अनुच्छेद पाँच
गनपति के प्रकरण की जानकारी अंजलीधर को भी हुई। राम प्रसाद ने खुद आकर सारी बात उन्हें बताई थी। तभी से माँ जी बहुत बेचैन हैं। राम प्रसाद के छोटे-छोटे बच्चों का भविष्य उनके दिमाग में कौंध जाता। कमजोरों की ज़मीन पर लोग कब्जा कर रहे हैं। पर यहाँ तो गनपति और उनकी पत्नी का भी पता नहीं। उन्होंने कांति भाई को लगाया कि वे निबन्धन कार्यालय से वस्तुस्थिति की जानकारी करें। कान्ति भाई ने आकर बताया कि विश्रामपुर के खरचू ने गनपति को शराब पिलाकर उनका खेत लिखवा लिया। वे स्वयं गनपति और उनकी पत्नी को साथ लेकर तीरथ करने चले गए हैं। तीरथ वाली बात कान्ति भाई को विश्रामपुर के एक दुधहा ने बताई।
अंजली मंगल की मड़ई में बैठी विचार कर रही हैं। यदि यही प्रवृत्ति बढ़ती रही तो इन पुरवों के कितने ही ग़रीब अपनी ज़मीन से हाथ थो बैठेंगे। आखिर खरचू को राम प्रसाद के नाबालिग बच्चे क्यों नहीं दिखाई दिए? गाँव में कोई भी आदमी किसी प्रकार का गलत काम कर ले और हम चुप रहें यह तो ठीक नहीं। कुछ न कुछ किया जाना चाहिए। कान्ति भाई ने यह बताया था कि राम प्रसाद के बच्चों की तरफ से मुकदमा किया जा सकता है, पर फैसला कब होगा यह कहा नहीं जा सकता। बच्चों को ज़मीन मिलेगी भी या नहीं, कौन जाने ? अंजलीधर ने यह तो चाहा कि मुकदमा कर दिया जाय पर वे आश्वस्त नहीं हो पाईं। मुकदमें की पैरवी में पीढ़ियाँ गुज़र जाती हैं। क्या कोई नैतिक दबाव बन सकता है? पर नैतिक दबाव मानता ही कौन है? मन तर्क-वितर्क करता रहा। उन्होंने अंगद को बुलवाया। उनसे इस प्रकरण पर बात हुई। 'प्रधान जी के यहाँ चलना है', अंजलीधर ने कहा। 'पर वह तो इस पुरवे के विपक्ष में रहते हैं,' अंगद कुछ चिंतित हो उठे। 'यहाँ पक्ष-विपक्ष की बात नहीं है। प्रश्न नैतिक मूल्यों का है। गाँव में कोई कुछ भी करे और सब चुप रहें यह तो अच्छी बात नहीं। हम प्रधान जी से मिलकर इस मसले पर बात करेंगे।' अंजलीधर के साथ तन्नी और नन्दू भी चल पड़े।
अपने दरवाज़े पर अंजलीधर को देखकर प्रधान जी चकित थे। उन्होंने आगे बढ़कर उनका स्वागत किया। मड़हे की बैठक में बिठाकर, घर के अन्दर गए और एक ट्रे में कुछ मीठे बिस्कुट और चार गिलास पानी लेकर आए। माँ जी के सामने रखा। माँ जी ने गिलास का पानी उठाकर पिया और सभी से बिस्कुट लेकर पानी पीने को कहा। पानी पीते हुए माँ जी ने प्रधान जी से पूछा, 'प्रधान जी क्या आप गनपति के बारे में कुछ जानते हैं?' 'जानता क्यों नहीं, गनपति को तो ठरें की आदत है। ठर्रा पीते-पीते वे कहाँ चले गए? कुछ पता नहीं।' 'पर प्रधान जी आप तो ग्राम पंचायत के मालिक हैं। अगर ग्राम पंचायत से कोई आदमी गुम होता है तो उसकी खोज-ख़बर तो लेनी ही चाहिए। यह भी सुना है कि विश्रामपुर के खरचूने गनपति का खेत अपने नाम लिखा लिया है और तीरथ करने चले गए हैं। उसी दिन से गनपति और उनकी पत्नी का कोई पता नहीं है।' 