कभी-कभी ज़िंदगी वो सवाल पूछ लेती है... जिनका जवाब सिर्फ ख़ामोशी के पास होता है। और मोहब्बत... वो अक्सर वहीं से शुरू होती है, जहाँ लोग टूट कर बिखर जाते हैं। सहर की हल्की सी रौशनी जैसे ही शहर के चेहरे पर बिखरनी शुरू हुई, स्टेशन की घड़ी ने सुबह के पाँच बजाए। प्लेटफार्म पर सिर्फ पंखे की आवाज़ और कुछ इक्का-दुक्का कुलियों की फुसफुसाहट थी। इसी सन्नाटे में, एक नीली सलवार में सिमटी सी लड़की बेंच पर बैठी थी — आँखें लाल थीं, पर आंसू थमे हुए... नाम था उसका आयशा। और वो किसी का इंतज़ार नहीं कर रही थी — बल्कि किसी से भागकर आई थी। उसकी गोद में एक पुराना खत था — जिसमें सिर्फ तीन लफ्ज़ लिखे थे: "मैं लौट आऊँगा।" कहने वाले थे आर्यन — वो लड़का जिससे वो पहली बार कॉलेज के लाइब्रेरी में टकराई थी, और जिसे नज़रअंदाज़ करते-करते कब चाहने लगी, खुद भी नहीं जान पाई।
सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान - 1
Rachna: Babul Haq ansari सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान भाग - 1कभी-कभी ज़िंदगी वो सवाल लेती है... जिनका जवाब सिर्फ ख़ामोशी के पास होता है।और मोहब्बत... वो अक्सर वहीं से शुरू होती है, जहाँ लोग टूट कर बिखर जाते हैं।सहर की हल्की सी रौशनी जैसे ही शहर के चेहरे पर बिखरनी शुरू हुई, स्टेशन की घड़ी ने सुबह के पाँच बजाए। प्लेटफार्म पर सिर्फ पंखे की आवाज़ और कुछ इक्का-दुक्का कुलियों की फुसफुसाहट थी।इसी सन्नाटे में, एक नीली सलवार में सिमटी सी लड़की बेंच पर बैठी थी — आँखें लाल थीं, पर आंसू थमे हुए... ...Read More
सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान - 2
Rachna: Babul haq ansari भाग - 2.........धर्मशाला के बाहर की घंटी बजी तो आयशा का दिल एक पल को गया।"कौन होगा सुबह-सुबह...?"मीनू ने पर्दा हटाकर बाहर झाँका — एक डाकिया था।"डाकिया...? आज भी कोई चिट्ठी लिखता है क्या...?" मीनू चौंकी।आयशा दौड़ती हुई आई —उसके हाथ काँप रहे थे…डाकिया ने बिना कुछ कहे एक सफ़ेद लिफाफा थमाया, और चला गया।लिफाफे पर सिर्फ तीन शब्द लिखे थे —"माफ़ कर देना…"आयशा ने कांपते हाथों से लिफाफा खोला।भीतर सिर्फ एक पन्ना था —आर्यन की लि*आयशा,मैं तुम्हारे लायक नहीं रहा…तुम्हारी मासूमियत के सामने मेरी ज़िंदगी की हकीकतें शर्मिंदा हैं।जब वक़्त और हालात मेरा साथ ...Read More