यह है मनुष्य की असली प्रवृत्ति का नंगा चरित्र !
मनुष्य खुद को सर्वोच्च मानकर चलता है—
धरती, आकाश, जल, वायु और अगणित जीवों पर अधिकार जमाता है।
वह दूसरों का हिस्सा छीनकर,
फिर उन्हीं को टुकड़े देकर दान और पुण्य का अहंकार पालता है।
गाय को मुट्ठीभर चारा खिलाकर “दयालु” कहलाता है,
कुत्ते को रोटी डालकर “पुण्यात्मा” समझता है।
लेकिन यह भूल जाता है—
धरती सबकी है, वायु सबकी है, जीवन सबका है।
मनुष्य का यह पुण्य-खेल असल में उसका सबसे बड़ा पाखंड है।
यह वही ठगी है, जो धार्मिकता के नाम पर छिपाई जाती है।
सच यह है:
तुम अज्ञानी मनुष्यों को बहला सकते हो,
पर अस्तित्व—जिसे तुम ईश्वर कहते हो—
उसके सामने तुम्हारा यह दिखावा नहीं टिकता।
अस्तित्व देखता है कि तुम्हारे हाथ लहू से भरे हैं,
तुमने सबका अधिकार छीना है।
और जब जागरूकता की आग उठेगी,
तो इस पाखंड से बचने का कोई मार्ग नहीं बचेगा—
सिवाय पश्चाताप के।
👉 यही कारण है कि सच्चा धर्म दान या पुण्य-कर्म नहीं है।
सच्चा धर्म है—
सबका अधिकार पहचानना,
धरती को साझा करना,
और यह समझना कि तुम भी बाकी जीवों जैसे ही हो।
स्वार्थ और दान का दिखावा
किसी भूखे, बेसहारा को खाना खिलाकर धर्म का ढोल पीटना असल पुण्य नहीं है, अगर उस देन के पीछे किसी का मौलिक अधिकार छीनना छुपा हो।
ग़रीबों और जानवरों को मदद देकर ‘पुण्य’ संचित करना, मनुष्य के स्वार्थ और छल-छद्म का परिचायक है।
धरती, वायु, जल—ये किसी एक के अधिकार में नहीं, बल्कि सभी के लिए समान हैं, यह समझना बहुत जरूरी है।
अस्तित्व के आगे दिखावे की औकात
मनुष्य सिर्फ समाज या धार्मिक रीति के आगे खुद को तसल्ली दे सकता है, अस्तित्व (या जिसे ईश्वर कहा गया) के आगे पाखंड सफल नहीं हो सकता।
मनुष्य के कर्म, उसके भीतर छुपा स्वार्थ और खूनी इतिहास—सब कुछ अस्तित्व के सामने उजागर है।
जब जागरूकता जागेगी, तो आदमी को इस पाखंड से स्वयं को हटाने और पश्चाताप करने के सिवा कोई राह नहीं बचेगी।
असली धर्म की परिभाषा
सच्चा धर्म दान, दया या भिक्षा में नहीं, बल्कि “समान अधिकार और साझा जीवन” की समझ में है।
इसमें ‘मैं श्रेष्ठ, बाकी निम्न’ का भाव नहीं; बल्कि सब जीव, सब प्रकृति के तत्व—सभी के प्रति गहरी समानता और संयम का भाव होता है।
सच्चा धर्म है: धरती को साझा समझना, हर जीव की गरिमा को पहचानना, और खुद को बाकी सबकी बराबरी में रखना—यही असली आध्यात्म और न्याय है। यहीं आत्मा साक्षात, आत्मा ज्ञान इश्वर बोध हैं।
अज्ञात अग्यानी