दुम के सहारे पीती पानी बताओ जरा ?

कहानी: नदी की लहरें
एक घने जंगल के बीच बहती थी एक नदी, जिसका नाम था नंदिनी। नंदिनी नदी पहाड़ों से निकलकर खेतों और गांवों से होकर गुजरती थी। वह अपनी निर्मल धारा से जीवन देती और सभी को खुशहाल बनाती। उसकी लहरों में एक अद्भुत संगीत था, जो उसके पास आने वाले हर किसी को शांत और प्रेरित करता था।

नंदिनी की लहरें दिन-रात बिना रुके बहती थीं। लेकिन उसकी धारा में कई चुनौतियां भी थीं। कभी ऊंचे-ऊंचे पत्थरों से टकराना पड़ता, तो कभी तेज़ बारिश से उसका जलस्तर बढ़ जाता। लेकिन इन सबके बावजूद नंदिनी कभी रुकती नहीं थी। वह हमेशा बहती रहती, क्योंकि उसे पता था कि रुकने का मतलब है अपना अस्तित्व खो देना।

एक दिन, नंदिनी के तट पर एक युवक बैठा था, जिसका नाम अर्जुन था। अर्जुन बहुत दुखी था। उसने अपने जीवन की कठिनाइयों से हार मान ली थी और उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि वह आगे क्या करे। उसने नंदिनी की लहरों को ध्यान से देखा। वे कभी शांत होतीं, कभी तेज़ बहतीं, और कभी बड़े पत्थरों से टकराकर भी अपनी दिशा बदल लेतीं।

अर्जुन ने नंदिनी से पूछा “हे नदी, तुम इतनी कठिनाइयों के बावजूद कैसे हमेशा बहती रहती हो? क्या तुम्हें डर नहीं लगता कि तुम बर्बाद हो जाओगी?”

नंदिनी की लहरें मुस्कराईं और बोलीं, “डर तो सबको लगता है, लेकिन रुक जाना कभी समाधान नहीं होता। मेरे मार्ग में पत्थर आते हैं, मुझे चोट पहुंचाते हैं, लेकिन मैं उनसे सीखती हूं कि कैसे बहना है। बारिश मेरे जलस्तर को बढ़ा देती है, लेकिन मैं उसे अपने प्रवाह में बदल देती हूं। जीवन में कठिनाइयां आती हैं, लेकिन वे हमें मजबूत बनाती हैं।” अर्जुन ने यह सुनकर कहा, “लेकिन मैं अपनी समस्याओं से लड़ने की हिम्मत खो चुका हूं। मेरे पास कोई मार्ग नहीं बचा है।”

नंदिनी ने कहा, “क्या तुम्हें पता है कि मेरा पानी कहां जाता है? यह गांवों के खेतों को सींचता है, प्यासे लोगों को पानी देता है, और अंत में समुद्र से मिल जाता है। तुम्हारे जीवन का भी एक उद्देश्य है। अगर मैं रास्ते में रुक जाऊं, तो मेरे पानी का कोई उपयोग नहीं होगा। तुम्हें भी अपनी समस्याओं का सामना करना होगा और अपने उद्देश्य को खोजना होगा।”

अर्जुन ने नंदिनी की बातों पर विचार किया। उसने महसूस किया कि उसकी समस्याएं उसकी लहरों की तरह ही हैं, जो उसे आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश करती हैं। लेकिन जैसे नंदिनी हर चुनौती का सामना करती है और अपनी दिशा बदलती है, वैसे ही उसे भी अपनी सोच और दृष्टिकोण को बदलना होगा।

अर्जुन ने अपनी हार मानने की भावना को छोड़ दिया। उसने तय किया कि वह अपनी समस्याओं का डटकर सामना करेगा और अपने जीवन को नई दिशा देगा। उसने नंदिनी से वादा किया कि वह भी उसकी तरह बहते हुए अपने जीवन का अर्थ खोजेगा।

अर्जुन ने मेहनत की, अपनी गलतियों से सीखा, और धीरे-धीरे उसने अपनी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर ली। वह अपने जीवन में सफल हुआ और हमेशा नंदिनी की प्रेरणा को याद करता रहा।

शिक्षा
कठिनाइयां जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन उनका सामना करने और उनसे सीखने से ही हम अपने जीवन का सही मार्ग पा सकते हैं। नदी की लहरें हमें सिखाती हैं कि रुकने से कुछ नहीं मिलता, लेकिन आगे बढ़ने से हम अपने उद्देश्य तक पहुंच सकते हैं। जीवन में चाहे कितनी भी समस्याएं आएं, हमें निडर होकर उनका सामना करना चाहिए।


पहेली का उत्तर : दीया (दीपक)
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प्रार्थना:
जयति जय जय माँ सरस्वती, जयति वीणा धारिणी॥
जयति जय पद्मासन माता, 
जयति शुभ वरदायिनी।
जयति जय जय माँ सरस्वती, जयति वीणा धारिणी॥
जगत का कल्याण कर माँ, 
तुम हो वीणा वादिनी।
जयति जय जय माँ सरस्वती, जयति वीणा धारिणी॥
कमल आसन छोड़कर आ, 
देख मेरी दुर्दशा मां।
जयति जय जय माँ सरस्वती, जयति वीणा धारिणी॥
ज्ञान की दरिया बहा दे, 
हे सकल जगतारणी।
जयति जय जय माँ सरस्वती, जयति वीणा धारिणी।

