भाइयो, यह गर्व नहीं, यह शर्म है।
यह आत्मा का पतन है।
भाइयो और बहनो,
आज हम अपने आपको “सोने की चिड़िया की संतान” कहते हैं, “विश्वगुरु” कहते हैं, और यह दावा करते हैं कि हम दुनिया का सबसे उच्च आध्यात्मिक देश हैं। लेकिन ज़रा ठहरकर आईना देखिए — क्या सचमुच ऐसा है?
⚑ दृश्य देखिए —
गाँव-शहर में, गाँव के चौराहे पर, मंदिरों और आश्रमों में, लोग भूख से पीड़ित होकर भीड़ की तरह इकट्ठे हैं। उन्हें बस दो वक्त की रोटी चाहिए। और जब कोई ठग या नकली संत उन्हें यह रोटी भंडारे में परोस देता है, तो वही भूखे लोग उसे “भगवान” कहने लगते हैं।
क्या यही है सोने की चिड़िया की संतान का गर्व?
क्या यही है विश्वगुरु का प्रमाण?
⚑ भाईयो, यह सच्चाई एक करारा तमाचा है —
उन सब दावों के गाल पर जो कहते हैं कि हम आध्यात्मिक राष्ट्र हैं।
तमाचा है उन नेताओं और गुरुओं पर जो हमें विकसित और सम्पन्न बताते हैं।
तमाचा है उस पूरे समाज पर जो भूख को मिटाने के बजाय उसे धर्म और भक्ति का साधन बना देता है।
⚑ याद रखिए —
असली आध्यात्मिकता भूखे पेट पर भंडारे की रोटी डालना नहीं है।
असली आध्यात्मिकता है —
कि कोई भूखा सोने ही न पाए।
कि हर बच्चा शिक्षा और सम्मान पाए।
कि हर परिवार अपने श्रम और आत्मनिर्भरता से जिए।
और जब कोई गुरु सामने आए, तो वह पेट भरने नहीं, आत्मा जगाने का काम करे।
⚑ लेकिन आज क्या हो रहा है?
रामपाल जैसे ढोंगी, रोटी बाँटकर भीड़ इकट्ठी करते हैं और भीड़ उन्हें भगवान कह देती है।
भीड़ सोचती है कि दो वक्त का भोजन ही भक्ति है।
और इस भीड़ को देखकर हम फिर भी गर्व से कहते हैं — “हम विश्वगुरु हैं।”
भाइयो, यह गर्व नहीं, यह शर्म है।
यह आत्मा का पतन है।
यह उस “सोने की चिड़िया” की असली तस्वीर है —
जहाँ सोना नहीं बचा, केवल भूखी चिड़िया फड़फड़ा रही है।
⚑ इसलिए मैं कहता हूँ —
जिस दिन लोग भंडारे की थाली छोड़कर अपने श्रम और आत्मज्ञान से जीना सीखेंगे,
जिस दिन लोग किसी ढोंगी को भगवान कहने के बजाय अपने भीतर के भगवान को पहचानेंगे,
उसी दिन हमें अधिकार होगा “विश्वगुरु” कहने का।
तब तक, यह हर मुफ्त की थाली और हर ढोंगी संत —
हमारे दावों के गाल पर एक करारा तमाचा हैं।
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