दुपट्टे की उड़ान
वो शाम थी कुछ ख़ास,
जब मैं पीछे बैठी थी स्कूटर पर,
हवा से जूझ रहा था मेरा दुपट्टा,
बन रहा था वो एक शरारती परछाई.
उड़ता-उड़ता जा रहा था वो,
ज़मीन को छूने की चाह में,
तभी एक अनजान हाथ सामने आया,
हेलमेट पहने एक मुस्कुराता चेहरा.
उसने दुपट्टा मेरे हाथों में थमाया,
बिना कहे ही सब कह गया वो,
वो पल एक ख़ूबसूरत एहसास था,
आज भी याद आता है तो खिल जाती हूँ.
☺️☺️