मंत्र:
ॐ आदित्याय च सोमाय मंगळाय बुधाय च। 
गुरु शुक्र शनिभ्यश्च राहवे केतवे नमः॥

अर्थ— सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु को प्रणाम। 
आप सभी हमें शक्ति, सफलता और समृद्धि दें।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! तुम्हारे साथ मेरा रिश्ता इस दुनिया में सबसे अनमोल है। यह रिश्ता प्यार, ममता और विश्वास से भरा हुआ है। मैं हर दिन तुम्हारे साथ जुड़ाव महसूस करती हूं। जब मैं तुम्हारी हलचल महसूस करती हूं, तो यह मुझे याद दिलाता है कि हमारी आत्माएं एक हैं।”

पहेली:
एक पिता ने अपने बच्चे को गिफ्ट देते हुए कहा इसमें ऐसी चीज़ है कि जब तुम्हे प्यास लगे तो पी लेना जब भूख लगे तो खा लेना और जब सर्दी लगे तो जला लेना बताओ गिफ्ट में क्या दिया ?

कहानी: आत्मा का जागरण
बहुत समय पहले की बात है, हिमालय के पास बसे एक छोटे से गांव में एक युवक रहता था जिसका नाम अर्णव था। अर्णव का जीवन भौतिक सुख-सुविधाओं में लिप्त था। वह हमेशा अपनी इच्छाओं को पूरा करने में व्यस्त रहता और कभी यह नहीं सोचता कि उसका जीवन का असली उद्देश्य क्या है।

एक दिन गांव में एक संत आए। संत ने गांव के लोगों को आत्मा और उसके जागरण के बारे में उपदेश दिया। उन्होंने कहा, “मनुष्य का जीवन केवल भौतिक सुखों तक सीमित नहीं है। आत्मा का जागरण ही जीवन का असली उद्देश्य है। जब आत्मा जागृत होती है, तो मनुष्य सच्चे सुख और शांति का अनुभव करता है।”

अर्णव ने संत के उपदेश को सुना, लेकिन वह उसे समझ नहीं पाया। उसने सोचा, “ये सब बातें मेरे जीवन में कैसे लागू होती हैं? मुझे तो सब कुछ प्राप्त है।” लेकिन संत के शब्द उसके मन में बार-बार गूंजने लगे।

कुछ दिनों बाद, अर्णव ने महसूस किया कि भौतिक वस्तुएं उसे लंबे समय तक खुशी नहीं दे रहीं। उसके मन में एक खालीपन था, जिसे वह भर नहीं पा रहा था। उसने सोचा, “क्या सच में आत्मा का जागरण मेरी समस्या का समाधान हो सकता है?”

अर्णव ने संत से मिलने का निश्चय किया। उसने संत से पूछा, “गुरुजी, आत्मा का जागरण कैसे होता है? मैं इस खालीपन से मुक्त होना चाहता हूं।”

संत मुस्कुराए और बोले, “पुत्र, आत्मा का जागरण कोई बाहरी प्रक्रिया नहीं है। यह आत्मनिरीक्षण और साधना का मार्ग है। पहले अपने मन की अशांति को समझो। ध्यान करो, अपने भीतर झांको, और जानो कि तुम कौन हो।”

अर्णव ने संत की बात मानी और ध्यान करना शुरू किया। शुरुआत में उसका मन इधर-उधर भटकता, लेकिन उसने धैर्य नहीं खोया। धीरे-धीरे, उसने महसूस किया कि उसके भीतर एक नई ऊर्जा उत्पन्न हो रही है। उसका मन शांत होने लगा है और उसे आत्मा के अस्तित्व का अनुभव होने लगा।

धीरे-धीरे, अर्णव का जीवन बदल गया। उसने भौतिक इच्छाओं को कम कर दिया और अपने जीवन का उद्देश्य समझा। अब वह अपने गांव के लोगों की मदद करने लगा, उनकी समस्याओं को सुनता और उन्हें समाधान देता। उसने महसूस किया कि आत्मा का जागरण केवल अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी होता है।

अर्णव का परिवर्तन देखकर गांव के लोग चकित रह गए। उन्होंने उससे पूछा, “तुम्हारे जीवन में इतनी शांति और सुख कैसे आया?”

अर्णव ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "जब मैंने अपनी आत्मा को जागृत किया, तो मैंने सच्चा सुख और शांति पाई। यह सुख किसी बाहरी वस्तु में नहीं, बल्कि अपने भीतर है।”

शिक्षा
आत्मा का जागरण हमें सिखाता है कि सच्चा सुख और शांति बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि हमारे भीतर है। आत्मनिरीक्षण और ध्यान के माध्यम से हम अपने जीवन के उद्देश्य को समझ सकते हैं और सच्चे सुख का अनुभव कर सकते हैं। जीवन में भौतिक इच्छाओं से परे आत्मा के मार्ग को समझना ही हमें पूर्णता की ओर ले जाता है।

पहेली का उत्तर : नारियल (अंदर का पानी पियो, गर्री खाओ और छिलका जलाओ)
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