गीत
कुकुभ छंद
मात्रा भार 16/14
प्रभु मुझको वरदान यही दो,
सुख के कुछ पल दो पुलकन।
दुख से चाहे झोली भर दो,
मानवता की हो धड़कन।।
सदा बनूँ दूजा हित साधक,
नहीं किसी से हो अनबन।।
सत्य कह रहा हूँ मैं तुमसे,
जग से मुझको प्यार मिला।
मात-पिता के काँधे चढ़कर,
उनका बड़ा दुलार मिला।।
जीवन भर यादों की पूँजी,
मिला सदा ही अपनापन।
बड़ा हुआ तो घर में अपने,
छोटों से सम्मान मिला।
सानिध्य वरिष्ठों का पाकर,
नित गोदी में लाड़ मिला।।
दोस्तों से खुशियाँ हैं पाईं,
जिसे निभाया आजीवन।।
यौवन में है साथ निभाया,
गृह लक्ष्मी जब घर आई।
सुलझाया मेरी हर उलझन,
वंश लता तब हर्षाई।।
बचपन से आँगन हर्षाया।
तब भविष्य चिंतन मंथन।।
हुई शारदे की अनुकम्पा,
कलम पकड़ ली हाथों में।
मानव की पीड़ा को लिख लिख,
बसा लिया है साँसों में।।
लेखक का कर्तव्य निभाया,
मानवता हित संवर्धन।
जलूँ दीप सा आँगन-आँगन,
तमस हरूँ जग का हरदम।
सुख समृद्धि की वर्षा नित हो,
यही कामना करते हम।।
राष्ट्रभक्ति जन-जन में मचले,
देश प्रेम का अभिसिंचन।।
प्रभु मुझको वरदान यही दो,
सुख के कुछ पल दो पुलकन।
दुख से चाहे झोली भर दो,
मानवता की हो धड़कन।।
मनोजकुमार शुक्ल 'मनोज'