'खरचू ने लिखा लिया?' प्रधान जी ने जानते हुए चौंकने का अभिनयकिया। 'आपको कैसे मालूम हुआ बहन जी।' 'मैंने कान्तिभाई को जानकारी करने के लिए भेजा था। उन्होंने ही मुझे सूचना दी।' 'गनपति का बेटा राम प्रसाद पढ़ा-लिखा नहीं है। वह समझ नहीं पा रहा है कि क्या करे?' 'अगर खरचू ने लिखा लिया है तो मुकदमा तो करना ही पड़ेगा। मुकदमें का खर्च कैसे जुटेगा और क्या फैसला भी जल्दी हो सकेगा?' माँ जी ने प्रश्न भरी दृष्टि से प्रधान जी की ओर देखा। 'खेत के लिए मुकदमा और गनपति के गुमशुदगी की रिपोर्ट तो करनी ही होगी। इसमें खर्च भी लगेगा। सवाल यह है कि खर्च कौन देगा? राम प्रसाद के तो वश का नहीं है कि वे मुकदमें का खर्च दे सकें। अपने तीन बच्चों को पाल लें यही बहुत है। हो सकता है गनपति और उनकी पत्नी को भी खरचू तीरथ कराने ले गये हों। जब तक खरचू लौटकर नहीं आते, गुमशुदगी की रिपोर्ट करना भी ठीक नहीं है। खरचू के लौटने के बाद भी अगर गनपति और उनकी पत्नी का पता न चले तब गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई जा सकती है। आप तो जानती हैं बहिन जी कि पुलिस गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखने में बहुत आना-कानी करती है। ज्यादा से ज्यादा पुलिस प्रार्थना पत्र ले लेगी और कहेगी तुम लोग खोजते रहो। जब कहीं कुछ सुराग लगेगा तो बताना। गाँव के लोग पुलिस प्रताड़ना से भी बहुत तंग रहते हैं। इसीलिए कोई थाने जाना नहीं चाहता। किसी छुट भैय्या नेता या दलाल को साथ लेकर ही जाता है।' प्रधान जी ने अपनी बात रखी। 'इन सब दिक्कतों के होते हुए भी हमें गनपति के परिवार वालों को न्याय दिलाने में मदद करनी चाहिए। क्या गनपति ने रुपये लेकर खेत लिखा है या शराब के नशे में। इसकी जानकारी करनी होगी।' माँ जी अपनी बेचैनी व्यक्त करती रहीं। 'मैं खुद अब तक यह जानकारी इकट्ठी कर लेता किन्तु मुझे एक जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा। अब लौटा हूँ तो इस मसले की जानकारी प्राप्त करने की पूरी कोशिश करूँगा। खेत अगर लिख गया है तो मुकदमा तो करना ही पड़ेगा।' प्रधान जी अपनी कठिनाई बताते रहे। अंगद, तन्नी और नन्दू चुपचाप माँ जी और प्रधान जी की बातचीत को समझने का प्रयास करते रहे। नन्दू और तन्नी यह भी सोचते रहे कि गाँव की समस्यायें कितनी कठिन होती जा रही हैं। 'क्या ऐसा नहीं हो सकता कि खरचू पर नैतिक दबाव बनाया जाय और वे खेत गनपति के वारिशों को लौटा दें।' माँ जी ने प्रश्न किया। प्रश्न सुनते ही प्रधान जी ठठाकर हँस पड़े। 'बहिन जी आप भी कैसी बात कर रहीं? कोई लौटाने के लिए खेत लिखाता है?' इतना कहकर प्रधान जी मुस्करा उठे। 