🌹 “गुलाब और नस” 🌹
कहानी लिखते-लिखते ख़ामोश हो गई,
कुछ पन्ने जल गए, कुछ पन्ने कीड़े खा गए,
हम गुमराह रहे, ढूँढते रहे,
वो किरदार जो ख़ुद से बिछड़ गया।
हकीम नस पकड़कर दर्द ढूँढता रहा,
इलाज ऐ रूह, बंद हो गई,
हर दवा ने बस यादें ही बढ़ाईं,
और हम खामोशी में खोते रहे।
कुछ पन्नों को गुलाब की तरह सजा कर,
हम समेट कर बैठ गए,
ज़िंदगी ने सिखाए अपने सबक,
कुछ मीठे जैसे खुशबू वाला गुलाब,
कुछ कड़वे जैसे बीमारियों का जख्म।