अनुच्छेद सात
वंशीधर अपनी बैठक में चाय पी रहे थे। चाय की चुस्कियों के बीच वे बड़बड़ा उठते-तन्नी नन्दू..., हरवंश तन्नी नन्दू... मानवाधिकार आयोग का फन्दा भी कसता जा रहा है। वंशीधर की कहानी को आयोग खारिज कर चुका है। निर्णय यदि विपक्ष में हो गया तो..... वे एक बार सिहर उठे। चाय आधी छोड़ दी। अपना रोल उठाया। कमरे के बाहर आ गए। 'हूँ' एक बार रोल घुमाया। फिर निकला 'हूँ'। वे जीप की ओर बढ़े। ड्राइवर आ गया। वे अपनी सीट पर बैठ गए। गाड़ी भर्र... भर्र आवाज़ कर चल पड़ी। एक कत्ल की जाँच के सिलसिले में आवश्यक प्रतिपुष्टि के लिए उन्हें दूर के एक गाँव में जाना है।
वे लगभग पाँच किलोमीटर ही गए होंगे कि उनका फोन बज उठा। उनके एक मित्र पुलिस अधिकारी ने सूचित किया कि मानवाधिकार आयोग ने उनके खिलाफ सख्त टिप्पणी की है और सम्बंधित मुकदमें में उनके खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने की सिफारिश भी। उसने यह भी बताया कि जो कुछ करना है एक दो दिन में ही कर लीजिए। उसके बाद मामला हाथ से निकल जाएगा। सूचना मिलते ही वंशीधर के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। कुछ क्षण वे सोच नहीं पाए कि क्या करें? जीप फर्राटे से जा रही थी। उन्हें प्रकृतिस्थ होने में लगभग दस मिनट का समय लगा। तब तक गाड़ी लगभग आठ किलोमीटर और आगे निकल चुकी थी। उन्होंने चालक से कहा 'गाड़ी मोड़ लो।' अब लगभग बीस मिनट बाद वे पुनः अपने आवास पर पहुँच गए। बैठक में कदम रखते ही उन्होंने अपने खास मित्रों को फोन मिलाया। गोपनीयता बनाए रखने के लिए बैठक का दरवाजा बन्द कर लिया। सम्बंधित जनपद के पुलिस अधीक्षक के पेशकार से उनकी जान पहचान थी। डायरी में फोन नं० भी मिल गया। उन्होंने फोन मिलाया, दुआ-सलाम के बाद पूछा, 'इस समय कहाँ बैठे हो?' 'मैं साहब के आवास पर हूँ' 'बहुत व्यस्त तो नहीं हो?' 'नहीं नहीं, आप काम बताएँ।' 'बहुत ज़रूरी काम है लेकिन फोन कोई और न सुनने पाए।' 'इस समय कमरे में कोई नहीं है। आप निश्चिंत होकर अपनी बात कहें।' 'मेरे खिलाफ कोई मानवाधिकार की रिपोर्ट आई है?' 'मेरे सामने से तो अभी ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं गुज़री।' 'पता करो, संभवतः आई होगी।'
इसी बीच पुलिस अधीक्षक महोदय कमरे में आ गए। उनके हाथ में एक कागज़ था, उसे पेशकार को देते हुए कहा, 'डिप्टी एस.पी. ओम प्रकाश को इस प्रकरण पर जाँच करनी है। एक चिट्ठी जल्दी टाइप करो। मानवाधिकार का मामला है।' इतना कहकर अधीक्षक महोदय एक मीटिंग में चले गए। पेशकार ने पूरी रिपोर्ट को पढ़ा। वंशीधर को फोन मिलाकर बता दिया कि रिपोर्ट अभी-अभी मिली है।
वंशीधर ने माँ की गंभीर बीमारी का हवाला देकर बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी मंजूर कराई। वे पेशकार अवनी रंजन से उनके घर पर मिले। वहीं योजना बनी कि उपाधीक्षक ओम प्रकाश से मिलकर अपने पक्ष में जाँच रिपोर्ट बनवाने की कोशिश की जाए। ओम प्रकाश भी कम होशियार नहीं थे। उन्होंने वंशीधर की बातें तो सुनीं पर अपना पत्ता नहीं खोला। वंशीधर अपने कुछ और परिचितों से भी मिले। इतनी असहाय स्थिति में उन्होंने अपने को कभी नहीं पाया था। एक अवकाश प्राप्त परिचित के यहाँ रात बितायी। रात में उन्हें नींद नहीं आई। वे बराबर मानवाधिकार आयोग के कसते हुए फंदे के बारे में ही सोचते रहे। ओम प्रकाश के सामने धर्म संकट था। वे वंशीधर को बचाने की कोशिश करें या तथ्यों की जानकारी। ओम प्रकाश स्वयं बहुत चिन्तित थे उन्हें लग रहा था कि एक मुश्किल काम की विवेचना उन्हें सौंपी गई है। तथ्य जो चुगली कर रहे हैं, उससे वंशीधर का बच पाना मुश्किल है। वे अपनी बैठक में प्राप्त जानकारियों पर एक नज़र डाल रहे थे। जितना ही वे सोचते दिमाग उलझता जाता। आखिर वंशीधर भी अवकाश ग्रहण करने वाले