'कोई नैतिक दबाव मान नहीं रहा है यह बात सच है पर हमें प्रयास तो करना चाहिए।' माँ जी ने प्रधान जी के चेहरे की ओर देखा। 'आप कहती हैं तो यह भी करके देख लिया जाय। खरचू के लौटने पर उनसे कहा जाय कि वे खेत गनपति के वारिशों को लौटा दें। अब यह अलग बात है कि वे लौटाते हैं या नहीं। लेकिन यह सब तभी हो सकता है। जब खरचू तीरथ करके लौट आयें। ऐसा न हो जाय कि गनपति को साथ लेकर खरचू सधुवाय जाएँ?' प्रधान जी कहते हुए फिर कुछ हँसे। 'क्या ऐसा भी हो सकता है?' माँ जी ने पूछ लिया।
'यहाँ कुछ भी हो सकता है बहिन जी। ज़मीन हथियाने के लिए लोग चोर, डकैत, साधू कुछ भी बन सकते हैं।' प्रधान जी की बात से माँ जी इस सम्पूर्ण प्रकरण को समझने की कोशिश करने लगीं। यदि गाँव में रहना है तो इन सभी समस्याओं को हाथ में लेना पड़ेगा। वे जैसे निर्णय के दूसरे दौर से गुज़र रही हैं। 'ठीक है प्रधान जी। किसी तरह का नैतिक दबाव तो तभी बनाया जा सकता है जब खरचू तीरथ से लौट आएँ। यदि महीने दो महीने में भी तीरथ से न लौटें तो वैकल्पिक व्यवस्था तो करनी ही पड़ेगी। मैं समझती हूँ कि आप इस मामले में रामप्रसाद की मदद करें।'
"ठीक है, ठीक है। मैं पूरी कोशिश करूँगा।' प्रधान जी ने आश्वस्त किया। इसी के साथ माँ जी उठ पड़ीं। अंगद, तन्नी और नन्दू भी साथ ही चल पड़े।
राह में चलते हुए माँ जी ने कहा-'भाई अंगद हमें अपने काम को और बढ़ाना होगा। हमारे आस-पास कुछ ग़लत घट रहा हो तो हम आँख मूँद कर बैठे नहीं रह सकते। चुप होना भी अन्याय और आतंक का समर्थन करना होता है। गनपति के मामले से हमें एक सबक मिला है। महिलाओं को शराबखोरी के खिलाफ भी आन्दोलन करना होगा।' अंगद, तन्नी और नन्दू ने भी अपनी सहमति दी। 'बहुत ज़रूरी है माँ जी। संगठित होकर ही हम कुछ कर सकते हैं। महिला सभा में इस मामले को रखा जाय।' तन्नी कुछ उत्साहित हो बोल पड़ी। चलते हुए चारों लोग हठी पुरवा पहुँच गए। तन्नी की मड़ई में माँ जी तख्ते पर बैठ गईं। अंगद और नन्दू डेरी के काम से चले गए। तन्नी एक गिलास में जल ले आई। जल पीते हुए माँ जी सोचती रहीं। यदि इन लोगों का विकास करना है तो चीजों को समग्रता में लेना होगा। फुटकर प्रयत्नों से सामाजिक बदलाव में बहुत सफलता नहीं मिलती। एक प्रयास करने पर दूसरे प्रयास की भूमिका बन जाती है। तन्नी और भँवरी ने मिलकर रोटियाँ बनाई। आलू का भुरता लगाया। दोपहर का समय था। तन्नी दौड़कर आई। एक लोटे में पानी लाकर रखा और थाली में रोटी और भुर्ता ले आई। 'तुम लोग भी हमारे साथ ही खाओ।' माँ जी ने संकेत किया। 