भाग-8
रचना:बाबुल हक़ अंसारी
"सुरों के दरमियान वो ख़ामोशी"
(नए पात्र की रहस्यमयी एंट्री के साथ)
पिछले भग: की झलक:
“अगर मेरी धुन अधूरी लगे कभी,
तो बस… आंखें मूंद कर गा देना —
मैं वहीं रहूँगा, तुम्हारी आवाज़ में…”
स्टूडियो में अब सन्नाटा था।
आयशा की गायी धुनें रेडियो पर बज रही थीं, लेकिन अयान की आँखें बार-बार उसी पुरानी चिट्ठी पर टिक जातीं।
उसे लग रहा था — कुछ और था इस चिट्ठी के पीछे,
जैसे कोई कहानी जो आर्यन ने अधूरी छोड़ी हो… जानबूझ कर।
उसी शाम, स्टूडियो के गेट पर एक अनजान व्यक्ति आया।
काले कोट में, गहरी आँखें और हाथ में एक पुराना हारमोनियम।
"मैं युवराज हूँ…"
उसने धीमी आवाज़ में कहा।
"आर्यन मेरा जूनियर नहीं था…
वो मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा था — और मेरा सबसे बड़ा गुनहगार भी।"
अयान और आयशा सन्न रह गए।
"गुनहगार?" – आयशा चौंकी।
"क्यों?"
युवराज ने हारमोनियम खोला, उसके अंदर एक पेपर चिपका था —
आर्यन की लिखावट में —
"युवराज, अगर ये सुर कभी टूटे… तो मेरी ख़ामोशी को मत तोड़ना…"
"हम दोनों कॉलेज के दिनों में एक ही धुन पर काम कर रहे थे…"
युवराज की आँखें भर आईं।
"वो धुन जो आज 'अनकही चिट्ठियाँ' में बजती है — वो हमारी साझी थी…
लेकिन एक दिन आर्यन ने सबकुछ छोड़ दिया… बिना वजह बताए।"
अयान बीच में बोला —
"शायद वजह तुम थे, या तुम्हारी धुन!"
"नहीं," युवराज मुस्कुराया,
"वजह वो थी… जो शब्दों में नहीं कही जा सकती… जो सिर्फ सुरों के दरमियान छुपी होती है…"
आयशा ने गौर से युवराज को देखा,
जैसे उसके अंदर भी कोई अनकहा राज सिसक रहा हो।
"तो क्या तुम आज भी उसी अधूरी धुन को पूरा करना चाहते हो?"
आयशा ने पूछा।
"नहीं…"
युवराज बोला,
"मैं चाहता हूँ कि आर्यन की धुन अब तुम्हारी आवाज़ से मुकम्मल हो…
मैं सिर्फ उसकी ख़ामोशी का जवाब ढूँढने आया हूँ।"
अगली सुबह स्टूडियो में एक नई रिकॉर्डिंग की तैयारी थी।
पर इस बार माइक्रोफोन के सामने तीन लोग थे —
आयशा, अयान, और अब युवराज।
बजने वाली थी —
"वो धुन… जो तीन दिलों की खामोशी से बनी थी…"
सुबह के पाँच बजे।
स्टूडियो की खाली दीवारों पर सूरज की हल्की रौशनी पड़ रही थी।
वो जगह जहाँ रातों की चुप्पी सुरों में बदलती थी, अब एक नई शुरुआत के लिए तैयार हो रही थी।
अयान, युवराज और आयशा — तीनों उस रचना के चारों ओर बैठे थे,
जिसे अब केवल एक गीत नहीं, एक मिशन माना जा रहा था।
"इस साज़ की रचना कोई आम धुन नहीं थी,"
युवराज ने कहा।
"यह उस अधूरी मोहब्बत की सदा है,
जो वक़्त की सीमाओं से परे जाकर भी बजती रही।"
रिकॉर्डिंग शुरू हुई।
पियानो की धीमी उँगलियों के साथ आयशा की आवाज़ गूंजने लगी:
"तेरे नाम की धुन जो अब भी कानों में है,
तू तो गया, पर रूह मेरी आज भी तेरे साज़ पे थिरकती है…"
वो गीत था जो सिर्फ़ एक प्रेमी नहीं,
एक बहन, एक दोस्त और एक अधूरे फनकार की पुकार था।
इतने में... एक दस्तक हुई।
दरवाज़ा खुला।
एक लड़की — अन्वी, हाथ में एक फाइल लिए खड़ी थी।
"मैं श्रेया की सहेली हूँ… और ये… उसके आख़िरी डायरी के पन्ने हैं।"
तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा — समय ने जैसे एक और परत खोल दी थी।
डायरी में लिखा था:
"आर्यन को मैंने कभी बताना नहीं चाहा कि मुझे कुछ दिन का ही वक़्त मिला है।
क्योंकि उसकी आँखों में मेरे लिए सिर्फ़ ज़िंदगी थी…
और मैं उसमें मौत का साया नहीं बनना चाहती थी।"
"अगर वो कभी मेरी वजह से टूटे,
तो उससे कहना — मेरी मोहब्बत कभी अधूरी नहीं थी,
बस वक्त ही कम पड़ गया…"
अयान की आँखों से आँसू चुपचाप बह निकले।
"तो श्रेया को सब पता था…"
उसकी आवाज़ काँप रही थी।
आयशा ने उसके कंधे पर हाथ रखा —
"इसलिए आर्यन ने तुम्हें कभी दोष नहीं दिया… क्योंकि उसने सच्चाई को अपनाया था, शिकायत को नहीं।"
युवराज ने धीरे से कहा:
"हमें इस धुन को एक नाम देना होगा… ऐसा नाम जो वक़्त को चुनौती दे।"
अयान ने आँखें पोंछते हुए कहा —
"‘वो साज़… जो वक़्त से आगे निकल गया।’"
और इस तरह…
आर्यन की आख़िरी मोहब्बत
एक धुन बनकर दुनिया के सामने आने को तैयार थी।
(जारी है…)
अगला अध्याय: "शब्दों के पीछे छुपे जज़्बात"
जहाँ डायरी की एक और परत खुलेगी… और एक ऐसा राज़ सामने आएगा जिसे जानकर सबकुछ बदल जाएगा।