सजल
समांत-आर
पदांत-आया
मात्रा भार-11/13
11/13
दीपों का त्यौहार, द्वार तक चल कर आया।
फैला नव-उजियार, घरों में खुशियाँ लाया।।
सजी अयोध्या आज, दिवाली है मुस्काई।
जन्म-भूमि से प्यार, राम मंदिर मनभाया।।
हुआ सनातन एक, बजा अब डंका जग में।
काशी में जयकार, कीर्ति ध्वज है फहराया।।
ब्रज की गलियों में, कृष्ण-वंशी गूँजेगी।
*दिव्य* प्रेम विस्तार, नेह-बादल मँडराया।।
संभल है आजाद, चला कल्की का डंडा।
कलयुग का अवतार, राज-योगी का भाया।।
तुष्टिकरण का रोग, लगा था राजनीति को।
होगा अब उपचार, हटा है काला साया।।
गीता का उपदेश, गूँजता जग में अब तो।
भारत की हुंकार, विश्व है फिर हर्षाया।।
मनोज कुमार शुक्ल "मनोज"
21/10/25