'हम लोग भी खाने ही जा रहे हैं माँ जी', कहकर तन्नी घर के अन्दर चली गई। माँ जी खाते हुए सोचती रहीं। विकास की परिधि का विस्तार कैसे किया जाएगा? मन दुखी था ही चिंतित भी। हमें अपने हाथों को और मजबूत करना होगा। सोचते विचारते हुए माँ जी ने भोजन समाप्त किया। थाली लेकर नल तक गईं। उसे साफ किया। आकर अपने तख्ते पर बैठ गईं। माँ जी अपनी थाली स्वयं धोती हैं। वे सोचती रही हैं कि अपने छोटे-छोटे काम यदि हम लोग स्वयं कर लिया करें तो किसी पर उसका अधिक बोझ नहीं पड़ेगा। दूसरे दिन माँ जी ने महिलाओं की एक बैठक की। महिलाओं से पूछा कि क्या वे चाहती हैं कि घरों में शराब न पी जाय। अधिकांश महिलाओं ने सहमति जताई। कुछ महिलाएँ संकोच कर रही थी। वे चुप रहीं। पूछने पर उन महिलाओं ने बताया कि हमारे घर के लोग प्रायः शराब पीते हैं। इसीलिए हम लोग संकोच कर रही हैं। 'क्या तुम लोग सोचती हो कि शराब पीना जरूरी है।' माँ जी ने पूछा। 'हमारे यहाँ लोग कहते हैं कि शराब से ताकत बढ़ती है। कुछ पुरवों में लोग महुवे से शराब बना भी लेते हैं। आस-पास के पुरवों में कहाँ-कहाँ महुवे से शराब बनाई जाती है? माँ जी ने इसकी जानकारी ली। 'महुवे से ताकत मिलती है या नहीं इसके बारे में हम लोग किसी डॉक्टर को बुलाएँगे और उनसे जानेंगे कि शराब से ताकत मिलती है या नहीं। लेकिन एक दूसरी बात भी है। शराब में जो पैसा लगता है वही पैसा दूसरे अच्छे कामों में भी लग सकता है। शराब पीकर आदमी कभी-कभी बक-झक और मार-पीट पर उतर आता है। बहुत से ऐसे काम कर डालता है जिसे नहीं करना चाहिए। इसी ग्राम पंचायत के गनपति ने शराब के नशे में अपना खेत दूसरे को लिख दिया। अब तो गनपति का भी पता नहीं है। शराब पीकर आदमी अपराध करने से परहेज नहीं करता। बहुत से घर शराब के कारण ही बर्बाद हो रहे हैं। क्या इससे तुम लोगों को दुख नहीं होता?' 'होता है। लेकिन हमारे घर के लोग कहते हैं कि हम हाड़-तोड़ मेहनत करते हैं, शाम को थोड़ी शराब ले लेने से थकान मिट जाती है। नींद अच्छी आती है।' महिला की बात सुन कर माँ जी मुस्करा उठीं। इन सभी बातों पर हम लोग किसी डॉक्टर को बुलाकर बात करेंगे ।। जब आप लोग सन्तुष्ट हो जायँ तभी हम लोग मिलकर कोई कदम उठाएँगे। माँ जी की इस आश्वस्ति से वे महिलाएँ भी संतुष्ट हुई जिनके घरवाले शराब पीते हैं। माँ जी ने पढ़ाई-लिखाई और अँचार के प्रशिक्षण पर चर्चा की। तन्नी ने प्रगति की जानकारी दी, आगे क्या करना है इसकी भी रूपरेखा रखी। जिन महिलाओं ने अँचार से कुछ आमदनी कर ली थी, वे बहुत खुश थीं। सफलता लोगों में सहज आत्म विश्वास पैदा करती है। तन्नी की रिपोर्ट के बाद महिलाओं की यह बैठक समाप्त हो गई।
माँ जी हड़बड़ी में कोई कदम नहीं उठाना चाहती थीं। उन्होंने वत्सला, विपिन और कान्तिभाई से सम्पर्क किया और बताया कि किसी डॉक्टर से सम्पर्क करके उन्हें यहाँ लाइए जो महिलाओं के समक्ष शराबखोरी के पक्ष और विपक्ष में वैज्ञानिक ढंग से विचार कर सकें। लोगों के सवालों का जवाब भी दे सकें। 'क्या मद्य निषेध का कार्यक्रम चलाना है? कान्तिभाई ने फोन पर ही पूछा। 'जरूरत पड़ी तो चलाना ही पड़ेगा। अभी तो यही तय करना है कि शराब खोरी लाभप्रद है या हानिप्रद ?' 'मैं समझ गया। मद्य निषेध के पक्ष में वातावरण तभी बनेगा जब लोगों को सही वैज्ञानिक जानकारी दी जाएगी।' कान्तिभाई ने माँ जी के मन्तव्य को पढ़ लिया।