हैं कार्यवाही यदि उनके विपक्ष में हुई तो....। पर इसी समय उनके मामा के साथ घटी एक घटना दिमाग़ में कौंध गई। उनके मामा को कोतवाल ने अपना रोब ग़ालिब करने के लिए इतना मारा कि उठ नहीं पाए। छह महीने तक बिस्तर पर पड़े रहे, फिर चल बसे। मामा का परिवार अनाथ हो गया था और कोतवाल को प्रोन्नति मिल गई थी। कोतवाल के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा पाए थे लोग। मंगल की कथा उससे बहुत भिन्न नहीं थी। वह भी दरोगा के हाथों मार खाकर मरा था। फर्क यह था कि वह मार खाने के कुछ ही घंटों बाद बिना किसी उपचार के मर गया था। ओम प्रकाश का चयन सीधे प्रान्तीय पुलिस सेवा में चार वर्ष पहले ही हुआ था। उनमें कुछ कर गुज़रने का उत्साह अभी ठंडा नहीं हो पाया था। फिलहाल वे सम्बंधित पक्षों से सही जानकारी प्राप्त करने में जुट गए। वंशीधर अपनी जगह पर लौट गए पर दिन-रात उनका दिमाग़ इसी रिपोर्ट को लेकर बेचैन रहा। उनके कार्यकाल में दरोगा रहे निरंजन प्रसाद को भी सूचित करना है। वे इस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कार्यरत थे। रिपोर्ट में दरोगा का भी नाम था यदि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होती है तो दोनों के खिलाफ कार्यवाही शुरू हो जायगी। शाम को नौ बजे के आस-पास इन्होंने दरोगा को फोन मिलाया। दरोगा ने बहकते हुए कहा, 'मानवाधिकार आयोग हमारा क्या कर लेगा?' वंशीधर ने मसले की गंभीरता को बताने की बहुत कोशिश की पर दरोगा नशे में उस गंभीरता को ग्रहण नहीं कर पाया। वंशीधर स्वयं झुंझला उठे। दो-चार अपशब्द भी कह डाले पर उधर से कोई सार्थक प्रतिक्रिया नहीं हुई।
ओम प्रकाश ने अपनी जाँच पूरी कर ली। मानवाधिकार आयोग वंशीधर और उनके दरोगा निरन्जन प्रसाद को दोषी मान ही रहा था ओम प्रकाश की रिपोर्ट भी उसकी पुष्टि कर रही थी। पुलिस अधीक्षक को रिपोर्ट मिली। उन्होंने ओम प्रकाश से बात भी की और अंततः प्रथम सूचना रिपोर्ट (F.I.R.) दर्ज करने का आदेश शहर कोतवाली को दिया।
वंशीधर को जैसे ही प्रथम सूचना रिपोर्ट अंकित होने की सूचना मिली, सीने में दर्द उठा, वे अस्पताल में भर्ती हो गए।
दरोगा निरंजन प्रसाद को भी सूचना मिली। उनका नशा गायब हो गया। उन्होंने वंशीधर को फोन मिलाया, कहा, 'हुजूर, यह क्या हो गया? आपके रहते यह उम्मीद तो नहीं थी।' अस्पताल में बिस्तर पर लेटे वंशीधर ने डपटते हुए कहा, 'तुम भी वंशीधर पर सब कुछ छोड़कर निश्चिंत हो गए।'
'हुजूर, आप जैसा अधिकारी हो तो निश्चिन्त ही रहा जा सकता है।' निरंजन ने वंशीधर को खुश करने की कोशिश की।
हरवंश बच्चों को कम्प्यूटर का प्रशिक्षण देते हुए आज बहुत उत्साहित थे। प्रशिक्षुओं में कुछ बच्चे हाई स्कूल की परीक्षा दे चुके हैं। आज ही परीक्षाफल घोषित होना है। जैसे ही पाँच बजा उत्तर प्रदेश बोर्ड की बेवसाइट पर अंक पत्र दिखने लगे। पुरवे के तीन बच्चे-वीरेश, नीरा, चाँदनी भी आ गए। हरवंश ने इन तीनों का अंक पत्र निकाला। तीनों सत्तर प्रतिशत से अधिक अंक पाए हुए थे। सभी बहुत खुश हुए। अंक पत्र लेकर घर की ओर भागे। हरवंश अन्य बच्चों का अंकपत्र निकालने में व्यस्त हो गए।
माँ जी मड़ई में बैठी परिणाम का इन्तज़ार ही कर रही थीं। तीनों ने पहुँच कर चरणस्पर्श किया। माँ जी ने अंक पत्र देखा। वे खुश हुईं। यह पुरवे के लिए भी खुशी और गौरव की बात थी। जो भी सुनता दौड़ा चला आता। तीनों बच्चों ने हाई स्कूल में अच्छे अंक लाकर औरों के लिए रास्ता खोल दिया है। तन्नी ने आकर अंकपत्रों को देखा। इसी बीच अंगद और नादान आ गए। 'माँ जी इस पुरवे के लिए यह खुशी का मौका है। हम लोग यहीं आपके सामने आज कीर्तन करेंगे।' नादान ने माँ जी से कहा।
'जरूर कीर्तन करो। बच्चों ने रास्ता दिखाया है।' माँ जी भी चहक उठीं। छोटे छोटे सुख भी कितने महत्वपूर्ण होते हैं?