एक सप्ताह बाद विपिन और कान्तिभाई एक पुरुष और महिला डॉक्टर को लेकर हठी पुरवा पहुँचे, सायंकाल चार बजे का समय। दोनों चिकित्सकों ने महिलाओं और पुरुषों के टेढ़े-मेढ़े सवालों का जवाब भी दिया। अन्त में डॉक्टरों ने स्वयं ही लोगों से पूछा कि शराब पीना चाहिए या नहीं। सभी ने 'नहीं' के पक्ष में हाथ उठाया। 'फिर क्यों पीते हैं?' महिला डॉक्टर ने प्रश्न किया। इस पर एक पुरुष ने सवाल कर दिया कि शराब फिर क्यों बनती और बिकती है? शराब न बने तो लोग कैसे शराब पिएँगे? पुरुष के सवाल से महिला डॉक्टर थोड़ा हड़बड़ाई पर सँभल गई और कहा कि शराब बनाने और बेचने का लायसेंस सरकारें देती हैं। सरकार को पैसा मिलता है। हम सब सीधे इस पर कोई नियन्त्रण नहीं कर सकते। पर शराब से अधिकतर हमारा ही स्वास्थ्य खराब होता है, इसलिए सोचना भी हमें ही होगा। तभी एक ग्रामीण ने कहा, 'भैया सरकार तो कहत है गैयो गाभिन, बैलो गाभिन, सोचैक तो हमहिन का परी।' सरकार के मुनाफा खातिर हम आपन तनदुरुस्ती काहे खराब करी?'
माँ जी अत्यन्त प्रसन्न दिखीं। महिला डॉक्टर ने बहुत ढंग से अपनी बात रखी। उसका स्त्री-पुरुषों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसी सन्दर्भ में गनपति की बात उठी जो शराब के कारण अपनी ज़मीन से भी हाथ धो बैठे। तन्नी ने डॉक्टर द्वारा बताए सभी विन्दुओं को एक कापी में नोट कर लिया था जिससे भविष्य में जब कभी ज़रूरत पड़े उन विन्दुओं पर बात की जा सके। शराब हानिकर अधिक है लाभप्रद कम। इस सोच के साथ बैठक खत्म हुई। माँ जी ने महिला डॉक्टर को अलग एक कुर्सी पर बिठा दिया जिससे महिलाएँ अपनी तकलीफ उनसे बता सकें। महिला डॉक्टर ने महिलाओं से बात की। उनकी समस्याओं को सुना और कुछ के लिए पर्चे पर दवा लिख दी। अपने बैग से निकालकर कुछ को सैम्पुल की दवाएँ भी दी। पुरुष डॉक्टर ने भी कुछ को पर्चे पर दवा लिखी। दोनों डॉक्टरों के व्यवहार से पुरवे के लोग बहुत खुश थे। दोनों डॉक्टर भी इस आयोजन से संतुष्ट थे। उन्होंने पुरवे के लोगों से कहा कि जब कभी कोई तकलीफ हो, आप हम दोनों से सम्पर्क कर सकते हैं।
माँ जी के इस आयोजन की चर्चा सभी पुरवों में होती रही। शराब पीने और न पीने पर बहसें भी चल पड़ीं। कुछ घरों की महिलाओं ने अपने घर के पुरुषों को शराब न पीने की हिदायत दी। पुरुष वर्ग भी कहते कि शराब नहीं पीना चाहिए, पर संगति में आकर कभी-कभी लोग पी ही लेते। एक सप्ताह बाद माँ जी ने विकल्प के सभी सदस्यों की एक बैठक करीम की अध्यक्षता में आयोजित की। करीम भी कभी-कभी थोड़ी सी अंगूरी चख लेते थे, पर डॉक्टरों की सलाह के बाद उन्होंने मन बना लिया कि अब शराब को हाथ नहीं लगाना है। बैठक में माँ जी ने गनपति के प्रकरण की जानकारी दी। अंगद ने कुछ उन घरों के बारे में बताया जहाँ कभी-कभार लोग शराब पीते हैं। तन्नी ने डॉक्टरों द्वारा सुझाए गए विन्दुओं को पुनः सबके समाने रखा। अध्यक्ष करीम ने सभी से सवाल किया कि क्या शराब छोड़ने के लिए लोगों से कहा जाय। इस पर सभी ने हाथ उठाकर सहमति व्यक्त की। माँ जी ने यह प्रश्न उठाया कि जो लोग शराब कभी-कभार या नियमित पी लेते हैं उन्हें कैसे मना किया जाय? राम जियावन की बहू दीपा ने कहा 'हमें लोगों को समझा-बुझा कर काम निकालना चाहिए। महिलाएँ प्रायः शराब पीने की आदी नहीं है, इसीलिए आठ-दस महिलाओं का एक समूह बनाया जाय जो शराब सेवन करने वाले घरों को समझाने की कोशिश करें। लेकिन समझाने का काम बहुत मुलायमियत से होना चाहिए।' 'तुम्हारी यह बात बिलकुल सही है।' माँ जी ने भी ताईद की। 'प्रेम से समझाने की ज़रूरत है।' तुरन्त ही दस महिलाओं का नाम प्रस्तावित किया गया। मोलहू की पत्नी सरस्वती को उसका संयोजक बनाया गया। करीम भी बहुत खुश हुए। उनकी पत्नी फरजाना भी मद्य निषेध मण्डल में चुनी गईं। नन्दू ने एक भ्रान्ति की ओर लोगों का ध्यान दिलाया। उसने कहा कि बहुत से पढ़े-लिखे लड़के जब हमसे मिलते हैं तो कहते हैं कि शराब पीना प्रगति की निशानी है। अगर तुम्हें आगे बढ़ना है तो शराब से परहेज़ नहीं करना है। हमें अपने साथियों को यह बात बतानी है कि शराब का शौक प्रगति की निशानी नहीं है। संगी-साथियों के दबाव में ही लोग शराब पीना शुरू करते हैं। हमें अपने मन को मजबूत करना होगा। हमने यह भी सुना है कि यूरोप-अमेरिका में प्रायः घरों में शराब परोसी जाती है। उन ठण्डे देशों में शराब पीना आम चलन में है। हमें अपने देश, यहाँ के रीति-रिवाज के हिसाब से काम करना चाहिए। हमारे बगल में ही थारू परिवारों में शराब पी जाती है, बनती भी है। हम अपने परिवारों में शराब न पीने की बात करते हैं तो सोच-समझ कर ही करते हैं। शराब छुड़ाने के लिए जो प्रयास हम लोग करें उससे लोगों को यह न लगे कि ज़ोर-जबरदस्ती की जा रही है। नन्दू की इन बातों को सभी ने गौर से सुना। माँ जी भी खुश हुई कि नन्दू ने अपनी बात बहुत साफ ढंग से कही है। समाज को एक दिशा में मोड़ने के लिए कुछ बन्दिशें तो लगानी ही पड़ती हैं पर वे बंदिशें ऊपर से थोपी हुई न हों। लोगों के अन्दर से वह बात निकलकर आए। चर्चा ख़त्म होने पर करीम ने बैठक के समापन की घोषणा की और अंगद से गले मिले, कहा कि आपने अध्यक्ष बनाकर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी सौंप दी थी। मैं बहुत खुश हूँ कि एक सही रुख की ओर बात चली।